Magazine - Year 1990 - Version 2
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Language: HINDI
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मधु संचय— दिव्य सुयोग (गीत)
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दिव्य चेतना ही करती है, संपादित वे काज।
जिन से युग-परिवर्तन होता, पाता मुक्ति समाज॥1॥ सर्व समर्थ दिव्यसत्ता, प्रत्यक्ष न करती काम।
वह उपयुक्त माध्यमों द्वारा, करती सब गुमनाम॥ सीमित शक्ति और साधन होते, माध्यम के पास। किंतु दिव्य-सामर्थ्य, उछाला करती है विश्वास॥ माध्यम से मुखरित होती है, उसकी ही आवाज। जिससे युग-परिवर्तन होता, पाता मुक्ति समाज॥2॥ जामवन्त, हनुमान आदि, क्या कर पाते वे काम?
नहीं समाए होते उनकी, रग-रग में यदि राम॥ पत्नी का अपमान सह गया, क्या अर्जुन था वीर। किंतु कृष्ण-सामर्थ्य, बन गई गाँडीव का तीर॥ स्वर होते हैं किसी और के, बजता कोई साज। जिस से युग-परिवर्तन होता, पाता मुक्ति समाज॥3॥ क्या विदेश में यूँ छा जाता, एक विवेकानंद।
क्या दुबले गाँधी की हो पाती, आवाज बुलन्द॥ कार्ल मार्क्स क्या भर सकते थे, साम्यवाद का रंग।
क्या गोरों से टकरा पाते, काले लूथर किंग॥ कठपुतलियाँ दिखाती रहतीं, कोई का अंदाज।
जिससे युग-परिवर्तन होता, पाता मुक्ति समाज॥4॥ जो माध्यम बन जाया करते, हो जाते वे धन्य। दिव्य चेतना काम बनाती, उनकी कीर्ति अनन्य॥ युग-परिवर्तन की बेला का पुनः पुण्य संयोग।
वही धन्य हो जाए, जिसका हो जाए उपयोग॥ राम काज में जुटने का, फिर पुण्य पर्व है आज। जिससे युग-परिवर्तन होगा, होगा मुक्त समाज॥5॥ — मंगल विजय
जिन से युग-परिवर्तन होता, पाता मुक्ति समाज॥1॥ सर्व समर्थ दिव्यसत्ता, प्रत्यक्ष न करती काम।
वह उपयुक्त माध्यमों द्वारा, करती सब गुमनाम॥ सीमित शक्ति और साधन होते, माध्यम के पास। किंतु दिव्य-सामर्थ्य, उछाला करती है विश्वास॥ माध्यम से मुखरित होती है, उसकी ही आवाज। जिससे युग-परिवर्तन होता, पाता मुक्ति समाज॥2॥ जामवन्त, हनुमान आदि, क्या कर पाते वे काम?
नहीं समाए होते उनकी, रग-रग में यदि राम॥ पत्नी का अपमान सह गया, क्या अर्जुन था वीर। किंतु कृष्ण-सामर्थ्य, बन गई गाँडीव का तीर॥ स्वर होते हैं किसी और के, बजता कोई साज। जिस से युग-परिवर्तन होता, पाता मुक्ति समाज॥3॥ क्या विदेश में यूँ छा जाता, एक विवेकानंद।
क्या दुबले गाँधी की हो पाती, आवाज बुलन्द॥ कार्ल मार्क्स क्या भर सकते थे, साम्यवाद का रंग।
क्या गोरों से टकरा पाते, काले लूथर किंग॥ कठपुतलियाँ दिखाती रहतीं, कोई का अंदाज।
जिससे युग-परिवर्तन होता, पाता मुक्ति समाज॥4॥ जो माध्यम बन जाया करते, हो जाते वे धन्य। दिव्य चेतना काम बनाती, उनकी कीर्ति अनन्य॥ युग-परिवर्तन की बेला का पुनः पुण्य संयोग।
वही धन्य हो जाए, जिसका हो जाए उपयोग॥ राम काज में जुटने का, फिर पुण्य पर्व है आज। जिससे युग-परिवर्तन होगा, होगा मुक्त समाज॥5॥ — मंगल विजय