Magazine - Year 1970 - Version 2
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Language: HINDI
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चन्द्रगुप्त जीता, पर तब जब उतावलापन मिटा
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मगध नरेश महापद्मनन्द पर चन्द्रगुप्त ने कई बार आक्रमण किये पर उसे एक बार भी सफलता हाथ न लगी। जिस प्रकार एक महीने में ही करोड़पति एक वर्ष में ही बड़े से बड़ा पद और कुछ ही दिनों में बीमारी से मुक्ति के उतावलेपन में कई बार लोग ऐसे ऊट-पटाँग काम कर बैठते हैं कि उनके हाथ की सम्पत्ति, आजीविका योग्य नौकरी और रहा-सहा स्वास्थ्य भी चौपट हो जाता है। उसी प्रकार मगध को जीतने के उतावलेपन में चन्द्रगुप्त अपनी सेना से भी हाथ धो बैठा। एक बार उसे जंगलों की खाक छाननी पड़ी।
दिन ढला। अंधकार घिरने लगा। मगध के गुप्तचरों की आँख बचाता हुआ चन्द्रगुप्त एक बुढ़िया के द्वार पर उपस्थित हुआ। रात भर की शरण माँगकर वह उसी झोंपड़ी में विश्राम करने लगा।
द्वार आये अतिथि का सत्कार अपना धर्म मानकर वृद्धा ने खिचड़ी पकाई। थाल परोसकर उसने चन्द्रगुप्त को लगाया और खिचड़ी उसके आगे बढ़ाकर कहा- ले बेटा! पहले भोजन कर ले फिर विश्राम करना।’
मातृवत् स्नेह पाकर चन्द्रगुप्त की आँखें भर आईं। भूखा वह था ही उसने बीच थाली से हाथ से बड़ा कौर भरा। खिचड़ी बहुत गर्म थी, सो हाथ जलने लगा। हाथ को जलन से बचाने के लिए खिचड़ी मुँह में भर ली यह भी न सोचा कि मुख भी तो हाथ की तरह संवेदनशील है, वह भी जल गया, खिचड़ी पूरी थूकनी पड़ी। वृद्ध यह देखकर बोली- ‘बेटा’ लगता है कि तुझ पर चन्द्रगुप्त की छाया पड़ गई है, अन्यथा इस तरह की गलती न करता।’
चंद्रगुप्त आश्चर्यचकित हो गया। ‘आखिर ऐसी कौन सी भूल हुई चन्द्रगुप्त से’ उसने वृद्धा से प्रश्न किया। ‘उतावलापन’। वृद्धा ने उत्तर देते हुए आगे कहा- ‘संसार में प्रत्येक सफलता समय और एक निश्चित विधान के बाद पनपती है। एकाएक किसी को सफलता मिल गई हो, ऐसा अपवाद भी मिलेगा।’ जो शाश्वत नियम है, वह यह है कि मनुष्य छोटे-छोटे कदम बढ़ाकर पहले छोटी सफलताओं पर नियंत्रण करता है फिर उससे बड़ी सफलताओं के लिए भी साहस मिल जाता है।
जिस तरह तुझसे यह तो नहीं बन पड़ा कि पहले किनारे-किनारे की ठण्डी खिचड़ी खाना प्रारंभ करता, तब तक बीच का ढेर ठण्डा हो जाता और उसे भी खाना सुगम हो जाता, उसी प्रकार चन्द्रगुप्त ने यह तो नहीं किया पहले छोटी-छोटी जागीरों को जीतता, फिर अपनी शक्ति बढ़ाकर मगध पर आक्रमण करके उसे भी जीत लेता। उसने पहले ही मगध जीतने की सोची फलस्वरूप सेना भी हाथ से जाती रही और मगध भी हाथ न आया।
समझ गया माँ-चन्द्रगुप्त ने किनारे की खिचड़ी का कौर मुख में रखते हुए कहा-जो लोग छोटे-छोटे अभ्यास से आगे बढ़ते हैं, वही जीवन में सफलतायें प्राप्त करते हैं, उतावली में आकर लंबी छलाँग लगाने वाले सचमुच मेरी ही तरह जीवन संग्राम में असफल और पराजित होते हैं।
चन्द्रगुप्त ने फिर सेना एकत्रित की। इस बार उसने छोटी-छोटी रियासतों पर आक्रमण कर महापद्मनन्द के मुकाबले की शक्ति खड़ी कर ली और तब उसने मगध पर आक्रमण कर दिया और महापद्मनन्द को परास्त कर स्वयं वहाँ का शासक बन बैठा।
मनुष्य जीवन में जो लोग छोटे प्रयत्नों से प्रारंभ कर अपनी योग्यताएं बढ़ाते हुए आगे बढ़ते हैं, वह एक दिन चन्द्रगुप्त की तरह सिपाही से सम्राट बन जाते हैं, उतावलेपन और तुरंत लाभ पाने की आशा-दुराशा मात्र है, उससे हाथ भी जलता है और मुख भी।
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