Magazine - Year 1993 - Version 2
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Language: HINDI
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सविता की उपासना (kavita)
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हम ‘सविता’ के अंश, ‘तपस्वी’ हमको होना चाहिये।
हम ‘प्रज्ञा के पुत्र ‘मनस्वी, ‘हमको होना चाहिये॥ 1 ॥
ज्योति पुँज-सविता के अंशज, होकर क्यों सतेज रहें।
प्राण-पंज-प्रज्ञा के वंशज, क्यों न प्राण सहेज रहें॥
प्राणवान होकर ‘ओजस्वी’, हमको होना चाहिए।
हम ‘सविता’ के अंश ‘तपस्वी’ हमको होना चाहिए॥2॥
दिव्य चेतना के हम प्रतिनिधि, प्राणवान, चैतन्य है।
प्रतिनिधि हमीं विराट ब्रह्म के, हम पावन हैं, धन्य है॥
ब्रह्म तेज-धार ‘वर्चस्वी’, हमको होना चाहिए।
हम ‘सविता’ के अंश ‘तपस्वी’, हमको होना चाहिए॥3॥
जड़ चेतना के पोषक सविता हम उनका अनुकरण करें।
प्राणिमात्र में अपने पनकी, क्षमता को, हम वस्थ करें॥
परम पिता के पुत्र ‘यशस्वी’, हमको होना चाहिए।
हम ‘सविता’ के अंश तपस्वी, हमको होना चाहिए॥4॥
प्रखर-प्राण के साध बन हम, फिर जन-जन में प्राण भरें।
और सजल श्रद्धा से विगलित, हो जन-जन का वाण करें॥
जन सेवा सा ही सद्धर्म्मी,’ हमको होना चाहिये।
हम ‘सविता’ के अंश ‘तपस्वी’, हमको होना चाहिए॥5॥
हम प्रकाश के अंशज, जन-मन अंधकार से रिक्त करें।
हम प्रज्ञा के वंशज, जगमो दुष्चिंतन से मुक्त करें॥
महाकाल के संग ‘श्रेयस्वी’, हमको होना चाहिये।
हम ‘सविता’ के अंश ‘तपस्वी’, हमको होना चाहिये॥6॥
-मंगल विजय