Magazine - Year 1980 - Version 2
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Language: HINDI
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साधना से सिद्धि और मार्ग के अवरोध
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उगने की शक्ति बीज में होती है । वह घुना हो तो उगेगा कैसे ? सही बीज और बोने की प्रक्रिया सही होने पर भी कुछ तथ्य ऐसे है जो उगने में अवरोध बन सकते है और अंकुरित होने के उपरान्त भी उसे पौधा या वृक्ष बनने के मार्ग में चट्टान की तरह अड़ सकते है । फलतः बीज की परिपूर्ण समर्थता भी उसकी प्रगति को कुँठित किये रह सकती है ।
साधना को बीज समझा और उसकी परिणिति को सिद्धि कहा जा सकता है । इस प्रक्रिया को-बीज के वृक्ष बनने-से उपमा दी जा सकती है । बीज का सक्षम होना ही पर्याप्त नहीं, उसके लिए उपयुक्त भूमि, खाद, सिंचाई और रखवाली की भी जरुरत पड़ती है । यह साधन न मिलें तो बोने वाले की आकाँक्षा एवं बीज को समर्थता का उपयुक्त प्रतिफल उपलब्ध न हो सकेगा ।
साधना विधान के जो माहात्म्य प्रतिफल कहे गये है वे तभी सच सिद्ध होते है जब साधक की मनोभूमि में उत्कृष्ट चिन्तन की उर्वरता और आदर्श चरित्र की नमी विद्यमान हो । मात्र कर्म काण्ड ही सब कुछ नहीं है । पूजा से ही देवता प्रसन्न नहीं होते । इस समस्त विधि-व्यवस्था की उपयोगिता तभी है जब साधक को अपने व्यक्तित्व को उच्चस्तरीय बनाना आता हो । कुशल किसान वह है जो बीजारोपण के साथ-साथ पौधे के उगने एवं फलने के लिए अभीश्ट आवश्कताओं को भी समझता और उन्हें जुटाने का प्रयत्न करता है । साधना एक कृषि कर्म एवं उदात्त आरोपण है उसे फलित करने के लिए उपासना क्रम ही पर्याप्त नहीं वरन जीवन साधना का वह उपक्रम भी जुटाया जाना चाहिए जो व्यक्तित्व को विकसित करने के साथ-साथ सिद्धियों का सुयोग भी प्रस्तुत करता है ।