Magazine - Year 1974 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
बुद्धिमान और दूरदर्शी (kahani)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
दार्शनिक हिक्री उन दिनों तवा में रहते थे। कई लोग उलझी ग्रन्थियाँ सुलझाने सम्बन्धी परामर्श करने आते।
एक दिन एक व्यक्ति अपनी पत्नी समेत उनके पास पहुँचा और उसकी आलस तथा कंजूसी की बुराई करने लगा। सचमुच यह दोनों उसमें थी भी।
हिक्री ने उस औरत स्नेहपूर्वक पास बुलाया। एक हाथ की मुट्ठी बाँध कर उसके सामने की ओर पूछा यदि यह ऐसे ही सदा रहा करे तो क्या परिणाम होगा, बताओ तो, लड़की।
औरत सिटपिटाई तो पर हिम्मत समेट कर बोली—यदि सदा यह मुट्ठी ऐसी ही बँधी रही तो हाथ अकड़ कर निकम्मा हो जायगा।
हिक्री इस उत्तर को सुन कर बहुत प्रसन्न हुए और दूसरे हाथ की हथेली बिलकुल खुली रख कर फिर पूछा यदि यह हाथ ऐसे ही खुला रहे तो फिर इस हाथ का क्या हस्र होगा, जरा बताओ तो। औरत ने कहा—ऐसी हालत में यह भी अकड़ कर बेकार ही हो जायगा।
हिक्री ने उस औरत की भरपूर प्रशंसा की और कहा—यह तो बुद्धिमान भी है और दूरदर्शी भी। मुट्ठी बँधी रहने और हाथ सीधा रहने के नुकसान को यह अच्छी तरह जानती है।
पति−पत्नी नमस्कार करके चले गये। औरत रास्ते भर सन्त के प्रश्नों पर बराबर गौर करती रही और उसने घर जाकर पति की सहायता करके अधिक कमाना और उस बचत को खुले हाथ से दान करना आरम्भ कर दिया।