Magazine - Year 1967 - Version 2
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Language: HINDI
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प्रगति पथ के तीन प्रमुख अवरोध
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जीवन पथ पर आगे बढ़ने के महत्वाकाँक्षियों को प्रगति के तीन शत्रु- (1) आवेश, (2) असहनशीलता और (3) अदूरदर्शिता से सदा सावधान रहना चाहिए। जो श्रेयपंथी इन तीन शत्रुओं को साथ लेकर चलते हैं अथवा समय असमय साथ हो लेने देते हैं वे कदाचित ही अपने लक्ष्य पर पहुँच पाते हैं।
उन्नति और विकास के लिए मनुष्य को योजनाबद्ध कार्यक्रम बनाना पड़ता है। योजनाबद्ध कार्यक्रम को बनाये बिना जो यों ही अस्त-व्यस्त गति से चल पड़ते हैं उनकी यात्रा निरापद अथवा पूरी होगी इसमें सन्देह किया जा सकता है। हमें क्या पाना है अथवा कहाँ पहुँचना है-इस बात को जाने बिना गति की दिशा निर्धारित नहीं की जा सकती और जिस गति की दिशा ही अज्ञात है उसका कोई गन्तव्य हो ही नहीं सकता ।
गन्तव्य और उसके अनुरूप दिशा का निर्णय हो जाने पर साधन, सम्बल तथा शक्ति का संचय करना पड़ेगा और यह समझना होगा कि अपने उपलब्ध साधनों का किस प्रकार प्रयोग किया जाये जिससे कि वे लक्ष्य की दिशा में अधिक से अधिक उपयोगी हो सकें। साधन तथा सम्बल संचय हो जाने पर दृढ़तापूर्वक कदम-कदम निर्धारित पथ पर धैर्यपूर्वक चलना होगा तब कहीं अपने गन्तव्य और लक्ष्य पर पहुँचा जा सकता है। जिसके लिए इस प्रकार की सुनियोजित योजना, क्रमबद्धता तथा सन्तुलन की आवश्यकता है उस लक्ष्य की सिद्धि भला यों ही सोचे-समझे बिना ग्रस्त-व्यस्त गति से चल पड़ने से किस प्रकार हो सकती है?
मनुष्य का आवेश इस योजनाबद्ध कार्यक्रम में बाधक होता है। आवेश एक प्रकार का उन्माद है, जिसका दौरा किसी समय भी पड़ सकता है। जिसका मस्तिष्क आवेश के दोष से घिरा रहता है वह क्षण-क्षण पर उत्तेजित हो उठता है। उसमें इतना हल्कापन आ जाता है कि किसी बात पर कुछ देर भी स्थिर रह कर सोच नहीं सकता। किसी लक्ष्य के लिए सुनियोजित कार्यक्रम बनाने के लिए बौद्धिक परिश्रम की आवश्यकता होती है। आवेश प्रधान मस्तिष्क में उसका हो सकना कठिन होता है। आवेश के दोष वाला व्यक्ति जरा-सा सोचने पर थक जाता है। उसे एक उलझन, विषण्णता तथा अरुचि अनुभव होने लगती है जिससे वह या तो यह सोचना ही छोड़ देता है अथवा अपूर्ण विचारों के बीच ही निर्णय कर डालता है। जिसका फल असफलता के सिवाय और क्या हो सकता है।
आवेश प्रधान व्यक्ति का हर काम उतावली से भरा होता है। वह अपने कामों को आवश्यक धैर्य तथा सन्तुलन का दाया भाग नहीं दे पाता। समय से पूर्व ही फल की आकाँक्षा करने पर जब वह पूरी नहीं होती तब उत्तेजित होकर खीझ उठता है। तब वह या तो अपने कर्त्तव्य कर्म से चिढ़ने लगता है अथवा समाज को दोषी मान कर द्वेष करने लगता है और बदले में अपने विरोधी पैदा कर लेता है।
आवेश प्रधान व्यक्ति की बेल कभी सिरे नहीं चढ़ती। उसकी अस्त-व्यस्त गति उसके पैरों को उलझाती रहती है। उसके काम बिगड़ते अथवा कुरूप होते रहते हैं, जिससे उसे एक दिन स्वयं अपने से अरुचि हो सकती है और तब किसी ऊँचे लक्ष्य को पाना तो क्या सामान्य जीवन भी खिन्नता से भर जाता है।
आवेश निश्चय ही एक मानसिक रोग है। जिसका उपचार धैर्य सन्तुलन तथा स्थिरता ही है। यदि आप में आवेश की दुर्बलता है तो पहले अभ्यास एवं प्रयत्नपूर्वक उसे धैर्य, सन्तुलन तथा सौंदर्य से स्थानापन्न कर लीजिये। तब शाँतिपूर्वक अपना लक्ष्य निर्धारित करिये, दिशा का निर्णय करिये और सोचे हुए सुनियोजित कार्यक्रम के अनुसार गन्तव्य की ओर कदम-कदम बढ़िये अवश्य ही आप अपने उद्योग में कृतकृत्य हो जायेंगे।
असहनशील व्यक्ति मार्ग की उन बाधाओं तथा विरोधों से उस प्रकार नहीं निपट सकता जिस प्रकार प्रगति के महत्वाकाँक्षी के लिए योग्य है। विरोधों का विरोध करना होता है। अवरोधों को धकेलना होता है। किन्तु उनका विरोध करने और धकेलने का तरीका ऐसा होना चाहिये जिससे कि उल्टा विरोध और न बढ़ने लगे। क्या ऐसा शाँत एवं बुद्धिमत्तापूर्ण तरीका असहनशील व्यक्ति से सम्भव हो सकता है? असहनशीलता क्रोध को जन्म देती है और क्रोध विरोध को घटाता नहीं बल्कि बढ़ाता है। जिसमें सहनशीलता का अभाव है यह अपनी आलोचना, निन्दा अथवा अप्रिय इंगित को एक क्षण भी सहन नहीं कर सकता। वह तत्काल उत्तेजित होकर कटु से कटु प्रत्यालोचना करने पर उतर आयेगा एक की सौ सुनायेगा और वही काम करने लगेगा जो समाज के निर्लक्ष्य, निरर्थक और निकम्मे व्यक्ति किया करते हैं । क्या इस प्रकार की रीति-नीति प्रगति पथ पर आगे बढ़ने में सहायक हो सकती है? आलोचना सुनते अथवा किसी के विरोध में खड़े होते ही असहनशील व्यक्ति तत्काल मुकाबले पर उत्तर आता है। वह यह सोचने का कष्ट नहीं करता कि आखिर यह लोग क्यों तो उसकी आलोचना करते हैं और क्यों विरोध में खड़े हो रहे हैं। सम्भव है हमारी गतिविधि में कोई ऐसा तत्व समाहित हो रहा हो जो इन लोगों की प्रगति में बाधक हो अथवा इनको कष्ट पहुँचा रहा हो। कोई भी आदमी अपने में पूर्ण नहीं होता। उससे गलती भी हो सकती है। सहनशील व्यक्ति शाँत मस्तिष्क से आलोचना तथा विरोध की विवेचना करके यह समझने का प्रयास करता है कि क्या इन लोगों के विरोध का कारण मेरी कोई अवाँछित गतिविधि तो नहीं है? और यदि ऐसा होता है तो वह तत्काल सुधार को स्थान देता है क्योंकि सहनशील व्यक्ति हठी अथवा दुराग्रही नहीं होता। असहनशील व्यक्ति से इस सदाशयता की आशा नहीं की जा सकती जिसका परिणाम अधिकाधिक विरोध के अतिरिक्त और क्या हो सकता है?
उन्नति अथवा प्रगति के पथ पर बाधाओं की भाँति असफलताओं का आना भी सहज सम्भाव्य है। यह किसी प्रकार भी संभव नहीं कि पहले कदम से लेकर अन्तिम कदम तक सफलता ही सफलता मिलती रहे। असफलतायें आती हैं और जरूर आती हैं। असहनशील व्यक्ति जब बाधा और विरोध से उत्पन्न होने वाली असफलता की सम्भावना से ही विचलित होकर अपना मानसिक सन्तुलन खोकर उत्तेजना के वशीभूत हो जाता है तब यह आशा करना व्यर्थ है कि वह साक्षात् असफलता को स्वीकार कर सकेगा। असफलता का स्वागत करने के लिए उद्यत न रहने वाला व्यक्ति जीवन में कभी सफलता का स्वागत करने का अवसर पा सकेगा यह असम्भव नहीं तो अस्वाभाविक अवश्य है। सफलता की ओर जाने वाला मार्ग असफलताओं के बीच होकर ही जाता है।
असफलता की अप्रियता न सह सकने के कारण असहनशील व्यक्ति को निराश एवं हताश होते देर न लगेगी। यह दोनों दुर्बलतायें ऐसी शृंखला हैं जो मनुष्य की गति को अवरुद्ध कर जहाँ का तहाँ रोक दिया करती हैं। बाधा, विरोध, कठिनाई तथा असफलता प्रगति पथ पर चलने वाले के लिए काँटों का उपहार है जिसको स्वीकार करना उसका कर्त्तव्य है- ऐसा समझ सकना असहनशीलता के वश की बात नहीं होती। असहनशील व्यक्ति की वृत्ति इस विषय में कुछ विपरीत-सी होती है। वह असफलता अथवा कठिनाई को स्वीकार करने में तो आनाकानी करता है किन्तु हार मान कर हताश जरूर होता है।
सहनशीलता का गुण मनुष्य को हर कठिनाई कटुता तथा अप्रियता को सहने योग्य बनाये रखता है। असफलता के आने पर उसके सोचने का ढंग असहनशील से भिन्न होता है। वह सोचता है कि आज यदि असफलता का मुख देखने को मिला है तो कल अवश्य ही सफलता के दर्शन होंगे। उसके पास निराशा अथवा निरुत्साह के भाव फटकने भी नहीं पाते। वह कठिनाइयों से शक्ति विरोध से साहस और असफलता से शिक्षा लेकर दूने वेग से आगे बढ़ा करता है। असहनशील व्यक्ति की तरह खिन्न होकर हानि पर बैठा-बैठा शोक नहीं मनाया करता है। ऐसे ही साहसी व्यक्ति हजार कठिनाइयों और कटु से कटु असफलता को सहन कर अपने गन्तव्य पर पहुँच कर ही दम लेते हैं। श्रेय पथ पर चलने से पूर्व मनुष्य को चाहिए कि वह असहनशीलता का मानसिक हलकापन दूर कर अपने अन्दर गम्भीरता, दृढ़ता तथा सहनशीलता का विकास करके- तब चले-और तब उसे अपने लक्ष्य तक पहुँचने से संसार की कोई भी शक्ति नहीं रोक सकती!
अदूरदर्शी व्यक्ति कितना ही धैर्यवान साहसी तथा पुरुषार्थी क्यों न हो अपने लक्ष्य पर नहीं पहुँच सकता है उसकी संकुचित तथा सीमित दृष्टि पैर तले को देख सकने के सिवाय दो कदम आगे का भी नहीं देख सकती जबकि महत्वाकाँक्षाओं को मूर्तिमान् करने के लिए दूर, वर्षों दूर भविष्य के गर्भ तक में झाँकना और अनागत का स्वरूप अनुमान करना पड़ता है। जो नाक के आगे देखने की क्षमता ही नहीं रखता वह आज से लेकर आने वाली परिस्थितियों तथा वासनाओं का दिग्दर्शन किस प्रकार कर सकता है। किसी ऊँचे लक्ष्य को पाने के लिये वर्तमान परिस्थितियों का उपयोग किस प्रकार करना पड़ता है जिससे कि भविष्य द्वारा सम्वाहित परिस्थितियों पर अनुकूल प्रभाव पड़े जिससे कि यदि उनमें कोई प्रतिकूलता लिपटी चली आ रही हो तो वह दूर कर अलग गिर जाये और वह अनागत आकर मनोनुकूल वर्तमान में बदलता रहे। इस प्रकार की दूर, व्यापक तथा सूक्ष्मदर्शिता का काम संकीर्ण बुद्धि वाले से हो सकना सम्भव नहीं। दूरदर्शी ही तो यह देख सकता है कि उसका लक्ष्य किस दिशा में कितनी दूर और किन-किन भिन्न तथा अभिन्न परिस्थितियों से घिरा हुआ वर्तमान है और उस तक किस गति से कितने समय में पहुँच जा सकता है। जो आज के वर्तमान में बर्तता हुआ अनागत भविष्य के बर्ताव की रूपरेखा नहीं समझ सकता उस अदूरदर्शी को महत्वाकाँक्षियों के चमत्कार से आकर्षित न होना चाहिए क्योंकि उसे इस विषय में असफलता तथा ग्लानि के अतिरिक्त कुछ भी हाथ न लगेगा।
अदूरदर्शी व्यक्ति तात्कालिक लाभ तथा सफलता पर ही ध्यान केन्द्रित रखता है। वह उस लाभ या परिणाम समझने में असमर्थ रहता है। यह अनुमान लगा सकना उसके वश के बाहर की बात होती है कि आज का यह लाभ जिसे पकड़ कर वह हर्षित अथवा सन्तुष्ट हो रहा है भविष्य के किसी बड़े लाभ पर बुरा प्रभाव डालेगा। उसे इस बात का स्पष्ट ज्ञान नहीं रहता कि आज के इस लाभ का त्याग कल ऊँचे सफलता में फलीभूत हो सकता है। दूरदर्शिता की कमी किसी भी महत्वाकाँक्षी के लिये सबसे बड़ी और हानिकारक भी है। इसको दूर कर ही श्रेय पथ पर पैर रखना बुद्धिमानी माना जायेगा।
यदि आप महत्वाकाँक्षी हैं। जीवन में उन्नति एवं विकास का कोई ऊँचा लक्ष्य पाना चाहते हैं तो प्रगति पथ के इन तीन शत्रुओं-आवेश, असहनशीलता तथा अदूरदर्शिता यदि आप में हों तो निकाल डालिये और प्रतिक्षण सावधान रह कर श्रेय पथ पर आगे बढ़िये आपकी आकाँक्षायें सफल होंगी। आपका उद्योग, उद्यम तथा परिश्रम और पुरुषार्थ फल लायेगा।