Magazine - Year 1959 - Version 2
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Language: HINDI
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मानवता का अभिनन्दन (kavita)
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प्यार करो जीवन से साथी भय न मरण से मानो।
कर्म-साधना के रहस्य को अंतर में पहचानो॥
जीवन के संकल्प नियम के सदृश अनित्य बनाओ।
बनो नहीं देवता स्वयं को मानव किंतु बनाओ॥
व्यर्थ न जाय किसी तरह भी यह जीवन की थाती।
पथ का अंधकार हरने को जलो स्वयं बन बाती॥
आओ जीवन की कर्मठता को दो नूतन भाषा।
अमृत-घट से भरो मनुजता का मानस चिर प्यासा॥ यह विभेद, विद्वेष, विषमता के सब बंधन तोड़ो।
नहीं चरण को पथ पर, पग की ओर पंथ को मोड़ो॥ लक्ष्य-तीर्थ-पाथेय बने अभिनव अभियान तुम्हारा।
नव सर्जन का भवन बने अब संस्कार की कारा॥ युग के मोहक आमंत्रण को तुमने यदि स्वीकारा। जन-जन में,कण-कण में जय-जागृति का स्वर गुँजारा॥ अरुण उषा का चेतनता अंतस में स्वयं उतारी। तब यह मरुस्थल बन जायेगा कुँकम-केसर क्यारी॥ याद रखो जन-जन मिलकर ही अजय राष्ट्र रचते हैं। जनता में ही राष्ट्र-देवता मोद सहित बसते हैं॥ “पंचायती राज्य”
अमृत-घट से भरो मनुजता का मानस चिर प्यासा॥ यह विभेद, विद्वेष, विषमता के सब बंधन तोड़ो।
नहीं चरण को पथ पर, पग की ओर पंथ को मोड़ो॥ लक्ष्य-तीर्थ-पाथेय बने अभिनव अभियान तुम्हारा।
नव सर्जन का भवन बने अब संस्कार की कारा॥ युग के मोहक आमंत्रण को तुमने यदि स्वीकारा। जन-जन में,कण-कण में जय-जागृति का स्वर गुँजारा॥ अरुण उषा का चेतनता अंतस में स्वयं उतारी। तब यह मरुस्थल बन जायेगा कुँकम-केसर क्यारी॥ याद रखो जन-जन मिलकर ही अजय राष्ट्र रचते हैं। जनता में ही राष्ट्र-देवता मोद सहित बसते हैं॥ “पंचायती राज्य”