Magazine - Year 1976 - Version 2
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Language: HINDI
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उस आत्मा का सौभाग्य अटल (kavita)
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औरों के हित जो मरता है,औरों के हित जो जीता है।
उसका हर आँसू ‘‘रामायण’’ प्रत्येक कर्म ही ‘‘गीता’’ है॥
जो तृषित किसी को देख, सहज ही होता है आकुल-व्याकुल।
जिसकी साँसों में पर -पीड़ा, भरती है अपना ताप अतुल॥
वह है ‘‘शकर’’ जो औरों की वेदना निरन्तर पीता है।
उसका हर आँसू ‘‘रामायण’’ प्रत्येक कर्म ही ‘गीता’ है॥
जो सहज समर्पित जन-हित में होता है ‘‘स्वार्थ त्याग’’ करके।
जिसके पग चलते रहते हैं, दुःख - दर्द मिटाने घर-घर के॥
वह है ‘‘दधीचि’’ जिसका जीवन जग-हित तप करके बीता है।
उसका हर आँसू ‘‘रामायण’’ प्रत्येक कर्म ही ‘‘गीता’’ है॥
जिसका चरित्र, गंगाजल-सा है, स्वच्छ, विमल, पावन, उज्ज्वल।
जिसके उर से सद्भावों की , धारा बहती कल-कल, छल-छल॥
वह है ‘’लक्ष्मण’’ जिसने पर-नारी को समझा ‘‘माँ सीता’’ है।
उसका हर आँसू ‘‘रामायण’’ प्रत्येक कर्म ही ‘‘गीता’’ है॥
जिसका जीवन संघर्ष - बनी औरों की गहन समस्या है।
तम में प्रकाश फैलाना ही, जिसकी आराध्य तपस्या है॥
जो प्यास बुझाता जन-जन की वह पनघट कभी न रीता है।
उसका हर आँसू “रामायण” प्रत्येक कर्म ही “गीता” है॥
जिसने “जग के मंगल’’ को ही अपना जीवन व्रत मान लिया।
“परिव्याप्त, विश्व के कण-कण में भगवान” तथ्य पहचान लिया॥
उस आत्मा का सौभाग्य अटल, वह ही “प्रभु की परिणीता”है।
उसका हर आँसू “रामायण” प्रत्येक कर्म ही “गीता” है।
-माया वर्मा
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*समाप्त*