Magazine - Year 1982 - Version 2
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Language: HINDI
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इस ब्रह्माण्ड में अनेकों जीवन युक्त ग्रहपिण्ड
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अन्तरिक्ष यान अपोलो–11, 2 लाख 96 हजार किलोमीटर अर्थात् 1 लाख 60 हजार अन्तरिक्षीय मील दूर स्पेस में था। इतने में ह्यूस्टन के मिशन कन्ट्रोल में अपोलो–11 से अनेकों जीवों के एक साथ हुँकार भरने एवं विचित्र स्वर में हँसने की आवाज सुनाई पड़ी। कन्ट्रोल अधिकारी ने चन्द्र यात्रियों से संपर्क साधा तथा इस डरावनी आवाज के विषय पूछा। अन्तरिक्षीय यान में मौजूद नील आर्मस्ट्राँग, एडविन एल्ड्रिन तथा माइकेल कालिस ने भी उक्त आवाज को सुना और उत्तर दिया कि उन्हें ऐसा लग रहा है कि यान के आस−पास कुछ जीव मंडरा रहे है। वे अहश्य हैं, किन्तु उनकी उपस्थिति का आभास मिल रहा है।
बहुत दिनों तक यह घटना चर्चा की विषय बनी रही किन्तु उस विचित्र आवाज का कारण न जाना जा सका। क्या पृथ्वी से परे भी जीवन का अस्तित्व है? यदि है तो कैसा है, इस सम्बन्ध में वैज्ञानिक क्षेत्र में खोजबीन चल रही है जो प्रमाण मिल रहे हैं उनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि अन्यान्य ग्रहों पर जीवन है। सम्भव है अन्य ग्रहों पर रहने वाले जीवों का स्वरूप पृथ्वी जैसा न हो। वे अदृश्य प्राणी भी हो सकते है। चन्द्र यात्रा के बीच सुनाई पड़ने वाली विचित्र ध्वनि उन अदृश्य जीवों की हो सकती है।
सन् 1971 में पृथ्वीत्तर जीवन की खोज के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय कमेटी बनायी गई जिसकी बैठक रूस के आर्मीनिया प्रदेश में हुई। अनेकों वैज्ञानिकों ने यह सम्भावना व्यक्त की कि अन्य ग्रहों पर भी जीवन है। सन् 1969 में आस्ट्रेलिया में गिरी एक उल्का के विश्लेषण−परीक्षण से ज्ञात हुआ कि उनमें पाँच अमीनो−एसिड्स ऐसे हैं–जो पृथ्वी पर जीवित प्राणियों में पाये जाते है। इसके अतिरिक्त 11 प्रकार के अन्य अमीनो एसिड और भी हैं जो पृथ्वी पर कुछ ही जीवित प्राणियों में विशेष रूप से पाये जाते है। ये अमीनो एसिड वामहस्त एवं दक्षिणहस्त दोनों प्रकार के थे। जबकि पृथ्वी पर मात्र वाम हस्त अमीनो एसिड ही पाये जाते है। वैज्ञानिकों ने अमीनो एसिड ही पाये जाते है। वैज्ञानिकों ने अमीनो एसिड की इस विकसित स्थिति के आधार पर घोषणा की कि जिन ग्रहों, उपग्रहों से उल्का पिण्ड टूट कर गिरा, वहाँ पृथ्वी से भी अधिक विकसित एवं बुद्धिमान प्राणियों के होने की सम्भावना है। 1953 में अमेरिका के भौतिकविद् श्री मिलर ने जीवन के उद्गम की सम्भावना के लिए गैसों में विद्युत विसर्जन का प्रयोग किया जिससे अमीनो एसिड, प्रोटीन तथा एल्डीहाइड और अन्ते में न्यूक्लिक एसिड बना, जो पृथ्वी पर के जीवन रहस्य को अपने अन्दर छिपाये हुए है। उन्होंने अपने खोज के उपरान्त कहा कि पृथ्वी पर गिरने वाली उल्काओं में, पानी, हाइड्रोजन सायनाइड, फारमल्डी हाइड आदि गैलेक्सी के सघन धूल−पेटिकाओं में मिले हैं। यह इस बात का परिचायक है कि अन्य ग्रहों में भी जीवों के होने की सम्भावना है।
अमेरिका के जीव विज्ञान डॉ. कार्ल साँगन का कहना हैं कि अन्य ग्रहों एवं नक्षत्रों में वैसी ही रासायनिक एवं भूगर्भीय प्रक्रियाएं चल रही हैं, जैसी कि पृथ्वी पर जीवन के उद्गम के समय चली थी। उनका कहना है कि ब्रह्मांड में प्राणियों का अस्तित्व एक नहीं अनेकों स्थानों पर है क्योंकि जीवन के अनुकूल परिस्थितियाँ ब्रह्माण्ड में कई स्थानों में विद्यमान हैं। सी. यस. लेविस अपनी पुस्तक आउट ऑफ दी सायलेण्टप्लेनेट में लिखते हैं कि पृथ्वी के अतिरिक्त अन्य लोकों में भी मनुष्य से मिलते−जुलते प्राणी रहते है। सन् 1950 में डॉ. फ्रेंड डे्रक ने ताउसेटी और एप्सिलोन नामक सूर्य तारों से प्राप्त तरंगों का पता एक शक्तिशाली रेडियो−दूरबीन द्वारा लगाया 1975 से ही डॉ. कार्ल सागन एवं डॉ. डे्रक प्यूरिटोरिको के एरिक्वों नामक स्थान में स्थापित विशाल रेडियो दूरबीन से पृथ्वीत्तर जीवों के सन्देश सुनने का प्रयास कर रहे है। रूस और ब्रिटेन में भी इस प्रकार के प्रयास चल रहे है। अमेरिका में तो पृथ्वीत्तर प्राणियों की खोज के लिए वैज्ञानिकों ने सेटी (सर्च फार एक्स्ट्रा टैरेस्ट्रियल इन्टेलिजेन्स) नामक योजना बनायी है, जिसके अनुसार अन्य लोकों के प्राणियों से संपर्क जोड़ने का प्रयास चल रहा है।
गत वर्ष अमेरिका में ही एक गोष्ठी खगोल शास्त्रियों की हुई। इसमें बताया गया कि शनि के उपग्रह टाइटन में वायु मण्डल का दबाव पृथ्वी जैसा ही है। शनि के वायुमण्डल में इथेन प्रयुर मात्रा में है। ‘बेस्तर’ नामक ताराखण्ड में हाइड्रोकार्बन है। बृहस्पति के वायुमण्डल में पानी की भाप विद्यमान है जो इस बात की ओर संकेत करती है कि इन पर यदि जीवन हो तो कोई आश्चर्य नहीं।
यह तो वातावरण के आधार पर निकले वैज्ञानिक निष्कर्षों की बात हुई। समय−समय पर दिखाई पड़ने वाली उड़न तश्तरियों के प्रमाण भी इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि अन्य ग्रहों पर न केवल जीवों का निवास है वरन् सभ्यता की दृष्टि से वे कहीं मनुष्य से भी अधिक विकसित हैं। 1973 में ट्यपेलो क्लीवलैड, संयुक्त राज्य अमेरिका के एक मजिस्ट्रेट तथा चार वन−विभाग के रेंजरों ने तश्तरीनुमा आकृति को देखा जो आकार में दो कमरे वाले मकान के बराबर थी। उक्त यान से लाल, पीली एवं हरी रोशनी निकल रही थी। इसके ठीक दो सप्ताह बाद इसी नगर के 80 किलोमीटर दक्षिण में एक सैनिक हेलीकाप्टर एक गुंबदाकार धातु से बने डडडड के आकार के यान से टकराते−टकराते बचा। यान चालक कप्तान क्यायन का कहना था कि उसका हेलीकाप्टर उस विचित्र यान के निकट आते ही अपने आप उसके साथ 600 मीटर ऊँचाई तक उठता गया। कन्ट्रोलिंग कक्ष का हेलीकाप्टर पर नियन्त्रण न रहा। 600 मीटर ऊँचे उठने के बाद उसका हेलीकाप्टर एक झटके के साथ दूर धकेल दिया गया। बड़ी कठिनाई से नियन्त्रण हो सका। कप्तान ‘क्वायन’ का कहना था कि विलक्षण यान कुछ ही क्षणों में जाने कहाँ लुप्त हो गया।
कोरिया युद्ध के समय वहाँ के एक सैनिक एवं उसके साथी ने हल्की नीली रोशनी फेंकने वाले आकाश में पृथ्वी के अत्यन्त निकट एक विचित्र यान को मंडराते हुए देखा। उस यान से तीन साँवले से जीव उतरे। जिनकी लम्बाई 4 फीट होगी। यान से वे उसी प्रकार उतरे जैसे चिड़ियाएँ पृथ्वी पर उतरती है। उन दोनों सैनिकों में से एक तो बेहोश हो गया। दूसरे ने जो वर्णन किया वह विस्मित कर देने वाला था। दूसरे व्यक्ति ने बताया कि उसे विचित्र जीव यान में खींच ले गये। ऐसा अनुभव हो रहा था मानो कोई शक्तिशाली चुम्बक यान के भीतर खींचे ले जा रही हो। यान के भीतर इलेक्ट्रॉनिक आँख जैसे यन्त्र द्वारा उसके प्रत्येक अंग का परीक्षण किया गया। परीक्षण की अवधि में वह बेहोश हो गया। होश आने पर उसने अपने को भूमि पर पड़ा पाया। यान का कहीं नामोनिशान नहीं था। वहाँ पर विद्यमान रेडियो धर्मिता को यह अवश्य संकेत मिलता था कि कोई ऐसी घटना यहाँ घटी है। उसका सैनिक कई दिनों तक भयभीत बना रहा। वैज्ञानिकों ने उसके शरीर का परीक्षण किया किन्तु सभी अवयव ठीक प्रकार काम कर रहे थे। इस प्रकार की घटनाएँ विश्व के अनेकों स्थानों पर घटित हो चुकी हैं किन्तु अब तक यह ज्ञात न हो सका कि उड़न तश्तरियों जैसे यान अचानक कहाँ से आते है और देखते−देखते कहाँ लुप्त हो जाते है। यह सभी मानव मस्तिष्क के लिए रहस्य ही बना हुआ है। आधुनिकतम यन्त्रों से सुसज्जित इन यानों की संरचना तथा अचानक प्रकट होकर इनके गायब हो जाने की प्रक्रिया, इस बात की परिचायक हैं कि वे किन्हीं ऐसे ग्रहों से आते है जहाँ की भौतिक सभ्यता पृथ्वी की तुलना में कहीं अधिक विकसित है। ग्रह, नक्षत्र कौन से हैं तथा वहाँ के प्राणी कैसे हैं, यह रहस्य तो अभी अभी अविज्ञात है। किन्तु यह तथ्य तो एक मत से स्वीकार किया जा रहा है कि अन्यान्य ग्रहों पर जीवन है। सम्भव है प्रगति के आगामी सोपानों में उनसे परस्पर संपर्क का–ज्ञान के आदान−प्रदान का क्रम बन जाय।