Magazine - Year 1992 - Version 2
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Language: HINDI
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पेड़ पौधों के विलक्षण ज्ञान तन्तु
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जगदीश चन्द्र बोस ने जब यह कहा था कि पेड़-पौधे भी हँसते-रोते हैं, तब उनकी खूब खिल्ली उड़ायी गई थी। कहा जाने लगा था कि जड़ पदार्थों पर अनुसन्धान करते-करते उनकी बुद्धि भी जड़ हो गयी है, पर बाद में जब उनकी बात सच साबित हुई तो लोगों ने अपनी गलती स्वीकार की और उनसे क्षमा-याचना की। उसी शृंखला की अगली कड़ी के रूप में अब यह कहा जाने लगा है कि पादप मनुष्यों की तरह सोचते भी हैं और अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त करते हैं।
किसी के बारे में जब यह कहा जाता है कि वह चिन्तन कर रहा है, तो इसका अर्थ ही होता है-मौन-मानसिक मनन। विचारणा सदा मानसिक होती है। वह क्रिया के द्वारा मूर्तिमान् बनती और वाणी से अभिव्यक्ति पाती है। वनस्पतियों में क्रिया और वाणी दोनों का अभाव होता है, अस्तु वे जो कुछ भी सोचती हैं, उसे अपनी मूक वाणी द्वारा ही कहती रहती हैं। परिष्कृत यंत्र इसे पकड़ने में सफल हो जाते हैं। पिछले कई वर्षों में इस प्रकार के अनेकानेक प्रयोग परीक्षण हुए हैं जो यही सिद्ध करते हैं कि वृक्ष वनस्पतियों में अन्य प्राणियों की तरह एक विकसित चिन्तन प्रणाली कार्य करती है।
इसे प्रमाणित करने वाले प्रारंभिक प्रयोग न्यूयार्क में किये गये। वहाँ की एक फर्म में बैक्सटर नामक एक सामान्य-सा मशीन-मैन कार्यरत था। उसे जब जगदीश चन्द्र बोस के विलक्षण प्रयोग की जानकारी प्राप्त हुई, तो बड़ा अचम्भा हुआ। उत्सुकतावश उसने मानवी संवेदनाओं को परखने वाली एक छोटी सी पॉलीग्राफ मशीन खरीद ली। मकान का एक छोटा कमरा खाली किया और प्रयोगशाला खोल ली। उसमें मशीन और कई प्रकार के पौधे रख कर वह नित्य नये-नये कौतुक करता। एक दिन वह इन्हीं कौतुकों में मग्न था और दाढ़ी भी बनाता जा रहा था। अचानक उसकी ठुड्डी कट गई और खून की धार बह चली। बैक्सटर दर्द के मारे कराह उठा। सामने पॉलीग्राफ मशीन पौधे से संलग्न थी। उसकी सुई खड़खड़ाने लगी। पौधा गहन विषाद से भर गया और संवेदना अपने मूक वाणी से प्रकट करने लगा। बैक्सटर को यह देखकर अचरज हुआ सुनिश्चित निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए उसने इस प्रकार के प्रयोग कई-कई बार दोहराएँ । हर बार पौधे के चिन्तन में वेदना झलकती रही।
एक बार बैक्सटर को मजाक सूझा। उसने गमले के पौधे को उलटा लटका कर उसे मशीन से संबद्ध कर दिया और यह जानना चाहा है कि इस स्थिति में वह क्या सोचता है, पर यह देख कर बैक्सटर को आश्चर्य हुआ कि मशीन की सुई स्थिर थी जो यह बताती थी कि पादप सर्वथा विचार-शून्य है। कदाचित् पौधे ने बैक्सटर के मनोभाव को पढ़ लिया हो कि यह मात्र उसकी विनोदवृत्ति है और हानि पहुँचाने जैसी कोई नीयत नहीं है। अब बैक्सटर ने एक चाकू उठाया और पौधे की शाखा में हलके दबा दिया। सुई में तीव्र हलचल हुई, जो इस बात का प्रतीक थी कि पौधे का चिन्तन तंत्र सक्रिय हो उठा है। उसने तीव्र पीड़ा का प्रदर्शन किया।
जब सामने कोई दुर्दान्त दस्यु अथवा हिंस्र पशु आ जाये तो मनुष्य भय से काँप उठता है और यह सोचने लगता है कि अब जान गई। कमजोर मन वाले तो कई बार अपना होश-हवास तक खो बैठते हैं और संज्ञाशून्य जैसी स्थिति में आ जाते हैं। तब न उनकी विचारणा काम कर पाती है न चेतना। वनस्पतियों की भी इन परिस्थितियों में ऐसी ही दशा होती है।
एक अवसर पर बैक्सटर की प्रयोगशाला में क्रिस्टिया नामक एक महिला वैज्ञानिक उनके वनस्पतियों के प्रयोग देखने आयी। क्रिस्टिया भी वनस्पतिशास्त्री थी। वह यह जानना चाहती थी कि पौधे सोचते किस भाँति हैं। अस्तु उसके आगमन पर बैक्सटर ने प्रसन्नता व्यक्त की और उसे अपनी अनुसंधानशाला में ले गया। वहाँ विभिन्न जातियों के दस पौधे थे। क्रिस्टिया को देखते ही दस में से आठ पौधे तत्काल बेहोश हो गये, किन्तु दो साहसी पादपों ने यह संकेत किया कि नवागन्तुक से उन्हें बेहद डर लग रहा है। आश्चर्य में पड़ कर बैक्सटर ने क्रिस्टिया से यह पूछा कि आप कोई ऐसा कार्य तो नहीं करतीं, जिससे वनस्पतियों को नुकसान पहुँचता हो? उत्तर में उसने सहमति प्रकट की और बताया कि वह प्रयोगों के दौरान उन्हें हानि पहुँचाती है। इसकी व्याख्या करते हुए बैक्सटर ने क्रिस्टिया को बताया कि आपकी इस हिंसक वृत्ति को भाँप कर ही आठ पौधे होश-हवास खो बैठे। उनकी चिन्तन-चेतना जाती रही और वे निष्क्रिय पड़ गये। मशीन ने इसकी पुष्टि कर दी। मजेदार बात यह रही कि महिला वैज्ञानिक के जाते ही सब की चेतना पुनः लौट आयी। वे चिंतन करने की स्थिति में दुबारा आ गये। उन्होंने क्रिस्टिया के प्रस्थान पर खुशी जाहिर की।
इसी प्रकार के कई रोचक प्रयोग रूस के मूर्धन्य मनोवैज्ञानिक बी. एन. पुश्किन ने भी किये। वे यह जानना चाहते थे कि झूठ बोल कर पादपों के स्थिर चिन्तन को प्रभावित किया जा सकता है क्या? इसके लिए उन्होंने एक विशेष प्रयोग किया। एक लड़के को बुलाकर उससे 1 से 15 तक की संख्या में से कोई एक चुन कर मन में रख लेने को कहा, साथ ही यह निर्देश भी दिया है कि सही संख्या पूछने पर भी नकारात्मक उत्तर ही दिया जाय।
प्रयोग आरंभ हुआ। एक पौधे को पॉलीग्राफ मशीन से सम्बद्ध कर दिया गया। अब लड़के से क्रमशः 1 से 15 तक की संख्या के बारे में बारी-बारी से पूछा जाने लगा। हर बार वह निर्दिष्ट जवाब ‘नहीं’ में देता। 9 की संख्या तक तो सब कुछ सामान्य रहा। जब 10 की संख्या के बारे में पूछा गया, तो उसका वही पुराना उत्तर ‘न’ में मिला, पर इस बार पौधे की सोच में बल पड़ा। जोर देकर ग्राफ में उसने सूचित किया कि सही संख्या यही है। बालक निश्चित रूप से झूठ बोल रहा है। बाद में लड़के ने स्वीकार किया कि वह मिथ्या बोल रहा था। सही अंक वस्तुतः 10 ही था।
इन प्रयोगों से स्पष्ट है कि वृक्ष वनस्पतियों में कोई चिन्तन तंत्र अवश्य है। वह कैसे कार्य करता है? अभी अविज्ञात है। मनुष्य के पास भी यह प्रणाली है। वह सोचता है और उसे क्रियान्वित भी करता रहता है, पर विडम्बना यह है कि अधिकांश समय वह गिरने गिराने,
मरने मारने का ही जाल-जंजाल बुनता रहता है। दूसरों की ज्यादा से ज्यादा हानि और अपना अधिकाधिक लाभ कैसे हो? इसी कुचक्र में उलझा रहता है। यह मानवी गरिमा के अनुकूल किसी भी प्रकार नहीं। यहाँ एक बात स्पष्ट होनी चाहिए कि अपने इस तंत्र का उद्देश्य न तो स्वार्थान्धता है, न चिन्तन की भ्रष्टता, वरन् सबका समान उत्कर्ष इसका एकमात्र लक्ष्य है। इस में संलग्न रह कर ही वह मनुष्य जैसे विकसित प्राणी के सुविकसित तंत्र का गौरव प्राप्त कर सकता है। मनुष्य की महानता भी इसी में है कि वह ऐसी ही सोच विकसित करे, अन्यथा शरीर भर मानव को मिल जाने से ही वह मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता।