Magazine - Year 1965 - Version 2
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Language: HINDI
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अगले वर्ष के लिए एक महान् पुरश्चरण-
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उपासना की दृष्टि से इस वर्ष राष्ट्र की प्रतिरोधात्मक शक्ति को उत्पन्न करने के लिये अखण्ड-ज्योति परिवार के सदस्यों को गायत्री महातत्व की ‘क्लीं’ शक्ति की सामूहिक उपासना करनी चाहिए। अध्यात्म विद्या के जानकारों को पता है कि ह्रीं सरस्वती, बुद्धि का, श्रीं लक्ष्मी, समृद्धि का तथा क्लीं काली, दुरित संहार का बीज-मन्त्र है। गायत्री महाशक्ति में समय-समय पर विशेष प्रयोजनों के लिए इन्हें प्रयुक्त किया जाता है। वर्तमान परिस्थितियों में शुँभ-निशुँभ, महिषासुर, मधुकैटभ की तरह आक्रमणकारी दुर्दान्त दस्युओं को परास्त करने वाली दुर्गा शक्ति से भारतीय जन-मानस को ओत-प्रोत करने की आवश्यकता है। इसलिये उसका उद्भव के लिये इसे आश्विन सुदी पूर्णिमा-शरद पूर्णिमा से एक वर्ष के लिये राष्ट्र व्यापी 24-24 करोड़ जप के प्रतिमास दो क्लीं महापुरश्चरण आरम्भ कराये जा रहे हैं। इसमें परिवार के प्रत्येक परिजन को भाग लेना चाहिये।
ॐ भूर्भुवः स्वः क्लीं क्लीं क्लीं तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् क्लीं क्लीं क्लीं ॐ। ‘ यह शत्रु एवं शत्रुता संहारक शक्ति मन्त्र है। इसकी एक मन्त्र की प्रति दिन 8 माला जपने से एक महीने में एक 24 हजार का अनुष्ठान पूरा हो जाता है । एक घण्टा में मंत्र की आढ़ मालाएं हो सकती हैं। जिनके पास इतना समय है, वे अकेले ही, अन्यथा अपने कुटुम्ब के सदस्यों में से एक-एक, दो-दो माला करके भी 8 माला का कार्यक्रम बनाया जा सकता है। परिजन अपने परिवार से एक महीने में एक अनुष्ठान पूरा करा लेने का प्रयत्न करें। यों अखण्ड-ज्योति परिवार के 40 हजार सदस्य है पर हम 10 हजार सदस्यों से यह आशा करेंगे कि वे एक-एक अनुष्ठान हर महीने कराते रहेंगे। 24 करोड़ अनुष्ठान प्रतिमास होता रहेगा। ऐसे 12 अनुष्ठान अगले एक वर्ष में पूरे करने हैं।
छोटे बच्चे महिलाएं तथा अशिक्षित परिजनों के लिए लघु क्लीं मन्त्र हैं। ‘ॐ क्लीं भूः ॐ क्तीं भूः ॐ क्लीं स्वः ॐ।’ यह दश अक्षरी क्लीं मन्त्र उनके लिये है, जिनको शिक्षा अथवा समय के अभाव में पूरा मन्त्र जपने में कठिनाई होती है। इस मन्त्र की 20 मालाएं एक घण्टे में हो सकती हैं। एक व्यक्ति इतना समय न लगा सके तो एक परिवार मिलकर तो इतना कर ही सकता है। 20 माला के हिसाब से 6 दिन में एक अनुष्ठान 24 हजार का हो सकता है। अर्थात् महीने में पाँच। इस तरह के 2 हजार व्यक्ति अथवा परिवार इस लघु क्लीं अनुष्ठान में सहज ही लग सकेंगे, ऐसा विश्वास है। इस प्रकार 24 करोड़ के 12 अनुष्ठान इसके भी हो जायेंगे।
इस उपासना में सिंह वाहिनी ॐ ध्वजधारी गायत्री की क्लीं शक्ति का ध्यान करना चाहिये। अखण्ड-ज्योति के मुख पृष्ठों पर इस वर्ष तथा गत वर्ष कई बार इस चित्र को प्रकाशित किया जाता रहा है। साधक उसे काट कर शीशे में मढ़ा ले और उसकी पूजा-अर्चना किया करें। यह चित्र अलग से भी छपाया गया है। पुस्तकें आदि मँगाते समय उनके साथ ही यह चित्र भी मँगाया जा सकता है।
10 हजार व्यक्तियों अथवा परिवारों द्वारा 1 घण्टा समय नित्य लगाये जाने पर हर महीने 24 करोड़ का पूर्ण क्लीं बीज सहित गायत्री महातत्व अनुष्ठान ही होगा। इस शरद पूर्णिमा से अगली शरद पूर्णिमा तक एक वर्ष में ऐसे 12 अनुष्ठान हो जायेंगे। इसी प्रकार 2 हजार लघु क्लीं मन्त्र का अनुष्ठान करने वाले 2 करोड़ जप होते रहेंगे। एक वर्ष में 12 अनुष्ठान यह भी हो जायेंगे। इस प्रकार 24 करोड़ के 12 +12=24 अनुष्ठान का महान महापुरश्चरण पूरा होगा। इसका प्रतिफल राष्ट्रीय सुरक्षा एवं शक्ति अभिवर्धन की दृष्टि से बहुत ही आशाजनक होगा।
प्राचीनकाल में असुरों के दुरभिसंधिपूर्ण आक्रमणों से जब देवता परास्त हो गये तो वे आत्म-रक्षा का उपाय पूछने प्रजापति के पास गये। उन्होंने सबकी थोड़ी-थोड़ी शक्ति लेकर एक सामूहिक महाशक्ति का निर्माण किया उसका नाम ‘काली’ रखा। इस क्लीं काली ने शुंभ-निशुंभ, महिषासुर, मधुकैटभ असुरों का उनकी सेना समेत संहार कर डाला। उस पौराणिक गाथा की यह पुनरावृत्ति है। आज भी लगभग वैसा ही विषम समय है। आध्यात्मिक उपचारों में वही उपाय फिर काम में लाया जा रहा हैं। 10 हजार भारी और 2 हजार हल्के देव परिजनों द्वारा उनकी शक्ति का एकत्रीकरण करके यह महापुरश्चरण आरम्भ कराया जा रहा है। इससे भी पूर्वकाल जैसी क्लीं काली शक्ति का प्रादुर्भाव होगा और राष्ट्रीय संकट को टालने में ‘आसुरी’ आक्रमण को परास्त करने में भारी सहायता मिलेगी। उस शक्ति का पुनः प्रादुर्भाव होगा जो जन-मानस में शौर्य, पौरुष, पराक्रम एवं तेज उत्पन्न कर सके। इससे राष्ट्र का लाभ तो होगा ही। उन भागीदारों की व्यक्तिगत आपत्तियों एवं कठिनाइयों के समाधान में भी सहायता मिलेगी। उनके व्यक्तिगत जीवन में जो शत्रुओं एवं शत्रुताओं के कारण जो अड़चनें उत्पन्न हो रही हों, उनका भी समाधान होगा।
इस अनुष्ठान के एक हजार विशिष्ट ‘ऋत्विज्’ नियुक्ति किये जा रहे हैं उन्हें एक वर्ष तक (1) ब्रह्मचर्य का पालन (2) एक अन्न एक शाक का उपवास, यह दो व्रत निवाहने पड़ेंगे। यों आवाहन के पाँच नियम में से, जिससे जो कुछ निभ सके वे, उसे निभायें। ब्रह्मचर्य में अधिकाधिक कठोरता बरतें। भोजन में एक अन्न और एक शाक का नियम रखना भी एक प्रकार का उपवास ही है। आज यदि गेहूँ की रोटी और आलू का शाक लिया है तो दोनों समय वही लेना चाहिये। कल यदि शाक, दाल या अन्न बदलना हो तो बदल सकते हैं। यह भी एक उपास ही है। रविवार को फलाहार शाक, फल, दूध का निरन्तर आहार करना चाहिये। अपनी शारीरिक सेवा आप करना, चमड़े का त्याग यह पाँच नियम अनुष्ठान के हैं, इनमें से सबका या एक-दो का, जिससे पालन हो सके, वे उसे कर सकते हैं। यह स्वेच्छा व्रत है, प्रतिबन्धित नहीं। एक हजार ऋत्विजों पर इस प्रकार के प्रतिबन्ध रहेंगे। उन्हें ब्रह्मचर्य, उपवास के दो नियम अनिवार्यतः पालन करने होंगे, शेष 3 को भी जो पालन कर सकें, स्वेच्छापूर्वक करें।
शरद पूर्णिमा 10 अक्टूबर की है। तब तक यह अंक सभी पाठकों के हाथों पहुँच जायेगा। उस दिन से जो जितना भाग इस महान अनुष्ठान में ले सके, लेना आरम्भ कर देना चाहिये। शाखाओं की मीटिंग बुलाकर जो जितना भाग ले सके, उसकी प्रेरणा देनी चाहिये। जो शरद पूर्णिमा से आरम्भ न कर सकें, वे आगे भी आरम्भ कर सकते हैं, पर जितना जप पीछे छूट गया होगा उसकी पूर्ति अगले वर्ष में पूरी कर लेनी होगी। जितने-जितने जप का जिस प्रकार व्रत लिया हो, उसकी सूचना उन्हें मथुरा भेज देनी चाहिये, ताकि उसमें रही हुई त्रुटियों का दोष परिमार्जन तथा संरक्षण यहाँ होता रहे।
हर महीने एक हवन उपरोक्त मन्त्र से ही सामूहिक रूप से करना चाहिये। पूर्णिमा या महीने का अन्तिम रविवार या और कोई सुविधा का दिन नियत कर लिया जाये, जिससे उपरोक्त पुरश्चरण का हवन होता रहे। न्यूनतम 240 आहुतियाँ तो होनी ही चाहिये। अधिक जितनी भी हो सके, उत्तम है।
नित्य प्रार्थना उपासना में इस धर्म युद्ध में भारतीय राष्ट्र की विजय की भी माता से प्रार्थना करनी चाहिये। मन्दिरों में, धर्मस्थानों में, सत्संग, कथा, कीर्तनों में भी समय-समय पर ऐसी ही सामूहिक प्रार्थनाओं का आयोजन करना चाहिये।
इस वर्ष पंचकोशी साधना का नया पाठ्यक्रम नहीं बनाया जा रहा है। गत वर्ष जो क्रम चला था वही इस वर्ष भी चलने देना चाहिये। पिछले तीन वर्षों से अन्नमय कोश, मनोमय कोश, प्राणमय कोश, विज्ञानमय कोश, आनन्दमय कोश के अनावरण की जो साधना चल रही थी, उसे ही इस वर्ष परिपक्व कर लेना चाहिये। आगामी साधना क्रम अगले वर्ष बतावेंगे।
युद्ध एक बार फिर होगा
देहरादून के एक साधक श्री आर॰ एम॰ दत ने भविष्यवाणी की है कि अक्टूबर की 15 तारीख तक आक्रमणकारी अयूब की सत्ता क्षीण हो जायगी। इस समय राष्ट्र-संघ के प्रयत्न से संघर्ष रुक सकता है, पर 1966 के अन्त में यह युद्ध पुनः भड़क उठेगा और तभी पाकिस्तान को ऐसी सद्बुद्धि आयेगी, जिससे वह भारत के साथ मिलकर रह सकेगा।