• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • ज्ञान का संबल दुखों से दिलाये मुक्ति
    • हिंसा क्या, अहिंसा क्या
    • यह जगत ब्रह्म सत्ता की इच्छा-स्फुरणा मात्र
    • न यहाँ भूत है, न वर्तमान, न भविष्यकाल
    • क्रोधी लक्ष्य से वंचित
    • मीठी नींद (Kahani)
    • मानवी सत्ता विद्युत स्फुल्लिंगों का क्रीड़ा कल्लोल मात्र
    • कहीं ! हमें भी सनकने का रोग तो नहीं?
    • सफलता, असफलता दोनों ही सिखाती है हमें जीवन जीना
    • विधेयात्मक चिंतन (Kahani)
    • महानता का मापदंड क्या हो?
    • Quotation
    • संस्कृति है, सौंदर्य की उपासना
    • द्वैत की समाप्ति, अद्वैत की प्राप्ति
    • जब सभी कामनाएँ चुक जाएँ
    • दूसरों पर निर्भर रहने में खतरा है (Kahani)
    • अब बारी देवत्व के विकास की है
    • अपने समय की सबसे बड़ी आवश्यकता – नारी जागरण
    • समग्र परिवर्तन की बेला आ पहुंची
    • भावनात्मक परिष्कार ही एकमात्र समाधान
    • सफलता की कुँजी है – संकल्प शक्ति
    • अवसर को पहचान लेने की औचित्य भरी सूझ-बूझ
    • तालबद्ध; सुनियोजित जीवनक्रम
    • मातृ-वंदना
    • मातृ-वंदना (Kavita)
    • मातृ सत्ता से
    • मातृ सत्ता से (Kavita)
    • सही ढंग से साँस लें- नीरोग बनें
    • परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी - कैसे ही आध्यात्मिक कायाकल्प?
    • विशिष्ट सामयिक लेख - - महान याचक की महान याचना
    • Quotation
    • संपादकीय - अपनी से अपनी बात- - सशक्त शक्ति उद्गम से जुड़ने का ठीक यही समय
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • ज्ञान का संबल दुखों से दिलाये मुक्ति
    • हिंसा क्या, अहिंसा क्या
    • यह जगत ब्रह्म सत्ता की इच्छा-स्फुरणा मात्र
    • न यहाँ भूत है, न वर्तमान, न भविष्यकाल
    • क्रोधी लक्ष्य से वंचित
    • मीठी नींद (Kahani)
    • मानवी सत्ता विद्युत स्फुल्लिंगों का क्रीड़ा कल्लोल मात्र
    • कहीं ! हमें भी सनकने का रोग तो नहीं?
    • सफलता, असफलता दोनों ही सिखाती है हमें जीवन जीना
    • विधेयात्मक चिंतन (Kahani)
    • महानता का मापदंड क्या हो?
    • Quotation
    • संस्कृति है, सौंदर्य की उपासना
    • द्वैत की समाप्ति, अद्वैत की प्राप्ति
    • जब सभी कामनाएँ चुक जाएँ
    • दूसरों पर निर्भर रहने में खतरा है (Kahani)
    • अब बारी देवत्व के विकास की है
    • अपने समय की सबसे बड़ी आवश्यकता – नारी जागरण
    • समग्र परिवर्तन की बेला आ पहुंची
    • भावनात्मक परिष्कार ही एकमात्र समाधान
    • सफलता की कुँजी है – संकल्प शक्ति
    • अवसर को पहचान लेने की औचित्य भरी सूझ-बूझ
    • तालबद्ध; सुनियोजित जीवनक्रम
    • मातृ-वंदना
    • मातृ-वंदना (Kavita)
    • मातृ सत्ता से
    • मातृ सत्ता से (Kavita)
    • सही ढंग से साँस लें- नीरोग बनें
    • परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी - कैसे ही आध्यात्मिक कायाकल्प?
    • विशिष्ट सामयिक लेख - - महान याचक की महान याचना
    • Quotation
    • संपादकीय - अपनी से अपनी बात- - सशक्त शक्ति उद्गम से जुड़ने का ठीक यही समय
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1994 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


महानता का मापदंड क्या हो?

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 10 12 Last
प्रतिस्पर्धा मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। यह गुण न हो तो विकास की संभावना ही समाप्त हो जायेगी। पिछले समय की तुलना में इन दिनों संसार की जो असाधारण प्रगति हुई है वह इसी का परिणाम हे हर राश्ट्र और व्यक्ति क्षमता में योग्यता में बुद्धि और गुणों में दूसरों से आगे निकल जाना चाहतेहै जिसे सर्वश्रेष्ठ कहा जा सके। यह स्वस्थ होड़ है। विकृत वह तब होती है जब इस दौड़ में बढ़ी चढ़ी महत्वाकांक्षाएं सम्मिलित होने लगती है। पिछले दिनों यहाँ हुआ। चित्र विचित्र अजूबे खड़े करने की शृंखला ने एक ऐसी परंपरा को जन्म दिया जो न सिर्फ बहुमूल्य समय को बरबाद करती रही वरन् इसने संपदा का भी बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया।

ऐसे प्रथम अजूबे के संबंध में इतिहासकारों का कहना है कि रोड्स की विशालकाय प्रतिमा अब तक की प्राचीनतम ज्ञात अचंभा है। यह भव्य विग्रह कोलोसस आफ रोड्स के नाम से प्रसिद्ध था ईसा पूर्व 292 में इसका निर्माण शुरू हुआ और तैयार होने में कुल 12 वर्ष लगे। मूर्ति जब बनकर खड़ी हुई तो इसकी ऊंचाई 105 फुट थी। दुर्भाग्यवश इसकी यह विशालता ही विनाश का कारण बनी कहते हैं 224 ईसा पूर्व उस द्वीप में एक भयंकर भूचाल आया था जिसमें काँसे की बनी यह प्रतिमा बहुसंख्य भव्य भवनों को नष्ट कर गिर कर चूर चूर हो गई। इसके बाद के 900 वर्षों तक यह भग्न विग्रह और उसके खंड यथावत् पड़े रहे। सन् 672 में इन्हें व्यापारियों के हाथ बेच दिया गया।

रोमन सम्राट नीरो से उस प्रतिमा की प्रतिष्ठा न सुनी गई। उसने उससे विशाल विग्रह बनाने का निर्णय लिया। इस निर्मित तत्कालीन समय के महान रोमन मूर्तिकार जेनोडोरस को बुलाया और 106 फुट ऊंची अपनी ही एक प्रतिकृति बनाने का आदेश दिया। इसके पीछे सम्राट के दो स्वार्थ थे प्रथम तो जो यश मूर्ति निर्माण के कारण प्राचीन समय में रोड्स द्वीप को मिल गया था उसको छीनकर रोमन राज्य के नाम कर लेना और द्वितीय रोमनों के दिलों में अपनी महानता की छाप अंकित कर प्रतिमा के माध्यम से उसे युगों तक बनाये रखना पर नीरो का दुर्भाग्य कहना चाहिये कि वह अपने प्रयास में सफल न हो सका। सन् 68 में उसकी मृत्यु के उपराँत मूर्ति को भगवान अपोलो को समर्पित कर दिया गया। अति आरंभ की यह स्पर्धा यही रुकी नहीं अपितु आगे चली और पिछले से भी अद्भुत संरचनाएं बाद में खड़ी की। इनमें से एक है न्यूयार्क बंदरगाह में स्थित दि स्टेच्यू आफ लिबर्टी। इस नारी प्रतिमा की ऊंचाई पीठिका के आधार तल से लेकर मशाल की लपटों के शीर्ष तक 305 फुट है। फ्राँसीसी शिल्पकाल फ्रेडरिक बारथोल्डी की देख−रेख में यह बनी और सन् 1886 में अमेरिकियों को भेंट स्वरूप प्रदान कर दी गई। अकेली मूर्ति की ऊंचाई 151 फुट 1 इंच है जलो लगभग इतने ही ऊंचे आधार पर स्थित है। ग्रेनाइट और सीमेंट से बने उक्त आधार पर विग्रह का लौह ढाँचा खड़ा है जिसके ऊपर ताम्बे की चादरें मढ़ कर महिला की आकृति गढ़ी गई। मूर्ति का शरीर भीतर से बिल्कुल खोखला है। इस पोले भाग में ऊपर चढ़ने के लिये सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। जिनके सहारे कोई भी व्यक्ति नारी मूर्ति के सिर और मशाल में बनी दर्शक दीर्घाओं तक पहुँच कर समुद्र के विहंगम दृश्य का अवलोकन कर सकता है। इस निर्माण में कुल 2 लाख 50 हजार की लागत आयी बतायी जाती है।

सोवियत संघ के बिखराव से पूर्व तक अमरीका और रूस एक दूसरे के प्रबल प्रतिद्वन्द्वी थे केवल आयुध के क्षेत्र में ही नहीं वरन् उन उन सभी क्षेत्रों में जिसमें कोई एक दूसरे से आगे निकल जाना चाहता और अपना वर्चस्व उस दिशा में स्थापित कर अनुपम बनने की आकाँक्षा रखता। यही कारण है कि जब स्टेच्यू आफ लिबर्टी की प्रतिष्ठा अमरीका में हुई तब रूसी लोग एक प्रकार से अपमानित अनुभव करने लगे। उनने उससे भी वृहद संरचना गढ़ने की योजना बनायी, जिसके अंतर्गत मदरलैंड नामक विश्व की सर्वाधिक ऊंची कृति कर सृजन हुआ। 1967 में बन कर तैयार हुई इस नारी मूर्ति को बोल्गोग्राद के समीप मामायेव की पहाड़ियों में स्थापित किया गया। यों कहने को तो इसको स्टालिनग्राद युद्ध की स्मृति स्वरूप बनाया गया बताया जाता है पर इसके पीछे की मूलभावना उस रिकार्ड को अपने नाम करा लेना था जिसका श्रेयाधिकारी अब तक प्रतिपक्षी बने हुये थे। मूर्ति अपने दाहिने हाथ में एक बड़ी तलवार लिये खड़ी है। तलवार के ऊपरी सिरे से लेकर प्रतिमा के आधार तल तक कुल लम्बाई 270 फुट ज्यादा हैं।

इसके जवाब में अमरीकी वास्तुकार फेलिक्स डी वेल्टन ने उससे भी ऊंची रोड्स आफ क्लोसस की अनुकृति बनाने का कार्यारंभ किया जो अभी भी अधूरी है। इसकी समग्र ऊंचाई 308 फुट होगी जो मूल रचाना से 203 फुट अधिक है। इसके अतिरिक्त और भी कई बड़े कार्य हाथ में लिये गये। एक ऐसा ही कार्य यूनाइटेड डाउटर्स आफ दि कनफेडरेसी के तत्वावधान में आरम्भ हुआ। शिल्पकार थे गटजन बोरगलम। योजनानुसार जाजिया के स्टोन माउण्टेन पर जेनरल राबर्ट ई. ली का 650 फुट का विराट् चेहरा उत्कीर्ण करना था। आठ वर्षों के कठिन श्रम के बाद यह कार्य पूरा हुआ। इसके उपराँत बोरगलम दूसरे कार्य में जुट गये। यह था दक्षिणी डकोटा में ब्लैक हिल्स के माउण्ट रुषमोर की वृहद चट्टानों पर अमरीका के चार महान राष्ट्रपतियों के चेहरे गढ़ना। कई वर्षों की मेहनत के पश्चात उनने वाशिंगटन लिंकन जेफरसन एवं रुजवेल्ट के विशाल चेहरे विनिर्मित किये। प्रत्येक की लम्बाई ठुड्डी से शीर्ष तक 6 फुट है।

ठन निर्माणों से कला कौशल तो प्रकट होता है पर वह व्यक्तित्व और राश्ट्र की महानता प्रदर्शित करते ऐसा नहीं कहा जा सकता। व्यक्तित्व की महानता चारित्रिक और नैतिक श्रेष्ठता से ही आ सकती है स्थूल रचना से नहीं। रचना से जो प्रवृत्ति पनपती है उसे प्रतिद्वन्द्विता कहना चाहिये। यों यह स्वयं में बुरी नहीं। यदि इसका इस्तेमाल जीवन निर्माण के क्षेत्र में हो तो निश्चय ही उससे ऐसा कुछ बना जा सकता है जिसे श्रेष्ठ और सुसंस्कृत कहा जा सके पर इन दिनों तो सर्वत्र इसका हेय पक्ष ही दृष्टिगोचर हो रहा है। जब उत्कृष्टता की उपेक्षा होने लगे और उसकी जगह निकृष्टता अपनायी जाने लगे तो वैर विरोध स्वाभाविक है। संप्रति यही हो रहा है। आज यदि समाज में असंतोष बढ़ा है तो इसका एक प्रमुख कारण होड़ के वाँछनीय पक्ष को न अपनाकर उसे अपनाया जाता जिसे अवाँछनीय घोषित किया गया है। प्राचीन समय में ऐसी बात नहीं थी। तब इसका सृजनात्मक पहलू ही ग्राहय था। जो व्यक्ति अपनी चारित्रिक श्रेष्ठता के कारण उदात्त स्तर के आध्यात्मिक कहे जाते थे। लोग उनका अनुकरण कर उनसे भी उच्चस्तरीय बन जाने की कोशिश करते। यही कारण है कि तब के समाज में चारों और शांति और समृद्धि व्याप्त थी। जिन्हें भौतिक प्रगति करनी होती और कला में क्षमता में योग्यता में विकास करना अभीष्ट होता वे उन उन क्षेत्रों में श्रम को द्विगुणित कर देते। इससे जो प्रतिभा पैदा होती उससे वे अद्वितीयता प्राप्त कर लेते। दोनों प्रकार की उन्नति के तब यही विधि विधान थे।

आज आत्मिक क्षेत्र में स्पर्धा और उसके द्वारा उन्नति तो प्रायः समाप्त ही हो चुकी है जीवित है तो एकदम भौतिक बन कर। वह स्वस्थ होती तो भी संतोश की बात थी किंतु जिससे बैर विद्वेष पनपता और संघर्ष का खतरा बढ़ता हो उसे प्रतिस्पर्धा की तुलना में ईर्ष्या कहना ज्यादा उचित होगा। आजकल के आँतरिक विग्रहों और ग्रहयुद्धों में प्रायः यही हेतु कारणभूत होता है। वर्ग जाति धर्म लिंग क्षेत्र के नाम पर जो विवाद इन दिनों संसार भर में चल रहे है उनके पीछे का मूल निमित्त यदि तलाश किया जाय तो पायेंगे कि उनमें परस्पर ऊंच नीच अमीर गरीब, बड़े-छोटे की ऐसी खाइयों पनपी हुई है कि एक वर्ग दूसरे पर अपना वर्चस्व कायम कर लेना चाहता है, जबकि दूसरा सिर्फ इसलिये उसका विरोध करता है कि कमजोर व गरीब होने मात्र से ही किसी को किसी पर शासन और शोषण करने का अधिकार तो नहीं मिल जाना चाहिये। वह प्रतिपक्षी का जग कर विरोध करता है जबकि दूसरा पक्ष ऐसा करना अपना अधिकार समझता है। बस यही प्रतिद्वन्द्विता खूनी संघर्ष का रूप धारण कर लेती है। आये दिन ऐसी लड़ाइयों में न जाने कितनी मौतें होती और संपत्ति की होली जलती है कुछ कहा नहीं जा सकता।

अपने को बड़ा सिद्ध करने यशस्वी बनाने, प्रतिष्ठित होने के लिये जब तक उद्यम लिप्सा इस दौड़ में शामिल रहेगी तब तक चारों ओर ऐसे ही दृश्य दिखाई पड़ेंगे। सच तो यह है कि आज तक इनसे न तो महानता अर्जित की गई है न आगे की जा सकेगी। उसे तो महान वन कर ही हस्तगत की जा सकती है हम सद्गुणों को सत्प्रवृत्तियों को उच्चादर्शों को अपनायें और दूसरों से अपने को श्रेष्ठ बना लेने की स्वस्थ स्पर्धा करें तभी सही अर्थों में अभिवंदनीय बन सकेंगे, अन्यथा केवल अजूबे खड़े कर देने मात्र से कोई अभिवंदनीय नहीं बनता। वह संरचना भूगर्भीय हलचलों के कारण कब ढह जायेगी और अपने साथ निर्माता का नाम कब मिटा देगी कहा नहीं जा सकता। इसलिये उत्तम यही है कि हम अच्छाइयों अपनाकर उत्कृष्टतक बनें। चिरस्मरणीय बनने का यही एकमात्र तरीका है महापुरुष इसे ही अपनाते और अविस्मरणीय बनते हैं।

First 10 12 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • ज्ञान का संबल दुखों से दिलाये मुक्ति
  • हिंसा क्या, अहिंसा क्या
  • यह जगत ब्रह्म सत्ता की इच्छा-स्फुरणा मात्र
  • न यहाँ भूत है, न वर्तमान, न भविष्यकाल
  • क्रोधी लक्ष्य से वंचित
  • मीठी नींद (Kahani)
  • मानवी सत्ता विद्युत स्फुल्लिंगों का क्रीड़ा कल्लोल मात्र
  • कहीं ! हमें भी सनकने का रोग तो नहीं?
  • सफलता, असफलता दोनों ही सिखाती है हमें जीवन जीना
  • विधेयात्मक चिंतन (Kahani)
  • महानता का मापदंड क्या हो?
  • Quotation
  • संस्कृति है, सौंदर्य की उपासना
  • द्वैत की समाप्ति, अद्वैत की प्राप्ति
  • जब सभी कामनाएँ चुक जाएँ
  • दूसरों पर निर्भर रहने में खतरा है (Kahani)
  • अब बारी देवत्व के विकास की है
  • अपने समय की सबसे बड़ी आवश्यकता – नारी जागरण
  • समग्र परिवर्तन की बेला आ पहुंची
  • भावनात्मक परिष्कार ही एकमात्र समाधान
  • सफलता की कुँजी है – संकल्प शक्ति
  • अवसर को पहचान लेने की औचित्य भरी सूझ-बूझ
  • तालबद्ध; सुनियोजित जीवनक्रम
  • मातृ-वंदना
  • मातृ-वंदना (Kavita)
  • मातृ सत्ता से
  • मातृ सत्ता से (Kavita)
  • सही ढंग से साँस लें- नीरोग बनें
  • परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी - कैसे ही आध्यात्मिक कायाकल्प?
  • विशिष्ट सामयिक लेख - - महान याचक की महान याचना
  • Quotation
  • संपादकीय - अपनी से अपनी बात- - सशक्त शक्ति उद्गम से जुड़ने का ठीक यही समय
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj