Magazine - Year 1996 - Version 2
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Language: HINDI
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कलाकार की पहचान
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बादशाह बेला बाग में अपने वजीर टोडरमल के साथ टहल रहे थे। जब कभी बादशाह किसी खास सोच में होते तो वह गुलाब कल कली तोड़कर सूँघने लगते। आज भी जब उन्होंने ऐसा किया तो उनका वजीर टोटरमल भाँप गया कि शहंशाह जरूर किसी खास उधेड़बुन में हैं। उसने झट पूछा- हुजूर अपने मन की बात बताएँ? शायद मैं आपकी मदद कर सकूँ।
वजीर की बात पर शहंशाह के चेहरे पर गहराई तनाव की लकीरें मिटने लगीं और हलकी-सी मुसकान के साथ संगमरमर के तख्त पर बैठ गए। उन्होंने कहा, “हाँ मैं यही सोच रहा था कि अपने पास सब कुछ है, पर एक अच्छा कलाकार नहीं है। सोचता हूँ, एक कलाकार का चुनाव करवा लूँ।”
“क्यों नहीं, क्यों नहीं, आप आज्ञा दें कलाकार का चुनाव फौरन हो जाएगा।” वजीर ने विनम्रता से जवाब दिया।
बादशाह जोर से हँसे फिर गम्भीर होकर बोले, “कलाकार का चुनाव मैं स्वयं करूंगा। मैं और किसी को यह जिम्मेदारी नहीं सौंपूँगा।”
बादशाह की यह बात टोडरमल को काँटे की तरह चुभ गयी। उसे लगा शायद उस पर से बादशाह का विश्वास उठ गया है। उसने कुछ न कहा। आज्ञा लेकर चुपचाप चला गया।
शीघ्र ही राज्यभर में कलाकार के चुनाव के लिए ढिंढोरा पिटवा दिया गया। शीघ्र ही देशभर के कलाकार अपनी-अपनी कलाकृतियाँ लेकर आने लगे। महल में कलाकारों का ताँता लग गया।
टोडरमल ने सब कलाकारों की कलाकृतियाँ महल के एक कमरे में रख दीं। फिर कलाकार विदा कर दिए गए, इसके बाद वजीर ने बादशाह के पास पहुँचकर उनसे कलाकृतियाँ देखने का आग्रह किया।
बादशाह महल के उस कमरे में जा पहुँचे, जहाँ सभी कलाकृतियाँ रखी गयी थीं। कलाकृतियों का इतना बड़ा ढेर देखकर वह म नहीं मन बड़े प्रसन्न हुए, उन्होंने कहा, अपने राज्य में इतने कलाकार हैं, यह मुझे मालुम ही न था। इतना कहकर वह कलाकृतियाँ देखने के लिए झुके।
नहीं हुजूर, आप बैठ जाएँ। मैं आपको कलाकार का एक-एक नमूना दिखाता जाऊँगा। वजीर के लहजे में विनम्रता का भाव था।
शहंशाह एक सिंहासन पर बैठ गये। वजीर ने कला के नमूने पेश करने शुरू किये, वह हर एक नमूने को देखने के साथ वाह-वाह करते जाते। हाथ में इन नमूनों को लेते-लेते उनके हाथ थक गये। टोडरमल ने यह बात ताड़ ली। वह बोला, “जनाब ए आला, अभी सिर्फ 436 कृतियाँ और हैं। कल-परसों देख लें।
शहंशाह को अपनी गलती महसूस हुई। बोले, नहीं टोडरमल वह मेरी गलती थी। कलाकार की परख तो तुम ही कर सकते हो और वह उठ खड़े हुए। बादशाह के जाने के बाद टोडरमल ने कला के सारे नमूने कलाकारों को लौटाने का आदेश दिया। उसने अगले दिन सब कलाकारों को महल में आने का निमन्त्रण दिया।
डसने कहा, ‘कलाकारों की परख एक दिन में निश्चित समय में उनकी बनाई रचना से होगी। बनाने का समय भी महल के सामने खाली पड़ी जमीन पर होगा। यह घोषणा सुनकर कई कलाकार मन ही मन चिढ़ गए। उधर टोडरमल ने कलाकारों की सुविधा के लिए रातों रात व्यवस्था करवाई। अगली सुबह वह स्वयं कलाकारों के स्वागत के लिए वहाँ पहुँचा।
पर राज्य में इतने कलाकार होने पर भी केवल तीन कलाकार ही चुनाव में भाग लेने आए। उसने उन तीनों कलाकारों का गर्मजोशी से स्वागत किया और पहले से तैयार किए हुए अलग-अलग तीन खेमों में उन्हें अपनी रचनाएँ तैयार करने का आदेश दिया। तीनों कलाकार दिनभर अपनी-अपनी रचनाएँ बनाने में लगे रहे। शाम को कलाकृतियाँ पूरी होने पर वे वजीर के पास गए। वजीर ने बादशाह तक खबर पहुँचाई तो वह उसी समय कलाकृतियाँ देखने आ गए।
पहला कलाकार बादशाह और वजीर को लेकर अपने खेमे में गया। खेमे में चौकी पर परदे से ढका एक चित्र रखा था। कलाकार ने चित्र पर ढका परदा हटाया। चमचमाते रंगों से सुशोभित बादशाह का चित्र सामने था। वजीर चुप रहा, पर बादशाह अपने चित्र की खूबसूरती पर मोहित हो गए।
बेमिसाल, लाजवाब, फनकार, शहंशाह चित्र उठाकर बाहर रोशनी में आ गए। धूप में चित्र के रंग और भी चमक उठे।
वजीर बादशाह को लेकर दूसरे कलाकार के खेमे में पहुँचा। दूसरा कलाकार खेमे के दरवाजे पर उनकी अगवानी के लिए खड़ा था- वह उन्हें लेकर खेमे में घुसा। घुसते ही बादशाह की नजर एक तरफ रखी मेज पर गई। चौकी पर तश्तरी में ताजे अंगूरों के दो गुच्छे रखे थे। सबकी दृष्टि एक साथ अंगूरों पर पड़ी। सबके मुँह में पानी आ गया। इतने बढ़िया अंगूर देखकर बादशाह लपककर बोले-क्या ये अंगूर हमारे लिए हैं कलाकार?
जी बादशाह सलामत।
बस बादशाह ने गुच्छे में से एक अंगूर का दाना तोड़ा और मुँह में डाल लिया, मुँह में डालते ही मिट्टी का अंगूर घुल गया। वह थू-थू करने लगे, पर मिट्टी थूकते हुए भी वह कलाकार की कलाकृति से बेहद प्रभावित थे।
अब तीसरे की बारी थी। तीसरा खेमा पेड़ों के झुरमुट की ओर था। उस ओर पहुँचते ही सबने देखा पेड़ों की आड़ में एक घायल शेर लेटा है। एकाएक सभी सहम गये। अभी वह आगे बढ़ते कि वजीर ने कुछ इशारा किया, सिपाही राजमहल के पालतू शेर को ले आए। पालते शेर एकबारगी गुर्राया और एक छलाँग में घायल शेर के पास पहुँच गया। लेकिन यह क्या वह तो घायल शेर के सिर पर अपना सिर टिकाकर आँसू बहा रहा था। बड़ा मार्मिक दृश्य था। सभी भावुक हो उठे।
बादशाह ने वजीर की ओर देखते हुए पूछा, यह शेर कैसे आया, उसका शिकार किसने किया? वजीर ने मुसकराते हुए तीसरे कलाकार की ओर इशारा किया। कलाकार विनम्रता से बोला- हुजूर यह घायल शेर मिट्टी का है। बस यह मार्मिक दृश्य एक कलाकृति है।
उसके इस कथन के साथ ही श्रेष्ठ कलाकार का चुनाव हो गया था। बादशाह ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा- श्रेष्ठ कलाकार वही है जो अपनी कला से संवेदनाओं को जाग्रत कर दे। उससे प्रेम, सहानुभूति, आत्मीयता पैदा करे। तुम्हारी कला ने शेर जैसे हिंस्र जानवर के मन में भी संवेदना जाग्रत कर दी। निश्चित ही तुम श्रेष्ठ कलाकार हो।