• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • धरा को ज्योतिर्मय कर दो
    • धरा को ज्योतिर्मय कर दो (kavita)
    • अपने दृष्टिकोण को परिमार्जित कीजिए।
    • आत्म-उपदेश
    • गायत्री का अधिकार और अनाधिकार
    • आत्मनिरीक्षण का स्वभाव बनाइए
    • हम दूसरों के गुणों पर ही ध्यान दें।
    • Quotation
    • गान्धी दर्शन पर आधारित एकादश व्रत
    • प्रेम की साधना
    • विश्वासयुक्त प्रार्थना का प्रभाव
    • श्रद्धा और उसकी शक्ति
    • ब्रह्मदेव कृत सामूहिक यज्ञ
    • आपकी कठिनाइयाँ क्या हैं?
    • कर्तव्य पथ का प्रेरक- रामनवमी पर्व
    • Quotation
    • VigyapanSuchana
    • वास्तविक जीवन की झलक
    • वास्तविक जीवन की झलक (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • धरा को ज्योतिर्मय कर दो
    • धरा को ज्योतिर्मय कर दो (kavita)
    • अपने दृष्टिकोण को परिमार्जित कीजिए।
    • आत्म-उपदेश
    • गायत्री का अधिकार और अनाधिकार
    • आत्मनिरीक्षण का स्वभाव बनाइए
    • हम दूसरों के गुणों पर ही ध्यान दें।
    • Quotation
    • गान्धी दर्शन पर आधारित एकादश व्रत
    • प्रेम की साधना
    • विश्वासयुक्त प्रार्थना का प्रभाव
    • श्रद्धा और उसकी शक्ति
    • ब्रह्मदेव कृत सामूहिक यज्ञ
    • आपकी कठिनाइयाँ क्या हैं?
    • कर्तव्य पथ का प्रेरक- रामनवमी पर्व
    • Quotation
    • VigyapanSuchana
    • वास्तविक जीवन की झलक
    • वास्तविक जीवन की झलक (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1960 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


कर्तव्य पथ का प्रेरक- रामनवमी पर्व

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 14 16 Last
(डॉ. चमनलाल गौतम)

मनुष्य की महानता की कसौटी उसका जीवन व्यवहार है। शरीर, वाणी और मन के सुन्दर व्यवहार को ही शास्त्रकारों ने धर्म कहा है। धर्मात्मा वही होता है जिसका चरित्र उज्ज्वल और व्यवहार अनुकरणीय हो। महापुरुष उसे कहते हैं जो असाधारण कार्य करता है। जिसको देखकर लोग चकित हो जाते हैं। साधारण जनता की अपेक्षा उसमें कुछ विशेषताएं होती हैं, इसलिए वे उनको विशेष प्रकार का आदर और सम्मान देते हैं। वह अपने शरीर की परवाह न करते हुए उस देश और जाति की निःस्वार्थ सेवा में लगा देता है, कर्तव्य पालन के लिए वह अपना सर्वस्व नाश करने के लिए तैयार रहता है। उसके मन में कोमलता होती है, वह दीन-दुखियों के कष्टों को सहन नहीं कर सकता और अपने जीवन की अनमोल घड़ियों को उनके दुःख निवारण में लगा देता है, वह उनके दुःख को अपना दुःख और उनके सुख को अपना सुख समझता है। वह जनता को अभिन्न आत्मा मानता है और तरक व्यवहार करता है। वह अपनी सम्पत्ति को राष्ट्र की सम्पत्ति समझता है। राष्ट्रोत्थान में उस सबको स्वाहा करने में तनिक भी संकोच नहीं करता। गिरे हुओं को ऊँचा उठाना तो उसका जीवन लक्ष्य होता है। इतना होने पर भी उसे इसके बदले में कोई चाह नहीं होती। ऐसी आत्माएं ऊपरी दृष्टि से तो साधारण मनुष्य के आकार में दीखती हैं परन्तु वास्तव में वह देवतुल्य होती हैं। लोग उनकी चरणधूलि को अपने मस्तक पर लगाकर अपने जीवन को धन्य मानते हैं। उनकी पूजा और सम्मान करते हैं ताकि उनके श्रेष्ठ जीवन से शिक्षा ग्रहण करके हम भी उनके पद चिन्हों पर चलने का प्रयत्न करें।

जिस महापुरुष के प्रति हमारे मन में आदर के भाव अधिक होते हैं, उनके कार्यों का गम्भीरता पूर्वक अध्ययन करते हैं और यदि हम में गुणवान ग्राहकता की शक्ति है तो हम भी अपने जीवन को उनके जैसा ही बनाने की चेष्टा करते हैं। यही कारण है कि हम अपने आदर्श महापुरुषों की जयन्तियाँ मनाते हैं ताकि यदि अपने गृहस्थ के व्यस्त कार्यक्रम में उनके उज्ज्वल चरित्र को भूल गए हों तो पुनः उनके देदीप्यमान चरित्र को अपने स्मृति पटल पर अंकित कर लें।

भारतीय इतिहास में भगवान् राम का चरित्र सबसे उच्च और आदर्श रहा है। सहस्रों वर्षों से भारतीय जनता उनकी जीवन गाथा को पढ़ती और सुनती आई है क्योंकि कर्तव्य का पथप्रदर्शन करने में वह सर्वोपरि है। यदि रामायण को हम हिन्दू जीवन का कर्तव्य शास्त्र कह दें तो इस में कोई अतिशयोक्ति नहीं है क्योंकि भगवान राम के जीवन में पग पग पर हम कर्तव्य पालन के दिग्दर्शन होते हैं। यही मानव जीवन की सबसे बड़ी सम्पत्ति है। जो व्यक्ति मनुष्य शरीर धारण करने के रहस्य को समझकर सद्भाव पर अग्रसर होकर उसे श्रेष्ठता की ओर ले जाता है, माता-पिता, बहिन भाई आदि परिवार के सदस्यों के प्रति उनके पोषण व शिक्षा, आदि का पूरा-पूरा ध्यान रखता है, उनके जीवन को उन्नतिशील बनाता है, इसके अतिरिक्त जो अपने आपको समाज का एक अंग मानता है। समाज के शरीर को पीड़ा होने पर अपने शरीर में दर्द अनुभव करता है और जैसे अपने शरीर में कट होने पर तरह-तरह के उपाय सोचे जाते हैं, वैसे ही समाज कल्याण के लिए प्रयत्नशील रहता हैं, तब समझना चाहिए कि उसने कर्तव्य शास्त्र का अध्ययन किया है और तभी अपने जीवन को उसी के अनुसार बनाने में समर्थ हो पाया है।

भगवान राम इन तीनों कसौटियों पर खरे उतरते हैं। उनके व्यक्ति गत जीवन में कोई ऐसी बात नहीं दिखाई देती जिससे हम उन्हें एक साधारण मनुष्य कह सकें। अध्यात्म रामायण में वह स्वयं श्रीमुख से कहते है कि “राम कभी झूठ नहीं बोलता, राम एक बात करता है।” ऐसे उत्कट साहस के साथ इन शब्दों को कहना हर किसी की सामर्थ्य की बात नहीं है। उन्हें कभी किसी पर क्रोध नहीं आया। वह दूसरों की बुराइयों की ओर ध्यान नहीं देते थे, उनकी अच्छाइयों का गुणगान करते रहते थे। जिन्होंने उनके साथ उपकार किया हो उसे वह बार-बार याद करते रहते थे परन्तु जिनके साथ उन्होंने उपकार किया है, उसे वह कभी अपनी जवान पर नहीं लाते थे। उन्होंने भोग में त्याग का आदर्श व्यवहार हमारे सामने रखा है। राजकुमार होने के नाते वह सभी प्रकार के भोग भोगते होंगे परन्तु जब त्याग का समय आया तो उन्हें तनिक भी क्षोभ नहीं हुआ। महर्षि बाल्मीकि जी के शब्दों में।

आहतस्याभिषेकाय विसृष्टस्य बनाय च।

न मया लक्षितस्तसय स्वल्पोऽप्याकार विभ्रमः॥

अर्थात् “राज्याभिषेक के लिए बुलाये गये और वन के लिए विदा किए गए रामचन्द्र के मुख के आकार में मैंने कुछ भी अन्तर नहीं देखा”

भारतीय इतिहास बड़ों के सम्मान और माता-पिता की आज्ञा पालन के उदाहरणों से भरा पड़ा है। भीष्म पितामह ने अपने पिता की प्रसन्नता के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य पूर्वक रहने और विशाल राज्य पर अधिकार न जमाने की प्रतिज्ञा की थी, श्रवण कुमार ने अपने अन्धे माता-पिता को काँवर में बिठा कर समस्त तीर्थों में घुमाया था, नचिकेता पिता की प्रसन्नता के लिए यमपुर चले गए। परन्तु भगवान राम का जीवन सबसे उज्ज्वल है कि जब उनका राज्याभिषेक होने वाला था, उन्हें वल्कल वस्त्र पहनकर वन जाना पड़ा और वह भी चौदह वर्ष के लिए, जहाँ खाने, पहनने, रहने सब प्रकार के कष्टों का सामना करना हो। ऐसा उदाहरण संसार के इतिहास में मिलना कठिन है। पिता के लिए इस महान् त्याग ने राम को हिन्दु जीवन में ओत प्रोत कर दिया है। यदि वह अपने पिता की आज्ञा पालन न करके वन न जाते तो सम्भव है रामायण का जन्म न होता और भारतवर्ष का इतिहास कुछ और ही होता। यदि वह साधारण मनुष्यों की तरह राज्य के लिए लड़ते रहते तो उनकी गिनती केवल राजाओं में होती और वह करोड़ों नर नारियों के हृदय सम्राट न होते। जब कैकेयी के द्वारा उनको वनवास का आदेश मिलता है तो वह कितनी प्रसन्न मुद्रा में कहते हैं कि—

पिता दीन मोहि कानन राजू।

जहिं सब भाँति मोर बड़ काजू॥

अध्यात्म रामायण में वह माता कैकेयी से कहते हैं कि “वह पिता के लिए विष खा सकते हैं, अग्नि की ज्वालाओं में कूद सकते हैं, अपने शरीर का त्याग कर सकते हैं। जब भरत के राज्याभिषेक की बात उन्होंने सुनी तो उनके मन में कुछ भी ईर्ष्या, द्वेष के भावों की जाग्रति नहीं हुई। भरत के लाख प्रयत्न करने पर भी वह अयोध्या नहीं लौटे और उन्हें आदर्श शासक बनने के लिए उपदेश देते रहे।

भगवान राम केवल अपने ही परिवार के प्रति कर्तव्य निष्ठा नहीं रहे वरन् राष्ट्रोत्थान के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहे। वास्तव में उस शरीर का धारण ही आसुरी शक्तियों के नाश और देवत्व के विकास के लिए हुआ था। दक्षिण भारत में रावण के यज्ञ के मुखिया आर्यों की नई बस्तियों को नष्ट करके राक्षस राज्य की स्थापना करने का प्रयत्न जारी था। उस आर्य बस्तियों के अग्रस्त आदि नेताओं ने उन्हें असफल करने का प्रयत्न किया परन्तु वह उसमें कामयाब नहीं हुए और उनकी गतिविधियाँ बढ़ती ही गई। इस समय उन्हें एक सुयोग्य और वीर नेता की आवश्यकता थी जिस का काम भगवान राम ने किया। उन्होंने खरदूषण आदि हजारों राक्षसों को समाप्त करके बढ़ते हुए राक्षस साम्राज्य की स्थापना को रोक दिया। लंका के निकट की छोटी जातियों का संगठन करके रावण जैसे शक्तिशाली राजा का वध करके देश में शान्ति की स्थापना की। इसके लिए उन्हें, चौदह वर्ष तक वनों में कितने कष्ट सहन करने पड़े होंगे उसकी कल्पना करके हृदय काँप उठता है। प्रजा के हित के लिए उन्होंने अपनी प्रिय पत्नी तक का त्याग स्वीकार किया। वह स्वयं त्याग की मूर्ति थे।

रामनवमी के शुभ अवसर पर हम भगवान राम का पूजन करें, उत्सव कर धूम धाम से मनाए रामायण पाठ के आयोजन रखें, पारायण करवायें, जुलूस निकालें और यज्ञ व सभाएं करें। सभा में भगवान के उज्ज्वल चरित्र का गुणगान किया जाय, उपरोक्त गुणों को समझ कर जनता को बताया जाए कि हमें भगवान राम की कथा का पाठ ही जीवन भर नहीं करते रहना है वरन् इसके साथ-साथ उनके आदर्श गुणों व कार्यों को अपने जीवन में धारण करना है। यदि हमारी प्रवृत्ति इस ओर नहीं बढ़ती है तो हम राम के जीवन से कोई विशेष लाभ नहीं उठाते। जिस प्रकार से उन्होंने अन्याय के विरुद्ध झंडा खड़ा किया था, हमें भी सद्ज्ञान प्रसार के लिए जनता का मार्ग दर्शन करना है, अन्याय व अज्ञान के उन्मूलन के लिए अपने कर्तव्य को समझना है।

गायत्री मन्त्र के अर्थ पर यदि गम्भीरता पूर्वक विचार किया जाए तो विदित होगा कि मनुष्य जीवन का सम्पूर्ण कर्तव्य शास्त्र इसमें भरा पड़ा है। जिस ऋतम्भरा बुद्धि से सत्य और असत्य का निर्णय किया जाता है, उसे ही गायत्री कहा जाता है। इस परिभाषा में सभी प्रकार के कर्तव्य आ जाते हैं । जब मनुष्य की बुद्धि शुद्ध और पवित्र हो जाते हैं उसके विवेक का तीसरा नेत्र खुल जाता है, तभी वह अपने कर्तव्यों को ठीक-ठीक समझने लगता है। “धियो यो नः प्रचोदयात्” में परोपकार की भावना है ही। यही कारण है कि गायत्री को वेदों की जननी और भारतीय संस्कृति को आध्यात्मिक माता कहा जाता है। इस अवसर पर हम गायत्री माता की उपासना व प्रसार को भी न भूलें।

First 14 16 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • धरा को ज्योतिर्मय कर दो
  • धरा को ज्योतिर्मय कर दो (kavita)
  • अपने दृष्टिकोण को परिमार्जित कीजिए।
  • आत्म-उपदेश
  • गायत्री का अधिकार और अनाधिकार
  • आत्मनिरीक्षण का स्वभाव बनाइए
  • हम दूसरों के गुणों पर ही ध्यान दें।
  • Quotation
  • गान्धी दर्शन पर आधारित एकादश व्रत
  • प्रेम की साधना
  • विश्वासयुक्त प्रार्थना का प्रभाव
  • श्रद्धा और उसकी शक्ति
  • ब्रह्मदेव कृत सामूहिक यज्ञ
  • आपकी कठिनाइयाँ क्या हैं?
  • कर्तव्य पथ का प्रेरक- रामनवमी पर्व
  • Quotation
  • VigyapanSuchana
  • वास्तविक जीवन की झलक
  • वास्तविक जीवन की झलक (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj