Magazine - Year 1990 - Version 2
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Language: HINDI
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बहुमूल्य अनुदान भी (कहानी)
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देव-दानव युद्ध में अर्जुन देवताओं की सहायता के लिए सुरलोक गए। वे इतने पराक्रम से लड़े कि दैत्य पीठ दिखाकर भागे, देवपक्ष विजई हुआ।
देवताओं ने अर्जुन के प्रति असाधारण प्रसन्नता प्रकट की और उपहार में उनकी सेवा करने वहाँ की सर्वोत्तम सुंदरी उर्वशी भेजी। अर्जुन ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया।
इस पर अपना अभिप्राय प्रकट करने के लिए उर्वशी ने उनसे कहा— ”मैं आप जैसा एक सुंदर पुत्र चाहती हूँ। मेरी अभिलाषा पूरी करें।”
अर्जुन ने उनके आगमन का कारण समझा और गंभीर होकर कहा। जो तुम चाहती हो वह बन पड़े या नहीं इसका कोई ठिकाना नहीं। हो सकता है कि कन्या ही जन्मे। पुत्र भी हो तो मेरे समान पराक्रम वाला हो इसका भी कुछ ठिकाना नहीं। फिर संतान को मेरी जितनी आयु का होने तक तुम्हें लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। इन सभी कठिनाइयों का मैं एक क्षण में समाधान किए देता हूँ। तुम मुझे आज से ही अपना पुत्र मानो और मैं तुम्हें कुंती के समान माता मानूँगा। यह कहकर अर्जुन ने अपना मस्तक उसके चरणों पर रख दिया।
उर्वशी निरुत्तर हो गई। उसे उलटे पैरों वापस जाना पड़ा। देवता इस आदर्शवाद पर मुग्ध हो गए। उनने नया उपहार भेजाः गांडीव धनुष। वह लक्ष्यवेधी बाण चलाता था और किसी युद्ध में पराजित न होता था।
आदर्शवादी घाटे में नहीं रहते, उन्हें यश भी मिलता है और बहुमूल्य अनुदान भी।