Magazine - Year 1965 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
प्राणवान बनना है तो प्राणायाम कीजिए
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
मनुष्य की आयु, आरोग्य और स्वास्थ्य का श्वास क्रिया से बड़ा सम्बन्ध है। श्वास-प्रश्वास की क्रिया से प्राणिमात्र जीवित रहते हैं। स्वच्छ वायु फेफड़ों में जाकर रोग-वर्द्धक कीटाणुओं का नाश करती है। इसी से रक्त की सफाई होती है। जब तक रक्तकण तेज, सशक्त व सजीव रहते हैं, तब तक स्वास्थ्य में कोई खराबी नहीं आती। शारीरिक शक्ति, विचार-शक्ति और मानसिक दृढ़ता प्राणायाम के प्रत्यक्ष चमत्कार हैं। इससे केवल फेफड़ों का व्यायाम ही नहीं होता वरन् प्राणायाम आयु, बल को बढ़ाने वाला, रक्त-शोधक और मन को शक्ति व स्फूर्ति प्रदान करने वाला है। यह प्रत्येक स्वस्थ जीवन की कामना रखने वालों के लिए एक उपयोगी साधन है।
प्राणायाम की प्रारम्भिक शिक्षा यह है कि हमें पूरी और गहरी साँस लेनी चाहिए। यह साँस पूरी तौर पर यदि फेफड़ों में ना गई तो फेफड़ों का एक भाग बिल्कुल बेकार पड़ा रहता है। घर के जिस भाग की सफाई नहीं की जानी वहाँ मकड़ी, छिपकली, कनखजूरे बर्रे आदि अपना अड्डा जमा लेते हैं। फेफड़े के जिस भाग में वायु का अभिगमन नहीं हो पाता उसमें जुकाम, खाँसी, क्षय, उरक्षन, कफ व दमा आदि के कीटाणु पैदा हो जाते हैं। धीरे-धीरे थे वायु- कोष्ठों में इस प्रकार अड्डा जमा लेते हैं कि इनको निकालना ही मुश्किल हो जाता है।
भरपूर साँस लेने से फेफड़ों के सभी वायु-कोटर हवा से भर जाते है। इस तरह हवा अपनी ऑक्सीजन-प्राण रक्त में छोड़ दूषित पदार्थ-कार्बोनिक एसिड गैस को चूस कर बाहर निकाल देती है। यह ऑक्सीजन तत्व खून के साथ मिलकर सारे शरीर का दौरा करता रहता है जिससे शक्ति, स्वास्थ्य व आरोग्य स्थिर बना रहता है। शुद्ध खून का एक चौथाई भाग ऑक्सीजन होता है। इस मात्रा में यदि कमी पड़ जाय तो इसका पाचन-प्रणाली पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। ऐसे व्यक्तियों की जठराग्नि मन्द पड़ जाती है। इससे यह स्पष्ट होता है कि दूषित पदार्थ निकालने, रक्त में ऑक्सीजन का पर्याप्त सम्मिश्रण रखने तथा पाचन-संस्थान को मजबूत बनाये रखने के लिए गहरी पूरी साँस लेना अनिवार्य हैं। यह किया प्राणायाम के द्वारा पूरी होती है।
बाइबल की पुरानी राख गिराई न जाय तो भाप बनना बन्द हो जाता है। इससे इंजन का काम रुक जाता है। हमारे फेफड़े ठीक बाँइलर का काम करते हैं। इससे इंजन अर्थात् हृदय की क्रिया प्रभावित होती है। दूषित मल विकार जो रक्त के साथ हृदय से फेफड़ों में पहुँचाया जाता है उसकी पूरी व गहरी साँस द्वारा सफाई न कर दी जाय तो फिर वही अशुद्ध रक्त हृदय को लौट आता है। यह गन्दगी धमनियों द्वारा शरीर में फैल जाती हैं और बीमारी, रोग व दुर्बलता के रूप में फूट पड़ती हैं। किन्तु पूरी साँस का यदि अभ्यास डाल लें तो इससे छाती चौड़ी होती है, फेफड़े मजबूत होते हैं, और वजन बढ़ता है। शुद्ध रक्त-संचार से हृदय की दुर्बलता दूर होने लगती है। इसलिए प्राणायाम द्वारा गहरी साँस लेने का अभ्यास बना लेना स्वास्थ्य के लिये अतीव लाभदायक होता हैं।
साधारण अवस्था में साँस के साथ 30 घन इंच हवा फेफड़ों में पहुँचती है। इससे अधिक गहरी साँस लें तो कुल मिलाकर 130 घन इंच तक वायु फेफड़ों में पहुँच जाती है किन्तु साँस छोड़ते समय 100 घन इंच वायु छाती में रह जाती है। इस प्रकार कुल 230 घन इंच की जगह शरीर में होती है। तात्पर्य यह है कि साधारण साँस की अपेक्षा आठ गुनी साँस ली जा सकती है। इससे आठ गुनी सफाई में वृद्धि होगी, आठ गुना ऑक्सीजन शरीर को मिलेगा तो आठ गुना स्वास्थ्य का सुधार भी होगा ही।
जो लाभ अधिक से अधिक साँस फेफड़ों में पहुँचाने से होता है, ऐसा ही एक लाभ फेफड़ों को कुछ देर वायुरहित छोड़ने से भी होता है। एक जर्मन यहूदी डॉक्टर का मत है कि इससे फेफड़ों के कीटाणु वायु न मिलने पर मर जाते हैं और कार्बोनिक एसिड गैस के साथ मिल कर बाहर निकल जाते हैं।
दूसरा अभ्यास नाक से साँस लेने का होता है। नाक से साँस लेने से वायु में मिले स्थूल गन्दगी के कण नाक के छोटे-छोटे बालों में रुक जाते हैं। इससे आगे एक पतला तरल पदार्थ स्रवित हुआ करता है, जो शेष गन्दगी को जैसे नाइट्रोजन व धूल आदि के कणों को चिपका लेता है। अब वायु पूरी तौर पर स्वच्छ होकर श्वास-नली में प्रवेश करती है। यहाँ यदि वायु गर्म थी तो शीतल और अधिक शीतल थी तो गर्म होकर सामान्य तथा सह्य ताप में परिवर्तित हो जाती है। वायु अभिगमन का यह मार्ग जो नाक से मस्तिष्क के रास्ते फेफड़ों तक पहुँचता है काफी लम्बा पड़ जाता है, इतनी देर में वायु का तापमान सह्य हो जाता है। इससे फेफड़ों में पहुंचकर रक्त शुद्धि के कार्य में उसे कोई बाधा नहीं पड़ती। पर मुँह से साँस लेन से गन्दगी भी श्वास-नली के रास्ते फेफड़ों में पहुँच जाती है और ताप भी शीतल-गर्म जैसा कुछ था, वैसे ही फेफड़ों को उत्तेजित करता रहता है। चेचक की बीमारी व जुकाम आदि से पीड़ित रहने वाले अधिकाँश मुँह से साँस लेने वाले लोग होते हैं।
प्राणायामों के अनेकों भेद हैं। शीतली, शीतकारी, भ्रामरी, उज्जायी, अनुलोम-विलोम, सूर्य वेधक, प्राणाकर्षक तथा नाड़ी-शोधन आदि अनेकों प्राणायाम की विधियाँ भारतीय आध्यात्म ग्रन्थों में भरी पड़ी हैं। इन सबका उल्लेख तो यहाँ सम्भव नहीं है, जो सर्व सुलभ और सर्वथा हानि-रहित हैं जिन्हें बालक वृद्ध स्त्री व पुरुष कोई भी कर लें, ऐसे ही प्राणाकर्ष प्राणायाम की विधि यहाँ दी जाती है।
प्राणायाम के चार भाग है-(1) पूरक (2) अन्तर कुम्भक (3) रेचक तथा (4) बाह्य कुम्भक। साँस को खींचकर भीतर धारण करने को पूरक कहते हैं। यह क्रिया तेजी या झटके के साथ नहीं की जानी चाहिए। धीरे-धीरे फेफड़ों में जितनी साँस भर सकें भरें। इस क्रिया को पूरक कहते हैं। अन्तर कुम्भक वायु को भीतर रोके रहने को कहते हैं। जब तक सरलता पूर्वक रोके रख सकें उतनी ही देर अन्तर कुम्भक करते हैं जबर्दस्ती प्राण-वायु को नहीं रोकना चाहिये। धीरे धीरे बढ़ाने का अभ्यास किया जा सकता है। वायु को बाहर निकालने को रेचक कहते हैं। पूरक के सामान ही यह क्रिया भी धीरे-धीरे करनी चाहिए। साँस रोक कर बाह्य कुम्भक करते हैं अर्थात् कुछ देर बिना साँस के रहा है। पूरक और रेचक का समय, बाह्य-कुम्भक और अन्तर कुम्भक का समय समान होना चाहिये।
अभ्यास करने के पूर्व किसी स्वच्छ पवित्र व शान्त स्थान पर आसन, तखत या कम्बल आदि पर पूर्वाभिमुख बैठे। स्थान जितना ही एकान्त हो उतना ही अच्छा है ताकि बाहरी शोरगुल से आपकी एकाग्रता भंग न हो। पालथी मारकर सरल पद्मासन पर बैठिये। दायें हाथ के अंगूठे से नासिका के दायें छिद्र को बन्द कर बायें से पूरक कीजिये। फिर मध्यमा तथा अनामिका उँगलियों से बाँये छिद्र को भी बन्द कर अन्तर कुम्भक पूरा कीजिये। अब दायें छिद्र से अंगूठे को हटाकर रेचक कीजिये, फिर दूसरी बार जैसी क्रिया की थी, दोनों नासिका छिद्र बन्द करके बाह्य-कुम्भक कीजिये। यह आपका एक प्राणायाम हुआ। आरम्भ में पाँच प्राणायाम करें, धीरे-धीरे आधा घण्टा तक समय बढ़ा सकते हैं।
स्वास्थ्य के साथ-साथ प्राणायाम आत्मोन्नति का भी एक महत्वपूर्ण व उपयोगी साधन है। इससे प्राण-साधना के साथ ही साथ चित्त की एकाग्रता, स्थिरता, दृढ़ता और मानसिक गुणों का विकास होता है। आगे चलकर प्राणायाम से प्राण पर नियन्त्रण प्राप्त करते हैं और शरीरस्थ प्राणों को जागृत करते हैं। इनका स्वास्थ्य पर विलक्षण प्रभाव पड़ता है जिसे एक प्रकार से चमत्कार ही माना जा सकता है। हमारे यहाँ इस सम्बन्ध में बड़ी तत्परतापूर्वक खोज की गई है।
देश, काल और परिस्थिति के अनुसार उतना तो हर किसी के लिए सम्भव नहीं है। किन्तु रक्त शुद्धि व दूषित तत्वों के निष्कासन से स्वास्थ्य व आरोग्य प्राप्त करना हर किसी के लिए सम्भव है। नियमित रूप से प्राणायाम करने से स्वास्थ्य स्थिर रहता है, बीमारियाँ दूर भागती है, शक्ति और स्फूर्ति आती है। हमसे से प्रत्येक को प्राणायाम से लाभ उठाना चाहिये।