Magazine - Year 1991 - Version 2
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Language: HINDI
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सुनियोजित करने की साधना (Kahani)
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कोई व्यक्ति सुकरात से ब्रह्म विद्या के संबंध में जानकारी प्राप्त करने और इस मार्ग पर चलने का विधान पूछने आया।
सुकरात ने उसे सिर से पैर तक देखा और हर दृष्टि से गया गुजरा, मैला, कुचैला अस्त व्यस्त पाया।
सुकरात ने ब्रह्म विद्या का प्रथम पाठ बताया, जागरुक रहना, सुव्यवस्थित, स्वच्छ और सुन्दर बनना। इस प्रथम पाठ को जीवन में उतारने के उपरान्त ही ब्रह्म के संबंध में कुछ पूछने और आत्मिक प्रगति के बारे में कुछ करने की योजना बनाना।
अपना निज का व्यक्तित्व ढालने में भी विचारों की ही प्रमुख भूमिका रहती है। विचारों की अनुपयुक्तता मनुष्य को पतन-पराभव के गर्त में गिराती है और उनके उच्च, उज्ज्वल आदर्शवादी होने पर प्रतिभा-प्रखरता निखरती है। इसलिए कहा गया है कि जीवन की अन्यान्य विधि व्यवस्थायें बनाने से पूर्व विचारों की अनगढ़ उड़ाने उड़ने से रोकना चाहिए। निग्रहीत मन को ऐसे प्रयोजनों में तन्मय होने की कला सिखानी चाहिए जो प्रगति की दिशा में अग्रसर कर सके। विचारों को मानव जीवन की महती शक्ति माननी चाहिए और उसे संयत सुनियोजित करने की साधना करनी चाहिए।