Magazine - Year 1992 - Version 2
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Language: HINDI
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अपनों से अपनी बात - संस्कृति पुरुष पूज्य गुरुदेव के संकल्प निश्चित ही पूरे होंगे
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विराट स्तर पर आयोजित शपथ समारोह की तैयारियाँ अंतिम चरणों में
स्थान-दक्षिणेश्वर का वह कक्ष जहाँ रामकृष्ण परमहंस मृत्यु शैया पर लेटे थे। चारों ओर उनके शिष्य बैठे थे। एकाएक ठाकुर बोल उठे-मैं जा रहा हूँ, पर देखना। मेरे जाने के बाद एक विलक्षण चमत्कार होगा। अनजान, अनगिनत साधारण लोगों को भी मेरी चेतना के प्रभाव से मात्र तीन दिन में सिद्धियाँ मिल जाएँगी। ऐसे ऐसों को जिनकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते। बहुत बड़ा ज्वार आयेगा। गंगा में बल्ली-बल्ली पानी चढ़ जाएगा।” वास्तव में ऐसा ही हुआ वह युग था अँग्रेजी दासता के पाश में जकड़े भारत का। पंद्रह-बीस वर्ष के युवा स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे। जो जेल में थे उनसे लेकर वे जो गुप्त रूप से सक्रिय थे, कहने लगे थे कि हमें हमारी मौत स्पष्ट दिखाई दे रही है। उसके बाद जब अरविन्द जेल में थे तब की एक घटना है। आनन्दी बोस नामक एक सामान्य सा युवा जो उनके साथ ही जेल में था, कहने लगे कि “हमें स्पष्ट दीख रहा है कि हम भागने का प्रयास करेंगे, पकड़े जाएँगे, गोली लगेगी, अस्पताल भेजे जाएँगे व वहाँ हम शहीद हो जाएँगे।” जो घटा नहीं था, वह कैसे दीख पड़ने लगा, इसका खुलासा करते हुए अरविंद कहते हैं कि यह वही सिद्धि थी जिसकी चर्चा ठाकुर ने की थी। अपने अंदर देश के लिए ऐसी भावना विकसित होना कि कुर्बानी सामने दिखाई होते हुए भी कूद पड़ना यह सिद्ध स्तर की देवात्माओं के बस की ही बात है व बंगाल से उपजे इस आंदोलन का ज्वार ही था जिसकी चरम परिणति भगत सिंह, खुदीराम बोस से लेकर गाँधी-सुभाष नेहरू व पटेल के आंदोलन में हुई। दक्षिणेश्वर की माटी की शपथ खाकर लोग कुर्बानी देने मचल उठे व देखते-देखते यह आँधी सारे देश में छा गयी । यदि आजादी की लड़ाई का इतिहास नये सिरे से लिखा जाय तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि दक्षिणेश्वर के ठाकुर व युवा क्राँतिकारी संन्यासी विवेकानन्द ने ऊर्जा उत्पन्न कर धर्मतंत्र मंच से राजनीतिक पाश से मुक्ति के क्षेत्र में कितनी बड़ी भूमिका निभाई। सांस्कृतिक गुलामी की मुक्ति तब भी नहीं हुई उसकी अब बारी आयी है।
यह घटनाक्रम 1887 के बाद पुनः अब इस सदी में इस शताब्दी के अंतिम दशक में दुहराया जा रहा है। परम पूज्य गुरुदेव ने स्थूल शरीर से जिये गए अपने अंतिम दो वर्षों 1989−90 में महत्वपूर्ण क्रान्तिधर्मी साहित्य का सृजन किया व अपनी काया के बंधनों से मुक्त होने से पूर्व यह कहा कि हमारे जाने के बाद प्रतिभा जागरण की प्रक्रिया एक विराट स्तर पर संपन्न होगी। प्रसुप्त प्रतिभाएँ जागेंगी व हमारी सूक्ष्मसत्ता उनको झकझोर कर नवयुग की तैयारी के कार्य में उन्हें जुटा देगी, विवश कर देगी काम करने के लिए। इसके लिए परम पूज्य गुरुदेव ने एक ही बात कही थी कि वे अपना काम करेंगे, परिजन मात्र पूज्य गुरुदेव की चिंतन धारा से जुड़े रहे शेष काम दैवीचेतना उनसे करा लेगी। चिंतनधारा से तात्पर्य है वह सब कुछ जो भारतीय संस्कृति के पुनर्जीवन द्वारा मानव में देवत्व तथा धरित्री पर स्वर्ग के अवतरण की व्याख्या करते हुए परम पूज्य गुरुदेव अखण्ड-ज्योति पत्रिका रूपी प्राण प्रवाह के माध्यम से जो अपनी विरासत छोड़ गए हैं, उसे घर-घर पहुँचाने का संकल्प लिया जाना। शपथ समारोह जो जून माह में संपन्न होने जा रहा है, इसी संदर्भ में आयोजित है।
हम सभी दक्षिणेश्वर की माटी की तरह परम पूज्य गुरुदेव की जन्म स्थली व प्रारंभिक जीवन की कार्यस्थली आँवलखेड़ा की रज को हाथ में लेकर सप्त-सरोवर शान्तिकुञ्ज हरिद्वार में गंगा जल की साक्षी में वंदनीया माताजी के समक्ष 10 जून (गायत्री जयंती-गंगा दशहरा-पूज्यवर की द्वितीय पुण्य तिथि) की पावन प्रातः वेला में शपथ लेंगे कि संस्कृति पुरुष पूज्य गुरुदेव के तत्त्वदर्शन को घर-घर पहुँचाने का दायित्व हम लेते हैं। हम सभी एक साथ घोषणा करेंगे कि हमारा विश्वास है कि इस युग की व्यक्तिगत समस्याओं, पारिवारिक जीवन में बढ़ रहे विग्रह-विद्वेष तथा सामाजिक जीवन में मानवीय मूल्यों के पतन पराभव का एक मात्र समाधान देवसंस्कृति के विस्तार में सन्निहित है। देव संस्कृति में सांस्कृतिक मूल्यों आदर्शवादी परम्पराओं और संवेदनात्मक समाज के समर्थक सभी तत्त्व विद्यमान हैं। राष्ट्रीय एकता, अखण्डता अक्षुण्ण बनी रहे इसके लिए हम सभी संकल्प लेते हैं कि अपने पितामह ऋषियों द्वारा प्रणीत-महापुरुषों द्वारा सेवित देवसंस्कृति की घर घर प्राण प्रतिष्ठा के लिए निष्ठापूर्वक कार्य करेंगे। इसके लिए तीन माह के समय तथा ब्राह्मणोचित आजीविका के दान न्यूनतम अंशदान, बौद्धिक सम्मेलनों तथा संस्कार महोत्सवों में भागीदारी की हर व्यक्ति घोषणा करेगा तथा उस रज को अपने उपासना स्थल पर पूजित प्रतिष्ठित करने का आश्वासन देगा ताकि वह सेवा साधना के निमित्त ली गयी इस शपथ को पूरा करने की प्रेरणा व शक्ति देती रहे।
इसे एक असाधारण संकल्प माना जाना चाहिए जो विराट शपथ समारोह के माध्यम से एक लाख से भी अधिक परिजनों द्वारा लिया जा रहा है। विराट स्तर पर प्रतिभा जागरण की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है। नवयुग का मत्स्यावतार अँगड़ाई लेता हुआ अब विराट रूप लेता चला जा रहा है। परिवर्तन की प्रक्रिया हर ओर सक्रिय होती दृष्टिगोचर होने लगी है। संकल्प समारोहों का आयोजन भारत व विश्व के कोने-कोने में करने के पत्रों से लेकर देवसंस्कृति का संदेश घर घर पहुँचाने व बुद्धिजीवी वर्गों के मानस को मथने की प्रक्रिया विगत दो माह में जितनी गतिशील हुई है वह एक ही तथ्य की परिचायक है कि चेतन जगत सक्रिय है, इक्कीसवीं सदी, उज्ज्वल भविष्य के रूप में युग ऋषि का उद्घोष निश्चित ही साकार होने जा रहा है। हमें तो बस उस चेतन प्रवाह में स्वयं को जोड़ देना है।
विगत वसंतपर्व से आरंभ हुई शक्ति संचार साधना के व्यापक परिणाम देखने में आ रहे हैं। जन-जन का उत्साह जागा है एवं एक विराट स्तर पर देवसंस्कृति बनाने की ललक जागी है। वस्तुतः शपथ समारोह परम पूज्य गुरुदेव द्वारा निर्दिष्ट आगामी दस वर्षों की कार्य प्रणाली के अंतर्गत श्रद्धाञ्जलि समारोह के बाद दूसरा मील का पत्थर है, जिसके द्वारा मानव मात्र, जो इस मिशन से जुड़ा है, की सदस्यता की थाह लेने का प्रयास किया जाएगा। मेले- समागम तो बहुत से होते हैं किन्तु उद्देश्यों की अस्पष्टता या उनके न होने से वे मात्र तमाशे बन कर रह जाते हैं, अपना समागम तमाशबीनों का हो हल्ला नहीं है अपितु विराट पुरुष को भारत-भूमि से उदित हो रही नूतन चेतना द्वारा दिया जा रहा आश्वासन है कि भारतीय संस्कृति-हिंदू संस्कृति विश्व मात्र का मार्गदर्शन आने वाली कई सदियों तक करेगी। इसी के लिए हम सब एक जुट होकर यह संकल्प ले रहे हैं।
परमपूज्य गुरुदेव ने “ प्रतिभा परिष्कार” को एक अवश्यम्भावी प्रक्रिया कहा व यह भी लिखा कि ऋषि चेतना परोक्ष जगत में आकुल-व्याकुल है प्रतिभाओं को जगाने को। यह कार्य आगामी नौ-दस वर्षों में होने जा रहा है, यह महर्षि अरविन्द से लेकर स्वामी विवेकानन्द तथा नोस्ट्राडेमस से लेकर परम पूज्य गुरुदेव स्पष्ट कह गए हैं। पूज्य गुरुदेव ने लिखा है कि मनुष्यों के कई वर्ग हैं जिनमें सबसे अधिक संख्या उनकी है जो परावलम्बी हैं, अनुकरण और आश्रय ही उनके स्वभाव का अंग है। सम्पदा आसपास होते हुए भी यह हीन वर्ग है चिन्तन की दृष्टि से सबसे हीन इससे अगला वर्ग उनने उनका बताया जो निर्वाह भर में समर्थ प्रयोजनों मात्र हैं ।वे जिस तिस प्रकार जी तो लेते हैं पर श्रेय सम्मान जैसी कोई मानवोचित उपलब्धि उनके साथ नहीं जुड़ी। इससे श्रेष्ठवर्ग प्रतिभाशाली व्यक्तियों का है जो सही अर्थों में युगनेतृत्व कर सकने वाले व्यवस्थापक स्तर के श्रेष्ठ व्यक्ति होते हैं। वे अपनी नाव अपने बलबूते खेते हैं और उसमें बिठाकर अन्यों को भी पार लगाते हैं। संस्कृति व देश व समाज व विश्व की प्रगति व सुव्यवस्था इन्हीं प्रतिभावानों पर निर्भर है। चौथा वर्ग देवमानवों का पूज्यवर ने बताया जो महापुरुष स्तर की प्रतिभाएँ हैं व आत्म परिष्कार लोक मंगल में निरत रहना ही जिनका चुना हुआ धर्म है। उनका आवाहन इन चारों वर्गों में से उभर कर आने वाले उन व्यक्तियों के प्रति है जिनके मन में देश, समाज, संस्कृति के लिए दर्द है, कुछ करने की ललक है, प्रसुप्त प्रतिभा है पर उभर कर आ पाने की सामर्थ्य में आत्मबल में कमी है। इसी प्रतिभा को जगाने व उसका संवर्द्धन करने की प्रक्रिया पूज्यवर की सूक्ष्म व कारण सत्ता संपन्न कर रही है, इन दिनों।
प्रतिभाएँ ही किसी समाज-राष्ट्र या समूह की वास्तविक सम्पदा हैं । उनके द्वारा न केवल प्रतिभाशाली स्वयं भरपूर श्रेय अर्जित करते हैं वरन् अपने क्षेत्र समुदाय और देश की अति-विकट उलझनों को भी सुलझाने में सफल होते हैं। संवेदना प्रधान ये देवमानव अधिक से अधिक इस धरित्री पर उपजे तो आस्था संकट की विभीषिका देखते-देखते मिटती देखी जाएगी। इन्हीं प्रतिभावानों को विभिन्न वर्गों-शिक्षकों चिकित्सकों, समाज सेवियों, प्रशासकों, कलाकारों, वैज्ञानिकों, अधिकारीगणों , जन प्रतिनिधियों, युवाशक्ति तथा नारीशक्ति रूपी क्षीरसागर से निकालने के लिए व्यापक स्तर पर बौद्धिक सम्मेलनों की रूप-रेखा संस्कार महोत्सवों के साथ-साथ शपथ समारोह के बाद बनायी गयी है। कहना न होगा कि खराद पर चढ़कर आने वाली प्रतिभायें समुचित मार्गदर्शन मिलने पर समाज व राष्ट्र का कायाकल्प कर देंगी। इस दृष्टि से आगामी वर्ष के निर्धारणों में बुद्धिजीवी वर्ग के इन सम्मेलनों को अति महत्वपूर्ण माना जाना व इनमें भागीदारी हेतु अधिक से अधिक व्यक्तियों को प्रेरित किया जाना हर परिजन से अपेक्षित है। हर वर्ग के लिए अलग-अलग परिपत्र तैयार कर उनसे जो जो अपेक्षाएँ हैं, उन्हें बतायी जा रही हैं ताकि इन सम्मेलनों के निष्कर्षों का सुनियोजन हो सके।
संस्कार महोत्सवों, जो विश्वभर में अट्ठाइस स्थानों पर तथा पूरे भारत भर में जनपद स्तर के कुल एक हजार स्थानों पर आगामी एक वर्ष में शपथ समारोह के बाद आयोजित होने की विशद रूप-रेखा बन चुकी है। इनका मूल उद्देश्य होगा संस्कारों के माध्यम से जन-जन का शिक्षण । न केवल शिक्षण बल्कि एक व्यापक समुदाय की सुसंस्कारिता का जागरण, व्यक्तित्व के निखार, प्रतिभा के उभार तथा मानवी गरिमा के स्तर को ऊँचा करने के लिए संस्कार पद्धति की उपयोगिता को विज्ञान सम्मत ढंग से प्रतिपादित व संपन्न करना , इन संस्कार महोत्सवों का उद्देश्य होगा । भारतीय संस्कृति के मूल निर्धारणों को जो विलुप्त प्रायः से हो गए थे, मानवमात्र के समक्ष प्रस्तुत करना देवसंस्कृति की सबसे बड़ी सेवा कही जानी चाहिए। वही करने को यह मिशन संकल्पित है व विराट स्तर पर प्रदर्शन द्वारा प्रतिपादन-शिक्षण कर यह जन जिज्ञासा की पूर्ति तो करेंगे। हर संस्कार महोत्सव में निःशुल्क जाति पथ धर्म सम्प्रदाय-लिंग के भेद के परे न केवल सभी संस्कार संपन्न होंगे, उनके शिक्षण की विभिन्न माध्यमों से व्यवस्था भी की जाएगी। प्रत्येक स्थान पर भारतीय संस्कृति संबंधी एक प्रदर्शनी इसी निमित्त लगायी जाएगी। वीडियो द्वारा तथा एक्शन साँग-नुक्कड़ नाटकों द्वारा भी देवसंस्कृति के विभिन्न प्रसंगों का ही चित्रण का प्रशिक्षण करने का प्रयास किया जाएगा। जन-जन यह जानेगा कि ऋषियों द्वारा आविष्कृत यह संस्कार प्रणाली कितनी विज्ञानसम्मत तथा समयानुकूल है।
शपथ समारोह में तीन माह का समयदान देने वाले परिजनों के शिक्षण हेतु एक अभिनव पाठ्यक्रम देवसंस्कृति प्रधान आरंभ किया जा रहा है। यह पाठ्यक्रम देवसंस्कृति प्रधान आरंभ किया जा रहा है। यह पाठ्यक्रम जून 92 के अखण्ड-ज्योति अंक से आरंभ हो रहा है। समूचा अंक संस्कृति प्रधान होगा तथा इसी प्रकार आगामी इस पत्रिका के अंक प्रकाशित होते रहेंगे। अभी कुल चार विशेषांक सितम्बर माह तक निकाले जाने की योजना बनी है जिनको मूल आधार बनाकर समयदानी परिजन अपनी मिशनरी की योग्यता बढ़ाने का शिक्षण लेंगे। भारतवर्ष में स्थान-स्थान पर संस्कारशालाएँ बालकों के नव जागरण हेतु खुल जाएँ, हर प्रज्ञा संस्थान पर संस्कार संपन्न होने लगें व सभी इससे लाभ उठा सकें, मूल लक्ष्य यह है। धीरे- धीरे इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए शान्तिकुञ्ज को एक विराट विश्वविद्यालय का रूप देने का मन है, जहाँ भारतीय संस्कृति का साँगोपाँग प्रशिक्षक स्तर का शिक्षण दिया जा सकेगा। वस्तुतः जीवन जीने की शैली ही भारतीय संस्कृति का पर्याय है। वह शिक्षण बहुविधि रूपों में अब से और भी बढ़े-चढ़े रूप में परिजनों को दिए जाने की व्यवस्था की जा रही है। इस विश्व विद्यालय का अपना पाठ्यक्रम व शाखा प्रशाखाओं में चलने वाले उपक्रम का समग्र निर्धारण इस एक वर्ष में हो जाएगा जिसे देवसंस्कृति विस्तार वर्ष घोषित किया गया है।
शपथ समारोह की सभी तैयारियाँ इन पंक्तियों के लिखें जाने तक पूरी होने जा रही हैं। समारोह में उन्हीं को आमंत्रित किया जा रहा है जो पंजीकृत हो चुकें होंगे व सुनिश्चित निर्धारणों को मन में लेकर शपथ लेने आ रहे हैं। साथ में घूमने फिरने के लिए चलने वाले तीर्थ यात्रियों पर्यटकों के लिए साफ मनाही कर दी गई है। जून माह का पूर्वार्द्ध उन्हीं के लिए रखा गया है जो इसी निमित्त आयेंगे। शिक्षकों से लेकर अन्यान्य बुद्धिजीवियों को अपने वर्ग के लिए निर्धारित सम्मेलनों में भागीदारी करने को कहा गया है। शपथ समारोह के शुभारंभ हेतु निर्धारित जुलूस यातायात की अव्यवस्था की संभावनाओं को देखते हुए फिलहाल रद्द कर दिया गया है। जो भी वाहन अपने-अपने मार्गों से आयेंगे उन्हें 5 से लेकर 10 के समूह-जत्थों में कॉनवाय बनाकर आने को कहा गया है ताकि सभी व्यवस्थित ढंग से पहुँच सकें आँवलखेड़ा की रज लेकर एक वाहन अब सीधे वहाँ से शान्तिकुञ्ज निर्धारित दिन आएगा। साथ आने वाले वाहनों को सीधे सूचना दे दी गई है।
यह माना जाना चाहिए कि विराट में सक्रिय “संस्कृति पुरुष” के अनुचर विराट स्तर की उपलब्धियों वाला काम ही करेंगे, उससे छोटा नहीं । इस अपेक्षा के साथ जुड़ा होने से इस मिशन-संस्था की जवाबदारी अनेक गुना बढ़ जाती है। वह निश्चित ही पूरी निष्ठ के साथ निभेगी, यह आशा-विश्वास दिन-दिन बढ़ता ही जाता है।
*समाप्त*