
धरा को ज्योतिर्मय कर दो (kavita)
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धरा को ज्योतिर्मय कर दो !
व्याप्त है गहन तिमिर जो आज-
चतुर्दिक् फैलाये अभिशाप।
ग्रसित करने को शाँति-सुधांशु-
आ रहा राहु चला चुपचाप ॥
हृदय में सद् विचार भर दो !
न हो जाये झंझा में शान्त-
तुम्हारा अमर दीप अभिराम।
युगों से करके पथ प्रशस्त-
आ रहा जलता जो अविराम॥
स्नेह उसमें इतना भर दो !
न रह जाये दुख-दैन्य विषाद-
विश्व में छाये नव-उल्लास।
असत पर हो सत का साम्राज्य-
आत्म-बल का पाकर आभास॥
प्रेरणा ऐसी शुभ भर दो !
-रामस्वरूप खरे ‘साहित्य रत्न’
सम्पादकीय-