Magazine - Year 1964 - Version 2
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Language: HINDI
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मिथ्या आडम्बर से सौ कोस दूर
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रूढ़िवादिता, फैशन परस्ती, दुर्व्यसन और अनाचार आदि न मालूम कितने अवगुण आज के सभ्य समाज में फैले हुए हैं ये हानिकारक हैं, इनसे आये दिन अनेकों कष्ट, मुसीबत और आपदायें मनुष्य को घेरे रहती हैं। पर इनसे भी अधिक शक्तिशाली और अनेकों अवगुणों का जनक यह मिथ्या आडम्बर है। जब तक मनुष्य अपनी सही स्थिति को छुपाता नहीं तब तक यही सम्भव है कि उसे अधिक सम्मान न मिले, लोग उसे छोटा समझें। पर इतने से किसी प्रकार की हानि दिखाई नहीं देती। अपनी अल्प विकसित अवस्था में भी मनुष्य सुखी रह सकता है, संतोष प्राप्त कर सकता है। किन्तु जैसे ही मिथ्या आडम्बर और अपने को बढ़ा चढ़ा कर प्रदर्शित करने की हीनता भावना मनुष्य में प्रविष्ट हुई कि उसके जीवन में दुर्दशा प्रारम्भ हुई। सामाजिक जीवन में आज जो विश्रृंखलता दिखाई दे रही हैं उसका अधिकाँश कारण यही है कि मनुष्य अपना असली चेहरा छिपा कर नकली नकाब चढ़ाये बैठा है।
लोग समझते हैं कि जितना ही अधिक अपने आप को प्रदर्शित करेंगे उतनी ही हमारी औकात बढ़ेगी, सम्मान बढ़ेगा, मान और प्रतिष्ठा बढ़ेगी। पर यह भूल जाते हैं कि हम जिस समाज में पलकर इतने बड़े हुए उससे हमारी वस्तु स्थिति छिपी नहीं है। कदाचित ऐसा भी हो जाए तो “काठ की हाँडी” कितने दिन आँच सहेगी। आखिर जिस दिन टूट गई उस दिन अभी तक जितना सम्मान नहीं मिला, उससे कही अधिक लज्जा,आत्मग्लानि, अविश्वास और उपहास का सामना करना पड़ेगा। पोल खुलती है तो मनुष्य अपना मुँह छिपाने लायक नहीं रहता फिर क्या आवश्यकता है कि हम मिथ्या आडम्बर प्रदर्शित करें।
यह एक बहुत बड़ा अवगुण है कि लोग अपनी शक्ति के बाहर और स्थिति के बिल्कुल प्रतिकूल खर्च करते हैं। इस से लाभ तो कुछ होता नहीं। केवल एक महत्वाकाँक्षा के लिए कि लोग आपको अमीर समझें आप धन की होली जलाकर बैठ जाते हैं। परिणाम यह होता है कि आप कर्ज के बोझ से लद जाते हैं और विकास की सारी सम्भावनायें समाप्त हो जाती हैं। आज की गलती का परिणाम सारे जीवन भर भुगतना पड़ता है। ब्याह शादियों में नेग-चाल और जेवर आदि पर जो धन लगाया जाता है वह कितना हानिकारक है यह ध्यान देने की बात है। जिस धन से, बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था, परिजनों के संस्कार सुधार तथा घरेलू सुविधायें जुटाने में मदद मिलती, वह पंगु बन कर रह जाती हैं या बिल्कुल व्यर्थ बरबाद हो जाती हैं।
इससे कोई स्थाई सम्मान ही मिलता तो भी एक बात थी पर आप विश्वास कीजिये कि आप समाज की आँखों में कभी धूल नहीं झोंक सकते हैं। मान लीजिये आप परिवार का भरण−पोषण नहीं कर पाते हैं, फिर यदि आप केवल दिखावे के लिये बेकार खर्च करते हैं तो सिवाय बच्चों का पेट काटने के आप को और कौन सा रास्ता मिल गया? यदि लोग ऐसा न भी सोचें तो यह मानने में वे भूल न करेंगे कि कुछ धन आप अवैधानिक ढंग से कमाते होंगे। ऐसी अवस्था में आप निन्दा, उपहास और छींटाकशी से बच जायेंगे यह हो नहीं सकता। अतः इससे आप जिस सम्मान या बड़प्पन की कामना किये बैठे थे वह भी नहीं मिला, उलटे औरों की दृष्टि में नीचे गिरे और अपना भविष्य बरबाद कर लिया सो अलग।
यह बात स्त्रियों में अधिक होती है। अपने लिये जेवर और कीमती कपड़ों के लिये वह यह ध्यान नहीं देती कि उनके पति की हैसियत क्या है? स्त्री की इच्छा पूरी करे के लिये बेचारा पति ऐसा तभी कर सकता है जब किसी से कर्ज ले या आवश्यक कार्यों को छोड़ दे। इसके कारण आज लोगों में कितनी चिन्ता, उदासी और बेचैनी रहती है यह किसी से छुपा नहीं।
इस प्रकार के मिथ्या आडम्बर का परिणाम यह हुआ कि आज हजारों घर बरबाद हो गये हैं,...सैकड़ों अशान्ति कलह और दुर्दशा की आग में सुलग रहे है। लोगों के स्वास्थ्य खराब हो रहे हैं। अनेकों को तो आत्महत्या जैसे दुखद अपराध भुगतने पड़े हैं। जो ऐसा नहीं करते वे घुल-घुल कर अपना जीवन तत्व बरबाद करते रहे हैं और असमय ही इस संसार से विदा होते जाते हैं और अपने पीछे पत्नी और बच्चों को बिलखता हुआ छोड़ जाते हैं, देखने में बिल्कुल मामूली सी बात का इतना भयंकर परिणाम रहता है। इसलिये अपनी स्थिति से बढ़कर झूठे दिखावे की बात बुद्धि संगत नहीं की जा सकती है। बढ़ा चढ़ाकर अपने आपको प्रदर्शित करने का एक ही अर्थ है कि आप अपना जीवन बरबाद करने जा रहे हैं।
इससे व्यक्तिगत हानि तो होती ही है संक्रामक रोग की तरह सम्पूर्ण समाज की इससे प्रभावित होता है। प्रतिद्वन्द्विता की प्रतिस्पर्द्धा मनुष्य की एक विलक्षण विशेषता है। एक आदमी विवाह में एक हजार का दाँव लगाता है तो उसका पड़ोसी डेढ़ हजार, दो हजार खर्च करने में अपनी शान समझता है। इससे कम खर्च को वह अपना अपमान समझता है। यह कभी विचार नहीं करता कि हमारे पास साधन, परिस्थितियाँ और भविष्य के लिये भी कुछ शेष रहता है या नहीं। अज्ञानता पूर्वक केवल अपने मिथ्याभिमान के लिये यह अपव्यय दुख और मुसीबतों का ही कारण बन सकता है।
जिस समाज में यह अन्धानुकरण और अविवेक का बोलबाला होगा वह समाज कभी सुखी नहीं रह सकेगा। भारतीय जीवन की दुर्दशा का अधिकाँश कारण आज यही है कि लोग अपनी हैसियत से अधिक अपने आप को प्रदर्शित करना चाहते हैं। इसके लिये चाहे कितने अनैतिक अपराध करने पड़ें। भीतर-भीतर बढ़ते हुए इस प्रकार के अपराधों के कारण ही भ्रष्टाचार, दुराचार, और मिथ्याचार बुरी तरह बढ़ रहा है।
बाहरी सजधज को जो मान प्रतिष्ठा का आधार मानते हैं वे भ्रम में हैं। बुद्धिमान पुरुष बाहरी टीम टाम भड़कीले वेष विन्यास और चमकीले वस्त्राभूषणों के कारण लोगों को आदर की दृष्टि से नहीं देखते। मनुष्य की शालीनता उसकी सादगी में होती है। सद्विचार और सादगी का परस्पर का अत्यन्त निकट का सम्बन्ध होता है। जहाँ सादगी होगी वहीं सत्कर्म होंगे, जहाँ सत्कर्म होंगे वही सुखा और सुव्यवस्था होगी। प्रेम, एकता और विकास के अनेकों साधन अपने आप मिलते चले जायेंगे। उत्तम सन्तान और श्रेष्ठ संस्कार जागृत करने के लिये पुरुषों की अपेक्षा नारियों में सादगी की भावना का अधिक विकास होना आवश्यक है। सादेपन की सभी लोग इज्जत करते हैं।
अपनी वास्तविक स्थिति में अन्त तक बिना दिखलावे के साथ बने रहना मनुष्य का नैतिक बल प्रदर्शित करता है। सम्भव है आज की परिस्थितियों में कुछ झिझक, संकोच या आत्मग्लानि सी उठे किन्तु एक-सी स्थिति में सुखी व सन्तुष्ट जीवन बिताने के लिये यह सर्वश्रेष्ठ मार्ग है कि आप अपनी स्थिति का अतिक्रमण न करें। बच्चे की शादी, उधार एक हजार लेकर करने की अपेक्षा बिना धन खर्च किये किसी निर्धन कन्या के साथ कर देना अधिक श्रेष्ठ है। गरीब घरानों की कन्याओं में संस्कार कम अच्छे होंगे ऐसी मान्यता गलत है। इसलिये थोड़ी देर की चटक मटक और झूठी प्रशंसा के लिये सदैव के लिये अपने पैरों पर कुल्हाड़ी न मारिये। इससे आपका गृहस्थ तथा सामाजिक जीवन विपदाओं में ग्रस्त हो जायेगा। कभी मानसिक शान्ति न पा सकेंगे। गरीब होना पाप नहीं है किन्तु जब आप गरीबी छिपाने का प्रयत्न करने लगते हैं तो गरीबी तो ज्यों की त्यों बनी ही रहती है, अनेकों दूसरी प्रकार की विघ्न-बाधायें उठ खड़ी होती हैं। निर्धनता का उपहास कुछ दिन हो सकता हैं किन्तु झूठे प्रदर्शन से जो दुष्परिणाम उपस्थित होते है उनसे सम्पूर्ण जीवन ही बर्बाद हो जाता है।
झूठ जब तक व्यक्तिगत रूप से बोलने- चालने तक ही सीमित रहता है तब तक उससे विशेष हानि की सम्भावना नहीं होती किन्तु योजनाबद्ध झुठाई के परिणाम बड़े भयंकर होते हैं। मिथ्या आडम्बर एक प्रकार के झूठ का व्यवस्थित और शक्तिशाली रूप है। योजन बद्ध झुठाई की लाग और लपेट भी बढ़ जाती है इसलिये व्यक्ति और समाज दोनों पर उसका प्रभाव पड़ता हैं। इसलिये हम जिस स्थिति में है अपने जीवन को उतने ही क्षेत्र में नियंत्रित रखें, इसी में अपनी और समाज दोनों की भलाई है।