Magazine - Year 1960 - Version 2
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Language: HINDI
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एक बार फिर लहराओ (kavita)
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आज हिमालय की चोटी पर एक बार फिर लहराओ!
पुण्य-पताका दिव्य-संस्कृति की जग-नभ में फहराओ!!
महा प्रलय की प्रथम उषा में मनु ने यह हवा लहराई!
संयम नियम विनय श्रद्धा से गर्वोन्नत हो फहराई!!
इसी पताका के नीचे समवेत स्वरों में गान हुआ!
गहन अमा की अँधियारी में ज्ञान दिवा का भान हुआ!!
नील-गगन में अपने श्रम से अपना केतन लहराओ!
वर्तमान में उस अतीत की शुभ सुस्मृतियाँ दुहराओ!!
अरे, यही वह तपोभूमि है कर्मभूमि सुन्दर पावन!
कर्म जहाँ पूजा जाता है धर्म जहाँ है मन - भावन!!
निश्छल सरल हृदय बसते हैं पर सेवा में रत होकर!
जहाँ पराजित कर देते हैं परशुराम को नत होकर!!
त्याग माह, निःस्वार्थ प्रेम से हर मानव को दुलराओ!
विषम हलाहल भी जग- हित पी, नहीं किसी को ठुकराओ!!
आदि काल से देते आये तुम्हीं जगद्गुरु बनकर ज्ञान!
आशान्वित जो उन्हें शान्ति दो, उठो और जागो कर ध्यान!!
सभी क्षुब्ध हैं, सभी सशंकित होते जाते आकुल प्राण!
बन दधीच सर्वस्व दान दे कर दो मानवता का त्राण!!
पावस बन सींचो धरती को जल -पूरित हो घहराओ!
दे अपने प्राणों का बलि भी शरणागत को ठहराओ!!
प्रकृति-अंक में पालित-पोषित, बने स्वावलम्बी जन-जन!
गुरुकुल बने पुनः जिसमें ही सदाचार श्रम का पूजन!!
वर्ण-व्यवस्था, वर्णाश्रम का सादर भाव जगे उर में!
सर्वोदय की प्राण-प्रेरणा जाग उठे फिर हर घर में!!
‘सभी सुखी हों, सबका हित हो’ यही भावना भर, गाओ!
जन-जन के मानस में पावन- सत्य - साधना सरसाओ!!
-राम स्वरूप खरे ‘साहित्य रत्न’
*समाप्त*