Magazine - Year 1994 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
अपनों से अपनी बात गुरुसत्ता के प्रति सच्ची श्रद्धाँजलि - प्राणचेतना के सतत् वितरण द्वारा ही संभव अब यह बढ़ा भा
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
हमारी मार्गदर्शक सत्ताएँ जिनके ममत्व के सूत्रों से बँधकर यह विराट् गायत्री परिवार विनिर्मित हुआ ,स्थल काया का बंधन छोड़कर सूक्ष्म-कारण जगत में शून्य सविता में विलीन हो गयी। भाद्रपद पूर्णिमा 1994 11 सितम्बर 1994 को परम वंदनीया माताजी के महाप्रयाज के साथ ही स्थूल रूप से दृश्यमान संरक्षण अब हम सभी के ऊपर से उठ गया , यह सारे गायत्री परिवार के लिए निश्चित हो एक असहाय वेदना देने वाली बेला है। ऐसे में हमारा-आपका मनोबल-आत्मबल बढ़ा रहे, यही सूक्ष्म रूप में सतत् हमारे चारों विद्यमान गुरुसत्ता -ऋषियुग से प्रार्थना है।
अखण्ड-दीपक जो परमपूज्य गुरुदेव द्वारा सन् 1926 में प्रज्वलित किया गया था, आज भी शाँतिकुँज में प्रदीप्त है व आने वाले परिजनों को नूतन प्रेरणा का संचार करता रहता है, हम सभी को नित नये उत्साह बढ़ाने वाले संकल्पों का दायित्व उठाने की क्षमता देता है। उसी का जाग्रत ज्वलन्त, दृश्यमान रूप अखण्ड-ज्योति पत्रिका है जो पूज्यवर द्वारा आज से 57 वर्ष पूर्व स्नेह सान्निध्य से भरा भावनाशीलों का एक परिवार बनाने के लिए आरंभ की गयी थी। वह पत्रिका चेतना सत्ता के प्राण प्रवाह के रूप में सूक्ष्मजगत से ऋषि सत्ताओं की प्रेरणा से निकलती है। इसकी पाठ्य सामग्री के साथ वह जीवन्त ऊर्जा जुड़ी हुई है जो हमें हमारी गुरुसत्ता से प्रतिमास-प्रतिदिन-प्रतिपल अविच्छिन्न रूप से जोड़े रखने का प्रयास करती है। चौबीस चौबीस कक्ष के चौबीस गायत्री महापुरश्चरण जो परमपूज्य गुरुदेव द्वारा 1926 से 1953 तक के समय में तथा 240 करोड़ जप के कुमारी कन्याओं के अनुष्ठान 1975 तक उस अखण्ड दीपक की उपस्थिति में संपन्न हुए है जिसकी तप ऊर्जा में ही अखण्ड ज्योति के माध्यम से करोड़ों व्यक्तियों तक पहुँचकर उनके व्यक्तित्व को बदला उन्हें परिवार समाज व राष्ट्र के नवनिर्माण के लिए प्रेरित किया तथा उनके माध्यम से लोकसेवियों का एक बड़ा परिकर खड़ा करके दिखा दिया। निश्चित ही इस आलोक ऊर्जा वितरण तंत्र में अभी भी किसी प्रकार की कोई कमी नहीं आएगी यह और भी प्रचंड प्रवाह के रूप में जन जन तक पहुँचता रहेगा व उन्हें उल्लास भरा प्रेरणाप्रद मार्गदर्शन देता रहेगा।
अखण्ड ज्योति पत्रिका का दायित्व अपने कंधों पर लेते समय परिजनों से एक ही निवेदन करने का अपना मन है कि अब यही एक मात्र स्नेह सूत्र है जो पाती के रूप में स्वजनों को जोड़ने की प्रक्रिया संपन्न करने का कार्य करेगा। इस पत्रिका को जो मात्र कुछ छपे हुए लेखों का पुलिंदा मात्र नहीं है वरन् स्नेह सलिला शक्तिस्वरूपा माता भगवती देवी जी का सजल श्रद्धा स्वरूप स्फूर्त होता ममत्व तथा प्रातः स्मरणीय वेद मूर्ति तपोनिष्ठ परमपूज्य बनाने वाला क्रांति चेतना से भरे ओज को धारण कर आप तक पहुँचने वाला शक्ति प्रवाह है। इसके पाठकों की संख्या बढ़ाकर अधिकाधिक व्यक्तियों को प्रेरणा स्त्रोत से जोड़ना आप सभी का दायित्व है जो आप पूरा करेंगे ऐसी हमारी आशा है। हम आश्वस्त करना चाहेंगे कि इस ऊर्जा प्रवाह के सतत् आप तक पहुँचने में कभी भी कोई बाधा नहीं आएगी।
बड़े ही संकोच के साथ किंतु इस विश्वास के साथ कि पाठक हमारी दुविधा समझते हैं, हम नये वर्ष से बिना लाभ बिना घाटे के नाम पर अत्यधिक घाटे में प्रकाशित हो रही अखण्ड ज्योति पत्रिका का वार्षिक चन्दा 40 बढ़ाकर 47 की इसे स्वीकार करने का सभी से भावभरा अनुरोध करते हैं। विगत तीन वर्षों से हम सारी प्रतिकूलताओं के बीच इसका प्रकाशन कर रहे थे। कागजों स्याही वृद्धि के साथ अभी अभी घोषित नयी कागज नीति तथा व्यापार कर ने इस बढ़ोत्तरी के लिए हमें विवश कर दिया है। पाठकों को सामग्री और भी श्रेष्ठतम स्तर की बढ़े हुए पृष्ठो के साथ मिलती रहेगी इसकी ओर से वे आश्वस्त रहे प्रारंभ से ही विज्ञापन न छापने की नीति इस पत्रिका की रही है। उस संकल्प को तोड़ने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। ऐसे में सभी पाठकों के कलेवर बढ़ाने के आग्रह जो हमें समय समय पर मिलते रहे को ध्यान में रखते हुए मूल्यवृद्धि बढ़े कलेवर के साथ की जा रही है जो फिर भी घाटे की आँशिक पूर्ति ही करेगी।
परिजनों की श्रद्धा मिशन के आदर्शों व निर्धारणों के प्रति लगन तथा गुरुसत्ता के प्रति समर्पण पर हमारा पूर्ण विश्वास है। हमें पत्रिका के संबंध में यह आश्वासन सतत् आपके पत्रों से मिलता भी रहता है व कई सुझाव भी जिनके माध्यम से इसे कैसे और आकर्षक सरल व सुगम भाषा के साथ तर्क तथ्य प्रमाणों के नूतनतम प्रतिपादनों के साथ प्रस्तुत किया जा सके। आशा है यह क्रम जारी रहेगा।
सतयुग नवयुग के आगमन तक यह प्रेरणा प्रवाह हम सतत् आपकी ओर से चाहते हैं। ऋषि सत्ताएँ जो संदेश आप तक पहुँचाना चाहती है, वह पहुँचाने का दायित्व हमारा है। हम अपना दायित्व निभायेंगे। आप पाठकों की संख्या अधिकाधिक बढ़ाकर अपना कर्तव्य पूरा करे ऐसी हमारी कामना है।
*समाप्त*