Magazine - Year 1998 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
अपनों से अपनी बात-3 - नई भूमि में क्या बनने जा रहा है, क्या संकल्पना है?
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
नवसृजन निश्चित ही बड़ा कठिन कार्य है। जब भी कोई कार्य नए सिरे से आरंभ कर उसे पूरा अंजाम दिया जाता है, अगणित साधन उसमें झोंक देने पड़ते हैं- प्रतिभाशाली विशेषज्ञों की मदद लेनी पड़ती है-सभी से सहयोग की अपील की जाती है। एक विशिष्ट उद्देश्य को लेकर चली युगनिर्माण मिशन की यात्रा चलते-चलते एक ऐसे मोड़ पर आ पहुँची है कि अब ‘करो या मारो’ की स्थिति सामने आ गयी है। गिरते नैतिक मूल्य-शिक्षण-संस्थाओं में संव्याप्त भ्रष्टाचार, समाज में फैला लिंग-भेद का विष, प्रदूषण से लेकर विभिन्न कारणों से बढ़ती जा रही अशक्ति, महामारियों की श्रृंखला हम सबसे अपेक्षा रखती हैं कि यदि मानवजाति को बचाना हो तो इसके लिए परिष्कृत धर्मतन्त्र को ही आगे आकर मार्गदर्शन करना होगा।
गायत्री तपोभूमि मथुरा, शान्तिकुञ्ज हरिद्वार, ब्रह्मवर्चस शोधसंस्थान के रूप में युगऋषि द्वारा की गयी तीन स्थापनाएँ इसी लक्ष्य के निमित्त थीं कि जनता को मात्र सरकार का मुँह न ताकना पड़े। स्वावलम्बन प्रधान अनौपचारिक शिक्षा का प्रचलन, सुसंस्कारी समाज के निर्माण से तथा योग-मंत्र विज्ञान से लेकर यज्ञोपैथी, आयुर्वेद को विद्या का पुनर्जीवन हो-सभी को मार्गदर्शन इन त्रिविध संस्थाओं से मिले, यही परमपूज्य गुरुदेव का लक्ष्य रहा है। सारा विगत का अनुशीलन-पर्यवेक्षण बताता है कि इस कसौटी पर निश्चित ही तीनों संस्थाएँ खरी उतरी हैं। अपने प्रयास-पुरुषार्थ में पूज्यवर के मार्गदर्शन में सक्रिय इन संस्थानों ने कोई कमी न रख ज्ञानयज्ञ विस्तार के माध्यम से युगसंजीवनी घर-घर पहुँचाई है-ऑडियो-वीडियो कैसेट द्वारा जन चेतना जगाई है एवं प्रत्येक को प्रगतिशील चिन्तन के लिए विवश किया है।
अब छह अरब की जनसंख्या के लिए नूतन निर्धारण करने की स्थिति आ गयी है। समूचे विश्व को दिशा देनी है तो उसके लिए प्रस्तुत स्थान, साधन स्वल्प ही पड़ते है। सूक्ष्म रूप में कण-कण में विद्यमान परमपूज्य गुरुदेव की सत्ता की अनुकम्पा से शान्तिकुञ्ज के समीप ही वर्तमान शान्तिकुञ्ज से ढाई गुना बड़ा स्थान उपलब्ध हो गया है। इसकी विधिवत् रजिस्ट्री आदि संपन्न होकर महाशिवरात्रि की पावनवेला में वरुण देवता के अभिसिंचन के मध्य भूमिपूजन महाकाल का पूजन भी संपन्न हो चुका। प्रायः 11 लाख वर्ग फुट (131 बीघा) में फैली यह भूमि हरिद्वार-ऋषिकेश मार्ग से सटी हुई वर्तमान शान्तिकुञ्ज से मात्र 2 फर्लांग की दूरी पर है। यहाँ जो भी कुछ निर्माण किया जाना है उसके संबंध में विस्तार से परिजन जून, 98 में नवसृजन अंक में जानकारी अर्जित कर सकेंगे, यहाँ तो उसका एक खाका मात्र खींचा जा रहा है ताकि तब तक अपने सुझाव, साधन, समय एवं साधना का नियोजन सोच सके।
भारतीय संस्कृति के विश्वविद्यालय एक डीम्ड खुले यूनिवर्सिटी कैंपस के रूप में इसे विनिर्मित करने का मन है। आर्कटिक्टों, इंजीनियर्स, बिल्डर, प्लानर स्तर के विशेषज्ञों, प्रोजेक्ट निर्माताओं सर्वेयर्स, आयुर्वेद के विशेषज्ञ स्तर के चिकित्सकों शिक्षाविज्ञान से जुड़े विद्या-विशेषज्ञों को इसकी प्लानिंग के लिए 11,12 अप्रैल एवं 18,19 अप्रैल, 1998 की अवधि ( दोनों शनिवार-रविवार ) में शान्तिकुञ्ज आमंत्रित किया गया है। इनसे व्यापक विचार-विमर्श किया जाएगा। सभी पाठक-परिजन इस बीच कम से कम चिंतन करके अपने सुझाव-परामर्श तो भेज ही सकते हैं।
आज सार्थक-संस्कार प्रधान शिक्षा प्रदान करने के लिए शिक्षकों के प्रशिक्षण की अनिवार्य आवश्यकता मालूम पड़ती है। लगता है कि धर्मतंत्र के पुरोधाओं को ही अब शिक्षानीति भी बनानी पड़ेगी। नैतिक शिक्षा में गुंथने वाले पाठ्यक्रम भी बनाने पड़ेंगे ताकि देश भर के आदर्श समझे जाने वाले विद्यालयों-शिशुमंदिरों-शक्तिपीठों से यह तंत्र गतिशील हो सके। यह शिक्षा नौकरी प्रधान न होकर अनौपचारिक हो, यह सोच पूज्यवर की रही है। ऐसा चिन्तन करने वाले विशेषज्ञ यहाँ आमंत्रित किए गए हैं। चिकित्सा विज्ञान भी पुनर्जीवन माँगता है। आयुर्वेद की विद्या दिनोंदिन लोकप्रियता के शिखर पर चढ़ रही है, किंतु इसे पुनर्जीवित करने वाला जो तंत्र बनना चाहिए था, वह नहीं बन पाया हैं। आयुर्वेद की एक रिसर्च विंग सहित वैकल्पिक चिकित्सा से जुड़े सभी तंत्रों की नयी भूमि में प्राण-प्रतिष्ठा की जाएगी वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में अधिक उपकरणों द्वारा जब निर्धारण प्रस्तुत किए जाएँगे। सभी मानने को बरबस सहमत होंगे। एक विशाल वनौषधि उद्यान भी यहाँ लगाया जाएगा।
इसके अतिरिक्त प्रवासी भारतीयों के रहने व प्रशिक्षण हेतु एक पूरी विंग यहाँ बनायी जानी है। प्रवासी परिजनों के बच्चों के प्रशिक्षण के लिए पाठ्यक्रम तैयार किया जा रहा है। वे छह माह यहाँ रहकर अपने देश जाएँगे तो निश्चित ही देवसंस्कृति के संदेशवाहक बनेंगे। प्रचारकों का, हिन्दुत्व का, भारतीय संस्कृति का विज्ञानसम्मत प्रचार ही नहीं-क्षेत्र का नवनिर्माण करने वाले लोकनायकों का प्रशिक्षण भी यहाँ किया जाएगा, जो छह माह से एक वर्ष की अवधि का होगा। इससे निश्चित ही एक बड़ा अभाव दूर होगा, जिसके चलते देश बिखराव-खण्डन की ओर जाता दिखाई दे रहा है। एक शब्द में नालन्दा-तक्षशिला स्तर के प्रशिक्षण महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों के निर्माण की अभिनव योजना, सूक्ष्म जगत से अवतरित हुई है। विस्तार से जून, 98 अंक में पढ़े, किन्तु सोचना तो अभी से आरम्भ कर ही दें।
*समाप्त*