Magazine - Year 1964 - Version 2
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यका गणपते सर्वे पादा अर्न्तभवीन्त हि
नैतस्मादधिकं किंवहः ब्रह्यचर्याद्वि विद्यते
ब्रह्मचर्य से बढ़कर इस संसार में कोई उत्तम श्रेष्ठ क्षेत्र साधना नहीं है। हाथी के पैर के सामने जिस प्रकार सब छोटे हैं, उसी प्रकार सब साधन ब्रह्मचर्य में विलीन हो जाते हैं। एक गुलाम को उनकी तुलना में अधिक सम्मान मिले। ईसप से जल-भुन कर उन्होंने तरह-तरह के षड़यंत्र करने आरंभ कर दिये। एक दिन जब ईसप कहीं गये हुए थे तो उनके बिस्तर में राजा की एक कीमती सुराही छिपा कर रख दी गई और उन्हें पुलिस से पकड़वा कर न्यायालय में उपस्थित किया गया। न्यायाध्यक्ष दरबारियों से मिले हुए थे, उनके इशारे पर चोरी के अपराध में ईसप को मृत्युदण्ड मिला और पहाड़ की एक ऊँची चोटी से धकेल कर इस महा मनीषी का अन्त कर दिया गया।
ईसप की नीति कथाएँ यूनान का दायरा लाँघती हुई संसार के सभी देशों में पहुँचीं। सभी भाषाओं में उनका अनुवाद हुआ और विश्व-मानव ने उनका भरपूर लाभ उठाया। बच्चों की पाठ्य पुस्तकों में जो शिक्षाप्रद कहानियाँ पढ़ाई जाती हैं उनमें अधिकाँश ईसप की ही गढ़ी हुई हैं।
मनुष्य द्वारा मनुष्य को नीच समझा जाने, उसे गुलाम बनाये रहने और शोषण करने की नीति कितनी घातक है, उसके दुष्परिणामों पर विचार करते हैं तो लगता है कि इस दुर्बुद्धि के कारण मानव जाति का जितना अहित हुआ है, उतना शायद ही और किसी बुराई के कारण हुआ होगा। ईसप जैसे मनीषी को गुलाम, नीच और तिरस्कृत करने की भावना से इस महापुरुष का जिनने उत्पीड़न किया, उनने मानव जाति को उसके एक सुपुत्र द्वारा प्राप्त हो सकने वाले लाभों से वंचित रखने की कुसेवा ही की। यह क्रम अभी भी बन्द कहाँ हुआ है? दक्षिणा अफ्रीका में भारतीयों के साथ, अमेरिका में नीग्रो समाज के साथ, भारत में अछूतों के साथ जो दुर्बुद्धि बरती जा रही है उससे कितने ही निर्दोषों के मानवीय अधिकारों को अभी भी पददलित किया जाता है। भारतीय नारी की स्थिति तो अभी भी गुलामों से बदतर है।
ईसप के साथ उस अन्याय पर संसार भर के विचारशील लोगों ने आँसू बहाये थे। वे आँसू अब भी ज्यों के त्यों बह रहे हैं। मनुष्य द्वारा मनुष्य को पददलित करने की, छोटा या नीच समझने की, और उससे उत्पन्न उत्पीड़न की अनीति इस स्वाधीनता, समता और विश्वबन्धुत्व के युग में भी न जाने कब तक चलती रहेगी?