Magazine - Year 1981 - Version 2
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Language: HINDI
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महाविनाश के बाद स्वर्णिम युग का सूत्रपात
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सृष्टि के परिवार के प्रत्येक सदस्य का जीवन अस्तित्व चाहे जड़ हो या चेतन, वह उत्पत्ति, विकास और विनाश के तीन चक्रों में घूमता है। इसी आधार पर भारतीय मनीषियों ने सृष्टि के निर्माण या उत्पत्ति विकास और विनाश का युग दर्शन विकसित किया है। कोई भी वस्तु उत्पन्न होती है, उत्पन्न होकर विकसित होती है और विकास की प्रक्रिया से गुजरते हुए एक ऐसी स्थिति में पहुँच जाती है जब उसके नष्ट होने में ही सृष्टि की सुव्यवस्था स्थिर रहती है, तब उसके मरण का दौर आता है।
जीव-जन्तुओं, वृक्ष-वनस्पतियों और जड़ पदार्थों में भी जन्म, विकास और मरण की प्रक्रिया पूरी होती है। इस चक्र को विराट् जगत में भी प्रत्यक्ष होते देखा जा सकता है, संसार में जब सत्प्रवृत्तियां बढ़ती हैं तो चतुर्दिक शाँति, सुव्यवस्था और प्रगति की स्थिति दृष्टिगोचर होती है। जब दुष्प्रवृत्तियां, अव्यवस्था तथा अवाँछनीय गतिविधियाँ बढ़ती हैं तो मनीषियों और तत्त्वदर्शियों के अनुसार चली आ रही व्यवस्था जराजीर्ण हो जाती है तथा नियन्ता विनाश का आयोजन करता है। खेत में फसल उगाते समय जिस प्रकार किसान अनावश्यक खर-पतवार को खोद खोदकर अलग कर देता है उसी प्रकार नियन्ता सृष्टि की सुव्यवस्था स्थिर करने के लिए व्यापक विनाश का आयोजन करता है। प्राचीन धर्म शास्त्रों ने इस प्रक्रिया को ही युग संधि की संक्रमण वेला कहा है। एक नये युग का जन्म होने के लिए प्रसव पीड़ा की भाँति, रुग्ण अंगों को काटकर अलग करते समय होने वाले कष्ट की भाँति संक्रमण बेला के ये दिन बहुत ही कष्टकर होते हैं।
जीर्ण पुरातन के मरण और स्वस्थ नूतन के जन्म की घड़ियां इन्हीं दिनों आ रही हैं। प्राचीन भारतीय धर्मग्रथों, संसार के भविष्यवक्ताओं, ज्योतिषियों और वैज्ञानिकों तक ने अगले दिनों व्यापक विनाश की सम्भावनाएं व्यक्त की हैं। इन सम्भावनाओं के संबंध में न केवल भारतीय धर्मग्रन्थ स्पष्ट प्रकाश डालते हैं वरन् अन्य धर्मों के प्राचीन ग्रंथ भी सुस्पष्ट हैं कि आगामी वर्ष अपने भीतर भीषण विनाश की संभावना लेकर आ रहे हैं।
ईसाइयों के धर्म ग्रंथ बाइबिल में तो हजारों वर्ष पूर्व आज की स्थितियों का इतना स्पष्ट उल्लेख कर दिया है कि जैसे किसी ने इन घटनाओं को अपनी आँखों से देखा हो। उदाहरण के लिए हर क्षेत्र में तीसरे विश्व युद्ध की आशंका व्यक्त की जा रही है। यह महायुद्ध किस प्रकार लड़ा जायेगा? और इसमें किन-किन शस्त्रों का उपयोग किया जायेगा? इस संबंध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। क्योंकि यह विज्ञान दिनों दिन इतना अधिक विकसित होता जा रहा है कि इस विश्व युद्ध के संबंध में कुछ नहीं कहा जा सकता कि इसमें किन शस्त्रों का किस प्रकार उपयोग किया जाएगा? इस संदर्भ में विश्व विख्यात वैज्ञानिक और दार्शनिक आइंस्टीन का वह प्रसंग उल्लेखनीय है जब उनसे किसी पत्रकार ने पूछा था, ‘तीसरे विश्व युद्ध के संबंध में आपका क्या विचार है? वह किस प्रकार लड़ा जाएगा? उसमें किन-किन शस्त्रों का उपयोग किये जाने की संभावना है।’
इस प्रश्न के उत्तर में आइंस्टीन ने कहा था कि तीसरे विश्व युद्ध के संबंध में तो कुछ नहीं कहा जा सकता। पर इसके बाद यदि कोई युद्ध लड़ा गया तो वह निश्चित रूप से ईंट, पत्थरों से लड़ा जायेगा। तीसरे विश्व युद्ध की विभीषिका के संबंध में वैज्ञानिक भी स्पष्ट रूप से कुछ बता पाने में असमर्थ हैं। किन्तु इसके संबंध में इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि अब तक मनुष्य जाति के इतिहास में जितने भी युद्ध लड़े गये, उन सबमें कुल इतना विनाश नहीं हुआ होगा जितना कि आगामी विश्व युद्ध में संभावित है। इस संबंध में महाविनाश के बाद एक नई सभ्यता के विकास सकी सुनिश्चित संभावना व्यक्त करते हुए बाइबिल के “नया नियम” (न्यू टेस्टामेण्ट) में थिस्सुलुनीकियों- एक में कहा गया है, ‘जिस प्रकार रात को चोर आता है उसी प्रकार प्रभु का वह दिन आयेगा। तब लोग कहेंगे कि कुशल है और कुछ भय नहीं है तब उन पर एकाएक विनाश आ पड़ेगा उसी प्रकार जैसा कि गर्भवती (आसन्न प्रसवा) स्त्री, प्रसव करना शुरू हो जाती है। उस होने वाले विनाश से किसी भी प्रकार नहीं बचा जा सकेगा (अध्याय 5।2,3)
बाइबिल में तृतीय विश्व युद्ध को आर्मेगैडन नाम दिया गया है। बाइबिल की पुरानी ‘ओल्ड टेस्टामेण्ट’ में महात्मा जॉन ने इस युद्ध के संबंध में विस्तार से लिखा है। दूसरे महायुद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिकी जनरल डगलस मैकार्शर ने कहा था, ‘दूसरा विश्व युद्ध समाप्त हुआ। विनाश का एक दौर पूरा हुआ। इसके बाद यदि हमने अधिक उत्कृष्ट और न्यायपूर्वक प्रणाली नहीं अपनाई तो आर्मेगैडन हमारे द्वारा पर खड़ा दस्तक दे रहा है।’
महात्मा जॉन, जिन्होंने बाइबिल में तीसरे महायुद्ध की भविष्यवाणी की है, ने महायुद्ध के अतिरिक्त और कई संभावनाओं की ओर इंगित किया है जो युद्ध के साथ प्राकृतिक विपदाओं के रूप में उत्पन्न होंगी तथा विनाश की विभीषिकाओं को और भयंकर बनायेगी। रेवेलेशन अध्याय में महात्मा जॉन ने लिखा है, ‘‘ईश्वरीय दूत ने दूसरी मुहर को तोड़ा तो उसमें से दूसरा जानवर निकला। लाल रंग का घोड़ा था और उस पर जो बैठा था उसे इस बात की ताकत दी गई थी कि वह दुनिया की शाँति को नष्ट कर दे और लोग एक दूसरे को मारने लग जांय। जब उसने तीसरी मुहर को तोड़ा तो उसमें से तीसरा जानवर निकला। यह काले रंग का घोड़ा था और जो सवार उस पर बैठा था उसके हाथ में एक तराजू थी। मैंने एक आवाज सुनी कि एक पैमाना गेहूँ एक सिक्के का मिलेगा और तीन पैमाना जौ का दाम एक सिक्का होगा।’’
इन पंक्तियों में अराजकता, महंगाई और दुर्भिक्ष का वर्णन किया गया है। महात्मा जॉन ने अकाल के संबंध में लिखा है, लोगों के चेहरे अकाल के कारण काले कोयलों की तरह पड़ जायेंगे तथा वे रोटियों के लिए मारे-मारे फिरेंगे। उनकी खाल लटक कर हड्डियों से अलग हो जायेगी। जो लोग तलवार से मारे जायेंगे वे इन भूख से मरने वालों की अपेक्षा सुख से रहेंगे। जब उसने चौथी मुहर को खोला तो उसमें से चौथा जानवर निकला। वह एक पीले रंग का घोड़ा था और उस पर मृत्यु का देवता बैठा था। इस देवता को यह ताकत दी गई थी कि वह युद्ध, महामारी, अकाल आदि के द्वारा असंख्य लोगों का अंत कर दे।
महात्मा जॉन ने रेवेलेशन अध्याय 11 में बताया है कि यह महायुद्ध सात वर्षों का होगा। उन्होंने पूरे युद्ध को दो काल खण्डों में बाँटा है। पहला काल खण्ड साढ़े तीन वर्ष का है ओर उत्तरार्ध भी 42 महीने अर्थात् साढ़े तीन वर्ष का है। युद्ध कब होगा इस संबंध में तो कोई निश्चित समय नहीं दिया गया है, परन्तु कुछ संकेत ऐसे अवश्य दिये हैं, जिनसे युद्ध का समय निश्चित किया जा सकता है।
सर्वविदित है कि ईसा को यहूदियों के राज्य में ही सूली पर लटकाया गया था। यहूदियों के पतन की भविष्यवाणी करते हुए बाइबिल (न्यू टेस्टामेण्ट) में कहा गया है, “जब तुम यरुशलम को सेनाओं से घिरा हुआ देखो तो जान लेना कि उसका उजड़ जाना निकट है। तब जो यहूदियों में होंगे वे पहाड़ों पर भाग जायेंगे और यरुशलम के भीतर हों वे बाहर निकल जायेंगे और जो गाँवों में होंगे वे वापस उनमें नहीं जायेंगे। क्योंकि यह परिवर्तन के ऐसे दिन होंगे जिनमें लिखी हुई सारी बातें पूरी होंगी। उन दिनों में जो महिलायें गर्भवती होंगी और जिनके दूध पीते बच्चे होंगे उनके लिए बड़ा कष्टकर समय होगा क्योंकि इन लोगों पर बड़ी आपत्ति होगी। वे तलवार के कौर हो जायेंगे और सब देशों के लोग उन्हें बंधुआ बनाकर ले जायेंगे और जब तक अन्य जातियों का समय पूरा नहीं होगा तब तक यरुशलम अन्य जातियों से रौंदा जायेगा। (लूक 21।20-24)
इसके बद यहूदियों को उनके राज्य में वापस आने और बसने की भविष्यवाणी की गई है। उल्लेखनीय है कि दूसरा महायुद्ध समाप्त होने पर 24 मई 1948 को यहूदी वापस अपनी पितृभूमि में बस सके थे और इसराइल के रूप में उनका नया राष्ट्र अस्तित्व में आया। बाइबिल के आधार पर युग परिवर्तन की भविष्यवाणी करने वालों के लिए यह घटना अत्यन्त महत्वपूर्ण और नवयुग आगमन की समय सूचक रही है। यहूदियों का स्वतंत्र राष्ट्र तो स्थापित हो गया परन्तु उनका सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान यरुशलम अभी तक निर्विवाद रूप से उनके अधीन नहीं था। बाइबिल के आधार पर तृतीय विश्व युद्ध, आर्मेगैडन की भविष्यवाणी करने वाले विद्वानों में हाल लिंडर्स का प्रमुख स्थान है। उनके अनुसार आर्मेगैडन से पूर्व तीन बातें होना अनिवार्य हैं। पहली तो फलिस्तिन में यहूदी राष्ट्र की स्थापना, दूसरी यरुशलम पर यहूदियों का निर्बाध अधिकार तथा तीसरी यरुशलम में यहूदियों के प्राचीन स्थान पर ही उपासना गृह का निर्माण। इन बातों में से पहली बात तो 14 मई 1948 को पूरी हो गई। दूसरी बात यरुशलम पर निर्बाध अधिकार से लगभग पूरी हो ही चुकी है। जुलाई 1980 में इसराइल की संसद ने अविभाजित यरुशलम को अपने देश की स्थाई राजधानी बनाने का प्रस्ताव पारित कर दिया।
प्राचीन स्थल पर उपासना गृह निर्माण की बात पूरी होना अभी शेष है। डेनियल के अनुसार पुराने स्थान पर प्राचीन मंदिर का निर्माण नवयुग आगमन के साढ़े तीन वर्ष पूर्व संभव होगा जबकि पूरा संक्रमण काल या आर्मेगैडन सात वर्ष की अवधि वाला है। इस युद्ध के संबंध में कहा गया है, ‘उस समय सूरज, चाँद और तारों में चिन्ह दिखाई देंगे। पृथ्वी पर देश-देश के लोगों पर तरह-तरह के संकट आयेंगे। संसार पर आने वाली विपत्तियों के कारण लोग इतने भयभीत होंगे कि उनके जी में जी न रहेगा क्योंकि तब आकाश की शक्तियाँ हिलाई जायेंगी। (लूक 21।25-26)
नवयुग आगमन के पूर्व होने वाले युद्ध तथा विनाश की सम्भावनाओं पर एक अन्य इंजील में कहा गया है, “जब वह (ईसा) पहाड़ पर बैठा था तब चेलों ने उसके पास आकर कहा, हमसे फिर ये बातें कब होगी। तेरे आने और जगत के अंत (युग की समाप्ति) का क्या चिन्ह होगा? तब यीशु ने कहा, सावधान रहो। कोई तुम्हें न मरमाने पाये। .....तुम लड़ाइयों और लड़ाईयों की चर्चा सुनोगे। इनका होना अवश्य है, पर उस समय जगत का अंत न होगा। ये सब बातें पीड़ाओं का आरंभ होगी। (मैथ्यू 24।3,4,6) उस समय ऐसा भारी क्लेश होगा, जैसा जगत के आरम्भ से अब तक न तो कभी हुआ है और न कभी आगे होगा। (21)। उन दिनों सूर्य अंधियारा हो जायेगा और चाँद का प्रकाश जाता रहेगा तथा आकाश से तारे गिरते हुये दिखाई देंगे। आकाश की शक्तियाँ हिलाई जाएगी। (29)।
ईसाई विद्वानों ने इन संकेतों को आकाश में ग्रहों की विशिष्ट स्थिति बताया है। इन दिनों सूर्य और चन्द्र के पूर्ण ग्रहण के साथ ज्योतिष गणना के अनुसार ग्रहों की विशिष्ट युतियाँ भी हैं। फरवरी 1980 में हुए पूर्ण सूर्यग्रहण के समान ही सन् 82 में पूर्ण ग्रहण की संभावना है। इसके अतिरिक्त उन दिनों सूर्य के एक और एक सीध में नौ ग्रहों का आ जाना भी अपने आप में एक अद्भुत और अपूर्व घटना है। यद्यपि इस तरह की खगोलीय घटनाएं या संयोग सैकड़ों वर्ष के अंतर से पहले भी घटते रहे हैं किन्तु उन घटनाओं की बाइबिल में दिये गये संयोगों से कोई संगति नहीं बैठेगी। उस समय न तो यहूदियों के स्वतन्त्र राज्य की स्थापना हुई थी और न ही यरुशलम पर उनका अधिकार। इस भविष्यवाणी के साथ आर्मेगैडन अर्थात् तीसरे विश्व युद्ध उसमें महाविनाश और महाविनाश के बाद नवयुग के आगमन बताये गये चिन्ह इन्हीं दिनों की परिस्थितियों से संगति बैठती है।
महात्मा जॉन ने सन् 90 में ये भविष्यवाणी की थी, जिनके अनुसार इन दिनों प्रलय की-सी स्थिति उत्पन्न हो जाती है और उसके बाद स्वर्णिम युग का शुभ प्रभात उदित होना है। ‘ओल्ड टेस्टामेण्ट’ को जकरिया इंजील में अध्याय में 12 से 14 तक भविष्य कथन किया गया है उसका अर्थ निकालते हुए हाल लिंडर्स ने कहा है, ‘उस समय सभी राष्ट्र यरुशलम को घेर लेंगे और उस पर आक्रमण करेंगे। यरुशलम के बाहर और भीतर तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्रों में भयंकर युद्ध होगा। ईसा यहूदियों को अपने मसीहा होने का बोध करायेंगे और तब वे ईसा को, नवयुग का सूत्रपात करने वाले को पहचान सकेंगे।’
सन् 637 तक युद्ध और संघर्ष के विभिन्न दौरों से गुजरने के बाद यरुशलम का पतन हुआ था। बाइबिल के अनुसार यहूदियों के पतन का कारण यह था कि वे ईश्वरीय विधान पर विश्वास नहीं करते थे। ईश्वर की सत्ता और उसके नियम विधान पर विश्वास लाने तथा उस पर अमल करने के बाद ही यहूदियों का उत्थान संभव होना बताया गया है। हाल लिंडर्स के अनुसार बाइबिल में वर्णित, भविष्य कथन किसी मत संप्रदाय विशेष के अनुयायियों से संबंधित नहीं हैं बल्कि पूरी मानव जाति का भावी इतिहास इस रूप में लिखा गया है।
सर्वविदित है कि इस समय पूरी मनुष्य जाति आस्था संकट की भयावह दैन से गुजर रही है। नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों का जिस प्रकार ह्रास हो रहा है, उसे भारतीय धर्म शास्त्रों के अनुसार घोर कलिकाल ही कहा जा सकता है। महाभारत, मनुस्मृति, हरिवंश पुराण, लिंग पुराण, श्रीमद्भागवत आदि भारतीय धर्म ग्रंथों में युग परिवर्तन और स्वर्णिम युग के आगमन के जो लक्षण दिये गये हैं उन्हें देखते हुए भी इन्हीं दिनों युग परिवर्तन होना है।
ऋतुएं जब बदलती हैं तब मौसम से लेकर व्यक्तिगत स्वास्थ्य तक में भारी परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं। युग परिवर्तन के समय भी इसी प्रकार परिवर्तन होता है। जिनमें ध्वंस और सृजन दोनों पक्ष चरितार्थ हुए देखे जा सकते हैं। प्राचीन धर्म ग्रंथों से लेकर वैज्ञानिकों, राजनेताओं, दिव्यदर्शियों सभी के अनुसार यही वह समय है जब विनाश की विभीषिका सम्मुख प्रस्तुत होने तथा उसके बाद एक नये युग का सूत्रपात होने वाला है। तृतीय विश्व युद्ध की संभावना तो हर क्षेत्रों में व्यक्त की जा रही है। आधुनिक सभ्यता के अधुनातन आधुनिकतम विकसित यंत्रों और मशीनों के कारण जो प्रकृति विक्षोभ उत्पन्न हो रहे हैं, उनके आधार पर भी अगले दिन अपने गर्भ में भयंकर विनाश को लिये हुए आ रहे हैं।
इस तरह की परिवर्तन प्रक्रिया एवं जगत्नियंता परमात्मा द्वारा ही आयोजित होती है। अपनी सीमित परिधि में रहकर सोचने से ये विभीषिकाएं चाहे जितनी भयावह लगें परन्तु जो ईश्वरीय सत्ता की कल्याणकारी व्यवस्था को जानते, समझते व उसमें विश्वास रखते हैं वे मानते हैं कि यह आयोजन असंतुलन के कारण उत्पन्न होने वाले सर्वभक्षी विध्वंस को रोकने और असंतुलन को संतुलन में बदलने के लिए ही होता है। उस विभीषिका की तुलना में तीसरे महायुद्ध, महामारी, अकाल, दुर्भिक्ष, अतिवृष्टि, अनावृष्टि आदि प्राकृतिक विपदाओं की विनाश विभीषिका से कम ही भयावह होती है। प्राचीन धर्मग्रथों में जहाँ इस विनाश की भविष्यवाणियाँ की गई हैं, वहीं आस्तिकजनों, ईश्वर विश्वासी और धर्म श्रद्धालुजनों को आसन्न संकट की घड़ियों में निश्चिन्त रहने का आश्वासन भी दिया गया है। यद्यपि इस परिवर्तन प्रक्रिया में कष्ट उन्हें भी होना है, परन्तु नये युग का स्वर्गिक सुख भी वही सौभाग्यशाली उठा सकेंगे।