Magazine - Year 1998 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
सात्विक आहार (Kahani)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
श्री गुरुगोविन्द सिंह जी महाराज के पास खूब अशर्फियाँ थीं, खजाना था फिर भी वह यवनों से युद्ध होते समय अपने लड़ाकू शिष्यों को मुट्ठी भर चने देते थे। एक दिन उन शिष्यों में से एक शिष्य ने श्री गुरुगोविन्द सिंह जी की माताजी से जाकर कहा कि माताजी हमें यवनों से लड़ना पड़ता है और गुरुगोविन्द सिंह जी के पास अशर्फियां ,खजाने है फिर भी वह हमें एक मुट्ठी चने ही देते हैं और, लड़वाते हैं। माताजी ने श्री गुरुगोविन्द सिंह जी को अपने पास बिठाकर कहा कि- पुत्र, यह तेरे शिष्य तेरे पुत्र के समान हैं फिर भी तू इन्हें एक मुट्ठी चने ही देता है, ऐसा क्यों करता है| श्री गुरुगोविन्द जी ने माताजी को उत्तर दिया- माता क्या तू अपने पुत्र को कभी विष दे सकती है? माताजी ने कहा - नहीं।
गुरुगोविन्द सिंह जी ने कहा-माता मेरे यहाँ पर जो अशर्फियां हैं, खजाने हैं वह इतने पवित्र नहीं हैं, उनके खाने से इनमें वह शक्ति नहीं रहेगी। जो मुट्ठी भर चने खाने से इनमें शक्ति है वह फिर न रहेगी और फिर यह लड़ भी नहीं सकेंगे।
बीस अँगुलियों की कमाई का, धर्म उपार्जित, ईमानदारी से प्राप्त किया हुआ अन्न ही मनुष्य में सद्बुद्धि उत्पन्न कर सकता है। जो लोग अनीतियुक्त अन्न ग्रहण करते हैं उनकी बुद्धि असुरता की ओर ही प्रवृत्त होती है।
परिश्रम और ईमानदारी के साथ कमाये हुए अन्न से ही शुद्ध बुद्धि हो सकती है और तभी भगवद् भजन, साधना, कर्तव्यपालन, लोकसेवा आदि सात्विक कार्य हो सकते हैं।
अध्यात्म में शुद्ध, लोक सेवा आदि सात्विक आहार की क्या भूमिका होती है, इस संदर्भ में उक्त प्रसंग जाना जा सकता है।
-साधना से सिद्धि-1 वांग्मय क्रमाँक 5 से