Magazine - Year 1994 - Version 2
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Language: HINDI
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सफलता पुरुषार्थ से अर्जित की जाती है।
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ईसा मसीह जिनके अनुयायी आज दुनिया में एक तिहाई से अधिक है एक बढ़ई के पुत्र थे और कुछ लोगों की यह भी मान्यता है कि वे कुँवारी माँ के गर्भ से उत्पन्न हुए थे विश्व विजय का स्वप्न देखने वाला सिकन्दर यद्यपि एक राजपुत्र था पर आरंभ से ही उसे दुर्दिनों का सामना करना पड़ा था। अपने प्रेमी के प्रणय जाल में अँधी होकर सिकंदर की माँ ने अपने ही पति राजा फिलप की हत्या करवादी थी और सिकन्दर का भी तिरस्कार कर दिया। परंतु परिस्थितियों पर हावी होने का संकल्प इतना मजबूत था कि सिकन्दर ने अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिणत कर दिखाया।
एक मूर्तिकार के बेटे सुकरात जो देखने में बड़ा कुरूप था, ने अपना जीवन सैनिक के रूप में आरंभ किया था। उसकी माँ दाई का काम करती थी। कुछ ही दिनों बाद सुकरात को पितृ स्नेह से वंचित हो जाना पड़ा पर पुरुषार्थ ओर अध्यवसाय के बल पर यह दर्शन शास्त्र के जनक गौरव से मंडित हुआ। एक संपन्न परिवार में जन्म लेने वाला लियोनार्दो जन्म के कुछ ही समय बाद माँ के साथ पिता से अलग हो गया था। कारण था पति पत्नी का मनमुटाव। बड़ी विपन्न परिस्थितियों में माँ ने अपने बेटे का पालन पोषण किया। थोड़ा समझदार होते ही लियोनार्दो आत्म निर्भर हो गया तथा इटली ही नहीं संसार भर में अपनी चित्रकला और शिल्प द्वारा अमर हुआ। उसकी कुछ कलाकृतियाँ अमर हो गयी।
भारतवर्ष को सर्वप्रथम एक राष्ट्र के रूप में संगठित करने वाले चंद्रगुप्त मौर्य ने मुरा नाम की एक दासी से जन्म लिया था ओर गरीबी तथा अभावों के बीच पल कर बड़ा हुआ वह चाणक्य जैसे गुरु का मार्गदर्शन पाकर अपनी प्रतिभा व पुरुषार्थ के बल पर भारत को एक अखण्ड राष्ट्र के रूप में सुदृढ़ बनाने में समर्थ हुआ। प्रसिद्ध विचारक और दार्शनिक कन्फ्यूशियस को जन्म के तीन वर्ष बाद ही पितृ स्नेह से वंचित हो जाना पड़ा। अपने पिता को अभी ठीक प्रकार पहचान भी नहीं पाया था कि वह अनाथ हो गया और छोटी उम्र में ही उसे जीविकोपार्जन के कठोर कर्म में लग जाना पड़ा लेकिन बड़ा बनने की इच्छा उसमें आरंभ से ही थी। यद्यपि 19 वर्ष की आयु में ही उसका विवाह हो गया तथा तीन संतानों भी हो गयी एवं उसे गरीबी और तंगहाली में रहना पड़ा लेकिन पुरुषार्थ और पराक्रम ने शीघ्र ही अपना चमत्कार दिखाया तथा वह अपना लक्ष्य प्राप्त करने में सफल हुआ सफलतम पूर्वार्त्त दार्शनिक कहलाया।
कार्ल मार्क्स यद्यपि गरीब परिवार का था और गरीबी में ही मरा मरते दम तक उसे कई स्थानों पर भटकना पड़ा लेकिन अपनी संकल्पशक्ति व दृढ़ विचारो द्वारा दुनिया के करोड़ों लोगों को अपना भाग्य विधाता आप बना गया। सत्रह बार की उसकी लिखी दास कैपिटेल अठारहवीं बार सही रूप में सामने आयी तथा साम्यवाद की आधार शिला बन गयी।
नूरजहाँ जिसके इशारे पर जहाँगीर अपना राजकाज चलाता था एक निर्वासित ईरानी की बेटी थी जो शरणार्थी बनकर सम्राट अकबर के दरबार में आया था। अपने संगठन कौशल दूरदर्शिता और दाँव पेंचों से सीमित साधनों और थोड़े से लोगों के बल पर औरंगजेब के नाकों चने चबा देने वाले शिवाजी के पिता शाइजी को अपने पिता का किसी प्रकार का सहयोग या आश्रम नहीं मिल पाया मात्र माता की शिक्षा व गुरु का मार्गदर्शन मिला। वे साहस और पराक्रम के बल पर स्वराज्य के लक्ष्य की ओर सफलतापूर्वक बढ़ते गये तथा यवनों से जूझकर एक छत्रपति राष्ट्राध्यक्ष बने। शेक्सपियर जिनकी तुलना संस्कृत के महाकवि कालिदास से की जाती है एक कसाई के बेटे थे। परिवार के निर्वाह हेतु उन्हें भी कुछ समय तक यही धंधा करना पड़ा पर बाद में अपनी अभिनय प्रतिभा तथा साहित्यिक अभिरुचि के विकास द्वारा अंग्रेजी के सर्वश्रेष्ठ कवि तथा नाटककार बन गये।
न्याय और समानता के लिये अपने प्राणों की आहुति दे देने वाले अब्राहमलिंकन को तो अपने जीवन में असफलताओं का मुँह इतनी बार देखना पड़ा कि यदि उनके जीवन के सभी कार्यों का हिसाब लगाया जाय तो वे सौ में से निन्यानवे बार असफल हुए। जिस काम में भी उन्होंने हाथ डाला असफल हुए। रोजमर्रा के निर्वाह हेतु एक दुकान में नौकरी की तो दुकान का दिवाला निकल गया। किसी मित्र से साझीदार की तो दुकान ही डूब गयी। जैसे तैसे वकालत पास की पर वकालत ही नहीं चली। चार बार चुनाव लड़े और हर बार हारें। जिस स्त्री से शादी की उससे जीवन भर नहीं पटी। जीवन में एक बार उनकी महत्वाकाँक्षा पूरी हुई जब वे राष्ट्रपति बने और इस एक अवसर में ही उन्होंने इतनी बड़ी सफलता हासिल कर ली कि वे विश्व इतिहास में अमर हो गये। वह सबसे बड़ी सफलता उनकी जीवन भर की आकाँक्षा भी थी। वह थी काले गोरों का भेद मिटाकर एक विशाल राष्ट्र की स्थापना की।
उन्नीस वर्ष की मार्जास्वली दीवास्कर जो आगे चल कर मैडम क्यूरी के नाम से प्रसिद्ध हुई थी,अपने गुजारी के लिए किसी कुलीन परिवार में नौकरी करती थी। काम था बच्चों की देखभाल करना और घर की साफ सफाई करना। उसी परिवार के एक युवक ने मार्जा से विवाह की आकाँक्षा की तो घर वालो ने अपने बेटे को तो डांटा फटकारा ही मार्जा को भी नौकरी से निकाल दिया। नौकरी छूट जाने के बाद उसने पढ़ना शुरू किया और छुटपुट काम कर अपना गुजारा चलाने लगी। आगे चल कर उसने पीयरे क्यूरी से विवाह कर लिया। क्यूरी दंपत्ति ने विज्ञान की प्रयोगशाला में चार वर्ष तक दिन रात लगे रह कर रेडियम नामक तत्व खोज निकाला जा सभ्यता के आधुनिक विकास में मील का एक पत्थर सिद्ध हुआ एवं उसे नोबुल पुरस्कार मिला।
एक अध्यापक के पुत्र जो अध्यापन द्वारा ही अपना जीवन निर्वाह चलाना चाहते थे बाल गंगाधर तिलक ने देश काल की परिस्थितियों के अनुसार अपना जीवन लक्ष्य निर्धारित किया और स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है के मंत्र दृष्टा बन गये। उनके पिता की मृत्यु तभी हो गयी थी जबकि सोलह वर्ष के थे और इसी अवस्था में उनपर परिवार का दायित्व आ गया, जिसे पूरा करते हुए वे राष्ट्र सेवा क्षेत्र में उतरे। मरने के बाद ही सही वे अपने देशवासियों को जन्म सिद्ध अधिकार प्राप्त कराने में सफल हुए?
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के पिता की मोरोपत चिपणाजी अप्पा के दरबार में कुल पचास रुपये मासिक वेतन मिलता था। लक्ष्मीबाई की माता का देहाँत बचपन में ही हो गया था फिर भी उनके व्यक्तित्व का विकास स्वाभाविक रूप से हुआ और शौर्य पराक्रम तथा साहस के बल पर वे राजरानी के पद पर आसीन हुई।
विख्यात वैज्ञानिक आइन्स्टाइन, जिसने परमाणु शक्ति का उपयोग मानव कल्याण में करने की विद्या खोजी बचपन में मूर्ख और सुस्त थे उसके माता पिता को चिंता होने लगी थी कि यह लड़का अपने जिंदगी कैसे गुजारेगा लेकिन जब उन्होंने प्रगति के पथ बढ़ना आरंभ किया तो सारा संसार चमत्कृत होकर देखता रह गया।
सफलता के लिए अनुकूल परिस्थितियों की बाट नहीं जोही जाती संकल्प शक्ति को जगाया उभारा व विकसित किया जाता है। आशातीत सफलता जीवन के हर क्षेत्र में प्राप्त करने का एक ही राज मार्ग है प्रतिकूलताओं से टकराना अंदर छिपे सामर्थ्य को उभारना।