Magazine - Year 1964 - Version 2
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Language: HINDI
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उत्तम पुस्तकें जागृत देवता हैं।
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ज्ञान की वृद्धि के लिए, ज्ञानोपासना के लिए पुस्तकों का अध्ययन एक महत्वपूर्ण आधार है। मानव जाति द्वारा संचित समस्त ज्ञान पुस्तकों में संचित है। खासकर जब से लिखने और छापने का प्रचार हुआ तब से तो मानव द्वारा उपलब्ध ज्ञान लिपिबद्ध करके संचित किया जाने लगा। इसलिए उत्तम पुस्तकों का अध्ययन करना ज्ञान प्राप्ति के लिए बहुत ही आवश्यक होता है। अच्छी पुस्तकें एक विकसित मस्तिष्क का ‘ग्राफ’ होती हैं। मिल्टन ने कहा है ‘अच्छी पुस्तक एक महान आत्मा का जीवन रक्त है।” क्योंकि उसमें उसके जीवन का विचारसार सन्निहित होता है। व्यक्ति मर जाते हैं लेकिन ग्रन्थों में उनकी आत्मा का निवास होता है। ग्रन्थ सजीव होते हैं। इसीलिए लिटन ने कहा है “ग्रन्थों में आत्मा होती है। सद्ग्रन्थों का कभी नाश नहीं होता।”
विकासशील जीवन के लिए पुस्तकों का साथ होना आवश्यक है, अनिवार्य है, क्योंकि पुस्तकों में उसे जीवन का मार्ग दर्शक प्रकाश स्रोत मिलता है। वस्तुतः संसार के सभी भीषण सागर में डूबते उतराते मनुष्य के लिए पुस्तकें उस प्रकाश स्तम्भ की तरह सहायक होती हैं जैसे समुद्र में चलने वाले जहाजों को मार्ग दिखाने वाले प्रकाशगृह।
सिसरो ने कहा है “ग्रन्थ रहित कमरा आत्मा रहित देह के समान है।” तात्पर्य यह है कि उत्तम पुस्तकें नहीं होने से मनुष्य ज्ञान से वंचित रह जाता है और ज्ञान रहित जीवन मुर्दे के समान व्यर्थ होता है। जो व्यक्ति दिन-रात अच्छी पुस्तकों का संपर्क प्राप्त करते हैं उनमें मानवीय चेतना ज्ञानप्रकाश से दीप्त होकर जगमगा उठती है। ज्ञान का अभाव भी एक तरह की मृत्यु है।
उत्तम पुस्तकों में उत्तम विचार होते हैं। उत्तम विचार उदात्त भावनायें भव्य कल्पनायें जहाँ हैं वहीं स्वर्ग है। लोकमान्य तिलक ने कहा है- मैं नरक में भी उत्तम पुस्तकों का स्वागत करूंगा क्योंकि इनमें वह शक्ति है कि जहाँ ये रहेंगी वहाँ अपने आप ही स्वर्ग बन जायेगा।” स्वर्ग का दृश्य अस्तित्व कहीं नहीं है। मनुष्य की उत्कृष्ट मनोस्थिति जो उत्तम विचारों का फल है वह स्वर्ग है। उत्तम पुस्तकों का सान्निध्य मनुष्य की बुद्धि को जहाँ भी मिलता है वहीं उसे स्वर्गीय अनुभूति होने लगती है।
सच्चे, निस्वार्थी आत्मीय मित्र मिलना कठिन है। हममें से बहुतों को इस सम्बन्ध में निराश ही होना पड़ता है। लेकिन अच्छी पुस्तकें सहज ही हमारी सच्ची मित्र बन जाती हैं। वे हमें सही रास्ता दिखाती हैं। जीवन पथ पर आगे बढ़ने में हमारा साथ देती है। महात्मा गाँधी ने कहा है “अच्छी पुस्तकें पास होने पर हमें भले मित्रों की कमी नहीं खटकती। वरन् मैं जितना पुस्तकों का अध्ययन करता हूँ उतनी ही वे मुझे उपयोगी मित्र मालूम होती हैं।
मानव जीवन संसार का ज्ञान असंख्यों अनेकताओं से भरा पड़ा है। मनुष्य का अपना मानस ही इतने अधिक विचारों से भरा रहता है कि क्षण-क्षण नई लहरें उत्पन्न होती रहती हैं। इन अनेकताओं का परिणाम होता है मनुष्य के अन्तर-बाह्य जीवन में अनेकों संघर्ष विचार संग्राम में पुस्तकें ही मनुष्य के लिए प्रभावशाली शस्त्र सिद्ध होती हैं। एक व्यक्ति का ज्ञान सीमित एकाँगी हो सकता है लेकिन उत्तम पुस्तकों के स्वाध्याय से मनुष्य अपने आपका सही-सही समाधान ढूंढ़ सकता है। खासकर विचारों के संघर्ष में अनेकों पुस्तकें ही सहायक सिद्ध होती हैं।
पुस्तकें मन को एकाग्र और संयमित करने का सबसे सरल साधन हैं अध्ययन करते करते मनुष्य जीवन में समाधि अवस्था को प्राप्त कर सकता है। एक बार लोकमान्य तिलक का आपरेशन होना था। इसके लिए उन्हें क्लोरोफार्म सुँघाकर बेहोश करना था। लेकिन इसके लिए उन्होंने डॉक्टर को मना कर दिया और कहा “मुझे एक गीता की पुस्तक ला दो मैं उसे पढ़ता रहूँगा और आप आपरेशन कर लेना।” पुस्तक लाई गई। लोकमान्य उसके अध्ययन में ऐसे लीन हुए कि डाक्टरों ने आपरेशन किया तो वे तनिक भी हिले भी नहीं न कोई दुख ही महसूस हुआ। पुस्तकों के अध्ययन में ऐसी तल्लीनता प्राप्त हो जाती है जो लम्बी योग साधनाओं से भी प्राप्त नहीं होती है।
पुस्तकों के अध्ययन के समय मनुष्य की गति एक सूक्ष्म विचारलोक में होने लगती है। दृश्य जगत, शरीर यहाँ के कर्म- व्यापार हो- हुल्लाड़ भी मनुष्य उस समय भूल जाता है। सूक्ष्म विचार लोक में भ्रमण करने का यह अनिर्वचनीय आनन्द योगियों की समाधि अवस्था के आनन्द जैसा ही होता है। इस स्थिति में मनुष्य दृश्य जगत से उठकर अदृश्य संसार में, सूक्ष्म लोक में विचरण करने लगता है और वहाँ कई दिव्य चेतन विचारों का मानसिक स्पर्श प्राप्त करता है। यह ठीक उसी तरह है जैसे योगी दिव्य चेतना का सान्निध्य प्राप्त करता है ध्यानावस्था में। पुस्तकों का अध्ययन ऐसी साधना है, जिससे मनुष्य अपने अन्तर्बाह्य जीवन का पर्याप्त विकास कर सकता है।
मनोविकारों से परेशान, दुःखी चिन्तित मनुष्य के लिए उनके दुख दर्द के समय उत्तम पुस्तकें अमृत हैं जिनका सान्निध्य प्राप्त कर वह अपना उस समय दुख-दर्द, क्लेश सब कुछ भूल जाता है। अच्छी पुस्तकें मनुष्य को धैर्य, शान्ति, साँत्वना प्रदान करती हैं। किसी ने कहा है “सरस पुस्तकों से रोग पीड़ित व्यक्ति को बड़ी शान्ति मिलती है” जैसे स्नेहमयी जननी की मीठी-मीठी थपकियाँ बच्चों को मीठी नींद में सुला देती हैं वैसे ही मन या शरीर की पीड़ा को शान्त करने के लिये उत्तम पुस्तकों का अवलम्बन लेना सुखकर होता है।
उत्तम पुस्तकें, आदर्श ग्रन्थ बहुत बड़ी सम्पत्ति हैं। अपनी सम्पत्ति के लिए उत्तराधिकार में छोड़ने के लिए सर्वोपरि मूल्यवान वस्तु है संसार में। जो अभिभावक अपनी सन्तान के लिए धन, वस्त्र, सुख, आमोद-प्रमोद के साधन न छोड़कर उत्तम पुस्तकों का संग्रह छोड़ जाते हैं वे बहुत बड़ी सम्पत्ति छोड़ते हैं। क्योंकि उत्तम ग्रन्थों का अध्ययन करके मनुष्य, ऋषि देवता महात्मा महापुरुष बन सकता है। जिन परिवारों में ज्ञानार्जन क्रम पीढ़ियों से चलता रहता है। उनमें से पण्डित, ज्ञानी, विद्वान अवश्य निकलकर आते हैं। जहाँ पुस्तकें होती है वहाँ मानो देवता निवास करते है। वह स्थान मन्दिर है जहाँ पुस्तकों के रूप में मूक किन्तु ज्ञान की चेतनायुक्त देवता निवास करते है। वे माता-पिता धन्य हैं जो अपनी सन्तान के लिए उत्तम पुस्तकों का एक संग्रह छोड़ जाते हैं क्योंकि धन, सम्पत्ति, साधन सामग्री तो एक दिन नष्ट होकर मनुष्य को अपने भार से डुबो भी सकती है किन्तु उत्तम पुस्तकों के सहारे मनुष्य भवसागर की भयंकर लहरों में भी सरलता से तैरकर उसे पार कर सकता है।
जीवन में अन्य सामग्री की तरह हमें उत्तम पुस्तकों का संग्रह करना चाहिये। जीवन के विभिन्न अंगों पर प्रकाश डालने वाले, विविध विषयों के उत्तम ग्रन्थ खरीदने के लिए खर्च के बजट में सुविधानुसार आवश्यक राशि रखनी चाहिए। कपड़े, भोजन, मकान, की तरह ही हमें पुस्तकों के लिए भी आवश्यक खर्चे की तरह ध्यान रखना चाहिए। स्मरण रखिए उत्तम पुस्तकों के लिए खर्च किया जाने वाला पैसा उसी प्रकार व्यर्थ नहीं जाता जिस तरह अँधेरे बियावान जंगल में प्रकाश के लिए खर्च किए जाने वाला धन।
एक बात और ध्यान में रखनी चाहिए वह यह है कि पुस्तकें कमरे को सजाने के लिए अथवा प्रदर्शिनी लगाने के लिए न खरीदी जायें वरन् उनका नियमित अध्ययन जीवन के अन्य कार्यक्रमों की तरह ही आवश्यक अंग बना लेना चाहिए। उनसे अधिकाधिक लोगों को ज्ञान मिले, इसके लिए अध्ययन की प्रेरणा सुविधा जुटाते रहना चाहिए। पुस्तकों की उपयोगिता अध्ययन से ही है अन्यथा वे कीड़ों का भोजन बनने के सिवा कुछ नहीं रहती। नई पुस्तकों खरीदना, उनका अध्ययन करना, उनको अधिकाधिक उपयोग में लाना ही पुस्तकों की सच्ची कद्र करना है।
स्मरण रखिए पुस्तकें जागृत देवता हैं। उनके अध्ययन, मनन, चिन्तन के द्वारा पूजा करने पर तत्काल ही वरदान पाया जा सकता है। हमें नियमित रूप से सद्ग्रन्थों का अवलोकन करना चाहिए। उत्तम पुस्तकों का स्वाध्याय जीवन का आवश्यक कर्तव्य बना लेना चाहिए।