Magazine - Year 1969 - Version 2
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Language: HINDI
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मनुष्य-अनन्त आकाश का क्षुद्रतम अंश
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ध्रुवों की ओर से नाम करें तो 24860 और भूमध्यरेखा पर से नापें तो हम पृथ्वी पर रहते है, उसकी परिधि 24902 मील लम्बी है दूरी की कोई पैदल नापना चाहे तो यह मानकर चले कि मार्ग में पड़ने वाली नदियाँ, पहाड़ समुद्र, ग्लेशियर, चट्टानें, बड़े-बड़े वृक्ष, खाने, जीव-जन्तु और हिंसक जानवरों की रुकावटें नहीं जायेगी तो भी कम से कम 5 वर्ष का समय इस परिक्रमा में लग जायेगा।
हमारी पृथ्वी जिस सौर मण्डल का सदस्य है, सूर्य उसका प्रमुख तारा है यह तो स्वयं प्रकाशित होते हैं और उपग्रह को किसी अन्य स्रोत से प्रकाश ग्रहण करके प्रकाशित होते हैं- ऐसे अगणित ग्रह-उपग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं, 10 इनमें प्रमुख हैं, चन्द्रमा पृथ्वी का उपग्रह है अन्यों में से मंगल और शुक्र ग्रह सबसे पास हैं, उसके बाद सूर्य है, जिसकी एक परिक्रमा करने में पृथ्वी को 365 1/4 दिन लगाने पड़ते हैं। बुध जो सूर्य के सबसे समीप है 88 दिन में सूर्य की एक परिक्रमा करता है। पृथ्वी के पास उसके बाद जो ग्रह है, वह है बृहस्पति। बृहस्पति को तीन चन्द्रमा प्रकाश देते हैं। इस प्रकार की नीहारिक (नेबुला) से वंचित शनि ग्रह का उसके बाद स्थान है, इसका भी एक चन्द्रमा है। यूरेनस के 3 चन्द्रमा, नेपच्यून एक चन्द्रमा का ग्रह है और सबसे दूर का ग्रह प्लूटो है। यह सभी ग्रह-उपग्रह अपनी-अपनी कक्षाओं का परिभ्रमण करते हुए सूर्य की परिक्रमा करते हैं और उसमें जितना अन्तरिक्ष उनकी क्रियाशीलता में आता है, उसको कोई सीमा निर्धारित करना कठिन है।
बिना किसी यन्त्र के सायंकाल आकाश की और खड़े होकर देखे तो हम संसार के सम्पूर्ण भागों से अधिक से अधिक 10000 तारे ही देख सकते हैं। एक स्थान से तो 2000 तारों से अधिक नहीं देख सकते, यह सभी तारे एक सर्पिल निहारिका (सरपेन्टल नेबुला) के बाह्य प्रदेश में अवस्थित है। जो हमारी दृष्टि में आ जाते हैं और जो बहुत प्रयत्न करने पर भी नहीं दिखाई देते आकाश गंगा में ऐसे तारों की संख्या 150000000000 है। इनमें से अनेक तारे सूर्य से छोटे और अनेक सूर्य से कई गुना बड़े तक है। इनकी परस्पर की दूरी इतनी अधिक है कि उन सब की अलग नाप करना भी कठिन है। पृथ्वी से सूर्य की ही दूरी 13000000 मील है, चन्द्रमा हमसे कुल 240000 मील दूर है। प्लूटो ग्रह जो सूर्य से सबसे अधिक दूर है, उसमें सूर्य का प्रकाश पहुँचने में 5 घण्टे 30 मिनट समय लगता है। अर्थात् सूर्य और प्लूटो के बीच का अन्तर 186000 मील × 19800 सेकेण्ड = 3682800000 मील है। मनुष्य का आकार प्रकार इतने विशाल अन्तरिक्ष की तुलना में सागर की एक बूँद, मरुस्थल के एक रेणु-कण से भी छोटा होना चाहिये।
यह तो रहा सौर परिवार का विस्तार और उसकी परिवार संख्या संक्षिप्त सा विवरण। इनमें होने वाली गति शक्ति और क्रियाशीलता का क्षेत्र तो और भी व्यापक है। सूर्य स्वयं भी स्थिर नहीं। वह अपनी धुरी पर 43000 मील प्रति घण्टे की भयंकर गति से घूमता रहता है और प्रति सेकेण्ड 40 लाख टन शक्ति आकाश में फेंकता रहता है। पृथ्वी को उस शक्ति में से कुल चार पौण्ड शक्ति प्रति सेकेण्ड मिलती है और उतने से ही यहाँ के जलवायु का नियंत्रण खनिज पदार्थ और मनुष्यों को ताप आदि मिलता रहता है। यह शक्ति देखने में कम जान पड़ती है, किन्तु उसे यदि किसी परमाणु केन्द्र में पैदा करना पड़े तो उसके लिए प्रति घण्टा 1700000000000 डालर व्यय करने पड़ेंगे सूर्य की यह शक्ति जो वह अपने सौर परिवार की रक्षा और व्यवस्था में व्यय करता है, वह उसकी सम्पूर्ण शक्ति के दस लाख वे भाग का भी दस लाखवाँ हिस्सा होता है। काम में आने वाली शक्ति के अतिरिक्त को वह अपने भीतर न जाने किस प्रयोजन के लिए धारण किये हुए है और थोड़ी सी शक्ति भी कंजूसी से व्यय करता है। उससे जहाँ सूर्य (आत्मा) की शक्ति का बोध होता है, वहाँ यह भी पता चलता है कि नियामक शक्तियाँ कितनी सामर्थ्यवान् है और मनुष्य कितना क्षुद्र है और शारीरिक और मानसिक दृष्टि से तो वह कीड़े-मकोड़ों से भी गया-बीता रहा गया। आत्मिक दृष्टि से भले ही उसकी सामर्थ्य बढ़ी-चढ़ी हो, किन्तु उसका उद्घाटन और उद्बोधन एकाएक नहीं हो जाता, उसके लिए अपूर्व विश्वास, अविरल साधना और प्रचंड साहस की आवश्यकता पड़ती है। यह सौर-मण्डल अपने परिवार को लेकर किसी अभिजित नक्षत्र की ओर जा रहा है, ऐसा भारतीय ज्योतिविदों का मत है, और ऐसी-ऐसी आकाश गंगायें, हजारों निहारिकायें और अगणित सूर्य अभी इस अन्तरिक्ष में है। ऋग्वेद में भी सृष्टि के विस्तार का वर्णन में ‘बहवो सूर्या’ अनन्त आकाश गंगा में है ऐसा कहा है। उस विस्तार को समझने से पूर्व हमें दूरी का दूसरा माप जान लेना चाहिये। बहुत दूरी के ग्रह-नक्षत्रों को प्रकाश वर्ष से नापा जाता है। एक सेकेंड में प्रकाश 1 लाख 68 हजार 317 मील चलता है। इस हिसाब से 1 वर्ष में प्रकाश कितना चल सकता है, उस दूरी को प्रकाश वर्ष 1 प्रकाश वर्ष कहते हैं, एक प्रकाश वर्ष की गणना लगभग 5840000000000 मील है। आकाश में कुछ ग्रह नक्षत्र तो इतनी दूरी पर बसे हुए है कि मनुष्य मरे और फिर जीवन धारण करें, फिर मरे और फिर जीवन धारण करे इस तरह कई जन्मों की आवृत्ति कर ले तो भी उनका प्रकाश पृथ्वी तक न पहुँचे। ज्योतिविदों का कहना है कि आकाश में ऐसे कई तारे दिखाई दे रहे है, जो वास्तव में हैं ही नहीं। किन्तु चूँकि उनका प्रकाशक वहाँ से चल पड़ा है और वह आकाश को पार करता हुआ आ रहा है, इसलिये उस तारे की उपस्थिति तो मालूम होती है पर वस्तुतः टूटकर या तो नष्ट हो जाता है, अथवा किसी समीपवर्ती ग्रह में आकर्षित होकर उसमें जा समाया है।
हमारा सौर-मण्डल जिस निहारिका से सम्बद्ध है, उसे मंदाकिनी आकाश गंगा कहते हैं, वह आकाश गंगा ही इतनी विशाल है कि एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुँचने के लिए 1 लाख वर्ष लगेंगे। कुछ चमकीले तारे जैसे व्याध या लुब्धक पृथ्वी से 10 प्रकाश वर्ष दूर है, यदि कोई तेज से तेज जहाज से चले तो भी वहाँ तक पहुँचने में तीन लाख वर्ष लग जायेंगे वह भी इसी निहारिका से सम्बन्ध रखते है। इस विस्तार की ही तय करने में मनुष्य को लाखों वर्ष लग सकते हैं तो शेष विस्तार को तो वह लाखों बार जन्म लेकर भी पूरा नहीं कर सकता वैज्ञानिकों ने अब तक ऐसी दस करोड़ निहारिकाओं (नेबुलाज) का अनुमान लगाया है। जबकि यह विस्तार भी ब्रह्माण्ड के सम्पूर्ण विस्तार की तुलना में वैसा ही है जैसे समुद्र तट पर बिखरे हुए रेत के एक कण को करोड़वाँ छोटा अणु।
सूर्य का बार-बार 864000 मील है। पृथ्वी की परिधि से 108 गुणा अधिक है। ऐसे-ऐसे अनेक सौर मण्डल इस अन्तरिक्ष में समाये हुए है और उनकी गतिशीलता इतनी तीव्र है कि कई-कई ग्रह-उपग्रह तो 72 हजार मील प्रति घण्टा की रफ्तार से अपने-अपने में भ्रमणशील है। कई तारे युगल (डबल) और कई बहुत (मल्टीपल) होकर ब्रह्माण्ड (कास्मास) के आश्चर्य को और भी बढ़ा देते हैं। हमारे सौर-मण्डल में ही 1000 छोटे उपग्रह अनेक पुच्छल तारे ओर असंख्य उल्कायें विद्यमान् है। इस प्रकार की बनावटें प्रायः सभी सौर-मण्डलों में है। ऐस-ऐसे 1 विलियन (1 करोड़) सूर्यों की खोज की जा चुकी है। खगोल शास्त्री एण्ड्रोमीडा नामक निहारिका नेबुला में 2700 लाख सूर्यों की उपस्थिति की पुष्टि कर चुके है। यह हमारे सौर-मण्डल की ओर 200 मील प्रति घण्टा की गति से बन रहा है।
कुछ ऐसे तारों का पता लगाया गया है जो पृथ्वी से इतनी दूर बसे है, जहाँ हमारी कल्पना भी नहीं पहुँच सकती। उदाहरणार्थ सिरस 8॥ प्रकाश वर्ष ‘प्रोस्योन’ 11 प्रकाश वर्ष ‘एलटेयर’ 15 प्रकाश वर्ष दूर है बोडा ओर ऐरीटयूरस तारा समूह पृथ्वी से 30 प्रकाश वर्ष कैरीला 54 प्रकाश वर्ष, सप्तर्षि मण्डल 100 प्रकाश वर्ष रीगल इन ओरिओन 500 प्रकाश वर्ष हाइडेसे 130, प्लाइडम 325 ओर ओरिओम का नीला तारा 600 प्रकाश वर्ष की दूरी पर बसा हुआ है। ड़ड़ड़ड़ तारे विभिन्न प्रकार की जलवायु तापीय और ऊर्जा शक्कित वाले है। कई लम्बाई-चढ़ाई में बहुत बड़ा है। अन्टलारि नामक तारा पृथ्वी जैसी 21 पृथ्वियाँ अपने भीतर भर ले तो भी बहुत स्थानी खाली पड़ा रहे। ओरियन तारा समूल का तारा बैटिल जीन्स का व्यास 2500 लाख मील है, कुछ तारे तो इतनी दूर है कि उनकी प्रथम किरण के दर्शन पृथ्वी वासियों को 36 हजार वर्ष बाद होंगे, तब तक उनका प्रकाश यात्रा करता हुआ बढ़ता रहेगा।
रेडियो ज्योतिष नाम की विद्या का जन्म अब इन सब आश्चर्यजनक माना जाने लगा है। अर्थात् रेडियो दूरबीनों का निर्माण हुआ, जिसमें रेडियो तारे और रेडियो निहारिकाओं की खोज की गई। वैज्ञानिक कहते है कि लाखों-करोड़ों प्रकाश वर्ष की दूरी के तारे केवल प्रकाश के हैं। नवासर और पल्सार ज्योतियों ने अनेक तारों का पता चला है। एक महाभयंकर काले तारे का पता चला है, जिसकी सीमा और दूरी का अनुमान नहीं लगाया जा रहा। यह दूरी का विस्तार जितना बढ़ता जा रहा है, मनुष्य उतना ही छोटा होता जा रहा है। पृथ्वी की तुलना में एक परमाणु बड़ा हो सकता है पर ब्रह्माण्ड की तुलना में मनुष्य तो परमाणु के बराबर भी नहीं है। वह परमाणु, का अणु से भी छोटा नगण्य अणु ही हो सकता है।
एक ओर सृष्टि का यह अग्राह्य अकल्पनीय विस्तार और दूसरी ओर मनुष्य की लघुता, पर उसका बढ़ा-चढ़ा अभियान। हँसी आती है उस पर। लगता है मनुष्य पागल ही रहा। उसने कुछ न जानकर बड़ा दंभ और पाखण्ड फैलाया। सेवा और प्यार करने की बात भूलकर व्यक्ति के प्रभाव में उसने जिसे बन पड़ा सताया ही सताया। ऐसे विवेकहीन मनुष्य की जितनी भर्त्सना की जाय थोड़ा ही है। भौतिक दृष्टि से मनुष्य बहुत दीन और दुर्बल प्राणी है, जो कुछ शक्ति और सामर्थ्यवान् है, वह उसकी आत्मिक शक्ति ही है पर हम मानव मन और मानव आचरण के भटकने से ही कब अवकाश पाते हैं, जो अपने लघु रूप को विश्व-व्यापी चेतना के साथ सम्बन्ध जोड़ पाने की बात सोच पाये। उसके लिए तो मनुष्य को अपने छोटेपन का ध्यान रखना ही पड़ेगा। जब तक वह अपनी लघुता स्वीकार नहीं करता, विश्व की व्यापकता को समझ पाना और उसमें अपने आप को धुला पाना उसके लिए नितान्त असम्भव है।