Magazine - Year 1982 - Version 2
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Language: HINDI
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नव−सृष्टि−सृजन (kavita)
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नई−सृष्टि को नव−सृजन हो रहा है।
मनुज−शक्ति का जागरण हो रहा है॥1॥
मनुज वृत्तियाँ अब निखरने लगी हैं, सहज दिव्यताएँ उभरने लगी हैं।
उदित हो रहीं दिव्य−सम्भावनाएँ, द्रवित हो रहीं श्रेष्ठ−सम्वेदनाएँ॥
मनुज में नई श्रेष्ठता आ रही अब।
विमल−भव्यता का वरण हो रहा है॥2॥
अखरने लगा है सभी को अँधेरा, सहज भा गया है सभी को सवेरा।
किरण की सभी बात सुनने लगे हैं सभी जागरण−गीत गुनने लगे हैं॥
सभी ज्योति के संग−साथी बने अब।
मनुज−मन किलकती−किरण हो रहा है॥3॥
सहज स्नेह उर का छलकने लगा अब, हृदय प्यार देने ललकने लगा अब।
करुण भाव बेचैन अभिव्यक्त होने, हृदय आज आतुर क्षमासिक्त होने॥
मुखर आज सौजन्य, सद्भावनाएँ।
सरल, सात्विक आचरण हो रहा है॥4॥
हवा लोक मंगलमयी चल पड़ी है, विमल−ज्योति सर्वार्थ की जल पड़ी है।
सभी का भला हो सभी चाहते हैं, विषमता, विलगता नहीं चाहते हैं॥
मनुज, हर मनुज को गले से लगाता।
स्वजन−भाव का अनुसरण हो रहा है॥5॥
कभी आत्मबल, आस्था की नहीं अब, हुये जा रहे स्वावलम्बी, श्रमी सब।
मिला बल नैतिक−मनोवृत्तियों को, सदाचार का पथ, मनुज−शक्तियों को॥
मनुज साज ऐसे सजाने लगा अब।
यहीं स्वर्ग का अवतरण हो रहा है॥6॥
सरल−स्नेह, शुचिता गले मिल रहे हैं, हृदय−वाटिका में सुमन खिल रहे हैं।
सदाचार−सौरभ महकने लगा है, सुहृद−शील का स्वर चहकने लगा है॥
नई−चेतना से भरा लोक−मानस।
कि युग–देव का आगमन हो रहा है॥7॥
–मंगल विजय
*समाप्त*