
मनुष्यों से तो पशु पक्षी भले
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समय−समय पर अनेक पत्र−पत्रिकाओं में पशु−पक्षियों के प्रेम, कर्त्तव्य और सहानुभूति के अनेक समाचार प्रकाशित होते रहते हैं जिनमें से कितनी ही घटनाएँ ऐसी होती हैं जिन्हें देखकर उनके सद्गुणों की प्रशंसा किये बिना नहीं रहा जाता। इस पशुओं को भले ही निरीह और हिंसक समझते रहें, पर वह अपने उद्देश्य की पूर्ति जिस कुशलता के साथ करते हैं उसे देखकर दंग रह जाना पड़ता है।
खच्चर की सहृदयता
बरमिंघम (ब्रिटेन) में सरसैमुअल गुडबेट्टियर के यहाँ एक टट्टू पला था। वह बाड़े में बन्द किया जाता था, रात को बाड़े के फाटक की चटखनी अन्दर से बन्द की जाती ओर बाहर से कुण्डी लगाई जाती थी। टट्टू अपना सिर फाटक से बाहर तो कर लेता था, पर कुण्डी तक नहीं पहुँच पाता था। प्रायः देखने में यह आता कि सुबह के समय बाड़े के बाहर खुले मैदान में घूमता। सभी को बड़ा आश्चर्य होता था कि वह रात्रि में कुण्डी खोलकर बाहर कैसे निकल आता है।
एक दिन सारा रहस्य खुल गया। उस रात सैमुअल सोया न था। उसका ध्यान उधर ही था। उसने देखा कि टट्टू भीतर की चटखनी को झटका देकर खाँचे से अलग कर लेता है और फिर वह रेंकना शुरू कर देता है। आवाज सुनकर एक खच्चर आता और नाक से धकेल कर कुण्डी खोल देता और बाद को दानों साथ−साथ घूमते।
उपवास रखने वाला कुत्ता
मी केवलानन्द जी के निगमाश्रम में एक संस्कारी कुत्ता था, जो प्रति सोमवार को व्रत रखता था। उस दिन वह निराहार रहता था। कह नहीं सकते कि उसे दिन का ज्ञान कैसे होता था। यदि सोमवार को रोटी या खाने की अन्य कोई वस्तु डाली जाती तो वह नहीं खाता था। विशेष आग्रह करने पर वह उसे उठाकर ले जाता और एकान्त में रख आता। फिर दूसरे दिन उसे खाता था। मनुष्य भले ही सप्ताह में एक व्रत न रखता हो, पर यह कुत्ता जीवन भर इस नियम का पालन करता रहा।
कीर्तन प्रेमी सर्प
11 जनवरी 1965। देवरिया जिले के माड़ोपार गाँव में उस दिन अखण्ड क कीर्तन का आयोजन था। अनेक भक्त मण्डली तन्मयता के साथ कीर्तन कर रही थीं। भक्ति रस का सुरम्य वातावरण निर्मित हो चुका था। ऐसे पवित्र वातावरण में ईर्ष्या,द्वेष और हिंसक भावनाओं को भला कहाँ स्थान मिल पाता है। पाप और दुष्कर्म की अमानवीय वृत्तियाँ मानो लुप्त हो गई थीं। इसी बीच संगीत की मधुरता से प्रभावित हो एक सर्प कहीं से आया और अखण्ड कीर्तन के सिंहासन पर चढ़ गया। अन्य श्रोताओं की तरह वह भी फन उठाकर जाग्रत रूप में हरिसंकीर्तन का श्रवण करने लगा।
सर्प के आते ही लोग भयभीत हो गये। गाँव वालों ने सुना तो वह भी दौड़े आये। सबने उसके दर्शन किये। कीर्तन चलता रहा, भक्त गण आनन्द लेते रहे। कीर्तन समाप्त होते ही वह ऐसे भाग गया कि किसी को पता नहीं चला।
परोपकारी चील
अगारघाट (बिहार) चिकित्सालय में कार्य करने वाली नर्स एक दिन गुदड़ी बाजार में स्थित अपने मकान की छत पर बैठी एक पोटली में से प्रमाण−पत्र तथा नियुक्ति पर निकाल रही थी। चील ऊपर उड़ रही थी, उसे लगा कि यह महिला पोटली खोलकर खाना खाने की तैयारी कर रही है। चील की दृष्टि नीचे की ओर थी। वह थोड़ी देर ऊपर चक्कर लगाती रही और मौका पाते ही झपट्टा मारकर पूरा पैकेट पंजों में लेकर उड़ गई।
यह प्रमाण −पत्र उस नर्स की नौकरी के आधार थे।उसे लगा मानो उसकी जिन्दगी खराब हो गई है अब वह दुष्टा चील को ऊपर उड़ता हुआ देख रही थी। वह सोचती यदि चील पुनः उन कागजों की नीचे गिरादे तो उसका खजाना पुनः मिल जायें। पर ऐसा कहाँ हुआ चील आँखों से ओझल हो गई अब तो वह निराश होकर अपने दुर्भाग्य को कोसने लगी।
लगभग आधे घण्टे बाद वह चील फिर उस मकान के ऊपर उड़ती दिखाई दी। उसने छत पहचानकर वह पैकेट वहीं गिरा दिया। अब तो उस नर्स की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा, वह चील की सहृदयता की प्रशंसा करने लगी। चील ने उसमें कई जगह चोंच मारकर यह पता लगा लिया था कि इसमें खाने वाली कोई वस्तु नहीं है। अन्त में चील अपनी भूल कर पछताई और कागज वापस डाल गई।
कुत्ते और बिल्ली की मैत्री
वेंजेल नामक जरमन के यहाँ एक कुत्ता पला था और एक बिल्ली। उन दोनों में बड़ी दोस्ती थी। वे एक साथ खाते−पीते, उछलते−कूदते और सोते−बैठते थे। एक दिन वेंजेल की इच्छा हुई कि इन दोनों के परस्पर सम्बन्धों की परीक्षा भी लेनी चाहिए। वे बिल्ली को अपने कमरे में ले गये वहाँ उन्होंने उसे खाना खिला दिया। बड़े मजे से उसने खाना खाया। श्री मति वेंजेल ने एक प्लेट खीर अलमारी में रखदी। उसमें ताला नहीं लगा था। बिल्ली खाना खाकर उस कमरे से बाहर निकल आई और थोड़ी देर बाद कुत्ते को अपने साथ ले आई। दोनों उस अलमारी के पास तक गये। बिल्ली ने धक्का मारकर उसकी चटकनी खोली। कुत्ते को खीर की प्लेट दिखाई दे गई उसने प्लेट को पंजों से दबाकर सारी खीर खाली। वेंजेल छिपे−छिपे इस दृश्य को देखते रहे
कुत्ते और बिल्ली में स्वाभाविक बैर बताया जाता है फिर भी यह दोनों एक परिवार में परस्पर सुख−दुख का ध्यान रखकर किस प्रकार ईमानदार मित्र की तरह रहते हैं।
चोरों को भागने वाली मैना
जार्जिया (न्यूयार्क) में एक फर्नीचर की दुकान में रात में चोरों ने सेंध लगाई, पर उन्हें अचानक ही एक आवाज सुनाई दी— ‘आप क्या चाहते हैं?’ आवाज बिलकुल साफ थी, जैसे कोई मनुष्य बोल रहा हो। चोर यकायक डर गये, उन्हें लगा कि लोग जाग पड़े हैं, अब यहाँ दान गलने वाली नहीं है। पर उन्हें आश्चर्य इस बात का हो रहा था कि यह स्वर किधर से आ रहा है, वे थोड़ी देर तक इधर−उधर देखते रहे और बाद में डरकर नौ−दो ग्यारह हो गये।
वास्तविक बात यह थी कि वह आवाज भारतीय मैना की थी। दुकान के मालिक ने ग्राहकों से यह वाक्य कहलाने के लिए ही मैना को दुकान पर रक्खा था। वह बिलकुल आदमी की तरह ही बोलना जानती थी और एक ही वाक्य कहती थी ‘आप क्या चाहते हो।’