Magazine - Year 1998 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
अक्का महादेवी (Kahani)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
एक बार संत नामदेव से किसी व्यक्ति ने पूछा-महात्मा जी आपका जीवन कितना सादा है, आप कितने उच्च विचार रखते हैं। उक्त सज्जन नामदेव से बात कर ही रहे थे कि उन्होंने कहा-भाई, अन्य बातें छोड़ो, मुझे अभी-अभी तुम्हारे बारे में एक बात मालूम हुई, वह यह कि आज से ठीक सातवें दिन तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी। नामदेव की यह बात सुनकर उक्त व्यक्ति घबरा गया, मृत्यु और वह भी केवल 168 घंटे में, भला नामदेव की वाणी झूठी कैसे हो सकती थी। वह व्यक्ति तुरन्त घर आया और अपने घर वालों से नामदेव की उक्त बात कही, सुनकर सभी बड़े व्याकुल हुए। उस व्यक्ति ने बिस्तर पकड़ लिया और जैसे-जैसे एक-एक दिन बीतता उसे मृत्यु निकट आती हुई दृष्टिगोचर होने लगी, अन्त में सातवें दिन नामदेव उस आदमी से मिलने आये। उन्होंने पूछा-कैसी तबियत है? वह बोला-अब तो कुछ ही घण्टों का मेहमान हूँ। नामदेव बोले-इन सात दिनों में कितना पाप कमाया? वह बोला-पाप करने की कौन कहे, पाप करने के विचार तक मेरे हृदय में न आये। नामदेव शांति से बोले-बस हमारा जीवन भी इसी प्रकार है।
आशय यह है कि यदि हम मरण को सदैव स्मरण करें तो पापकर्मों की ओर हमारी चित्तवृत्ति नहीं बढ़ेगी। इस प्रकार इस मृत्यु रूपी अंकुश के लगे रहने से हम दिनों-दिन अच्छे कार्यों की ओर बढ़ते रहते हैं। मृत्यु को याद रखने से कुमार्ग पर जाने से रोक लगती है।
कर्नाटक के छोटे-से गाँव उडुपी में नैष्ठिक ब्राह्मण के यहाँ एकमात्र सन्तान कन्या हुई। सभी उन ब्राह्मण श्री निर्मल पर दबाव डालने लगे कि दूसरा विवाह कर लें, शायद उससे पुत्र प्राप्त हो जाय, वंश चले। श्री निर्मल ने दृढ़ता से इसे अस्वीकार कर दिया। कन्या का नाम था- अक्का महादेवी। उन दिनों कन्याओं को शास्त्रज्ञान के अयोग्य माना जाने लगा था। श्री निर्मल ने अक्का को सभी शास्त्रों का अध्ययन कराया, ज्ञान दिया एवं आध्यात्मिक दिशा दी। रूढ़िवादी लो निर्मल का उपहास करते, कहते- “क्या लड़की से वंश चलेगा?” शिक्षा और वातावरण के प्रभाव से अक्का महादेवी का व्यक्तित्व विकसित होता गया। वे एक महान तपस्विनी, आदर्शवादी विदुषी के रूप में प्रसिद्ध हुई और पिता का नाम रोशन कर दिया। आज भी लोग श्री निर्मल का नाम अमर अक्का महादेवी के पिता के रूप में जानते हैं।
रमण महर्षि के आश्रम में कुछ लड़के भी रहने लगे थे। उनमें से एक लड़का गौशाला में सोया करता था। उसके पास कोई बिस्तर नहीं था। महर्षि की निगाह लड़के पर पड़ी। रमण महर्षि ने दयार्द्रभाव से लड़के से पूछा-तुम रात को भी यही सोते हो? लड़के ने कहा- हां भगवान्। और रात को ओढ़ते क्या हो? उत्तर में लड़के ने अपनी फटी चादर दिखाई। महर्षि फिर कहा- इससे तुम्हें जाड़ा नहीं लगता क्या? लगता है प्रभु। लड़के के उत्तर में फड़कती सर्दी की पीड़ा उबर आयी। लड़के उत्तर सुन कर महर्षि तत्काल अपने माँ की कुटीर में लौट आए। उन्होंने ने माँ की दो पुरानी साड़ियां लीं। थोड़ी-सी रुई मँगवाई और वे गुदड़ी तैयार करने लगे। उनकी माँ भी बैठ कर महर्षि का सहयोग करने लगीं। अपनी माँ की सहायता से थोड़ी ही देर में खोल सिल लिया। उसमें रुई डाल कर कुछ ही घण्टों में गुदड़ी तैयार हो गयी। वे खुद ही जाकर उस लड़के को दे आए।
दूसरे दिन प्रातः रमण महर्षि ने स्वयं गौशाला जाकर उस लड़के से पूछा- रात कैसी नींद आयी। लड़के ने कहा- बहुत मीठी नींद सोया, भगवन्! उस लड़के का उत्तर सुन कर महर्षि के मुखमण्डल पर सच्चे आत्मज्ञान की प्रभा फैल गयी। आत्मवत् सर्वभूतेषु उनके लिए शब्द नहीं सच्ची अनुभूति थे।
अगर आप गहराई में प्रवेश करें तब और अगर बाहर से देखें तो नारी का अर्थ है भोग्या? उसके कान को देखिए, अलग-अलग स्थान को देखिए, कामुकता के हिसाब से देखिए, वासना के हिसाब से देखिए तो वह भोग्या है। लेकिन अगर आप गहराई में जाए तो वह देवी है।
भगवान बुद्ध जन-जागरण के लिए शिष्य समुदाय के साथ देश-भ्रमण कर रहे थे। एक शहर से दूसरे शहर जाते समय श्मशान भूमि आयी। वहाँ एक चिता जल रही थी जो बुद्ध के एक शिष्य के संसारपक्षीय पिता की थी।
चिता के पास से गुजरते समय शिष्य को पता चल गया कि यह चिता मृत पिता की है और वहाँ पर एकत्र भीड़ उसी के बन्धु-बांधवों एवं सगे-सम्बन्धियों की है। फिर भी वह नहीं रुका। पूर्ववत महात्मा बुद्ध के साथ चलता रहा।
तथागत ने उसे टोका और निर्देश दिया कि जब तक तुम्हारे पिता की चिता बुझ ना जाये, तब तक तुम श्मशान भूमि में बैठे रहो। अपने शास्त्र के आदेशानुसार वह शिष्य वहीं रुक गया। बाकी जन आगे बढ़ गए।
संयोग से आगे भी इसी दृश्य की पुनरावृत्ति हुई। इस बार भी श्मशान में महात्मा बुद्ध के अन्य किसी शिष्य के पिता का मृत शरीर जल रहा था। जैसे ही शिष्य को पता चला कि उसके पिता का दाह-संस्कार हो रहा है वह अपने यात्रासंघ से हटकर श्मशान में अपने बन्धु-बान्धवों के साथ जा बैठा।
भगवान बुद्ध को जब पता चला कि उनका शिष्य अपने पिता के अंतिम-संस्कार में शामिल होने श्मशान में जा बैठा है, तो वे उधर मुड़े ओर उस शिष्य को हाथ पकड़ कर उठा लाए। साथ में चल रहे सैकड़ों के शिष्यों के मन जिज्ञासा जगी कि क्या कारण है कि तथागत एक शिष्य को पिता के दाह संस्कार में स्वयं भेज रहे है और दूसरे को स्वयं ही हाथ पकड़ कर उठा लाए हैं।
भगवान बुद्ध ने अपने होंठों पर हल्का-सा स्मित लाते हुए शिष्यों को सम्बोधित करते हुए बताया-शिष्य मैं जानता हूँ, तुम सब जिज्ञासा कुल हो, क्योंकि मैंने एक जैसे दो घटनाओं के लिए भिन्न-भिन्न आदेश दिये हैं। लेकिन परिस्थिति की समानता के बावजूद मनःस्थिति भिन्न थी पहला शिष्य बिलकुल अव्यावहारिक था। उसका कर्त्तव्य था कि असमय में उसके पिता की मौत हुई तो वह अपने परिवारीजनों को सांत्वना दे। इसलिए मैंने उसको श्मशान भूमि में रोक दिया। दूसरा शिष्य मोहाकुल था। अपने पिता की मौत पर वह संसारी लोगों की तरह विलाप कर रहा था। भिक्षु के लिए शोकाकुल होना अच्छी बात नहीं है। इस लिए मैं उसे श्मशान भूमि से उठा लाया। हमेशा ध्यान रखो- सद्गुरु-शिष्य की आन्तरिक स्थिति को भली-भाँति जानते हैं, उसी के अनुरूप उसे निर्देश देते हैं, उसकी व्यवस्था करते हैं, गुरु आदेश के प्रति सदा-सर्वदा श्रद्धा उचित है न कि शंका।