Magazine - Year 1970 - Version 2
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Language: HINDI
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निष्फल बलिदान नहीं होता (kavita)
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साथी जब तक आघातों का आदान-प्रदान नहीं होता।
भय का अवसान नहीं होता॥
स्वागत-सुमनावलियाँ न जहाँ झरती जलते आह्वानों पर,
इतिहास विभोर नहीं होता पग-पग चलते गतिवानों पर,
धुल-धुल कर शूल जहाँ होते परिणत फूलों की टोली में,
वरदान अगर जीवन पाते तप-तप शापों की होली में,
साधों के विजय स्तम्भ वहाँ उन्मुक्त स्वरों में कहते हैं-
शोषित से सींचा जाये तो निष्फल बलिदान नहीं होता।
आसन अमंगल की छाया छू सके न जिसके अन्तःपट,
हो जाते जिस दृष्टि-तुला में तुलकर एक महल मरघट;
चर्वण करता हो लोह-चणक चलता जीवन पर्यन्त अथक;
संकेत-शृंखला में बाँधे प्रलयकार के प्रज्ज्वलित पलक;
स्वर्णिम इतिहासों के जलते उद्धरण जहाँ मुखरित होते-
उन वह्नि विभूषित पृष्ठों का युग-युग मुख म्लान नहीं होता।
आशीष परिधियों में पलते शीशों का गतिमय उन्नति क्रम;
रसधार बहाया करते हैं उन पर असि-धारों के उद्गम;
उत्सर्ग-स्फूर्तियाँ भरती हैं नव कम्प दधीची हाडों में;
सीता है कोई भीष्म-व्रती अर्जुन के तीखे बाणों में;
तब सत्य सनातन की रेखा नभ में बन व्यास उभरती है;
उस स्वर्णिम रेखा का जग में कोई उपमान नहीं होता।
बुझ चुके दीप की स्मृतियों को आँसू से व्यर्थ भिगोना है;
वन-रोदन की आसक्ति सखे! ऊसर में खेती बोना है;
नव दीप रचो, तब ज्योति भरो अपने अन्तर की ज्वाला में;
संस्कृति के सपने मुक्त करो घिरती आती तम-माला से;
युग दर्पण में परिवर्तन के पावन प्रतिबिम्ब निखर पुलकें;
ध्रुव सत्य उसी परिवर्तन का मैला परिधान नहीं होता।
-झलकन लाल वर्मा ‘छैल’
*समाप्त*