Magazine - Year 1962 - Version 2
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Language: HINDI
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दुर्बल व्यक्तियों के लिए सरल व्यायाम
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जिन्हें समय और सुविधा है उनके लिए एक से एक अच्छे व्यायाम मौजूद हैं। अखाड़े में जाने वालों के लिए डंड बैठक, कुश्ती, डंबल, मुदगर सरीखी अनेकों विधियाँ उन व्यायाम शालाओं के संचालक सिखा देते हैं। हाकी, क्रिकेट, पोलो, दौड़, तैराकी,लम्बी कूद, लाठी चलाना आदि खेलों की शिक्षाऐं एवं प्रतियोगिताऐं भी होती रहती हैं। मनोरंजन एवं व्यायाम के खेल स्कूलों, कालेजों, स्काउटों एवं अन्य संस्थाओं द्वारा जहाँ−तहाँ सिखाये और कराये जाते रहते हैं। इन्हें वे लोग कर सकते हैं जिनके शरीर निरोग हैं और खेलने के लिए उचित मात्रा में स्फूर्ति मौजूद है। पर ऐसे लोगों की संख्या बहुत थोड़ी है।
यह पंक्तियाँ हम उन अधिकाँश लोगों के लिए लिख रहे हैं। जिनके पास न तो कड़े व्यायामों के लिए शक्ति है, न स्फूर्ति, न उमंग। जिन्हें अशक्तता अनुभव होती रहती है और दैनिक कार्यक्रम पूरा करना ही बहुत थका देने वाला और भार रूप प्रतीत होता है। आज अधिकाँश लोग इसी प्रकार के दृष्टिगोचर होते हैं। जवानी में जिन्हें बुढ़ापा घेरे हुए हैं ऐसे युवक भी वस्तुतः वृद्धों में ही गिने जाने योग्य हैं। बूढ़े कमजोरों के लिए जो व्यायाम उपयुक्त हो सकते हों, जो शक्ति को जरा भी नष्ट न करके थकान न बढ़ाते हुए उत्साह एवं स्फूर्ति की ही वृद्धि करें ऐसे ही हलके व्यायाम आज की स्थिति में सर्वसाधारण के लिए उपयोगी हो सकते हैं।
हलके−फुलके व्यायाम
ऐसे हलके व्यायामों का भी एक स्वतन्त्र विज्ञान है। पिछले पृष्ठों पर बताया जा चुका है कि व्यायाम भी एक स्वतन्त्र चिकित्सा विज्ञान है और केवल उसी के आधार पर कठिन रोगों का समाधान एवं अशक्तता का निवारण हो सकता है। आसन और प्राणायाम ऐसे ही योगिक व्यायाम हैं। इनमें से कुछ कठिन और कुछ बहुत सरल है। प्राचीन काल में 84 आसन प्रचलित थे जिनमें से अधिकाँश योगियों के काम के थे। वनों में रहने वाले तपस्वी अपनी धारणा ध्यान आदि मानसिक उपासनाओं में लगे रहते थे, पर इससे शरीर की क्रिया तो बिगड़ती थी। उन्हें इस आवश्यकता की पूर्ति आसनों द्वारा पूरी करनी पड़ती थी। 84 आसन उन लोगों ने अपनी आवश्यकता की दृष्टि से बनाये थे। उनमें से कितने ही ऐसे हैं जो सर्वसाधारण के लिए बहुत उपयोगी हैं। अब आरोग्यशास्त्र के विशेषज्ञों ने और भी आगे खोज की है और ऐसे अनेक हलके व्यायाम खोज निकाले हैं जो आसनों की ही जाति में गिने जा सकते हैं। अपच,संग्रहणी, गठिया, लकवा, रक्तचाप, अनिद्रा, मधुमेह जैसे कठिन रोगों को अच्छा करने के लिए कुछ व्यायाम जादू की तरह काम करते देखे गये हैं। वृद्धावस्था को दूर करने के लिए आसनों की ऐसी पद्धतियाँ ढूँढ़ निकाली गई हैं जिन्हें मनुष्य चारपाई पर पड़े−पड़े बिना किसी कष्ट के कर सकता है। रोगियों के व्यायाम भी ऐसे हैं जिनके लिए किसी अखाड़े में जाना नहीं पड़ता, वरन् चारपाई पर पड़े−पड़े ही कुछ अंगों को एक वैज्ञानिक पद्धति के अनुसार चलाते रहने से रुका हुआ रक्त संचार चालू हो जाता है और अस्वस्थता के निवारण में बड़ी सहायता मिलती है।
बाल वृद्ध सभी के लिये उपयोगी
छोटे बच्चों के लिए ऐसे हलके व्यायाम हैं, जिनसे उनके कोमल अंगों पर दबाव तो जरा भी नहीं पड़ता पर शरीर के प्रत्येक अवयव की आशाजनक प्रगति होने लगती है। प्राचीन काल में गुरुकुलों में रहने वाले छात्र अपने अनुभवी गुरुजनों से ऐसे ही व्यायामों की शिक्षा प्राप्त करते थे और शिक्षा प्राप्त करने के उपरान्त मस्तिष्क को ज्ञान से परिपूर्ण करके ही नहीं, शरीर को आरोग्य से परिपूर्ण करके भी लौटते थे। स्कूलों से न सही, घरों में यदि हमारे बच्चे उन वैज्ञानिक अंग संचालन प्रवृत्तियों को अपनाकर व्यायाम की आवश्यकताओं को पूरा करते रहें तो निश्चय ही उनकी शारीरिक स्थिति बेहतर हो सकती है। स्वास्थ्य की दृष्टि से महिलाओं की समस्या भी बड़ी पेचीदा है। वे सामाजिक बन्धनों के कारण न तो व्यायाम शालाओं में जा सकती हैं और न खेल के मैदान में। टहलने तक की उन्हें फुरसत नहीं रहती। ऐसी दशा में यह हलके व्यायाम ही उनके लिए संजीवनी बूटी का काम कर सकते हैं। जिन्हें चक्की पीसने या खेती मजूरी जैसे कड़े देहाती काम नहीं करने पड़ते ऐसी ‘शहरी’ महिलाओं के लिए योगिक सन्तुलित, व्यायामों की अत्याधिक आवश्यकता है। उन्हें जितना लाभ उस प्रक्रिया को नित्य थोड़ी देर अपनाने से मिल सकता है उतना कीमती औषधियों के खाने से भी नहीं मिल सकता।
वृद्ध पुरुष यदि नित्य थोड़ी देर इस अंग संचालन प्रणाली को काम में लाया करें तो वे बहुत दिन तक अपने जीर्ण शरीर में भी सामर्थ्य और क्षमता को धारण किये रह सकते हैं। जीर्णता और असहाय अशक्तता से तो उन्हें मृत्यु पर्यन्त छुटकारा मिला रह सकता है। युवा व्यक्ति जो बुढ़ापे की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं वे आसनों की सहायता से इस क्षति पर नियंत्रण कर सकते हैं। वे देर तक युवावस्था का आनन्द लेते रह सकते हैं। यह स्पष्ट है कि मनोविकारों से छुटकारा पाकर सन्तुष्ट और प्रसन्न रहने वाला व्यक्ति निरोग रह सकता है। यह भी सर्वविदित है कि जिसका आहार संयमित और संतुलित होगा वह कभी बीमार न पड़ेगा। इसी प्रकार यह भी हमें नोट कर लेना चाहिए कि शारीरिक श्रम का बहुत कम या बहुत अधिक होना भी अस्वस्थता को आमंत्रित करता है। जिसे निरोग रहना हो उसे न तो इतनी मेहनत करनी चाहिए जिसे देह बर्दाश्त न कर सके और न लुँज−पुञ्ज बैठे रहकर पाचन प्रणाली एवं रक्त संचार पद्धति को ही खराब कर लेना चाहिए। पढ़े लिखे लोगों को बहुधा शारीरिक श्रम कम और मानसिक कार्य अधिक करना पड़ता है। उनके लिए तो व्यायाम की उपेक्षा एक खतरे की बात ही कही जा सकती है। इस लापरवाही का मूल्य उन्हें अपने स्वास्थ्य की बर्बादी के रूप में ही चुकाना पड़ता है।
प्रत्येक स्वास्थ्य प्रेमी के लिए
विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों के बालकों, वृद्धों, महिलाओं, रोगियों एवं रोगणियों के लिए पृथक पृथक प्रकार के ऐसे हलके व्यायामों की आवश्यकता है जो उनके द्वारा बिना किसी कष्ट उठाये बन पड़े। अलग−अलग रोगों के लिए भी अलग से ऐसी व्यायाम विधियाँ हैं जो उन रोगों पर कीमती दवाओं से भी अधिक असर डालती हैं। इन योगिक व्यायाम पद्धतियों का−आसनों का−श्वास प्रश्वास क्रियाओं एवं प्रणालियों का विस्तृत एवं व्यवस्थित विधान हम पाठकों के सामने पुस्तकों के रूप में भी प्रस्तुत करेंगे और उनके प्रत्यक्ष शिक्षण की व्यवस्था भी करेंगे। खोये हुए स्वास्थ्य को प्राप्त करने के लिए वैसा ही एक व्यापक आन्दोलन करना पड़ेगा, जैसे खोई हुई राजनैतिक स्वाधीनता को प्राप्त करने के लिये स्वतंत्रता संग्राम लड़ना पड़ा था। ‘अखण्ड−ज्योति’ अपने एक भी पाठक को रोगी देखना पसंद न करेगी। पिछले दस वर्षों तक गायत्री और यज्ञ के प्रचार की तरह अब आगामी दस वर्षों में हमें सर्वांगीण स्वास्थ्य का व्यापक आन्दोलन करना है, स्वस्थ शरीर, स्वस्थ मन, स्वस्थ समाज का विविध आरोग्य ही एक सर्वांगीण स्वास्थ्य माना जाता है। हम राष्ट्र को शारीरिक मानसिक एवं सामाजिक दृष्टि से स्वस्थ एवं बलिष्ठ बनाने के लिए कार्य करेंगे। विचारों का देशव्यापी प्रचार एवं शिक्षण करने की जो व्यवस्थित योजना हमारे मस्तिष्क में है वह शीघ्र ही मूर्त रूप धारण करेगी।
बात कहाँ से कहाँ पहुँच गई। हम सरल व्यायामों की बात कह रहे थे, कहने लगे भविष्य की प्रणाली की बात। विषयान्तर को छोड़कर यहाँ यही कहना और समझना चाहिए कि प्रत्येक स्वास्थ्य प्रेमी को किसी न किसी रूप में व्यायाम को अपने दैनिक जीवन में स्थान देना चाहिए और उनका चुनाव करते समय वर्तमान शारीरिक स्थितियों में हलके और योगिक व्यायाम ही सर्व साधारण के लिए उपयुक्त हो सकते हैं, इसलिए उनकी और ही सर्वसाधारण का ध्यान अधिक आकर्षित करना चाहिए।
टहलना
सरल व्यायामों से प्रातःकाल टहलने जाना बहुत ही सुखद है। सूर्योदय के पूर्व उषाकाल की वायु इतनी प्राणप्रद होती है कि उसे जितनी अधिक लूटा जा सके, लूटकर अपने फेंफड़े में भर लेना चाहिए। रात को 9−10 बजे तक सो जाने का प्रयत्न करना चाहिए ताकि सवेरे जल्दी उठ बैठना संभव हो सके। नित्यकर्म से निवृत्त होकर टहलने निकल जाना चाहिए। स्लो मार्च से भी नहीं, डबल मार्च से भी नहीं, क्विक मार्च से टहलना श्रेयस्कर है। झुककर नहीं, सीना तानकर चलना चाहिए। मुँह बन्द रहे। साँस नाक से लेनी चाहिए। टहलने के समय बात−चीत करते जाने से साँस मुँह के द्वारा आने−जाने लगती है, जो फेफड़े के लिए हानिकारक है। इसलिए यदि कई साथी मिलकर टहलने जा रहे हों तो अधिक बातें नहीं करनी चाहिए। पैरों के साथ साथ हाथ भी आगे होता चलता है। खुली हवा में हरे−भरे खेतों या वृक्षों की अधिकता जिधर हो उधर ही टहलने जाना चाहिए। गन्दी हवा जहाँ निकल रही है उधर टहलना तो न टहलने से भी अधिक हानिकारक है। एक घण्टा प्रति−दिन समय लगाया जाय तो 3−4 मील टहला जा सकता है। यह एक घण्टा सारे दिन ताजगी बनाये रहेगा।
मालिश
तेल की सहायता से मालिश करने की रिवाज पहलवानों में देखी जाती है। जच्चा स्त्रियों को, छोटे बच्चों को या दर्द के बीमारी को तेल मालिश की जाती है। पर सही बात यह है कि मालिश हर बाल, वृद्ध के लिए, नर नारी के लिए, समान रूप से उपयोगी है। रक्त संचार और अंगों की माँसपेशियों को गतिशील बनाने के लिए मालिश की उपयोगिता असाधारण है। स्नान से पहले आधा घण्टा स्वयं मालिश करनी चाहिए। तेल के साथ भी यह हो सकती है और बिना तेल के भी। तेल का उपयोग इतना ही है कि चमड़ी पर रगड़ का असर न पड़े। बाल न टूटें एवं रगड़ते समय हाथों में चिकनाई एवं फिसलन बनी रहे। रोम कूपों में होकर तेल भीतर नहीं जा सकता। इसलिए तेल से कपड़े चिकने होने का जिन्हें डर हो वे उसे कुछ विशेष आवश्यक न समझकर छोड़ भी सकते हैं और सादे हाथों से अथवा रोंएदार तौलिये से अपने आप अपनी मालिश कर सकते हैं। दूसरों से भी इस कार्य में मदद ली जा सकती है। स्नान के समय धीरे−धीरे प्रत्येक अंग प्रत्येक को काफी देर तक रगड़−रगड़ कर स्नान किया जाय तो उससे भी मालिश की आवश्यकता पूरी हो सकती है। यह ध्यान रखने की बात है कि हृदय की ओर मालिश को ले जाया जाय। हृदय से नीचे की ओर हलके हाथ से और नीचे से हृदय की ओर दबाव देकर मालिश करनी चाहिए
मालिश की भी अपनी एक विशेष पद्धति है। इसकी विस्तृत विवेचना पाठक फिर कभी पढ़ेंगे पर यहाँ इतना ही समझ लेना चाहिए कि सरल व्यायामों में मालिश का महत्व अद्भुत है। इस लिए टहलकर आने के बाद कुछ देर मालिश भी अवश्य करनी चाहिए। स्नान यदि पहले कर लिया गया है तो बिना तेल के केवल हाथों से अथवा तौलिये से हल्की मालिश की जा सकती है इसके बाद स्नान की आवश्यकता नहीं रहती । टहलने और मालिश करने के बीच में आसनों का या हलके व्यायाम करने के बीच में आसनों का या हलके व्यायाम एवं प्राणायाम का समय रहना चाहिए। विभिन्न परिस्थिति के लोगों के लिए विभिन्न प्रकार के व्यायाम हो सकते हैं पर सूर्य नमस्कार की आसन प्रणाली ऐसी है जो सर्वसाधारण के लिए समान रूप से उपयोगी है। नीचे सूर्य नमस्कार के अनेकों प्रकारों में से एक सर्वसुलभ विधान प्रस्तुत कर रहे हैं, इन्हें हर कोई अपना सकता है और आशाजनक लाभ उठा सकता है।
सूर्य नमस्कार
प्रातःकाल सूर्य भगवान के सामने खड़े होकर शरीर और आत्मा में तेजस्विता की प्रेरणा करने वाले भगवान भास्कर का ध्यान करते हुए−गायत्री मंत्र के मानसिक जप के साथ सूर्य नमस्कार व्यायाम करने से अन्य सभी कसरतों की अपेक्षा शरीर को बहुत बल मिलता है। यह पद्धति धार्मिक भी है और वैज्ञानिक भी । आरोग्य शास्त्र की दृष्टि से विचार किया जाय तो शरीर के प्रायः प्रत्येक अंग का संचालन इससे हो जाता है। कमजोर और सामान्य स्वास्थ्य वाले स्त्री−पुरुष भी इसे सुविधापूर्वक कर सकते है। जिस प्रकार वर्ष में बारह महीने होते हैं उसी प्रकार इस एक ही व्यायाम में 12 आसन हो जाते हैं। आरम्भ और अन्त के दो आसन नमस्कार आसन हैं। शेष दस आसन शरीर के प्रत्येक अंग का संचालन करके उसमें सक्रियता का संचार करते है। इन्हें क्रमशः करना चाहिए। प्रारम्भ में पाँच बार इसे किया जाय क्योंकि जिन्हें अभ्यास नहीं है उन्हें आरम्भ में कुछ कठिनाई होती है। रगें और पुट्ठे दर्द भी करने लगते हैं। इसलिए आरम्भ थोड़े से करके पीछे क्रमशः उसे बढ़ाते जाना चाहिए।
इसी प्रकार के और भी कितने ही सरल व्यायाम हैं जिन्हें कमजोर स्वास्थ्य रहने पर भी सुविधापूर्वक किया जा सकता है। अपनी स्थिति के अनुरूप चुनाव करके हममें से प्रत्येक को कोई न कोई व्यायाम नित्य नियमित रूप से करना आरम्भ कर देना चाहिए।
सूर्य नमस्कार के 12 आसन:−
1,12 नमस्कारासन 2,9 हस्तपादासन 3,8 एक पादप्रसरणासन 4— द्विपाद प्रसरणासन 5−अष्टाँग प्राणिपातासन 6−सर्पासन 7−भूधरासन 10−ऊर्ध्व नमस्कारासन 11−उपवेशनासन।