Magazine - Year 1961 - November 1961
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
अथक प्रयत्न-अनवरत श्रम
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
संसार में जो कुछ आश्चर्यजनक दीख रहा है वह सब मनुष्य के परिश्रम का फल है। आदिम युग में सब कुछ ऊबड़-खाबड़ था। इसे सुव्यवस्थित मनुष्य के परिश्रम ने ही किया है। पर्वतों को काट-काटकर रास्ते बनाये गये है। नदियों का मुँह छोड़कर सिंचाई के साधन जुटाये गये है। जमीन की छाती चीर कर अन्त और धातुओं का भण्डार उपलब्ध किया गया है। समुद्र के गर्भ में से मोती ढूँढ़ें गये है। आकाश में उड़ने,हवा की गति से दौड़ने के और पानी पर उतरने के यंत्र बना कर जल थल तक पर आवागमन सुलभ किया गया है। विज्ञान के इतने आश्चर्यजनक आविष्कार हुए है । कटीली झाड़ियों को काटकर शहर बनाये गये है और इस भद्दी और कुरूप दुनियाँ को एक रंगीन चित्र जैसा सुन्दर सुसज्जित बनाया गया। यह सब मनुष्य के परिश्रम का ही फल है। दूसरे प्राणियों की तुलना में उसने जो प्रचुर सुख साधन एकत्रित किये है वह कहीं आकाश से नहीं टपकते है। सृष्टि के आरम्भ से लेकर अब तक निरन्तर घोर परिश्रम और अध्यवसाय के सहारे ही इन सब सुविधाओं को उपलब्ध कर सकना संभव हुआ है ।
संसार में ऐसे अगणित मनुष्य हुए है जो आरम्भ में साधारण अथवा गिरी हुई स्थिति में थे। बुद्धि बल, धनबल, उनके पास न थे। परिस्थितियाँ भी ऐसी थी जिनमें साधारण स्थिति के व्यक्ति के लिए आगे बढ़ सकना संभव न होता पर उन मनस्वी व्यक्तियों ने इसकी परवा न की और जिस परिस्थिति में भी वे थे उसी में से धीरे-धीरे आगे बढ़ने के लिए कटिबद्ध हो गये ओर अन्त में वे उस मंजिल तक चढ़ सके जिसकी तुलना यदि उनकी पूर्व स्थिति से की जाय तो आश्रय जैसी बात ही प्रतीत होती है। कई लोग इसे भाग्य भी कह सकते है पर भाग्य और कुछ नहीं मनुष्य के प्रबल पुरुषार्थ और आत्म-निर्माण का ही दूसरा नाम है।
कालीदास युवावस्था तक निरन्तर ही नहीं मूर्ख स्वभाव के भी थे। एक परम विदुषी महिला विद्योत्तमा जब धाँखे उनके साथ विवाह करा दिया गया। जब विद्योत्तमा पितृगृह आई तब उसे पता चला कि उसके साथ धोखा किया गया है। जो होना था सो हो चुका था। उसने धैर्य से काम लिया और अपने निरन्तर पति को विधा पढ़ाना तथा स्वभाव को सुधारना आरम्भ कर दिया। काम कठिन था तो भी उसने निरन्तर प्रयत्नशील रहकर उसे पूरा ही किया और कालीदास संस्कृत भाषा के विद्वान् एवं कवि के रूप में प्रख्यात हुए।
महात्मा गाँधी ने अपने बचपन के संस्मरणों में लिखा है-पाठशाला में बिठाया गया। मुश्किल से पहाड़े सीखे। बाकी समय लड़कों के साथ गुरुजी को गाली देना सीखने के अलावा और कुछ सीखा हो यह याद नहीं आता । इससे यह अनुमान करता हूँ कि मेरी बुद्धि मन्द और स्मरण शक्ति ड़ड़ड़ड़ रही होगी।”
मैं बहुत संकोची लड़का था, मदरसे में अपने काम से काम रखता। घंटी बजते-बजते पहुँच जाता और स्कूल बन्द होते ही घर भाग आता। क्योंकि मुझे किसी के साथ बातें करना नहीं रुचता था। मुझे यह भी डर बना रहता था कि कही कोई मेरा मजाक न उड़ायेंगे ।
यदि एक कमजोर ओर दब्बू स्वभाव का लड़का आगे चलकर अपने व्यवसाय के बल पर महात्मा गाँधी-संसार का महान् व्यक्ति बन सकता है तो दूसरे उनका अनुकरण कर वैसा क्यों नहीं कर सकते?
संसार के महान् वैज्ञानिक अलबर्ट आइन्स्टीन ने एक बालक के पत्र के उत्तर में महान् बनने का मंत्र बताते हुए लिखा-हिम्मत न हारो पीठ पर काठ का उल्लू लिख दिया करते थे। प्रश्नों का सही उत्तर न दे सकने के कारण स्कूल में प्रायः रोज ही मुझे सजा मिलती थी। अध्यापक कहा करते थे कि मैं सात जन्म में भी गणित में पास न हो सकूँगा । इतने पर भी मैंने हिम्मत न हारी। लगातार असफलताओं का मुकाबला करते हुए मैं विद्याध्ययन में लगा रहा और उसी का फल है जैसा कि तुम मुझे देखते हो। मैंने हिम्मत नहीं हारी और अपना रास्ता बनाया ।तुम भी यदि महान् बनाना चाहते हो तो हिम्मत न हारो’।
सेनापति वेलिगटन जिसने 46 वर्ष की आयु में आश्चर्यजनक विजय प्राप्त की, बचपन में ड़ड़ड़ड़ माना जाता था। इंटर स्कूल में जब वह पढ़ता था तो उसकी गणना आलसी और नासमझ लड़कों में होती थी। सरवाल्टर स्काट को उसके अध्यापकों ने मूढ’ की उपाधि दे रखी थी। गोल्ड स्मिथ का बचपन ऐसा अव्यवस्थित था कि उसे साथी लोग लकड़ी का चमचा कह कर चिढ़ाते थे।
विश्व विख्यात लेखक एचजीवेल्स जीवन के आरम्भिक दिनों में एक बहुत छोटा कर्की करते थे। परिवार का खर्च चलाने के लिए उन्हें कुल मिलाकर चौदह घंटे मजदूरी करनी पड़ती थी। काम के इतने दबाव से उनकी नस-नस टूटने लगी। एक दिन वह नौकरी छोड़कर भाग निकला और अपनी माता के अंचल में मुँह छुपाकर बच्चों की तरह रोने लगा। इतना परिश्रम करने से तो आत्महत्या कर लेना भला है।
माता ने उसे सांत्वना दी और कहा-हिम्मत हारने की कोई बात नहीं जो परिस्थिति आज है वह सदा न बनी रहेगी। युवक ने निराशा को छोड़ आशा को अपनाया और नया काम तलाश करने लगा। यही लड़का आगे चलकर 77 महान् ग्रन्थों का लेखक हुआ और प्रचुर धन तथा यश कमाया। आज एच जी वेल्स के नाम संसार के सभी सुशिक्षित लोग भली प्रकार परिचित है।
एक शराबी मोची का छोटा बालक पढ़ने के लिए आग्रह कर रहा था। बाप कह रहा था पेट भरने को तो है ही नहीं शिक्षा का खर्च कहाँ से आयेगा? लड़के ने कहा -पिताजी इसकी चिन्ता आप न करे। मैंने सुना है कि जंगलों में एक गोंद होता है। जंगली लोग उसे खाकर बहुत दिनों भूखे रह जाते है। मैं उसे ढूँढ़कर लाऊँगा और बिना खाये रहा करूँगा। आप मुझे पढ़ने की इजाजत भर दें। बाप ने झुँझलाते इजाजत दे दी। लड़का पढ़ने लगा। गोंद तो वह नहीं ला सका पर बाज़ार में फेरी लगाकर वह कुछ चीजें बेचता और उसी से अपना खर्च चलाता है अन्त में वह बालक कैलीफोर्निया का विख्यात दार्शनिक और प्रभावशाली नेता बना। नाम था उसका-एचिनेवेल्डे
एक नहीं अगणित ऐसे उदाहरण संसार में सर्वत्र उपलब्ध हो सकते है जिनसे स्पष्ट है कि मनुष्य परिस्थितियों का गुलाम नहीं अपने भाग्य का निर्माता और विधाता है। जिसने अपनी महत्ता और शक्ति को समझ कर ऊँचे उठने का प्रयत्न किया, कठिनाइयाँ उसके मार्ग को रोक न सकी। पर जो हतप्रभ एवं किंकर्तव्य विमूढ होकर बैठा रहा वह नीचे ही गिरता गया दूसरों का सहयोग भी उसे आगे न बढ़ा सका।