Magazine - Year 1970 - Version 2
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Language: HINDI
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जीवन का अर्थ
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हम जी रहे हैं इतना मात्र पर्याप्त नहीं। अपने कुटुंबियों के लिये आजीविका भी कमा रहे हैं- यह भी काफी नहीं है। जहाँ काम करते हैं पूरी लगन और परिश्रम के साथ करते हैं, हम अच्छे पिता, उत्तरदायित्व निबाहने वाले पति हैं, और परमात्मा का ध्यान भी नित्य नियम से करते हैं, इतना कहने पर भी हम तो यही कहेंगे कि अभी भी आप जो कर रहे हैं, वह अपूर्ण है, न काफी है, यह तो जीवन की अनिवार्यतायें हैं, विशेषता या परिपूर्णतायें नहीं। इतना तो हममें से प्रत्येक को करना ही चाहिये। जीवन का अर्थ है-एक ऐसी तत्परता जो निरन्तर यह खोजती रहे कि कहाँ पर कुछ भलाई की जा सकती है। प्रतिक्षण और अधिक उद्दात्त व्यक्ति बनने और अपनी आत्मा की पवित्रता विकसित करने के लिये यदि प्रयत्नशील हैं, तब यह कहा जा सकता है कि आपके जीवन की दिशा सही है। अपने परमात्मा को केवल हृदय से ही प्रेम नहीं करना वरन् सारी आत्मा, सारी बुद्धि और हाथों से भी करना चाहिये, तभी जीवन को परिपूर्ण बना सकते हैं। हर पिछड़े हुए साथी की प्रतिदिन मदद किया कीजिये; जो सेवा सहायता के पात्र हैं, उन्हें ढूंढ़िये और उनके लिये कुछ काम कीजिये। यह काम कितना ही छोटा हो पर यदि आपने उसी को पूरा करने में अपना गौरव समझ लिया है और यह मान लिया है कि हमें उसके बदले में कुछ मिलने वाला नहीं है तो भी उस काम को पूरा करना ही है, ऐसी निष्ठा यदि जम गई तब यह मान लिया जायेगा कि आपने जीवन का अर्थ ठीक समझ लिया। संसार में हम अकेले नहीं दूसरे भी बहुत से भाई हैं, उनकी भलाई का विचार भी करते रहना है, हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिये। -श्वाइत्जर,