Magazine - Year 1968 - Version 2
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Language: HINDI
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निश्छल आत्मा स्वयमेव देव-शक्ति
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निश्छल आत्मा स्वयमेव देव-शक्ति :-
अमेरिकी राष्ट्रपति वाशिंगटन के कुटुम्ब में दो बहनें, जिनका नाम जान और वर्जिना था, अपने दोनों भाइयों फ्रेड और जैक से बहुत स्नेह रखती थीं। भाई-बहनों के इस प्रेम में कहीं कोई स्वार्थ या मोह की भावना न थी। विशुद्ध प्रेम कल्याण का भाव था।
एक दिन की बात है, दोनों बहनें घर पर थीं। भाई वहाँ से बहुत दूर अपने काम पर किसी दूसरे शहर में थे। अचानक अस्पताल से फोन आया- ‘‘वहाँ कोई ऐसा जख्मी आदमी पड़ा है, उसका मुख इस तरह कुचल गया है कि पहचानना कठिन हो रहा है। किन्तु वह तुम्हारे पिता का नाम लेता है, इसलिये अस्पताल आकर फौरन उसकी पहचान कर लो।”
दोनों बहनें किसी अज्ञात भय से काँप उठीं। मन में भय समा गया, कहीं जैक या फ्रेड में से तो कोई नहीं है। जाने से पूर्व दोनों बहनों ने भगवान से प्रार्थना की- ‘‘हे प्रभु! ऐसा न हो कि वह हमारा भाई हो।” इसके बाद भरे आँसुओं से वह अस्पताल पहुँचीं। वहाँ जाकर पता चला कि वह उनके घर का नौकर था। और वह किसी वाहन दुर्घटना में कुचल गया था। उनके पहुँचते-पहुंचते उसकी मृत्यु हो गई, पर दोनों बहनों का तब भी अपने भाइयों की बड़ी याद आती रही।
कहते हैं सच्चे हृदय की याद में इतनी शक्ति होती है कि वह एक हृदय का संदेश दूसरे हृदय तक बेतार के तार पहुँचा देती है। घर पहुँचे अभी दो क्षण मुश्किल से बीते होंगे कि जैक का फोन आया। उसने बताया- ‘‘मुझे ऐसा लग रहा है कि तुम दोनों मुझे बुला रही हो, बताना तुम दोनों कुशलमंगल से तो हो।”
दोनों बहने आश्चर्यचकित थीं कि उनकी अन्तर-वाणी जैक तक कैसे पहुँच गई। उसकी तरफ से आश्वस्त बहनों का ध्यान अब फ्रेड का भी पत्र आया उसने भी लिखा था- ‘‘मुझे कई दिन से ऐसा लग रहा है कि तुम दोनों मेरी याद कर रही हो- लिखना अच्छी तो हो।”