Magazine - Year 1984 - Version 2
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Language: HINDI
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कलाकारिता सराहनीय है।
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सौंदर्य मनुष्य का प्रिय विषय है। वह न केवल सुन्दर वस्तुओं को देखना चाहता है, वरन् सौंदर्य को अधिकाधिक परिमाण में देखना चाहता है। कुरूपता से अप्रसन्नता एवं खीज होती है उसे हटाने के लिए जो सम्भव है सो करता भी है। इस मनोवृत्ति ने मनुष्य को सुसज्जित बनने या रहने की प्रेरणा दी है। इस प्रयास का जहाँ तक वस्त्राभूषणों से सम्बन्ध है वहाँ तक उसे फैशन कहते हैं।
फैशन शब्द अच्छे अर्थ में भी आता है और बुरे में भी। अपनी आर्थिक स्थिति से बाहर खर्च करके बनाई हुई सज्जा बुरे अर्थ में आती है। जिसमें अत्यधिक सज्जा की गई हो वह उपहासास्पद मानी जाती है। पर जिसमें मर्यादा के अन्दर सुन्दर बनने की ललक झलकती हो वह उपयुक्त है। सौंदर्य कला है। कलाकार की प्रशंसा होती है। जिसने अपना संसार सत्य, शिव के साथ-साथ सुन्दर भी बनाया है उस विश्वम्भर की छवि कला में देखी जा सकती है। कला का दर्शन ईश्वर के दर्शन जैसा है। कला और सौंदर्य एक जैसे हैं। उसके दर्शन की लालसा का औचित्य है।
मनुष्य ईश्वर ने तो यथासम्भव सुन्दर बनाया ही है, अब मनुष्य की बारी है कि वह उस छवि को अपनी रुचि के अनुसार और अधिक निखारे। उसमें जो सज्जा का योगदान कर सके, करे। इसी को वेश विन्यास कहते हैं। बाजारू बोलचाल में इसे फैशन भी कहते हैं। शरीर को वस्त्रों आभूषणों से सजाया जाता है। शृंगार प्रसाधनों से नाक, कान, बाल आदि को अधिक सुन्दर सुव्यवस्थित बनाने का प्रयत्न किया जाता है। पुष्प सज्जा का अनेक प्रसंगों में उल्लेख आता है। जहाँ तक औचित्य की सीमा के अंतर्गत यह सब है वहाँ तक तो सराहनीय है। उपहास तब होता है जब उसमें भोंड़पन का- फूहड़पन का- मर्यादा से आगे का समावेश होता है। फैशन शब्द ऐसी ही स्थिति में प्रयोग होता है।
अंग अवयव जैसे भगवान ने बनाये हैं उन्हें स्वच्छ रखकर सुन्दर बनाया जा सकता है। कपड़े साफ सुथरे शरीर के आकार में फिट बैठने वाले, मन्द रंगों वाले ही शोभा बढ़ाते हैं पर यदि उन्हीं को भड़कीले रंगों वाले और विचित्र सिलाई के बना दिया जाय। नाक कान में अधिक लटकने वाले आभूषण लटकाये जायें तो उसे फैशन कहा जायेगा। भगवान ने त्वचा का रंग काला बनाया है तो उसे सफेद बनाने के लिए सफेद या लाल रंग से पोता जाय तो भी वह स्थिति फैशन कही जायेगी और उसकी संज्ञा बचकानेपन में जुड़ेगी। स्वाभाविकता को अपेक्षाकृत अधिक सुन्दर बनाने के प्रयास को कला कहते हैं। कला सराहनीय है। उसमें कलाकारिता का परिचय मिलता है।