Magazine - Year 1957 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
ढोंगी ‘महापुरुषों’ की काली करतूतों से बचिये।
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(श्री भारतीय योगी)
भारतवर्ष अपने आध्यात्मिक ज्ञान के लिए प्रसिद्ध है। आज से नहीं हजारों वर्ष से यहाँ के साधु और ज्ञानी देश और विदेशों में सम्मान के पात्र रहे हैं। सिकन्दर जैसे दिग्विजयी सम्राट ने भी यहाँ के नंगे फकीरों के सामने मस्तक झुकाया था। इस युग में भी स्वामी दयानंद, विवेकानंद, रामतीर्थ आदि ने भारतीय आध्यात्मिक ज्ञान का उत्कर्ष दिखाकर दूर-दूर के भूखण्डों में उसकी प्रतिष्ठा बढ़ाई है। यही कारण है कि इस देश की अनपढ़ और अज्ञानी जनता ही नहीं वरन् बड़े-बड़े समझदार और विद्वान व्यक्ति भी आध्यात्मिकता का नाम सुनकर सहज ही उस तरफ आकर्षित हो जाते हैं और अध्यात्मज्ञानी कहलाने वाले व्यक्तियों को श्रद्धा तथा भक्ति की भावना से देखते हैं।
पर समय के प्रभाव से भारतीय अध्यात्म में बहुत परिवर्तन हो गया है और उसमें तपस्वी व्यक्तियों के बजाए स्वार्थी और ढोंगी व्यक्ति बहुत बड़ी मात्रा में घुस गये हैं। हमारे कहने का आशय यह नहीं कि ऐसा आजकल ही होने लगा है। और पहले जमाने में सभी साधु वेशधारी महात्मा थे। हम मानते हैं कि साधुवेश धारियों में वास्तविक महात्माओं की संख्या सदैव बहुत थोड़ी रही है। तो भी जहाँ तक हम समझ सकते हैं, पहले इन साधारण साधुओं का उद्देश्य पेट भरने तक ही सीमित रहता था और उनकी प्रतिष्ठा भी मात्र को ही होती थी। पर आजकल जिस प्रकार अन्य अनेक विषयों में मनुष्यों ने ज्ञान-विज्ञान का प्रयोग कर नकली चीजों का रूप असली चीजों से बढ़कर बना दिया है, उसी प्रकार आध्यात्मिकता के क्षेत्र में भी ढोंगी लोग सच्चे लोगों से आगे बढ़ गये हैं और तरह-तरह के दुष्कर्म करके धार्मिकता और आध्यात्मिकता का नाम बदनाम कर रहे हैं। इन दिनों प्रायः ऐसे ढोंगी और ठगने वाले महापुरुषों की करतूतें पत्रों में छपा करती हैं। पर वे लोग भी इतने चालाक हो गये हैं, और जनता इतनी ज्यादा अंधविश्वासी है कि बार-बार भण्डाफोड़ होने पर भी लोगों की आँखें नहीं खुलतीं और इन लोगों का यह गंदा व्यापार निरंतर बढ़ता चला जा रहा है। इस सम्बंध में पिछले दिनों जो घटनाएं इधर-उधर हमारे पढ़ने में आयी हैं उनमें से दो-एक उदाहरण स्वरूप यहाँ देते हैं। एक पत्र लेखक ने अपनी राम कहानी इस प्रकार लिखी है-
‘एक महापुरुष’ जो कीर्तन करते-करते बेहोश होकर गिर पड़ते हैं, भक्ति के आवेश में आकर नेत्रों से आँसुओं की धारा बहाने लगते हैं। इन बातों से प्रभावित होकर मैं पढ़ना—लिखना छोड़कर उनका शिष्य बन गया और साथ रहने लगा। पर पीछे उनके चरित्र देखकर हृदय को बड़ा धक्का लगा। वे जहाँ जाते हैं बड़े-बड़े लोगों के यहाँ ठहरते हैं। व्याख्यान तो खूब झाड़ते ही हैं और साथ ही महापुरुष कहकर अपनी ओर संकेत करते हैं। बेचारे लोगों की भावना तो यही है कि ये साक्षात श्री चैतन्य महाप्रभु के अवतार हैं। मेरी भी ऐसी ही भावना थी। परन्तु जब मैं उनके अत्यंत निकट रहने लगा तो उनके सब चरित्र मेरे दिमाग में भर गये। वेष-भूषा तो पूर्ण गृहस्थों का सा था ही और विलासिता की भी पराकाष्ठा थी। दिन में सौ-सौ पान, खूब तम्बाकू पीना तथा सुँदर और निर्दोष सुकुमारियों का सतीत्व नष्ट करना। और यह हाल मैंने प्रत्यक्ष अपनी आँखों से देखा, तब उनका साथ छोड़कर भाग निकला। तीन मास बाद पत्र-व्यवहार किया। वे एक नगर के किसी बड़े एडवोकेट के यहाँ ठहरे थे। मैंने यही लिखा कि ‘श्री महाप्रभुजी आदि संतों का न यह आदेश है, न उनका आचरण ही ऐसा था’। गोसांई जी भी यही कह गये हैं कि -