
विश्वेश्वरैया (kahani)
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भारत रत्न विश्वेश्वरैया प्रथम श्रेणी के डिब्बे में सफर कर रहे थे। उसी में कुछ अँग्रेज भी थे। विश्वेश्वरैया यकायक हड़बड़ा कर उठे और गाड़ी करने की जंजीर खींचने लगे। अंग्रेजों के मना करने पर भी वे माने नहीं और गाड़ी खड़ी ही करा दी।
गार्ड सहित रेल के कर्मचारी आये और गाड़ी रोकने का कारण पूछा। विश्वेश्वरैया ने कहा—कुछ ही आगे रेल की पटरी खराब हो गई है, गाड़ी उलट जाने का खतरा है, सो गाड़ी बहुत धीरे और सावधानी से चलानी चाहिए।
किसी को इस कथन पर विश्वास नहीं हुआ। आगे की बात तो ज्योतिषी बता सकते हैं, एक साधारण इंजीनियर उसे कैसे जान सकता है? उत्तर में उन्होंने इतना ही कहा—मैं हर बात को बहुत गम्भीरता से सोचने और परखने का अभ्यस्त रहा हूँ। रेल के पहिये और पटरी के घिसने से जो आवाज निकलती है, वह बताती है कि आगे पटरी खराब पड़ी है।
उस समय तो किसी ने उनकी बात का भरोसा न किया, पर दो फलाँग आगे चलने पर जब पटरी उखड़ी पाई गई तो सभी अवाक् रह गये और यात्रियों की जान बचा देने का धन्यवाद देते हुए उन्हें भविष्यवक्ता कहने लगे।
हँसते हुए विश्वेश्वरैया यही कहते रहे, “गम्भीरता पूर्वक सामान्य बातों को भी ध्यान से समझने और जानने का प्रयत्न करने वाला हर व्यक्ति भविष्यवक्ता ही होता है—हो सकता है।”