Magazine - Year 1960 - Version 2
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Language: HINDI
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दुख-सुख समझ समान (kavita)
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समय बदलता रहता प्रतिफल, दुख सुख समझ समान।
अपने प्रिय जीवन को साथी, भूल नहीं पहचान॥
प्रति दिन उठते ही प्राची में, देखा नया सवेरा,
और साँझ होते ही भू पर, देखा घोर अँधेरा
सुबह को हँसने वाला सूरज, सन्ध्या को मुख म्लान।
अपने प्रिय जीवन को साथी, भूल नहीं पहचान॥1।
जो रजनी ओढ़े आती है नभ में चादर काली
वही रात बिखरा कर जाती प्रातः जग में लाली
रात न आती तो क्या जग को मिलता स्वर्ण विहान।
अपने प्रिय जीवन को साथी, भूल नहीं पहचान॥2।
सूर्य चन्द्र दोनों पर चलती राहु केतु की माया
और सदा ही कुछ क्षण रह कर उड़ती धूमिल छाया
यही सृष्टि का नियम बताता, स्थिर कुछ मत जान।
अपने प्रिय जीवन को साथी, भूल नहीं पहचान॥3।
-त्रिलोकीनाथ व्रजवाल, पिलानी
सम्पादकीय