Magazine - Year 1985 - Version 2
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Language: HINDI
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पूर्वाग्रहों से उबरिये
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सीमाबद्ध रहने पर मनुष्य की स्थिति कुँए के उस मेढ़क की तरह हो जाती है जो समस्त संसार को उस परिधि में सिमटा देखता है। विस्तार, गहराई एवं जल सम्पदा की दृष्टि से दूसरा कोई क्षेत्र बड़ा भी हो सकता है, इसकी वह कल्पना भी नहीं कर पाता। जो सामने है मात्र वह ही सत्य है, यथार्थ है और सब कुछ है, इस मान्यता के पूर्वाग्रह से वह इस कदर जकड़ा रहता है कि विराट् समुद्र एवं उसकी अथाह जलराशि की जब कभी भी उसके सामने चर्चा होती है तो उसे वह मिथ्या समझता तथा अपनी जानकारी एवं अनुभव को सर्वोपरि मानता है। ज्ञान के उस सीमित दायरे से निकल न पाने तथा पूर्वाग्रह के जाल में बुरी तरह जकड़े रहने की विडम्बना से उबरने का अवसर जीवन पर्यन्त नहीं मिल पाता। कुँए में पैदा होता, बढ़ता और अन्ततः वह मेंढक उसी में मरता है। इसके विपरीत नदियों के प्रवाह के साथ बहने वाली, तालाबों, नालों से निकलकर नदी के मार्ग से समुद्र की अथाह जलराशि में जा पहुँचने वाली मछलियाँ वास्तविकता से परिचित होती हैं उन्हें कुँए, तालाबों का सीमा बन्धन का ज्ञान होता है और समुद्र की विशालता का भी।
सीमा बन्धन से निकलकर विराट् की ओर छलाँग लगा सके तो मनुष्य को भी ज्ञात होगा कि संसार एवं सृष्टि के विषय में बनायी गयी उसकी मान्यताएँ कितनी एकाँगी कितनी अपूर्ण तथा कितनी भ्रामक हैं। सम्भव है जिस क्षेत्र में मनुष्य रहता है, उस सीमित क्षेत्र के लिए वे उपयोगी हों पर आवश्यक नहीं कि बनाये गये पैमाने सर्वत्र ही प्रामाणिक सही और खरे उतरें। उदाहरणार्थ पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण शक्ति के सापेक्ष वस्तुओं के द्रव्यमान, लम्बाई चौड़ाई अथवा ऊँचाई मापे जाते हैं पर ये माप स्थिर नहीं हैं, गुरुत्वाकर्षण शक्ति के परिवर्तन के साथ बदलते रहते हैं।
आइन्स्टीन के अनुसार अपने द्रव्यमान के अनुपात में प्रत्येक वस्तु किसी दूसरे वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करती है। पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण शक्ति अधिक होने का कारण है, उसका बड़ा क्षेत्र फल और भारी द्रव्यमान, इस सिद्धान्त के आधार पर वैज्ञानिक न्यूटन द्वारा आविष्कृत गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त में परिवर्तन आया। वस्तुओं के पारस्परिक आकर्षण शक्ति पर प्रकाश डालते हुए रूस के प्रख्यात अन्तरिक्ष विज्ञानी कान्स्टेन्टीन एड्यूवर्डेविचत्सियोल कोवोस्की ने 23 जुलाई 1934 को रूपी पत्र प्रावदा में लिख कि “मैं किसी विषय पर इतना तल्लीन नहीं होता जितना कि पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति पर विजय प्राप्त कर अन्तरिक्ष यात्रा की समस्या को सम्भव बना देने में आत्म−विभोर हो जाता हूँ।”
इस प्रकार विभिन्न ग्रहों, तारों तथा नक्षत्रों पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति उनके द्रव्यमान और घनत्व के अनुसार भिन्न−भिन्न होती है। इस आधार पर किसी भी वस्तु का द्रव्यमान एक निश्चित स्थान पर स्थायी तो हो सकता है पर दूसरे ग्रह पर उसका भार उतना नहीं होगा। किसी वस्तु का भार कितना होगा यह उस बात पर निर्भर करता है कि जिस धरातल पर वह है, उसका द्रव्यमान और घनत्व कितना है। अस्तु किसी भी वस्तु पर भार स्थिर नहीं माना जा सकता। गुरुत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी के केन्द्र में शून्य होती है। यदि किसी प्रकार वहाँ पहुँचना सम्भव हो तथा वहाँ भार लिया जा सके तो हर वस्तु का भार शून्य होगा। ऊँचाई की ओर बढ़ने पर भी भार में कमी आती है। समुद्र तक के निकट किसी भी चीज का भार सर्वाधिक होगा क्योंकि वहाँ गुरुत्वाकर्षण शक्ति अधिक है जबकि पर्वतों पर अपेक्षाकृत कम होगा। पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण शक्ति को पार कर जाने पर भारहीनता की समस्या आती है। अन्तरिक्ष यात्रियों को इसीलिए उस तरह के वातावरण में रहने का प्रशिक्षण दिया जाता है। अन्यथा अनभ्यस्त होने पर कितने ही प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
गुरुत्वाकर्षण शक्ति के साथ जुड़े रोचक तथ्यों में से एक यह भी है कि जो वस्तु धरती पर अत्यन्त भारी लगती है तथा उसे उठाना सम्भव नहीं हो पाता, उसे कोई भी व्यक्ति दूसरे ग्रह पर जहाँ कि आकर्षण न्यून है, आसानी से उठा सकता है। उदाहरणार्थ एक पहलवान यदि 80 कि. ग्रा. वजनी किसी वस्तु को लेकर पृथ्वी पर दौड़ सकता है तो वही चन्द्रमा पर गाय को उठाकर ऊँची चारदीवारी के पार छलाँग लगा सकता है। पर सूर्य पर तो किसी के लिए खड़ा होना भी सम्भव नहीं है क्योंकि वहाँ पृथ्वी से साढ़े सत्ताईस गुनी अधिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति है। मंगल और बुध ग्रहों पर भी गुरुत्वाकर्षण शक्ति कम है। उन पर 250 किलोग्राम तक की वजनी वस्तुओं को आसानी से उठाकर छलाँग लगाया जा सकता है। पर बृहस्पति की गुरुत्वाकर्षण शक्ति भी अधिक है। अधिक खिंचाव होने के कारण वहाँ चलने में भी कठिनाई हो सकती है। मंगल और बृहस्पति के बीच अनेकों छोटे−छोटे क्षुद्र ग्रह हैं जिनकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति अत्यन्त कम है, वहाँ भारी भरकम छोटे−मोटे मकानों को भी उठाकर आसानी से चहल कदमी की जा सकती है।
वैज्ञानिक त्सियोलवोस्की के अनुसार विभिन्न ग्रहों पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति की भिन्नता जीवों, वनस्पतियों, पहाड़ों आदि की ऊँचाई पर भी प्रभाव डालती है। चन्द्रमा पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी का 1।6 भाग है, अतएव वहाँ पहाड़ों की तुलनात्मक ऊँचाई छः गुना अधिक होगी तथा भार में भी अन्तर आयेगा। जो वस्तु पृथ्वी पर 12 कि. ग्रा. है, वह चन्द्रमा पर 2 कि. ग्रा. के लगभग होगी। पृथ्वी पर 40 फीट किसी कल्पित मनुष्य को चलने में भारी कठिनाई अधिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण हो सकती है पर चन्द्रमा पर उसे किसी प्रकार की परेशानी नहीं होगी।
गुरुत्वाकर्षण का पृथ्वी की परिस्थितियों तथा जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध है। पृथ्वी पर यदि गुरुत्वाकर्षण न हो तो वायुमंडल भी तत्काल समाप्त हो जायेगा। नदियां, समुद्र स्थिर होकर या तो जम जायेंगे अथवा गैस के रूप में बदल जायेंगे। जीव जन्तुओं एवं वनस्पतियों का विनाश हो जायेगा। गुरुत्वाकर्षण के अभाव में मनुष्य को उसी प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा जिस प्रकार कि अन्तरिक्ष यात्रियों को करना पड़ता है। गुरुत्वाकर्षण रहित वातावरण में कोई वस्तु तब तक गतिशील नहीं हो सकती है जब तक कि किसी वाह्य शक्ति का दबाव न पड़े। जबकि किसी वस्तु के गतिशील हो जाने पर उसे रोकना कठिन होगा। गुरुत्वाकर्षण के न रहने पर मनुष्य को ऐसा प्रतीत होगा कि जैसे हृदय की गति मन्द होती जा रही हैं तथा स्पन्दन क्षीण होता जा रहा हो। ऐसा आभास होगा जैसे बहुत ऊँचाई से गिर रहा हो। वह अधिक समय अपनी शारीरिक हलचल बनाये नहीं रख सकता।
चन्द्रमा से अन्यान्य ग्रहों का रूप भी सर्वथा भिन्न दिखायी देता है। वहाँ से सूर्य अत्यन्त चमकीला तथा रंग में गहरा नीला दृष्टिगोचर होगा। आकाश तारकोल की तरह काला दिखायी देता है तथा पृथ्वी झिलमिलाती नजर आती है जबकि तारे आकाश में मोती जैसे हलचल रहित चमकते प्रतीत होते हैं। चन्द्रमा पर सूर्योदय तथा सूर्यास्त पृथ्वी की तरह क्रमिक तथा लालिमायुक्त नहीं दिखायी देगा बल्कि उदय और अस्त अकस्मात होता दिखायी पड़ता है। वायुमण्डल के अभाव में वहाँ तेज आवाज भी सुनायी नहीं देती। यदि चन्द्रमा पर फुटबाल को जोर से मारा जाय तो वह एक मील ऊपर तक उछल सकती है। अरबी घोड़ा हवा से बातें करेगा। भारी से भारी वस्तुएँ भी हल्की−फुल्की गेंद जैसी वजन की मालूम होंगी। अस्तु भार की मान्यता गुरुत्वाकर्षण के सापेक्ष सतत् बदलती रहती हैं। इस तरह के अगणित अन्यान्य तथ्यों से जो अपरिचित हैं तथा अपनी मान्यता के प्रति अडिग हैं उन्हें पूर्वाग्रही ही कहा जायेगा।
संसार विषयक मान्यताओं के संदर्भ में ही नहीं सत्य के अन्यान्य पक्षों के बारे में भी जो एकाँगी सोचते तथा उसे ही परिपूर्ण मानते रहते हैं, उनकी स्थिति किसी पूर्वाग्रही से कम नहीं है। अधिक अच्छा हो, अपने ज्ञान की क्षुद्रता को नम्रतापूर्वक स्वीकार किया जाय तथा नयी जानकारियों की उपलब्धि के लिए अपनी अन्वेषक विवेक दृष्टि सदा खुली रखी जाय।