Books - गायत्री की अनुष्ठान एवं पुरश्चरण साधनाएँ
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Language: HINDI
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चान्द्रायण में केश कटाने का संस्कार
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चान्द्रायण व्रत लेते समय शिर के केश कटाने का, मुण्डन कराने का विधान है। इतना न बन पड़े तो बाल बनाने का तो कृत्य किसी न किसी रूप में करना ही होता है। इसमें मस्तिष्क में भरे हुए पुराने विचारों को बदलने की प्रतीक प्रतिज्ञा है। यहां बालों को विचारों का प्रतीक माना गया है। इसलिए उन्हें बालकों के मुण्डन संस्कार की तरह ही चान्द्रायण व्रत में भी आवश्यक माना गया है। बालकों का मुण्डन कराने के पीछे उद्देश्य यह है कि पिछले कुसंस्कार जो मस्तिष्क के भीतर भरे हुए हैं उनका उन्मूलन आवश्यक है तभी मनुष्यता की गौरव गरिमा उपलब्ध हो सकती है। इस परिवर्तन का प्रतीक बालों का कटाना माना गया है। तीर्थ में जाकर भी मुण्डन कराने का तात्पर्य यह है कि वहां पहुंचने के उपरान्त कुसंस्कारों की जो अवधारणा मस्तिष्क में थी वह बदल दी। इसी प्रकार मृत्यु-शोक के सन्तापदायी विचारों से छुटकारा पाने के लिए श्राद्ध के समय मुण्डन कराया जाता है।
चान्द्रायण व्रत के समय मुण्डन का विधान है। वैसा जो न कर सके उन्हें प्रतीक रूप में शिर के बालों के हलके तो करा ही लेना चाहिए। इसके दो उद्देश्य हैं—एक पशु प्रवृत्तियों के परित्याग की दुर्बुद्धि को निरस्त करने की प्रतीक प्रतिज्ञा है। दूसरे पापों की स्वीकृति एवं घोषणा में। इसमें समाज में प्रतिष्ठा बनाये रहने और पाप छिपाये रहने का दुहरे पाप से निवृत्ति पाने का संकल्प है।
सर्वविदित है कि मुण्डन संस्कार में बालों को गोमूत्र, गोबर एवं पंचगव्य से धोया, सींचा जाता है। चान्द्रायण व्रत के समय भी जब बाल बनवाये जाते हैं तो मस्तिष्क का संस्कार पंचगव्य से ही किया जाता है। मुण्डन से पूर्व यह गोरस सिंचन किया जाय या पीछे यह सुविधा के ऊपर निर्भर है, पर किसी न किसी का रूप में उसे किया जाना आवश्यक है।
बाल कटाने के सम्बन्ध में चान्द्रायण व्रत कर्त्ता के लिए शास्त्र निर्देश इस प्रकार है—
शिरसं कृन्तनं पुद्धे मुण्डनं तद्वदेव हि ।
वेदेऽपि स्थिरमेतद्धि समानं समुदाहतम् ।। —योगिनी तन्त्र
शिर छेदन और शिर मुण्डन एक कार्य है, वेद में ये दोनों कार्य ही समान कहे गये हैं।
श्मश्रु केशान् वापयेत् भ्रुवोस्क्षि लोमशिखावर्जम नखाननिकन्त्य । —वशिष्ठ
‘व्रत के आरम्भ में दाढ़ी, मूंछ और सिर के बालों को कटा लें। भौंह आदि और शिखा न कटाई जाय।’