Books - हारिए न हिम्मत
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आध्यात्मिक चिंतन अनिवार्य
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जो लोग आध्यात्मिक चिंतन से विमुख होकर केवल लोकोपकारी कार्य
में लगे रहते हैं, वे अपनी ही सफलता पर अथवा सद्गुणों पर
मोहित हो जाते हैं। वे अपने आपको लोक सेवक के रूप में देखने
लगते हैं। ऐसी अवस्था में वे आशा करते हैं कि सब लोग उनके
कार्यों की प्रशंसा करें, उनका कहा मानें ।। उनका बढ़ा हुआ अभिमान उन्हें अनेक लेागों
का शत्रु बना देता है। इससे उनकी लोक सेवा उन्हें वास्तविक लोक
सेवक न बनाकर लोक विनाश का रूप धारण कर लेती है।
आध्यात्मिक चिंतन के बिना मनुष्य में विनीत भाव नहीं आता और न उसमें अपने आपको सुधारने की क्षमता रह जाती है। वह भूलों पर भूल करता चला जाता है और इस प्रकार अपने जीवन को विफल बना देता है।
आध्यात्मिक चिंतन के बिना मनुष्य में विनीत भाव नहीं आता और न उसमें अपने आपको सुधारने की क्षमता रह जाती है। वह भूलों पर भूल करता चला जाता है और इस प्रकार अपने जीवन को विफल बना देता है।