Books - प्रखर प्रतिभा की जननी इच्छा शक्ति
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Language: HINDI
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संकल्प बल—एक ईश्वरीय अनुदान
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मनुष्य को बुद्धि एवं साधनों के अतिरिक्त संकल्पबल का इतना बड़ा ईश्वरीय
अनुदान मिला है जिसके द्वारा वह असम्भव को भी सम्भव करके दिखा सकता है।
घटना सन् 1910 की है—एक जर्मनी ट्रेन में एक सोलह वर्षीय किशोर यात्रा कर
रहा था। घर से भागकर वह कहीं दूर जाना चाहता था, पैसे के अभाव में वह टिकट न
ले सका। टिकट निरीक्षक को देखते ही उसने सीट के नीचे छिपने की कोशिश की,
पर वह टिकट निरीक्षक की निगाहों से बच न सका। उसने किशोर से टिकट मांगा,
टिकट तो उसके पास था नहीं। पास में अखबार का टुकड़ा पड़ा था, किशोर ने उसे
हाथ में उठाया, मन में संकल्प किया कि यह टिकट है और उसने टिकट निरीक्षक के
हाथों में वह टुकड़ा थमा दिया। मन कह मन यह संकल्प दुहराता रहा—हे
परमात्मा! उसे वह कागज का टुकड़ा टिकट दिखाई पड़ जाय।उसके आश्चर्य का तब
ठिकाना न रहा जब देखा कि निरीक्षक ने उस कागज के टुकड़े को वापिस लौटाते
हुए यह कहा कि—‘क्या तुम पागल हो गये हो? तुम्हारे पास टिकट जब है तो सीट
के नीचे छिपने की क्या आवश्यकता है?’</div><br>
‘एबाउट माई सेल्फ’ पुस्तक में बुल्फ मेंसिंग नामक एक रशियन परामनोवैज्ञानिक
उपरोक्त घटना का उल्लेख करते हुए लिखता है कि ‘उस दिन से मेरा पूरा जीवन
बदल गया।’ पहले मैं अपने आप को असमर्थ, असहाय तथा मूर्ख मानता था, पर उस
घटना के बाद यह विश्वास पैदा हुआ कि मेरे भीतर कोई महान शक्ति सोयी पड़ी है
जिसे जगाया-उभारा जा सकता है—उन प्रयत्नों में मैं प्राणपण से लग गया तथा
सफल भी रहा।’<br><br>
सन् 1910 से 1950 तक मेंसिंग को दुनिया भर में ख्याति मिली। उसकी संकल्प
शक्ति की विलक्षणता का परीक्षण अनेकों बार विशेषज्ञ-वैज्ञानिकों के समक्ष
किया गया। स्टालिन जैसा मनोबल सम्पन्न व्यक्ति भी मैंसिंग से डरने लगा,
भयभीत होकर स्टालिन ने उसे गिरफ्तार करा लिया, स्टालिन को सुनी हुई बातों
पर विश्वास न था, मैंसिंग की परीक्षा उसने स्वयं ली। उसने मैंसिंग से
कहा—‘तुम मेरे सामने अपनी सामर्थ्य का परिचय दो।’ वह सहर्ष इसके लिए राजी
हो गया।<br><br>
स्टालिन ने आदेश दिया—‘बन्द कमरे से कल दो बजे तुम्हें छोड़ा जायेगा, एक
व्यक्ति तुम्हें मास्को के एक बड़े बैंक में ले जायेगा, तुम्हें बैंक के
कैशियर से एक लाख रुपये निकलवा कर लाना होगा। पर ध्यान रहे तुम मात्र अपनी
वाणी का प्रयोग कर सकते हो—किसी शस्त्र का नहीं।’<br><br>
दूसरे दिन पूरी बैंक को सैनिकों से घिराव दिया गया। दो व्यक्ति पिस्तौलें
लिए छद्मवेश में मैंसिंग के पीछे-पीछे चल पड़े ताकि वह किसी प्रकार की चाल न
चल सके। ट्रेजरर के सामने उसे खड़ा कर दिया गया, मैंसिंग ने जेब से एक
कोरा कागज निकाला—एकाग्र नेत्रों से देखा तथा ट्रेजरर को दे दिया। ट्रेजरर
गौर से उस कागज को उलट-पलट कर देखकर आश्वस्त हो गया कि वह एक चैक है एवं
सही है। उसे अपने पास रखकर उसने एक लाख रुपये मैंसिंग को दे दिये, उसे लेकर
वह स्टालिन के पास पहुंचा तथा सौंप दिया। सारा विवरण जानकर स्टालिन के
आश्चर्य का ठिकाना न रहा।<br><br>
इतने पर भी स्टालिन का उसकी संकल्प शक्ति पर पूर्ण विश्वास न हुआ। उधर
मैंसिंग वह धनराशि लेकर खजांची के पास पहुंचा, पूरी बात बतायी। उसने चैक
समझकर रखे हुए कागज को दुबारा देखा तो वह अब मात्र कोरा कागज था। धनराशि को
वापस करते हुए मैंसिंग ने खजांची से कहा—‘महोदय! क्षमा करें, यह संकल्प
शक्ति का एक छोटा-सा प्रयोग था। आपको इसका दण्ड भुगतना पड़े इस कारण लौटाने
आया हूं।’ वह क्लर्क इस घटना से इतना अधिक हतप्रभ हुआ कि उसे हार्टअटैक का
दौरा पड़ा और कई दिनों तक भयावह सपने आते रहे।<br><br>
इस रहस्य की और भी पुष्टि करने की दृष्टि से उधर स्टालिन ने मैंसिंग को
दूसरा आदेश दिया कि सैनिकों की देखरेख में बन्द कमरे से निकल कर वह ठीक
बारह बजे रात्रि को स्टालिन से मिले। स्टालिन के लिए सैनिकों की कड़ी
सुरक्षा वैसे भी रखी जाती थी, लेकिन यह व्यवस्था और कड़ी करदी गई ताकि किसी
प्रकार मैंसिंग निकलकर स्टालिन तक पहुंचने न पाये, पर इन सबके बावजूद भी
निर्धारित समय पर वह स्टालिन के समक्ष पहुंचकर मुस्कराने लगा। स्टालिन को
अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था, पर जो सामने घटित हुआ था उससे
इन्कार भी कैसे कर सकता था? भय मिश्रित स्वर में उसने मैंसिंग से पूछा कि
यह असम्भव कार्य तुमने किस प्रकार, किस शक्ति के सहारे किया—थोड़ा विस्तार
में बताओ।<br><br>
मैंसिंग बोला—यह और कुछ भी नहीं, संकल्पबल का एक छोटा चमत्कार है। मैंने
मात्र इतना किया कि मन को एक विचार, एक लक्ष्य के लिए एकाग्र
किया—तत्पश्चात दरवाजे पर आकर सैनिक से निर्देश के स्वर में बोला ‘मैं
वेरिया हूं।’ ज्ञातव्य है तब वेरिया को रूसी फौज का सबसे बड़ा अधिकारी,
स्टालिन के बाद सर्व शक्तिमान अधिकारी माना जाता था।<br><br>
‘आपसे मिलने की इच्छा जाहिर करते ही सैनिकों की पहली कतार ने मुझे एक कमरे
का नम्बर बताया। वहां पहुंचने पर मैंने पुनः अपना परिचय पहले की भांति
दिया। सुरक्षा पर तैनात सैनिकों ने एक दूसरे दिशा वाले कमरे की ओर संकेत
किया, वहां भी शस्त्र सैनिकों की एक टोली मौजूद थी। जनरल वेरिया का नाम
सुनकर व उन्हें प्रत्यक्ष सामने देखकर उस सैनिकों ने भी अभिवादन करते हुए
आगे का रास्ता बताया। इस प्रकार सैनिकों की सात टोली पार करने के बाद
निश्चित रूप से यह मालूम हुआ कि आप कहां हैं? अपना पूर्व की भांति परिचय
देकर मैं यहां आ सकने में सफल हुआ।<br><br><div>
मैंसिंग के द्वारा स्टालिन को एक नया सूत्र हाथ लगा कि मनुष्य के भीतर कोई
ऐसी अविज्ञात शक्ति विद्यमान है जो प्रत्यक्ष सभी आयुधों से भी अधिक समर्थ
है, उसके द्वारा असम्भव स्तर के कार्य भी पूरे किये जा सकते हैं। स्टालिन
ने मैंसिंग की अतीन्द्रिय सामर्थ्य के परीक्षण के लिए ‘नामोर’ नामक एक
मनःशास्त्री को नियुक्त किया जो अपने समय का मनोविज्ञान का मूर्धन्य
विशेषज्ञ माना जाता था। लम्बे समय तक उसने मैंसिंग का अध्ययन किया, अन्ततः
उसने घोषणा की कि—‘मन की अचेतन शक्ति चेतन की तुलना में अधिक सबल है, उसे
उभारकर अच्छे-बुरे दोनों ही तरह के काम लिए जा सकते हैं। मैंसिंग के भीतर
का अचेतन प्रचण्ड रूप से जागृत है, उसी के माध्यम से वह प्रचण्ड संकल्प की
प्रेरणा देकर दूसरों को सम्मोहित कर लेता है तथा अपने प्रयोजन में सफल हो
जाता है।’
अनुदान मिला है जिसके द्वारा वह असम्भव को भी सम्भव करके दिखा सकता है।
घटना सन् 1910 की है—एक जर्मनी ट्रेन में एक सोलह वर्षीय किशोर यात्रा कर
रहा था। घर से भागकर वह कहीं दूर जाना चाहता था, पैसे के अभाव में वह टिकट न
ले सका। टिकट निरीक्षक को देखते ही उसने सीट के नीचे छिपने की कोशिश की,
पर वह टिकट निरीक्षक की निगाहों से बच न सका। उसने किशोर से टिकट मांगा,
टिकट तो उसके पास था नहीं। पास में अखबार का टुकड़ा पड़ा था, किशोर ने उसे
हाथ में उठाया, मन में संकल्प किया कि यह टिकट है और उसने टिकट निरीक्षक के
हाथों में वह टुकड़ा थमा दिया। मन कह मन यह संकल्प दुहराता रहा—हे
परमात्मा! उसे वह कागज का टुकड़ा टिकट दिखाई पड़ जाय।उसके आश्चर्य का तब
ठिकाना न रहा जब देखा कि निरीक्षक ने उस कागज के टुकड़े को वापिस लौटाते
हुए यह कहा कि—‘क्या तुम पागल हो गये हो? तुम्हारे पास टिकट जब है तो सीट
के नीचे छिपने की क्या आवश्यकता है?’</div><br>
‘एबाउट माई सेल्फ’ पुस्तक में बुल्फ मेंसिंग नामक एक रशियन परामनोवैज्ञानिक
उपरोक्त घटना का उल्लेख करते हुए लिखता है कि ‘उस दिन से मेरा पूरा जीवन
बदल गया।’ पहले मैं अपने आप को असमर्थ, असहाय तथा मूर्ख मानता था, पर उस
घटना के बाद यह विश्वास पैदा हुआ कि मेरे भीतर कोई महान शक्ति सोयी पड़ी है
जिसे जगाया-उभारा जा सकता है—उन प्रयत्नों में मैं प्राणपण से लग गया तथा
सफल भी रहा।’<br><br>
सन् 1910 से 1950 तक मेंसिंग को दुनिया भर में ख्याति मिली। उसकी संकल्प
शक्ति की विलक्षणता का परीक्षण अनेकों बार विशेषज्ञ-वैज्ञानिकों के समक्ष
किया गया। स्टालिन जैसा मनोबल सम्पन्न व्यक्ति भी मैंसिंग से डरने लगा,
भयभीत होकर स्टालिन ने उसे गिरफ्तार करा लिया, स्टालिन को सुनी हुई बातों
पर विश्वास न था, मैंसिंग की परीक्षा उसने स्वयं ली। उसने मैंसिंग से
कहा—‘तुम मेरे सामने अपनी सामर्थ्य का परिचय दो।’ वह सहर्ष इसके लिए राजी
हो गया।<br><br>
स्टालिन ने आदेश दिया—‘बन्द कमरे से कल दो बजे तुम्हें छोड़ा जायेगा, एक
व्यक्ति तुम्हें मास्को के एक बड़े बैंक में ले जायेगा, तुम्हें बैंक के
कैशियर से एक लाख रुपये निकलवा कर लाना होगा। पर ध्यान रहे तुम मात्र अपनी
वाणी का प्रयोग कर सकते हो—किसी शस्त्र का नहीं।’<br><br>
दूसरे दिन पूरी बैंक को सैनिकों से घिराव दिया गया। दो व्यक्ति पिस्तौलें
लिए छद्मवेश में मैंसिंग के पीछे-पीछे चल पड़े ताकि वह किसी प्रकार की चाल न
चल सके। ट्रेजरर के सामने उसे खड़ा कर दिया गया, मैंसिंग ने जेब से एक
कोरा कागज निकाला—एकाग्र नेत्रों से देखा तथा ट्रेजरर को दे दिया। ट्रेजरर
गौर से उस कागज को उलट-पलट कर देखकर आश्वस्त हो गया कि वह एक चैक है एवं
सही है। उसे अपने पास रखकर उसने एक लाख रुपये मैंसिंग को दे दिये, उसे लेकर
वह स्टालिन के पास पहुंचा तथा सौंप दिया। सारा विवरण जानकर स्टालिन के
आश्चर्य का ठिकाना न रहा।<br><br>
इतने पर भी स्टालिन का उसकी संकल्प शक्ति पर पूर्ण विश्वास न हुआ। उधर
मैंसिंग वह धनराशि लेकर खजांची के पास पहुंचा, पूरी बात बतायी। उसने चैक
समझकर रखे हुए कागज को दुबारा देखा तो वह अब मात्र कोरा कागज था। धनराशि को
वापस करते हुए मैंसिंग ने खजांची से कहा—‘महोदय! क्षमा करें, यह संकल्प
शक्ति का एक छोटा-सा प्रयोग था। आपको इसका दण्ड भुगतना पड़े इस कारण लौटाने
आया हूं।’ वह क्लर्क इस घटना से इतना अधिक हतप्रभ हुआ कि उसे हार्टअटैक का
दौरा पड़ा और कई दिनों तक भयावह सपने आते रहे।<br><br>
इस रहस्य की और भी पुष्टि करने की दृष्टि से उधर स्टालिन ने मैंसिंग को
दूसरा आदेश दिया कि सैनिकों की देखरेख में बन्द कमरे से निकल कर वह ठीक
बारह बजे रात्रि को स्टालिन से मिले। स्टालिन के लिए सैनिकों की कड़ी
सुरक्षा वैसे भी रखी जाती थी, लेकिन यह व्यवस्था और कड़ी करदी गई ताकि किसी
प्रकार मैंसिंग निकलकर स्टालिन तक पहुंचने न पाये, पर इन सबके बावजूद भी
निर्धारित समय पर वह स्टालिन के समक्ष पहुंचकर मुस्कराने लगा। स्टालिन को
अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था, पर जो सामने घटित हुआ था उससे
इन्कार भी कैसे कर सकता था? भय मिश्रित स्वर में उसने मैंसिंग से पूछा कि
यह असम्भव कार्य तुमने किस प्रकार, किस शक्ति के सहारे किया—थोड़ा विस्तार
में बताओ।<br><br>
मैंसिंग बोला—यह और कुछ भी नहीं, संकल्पबल का एक छोटा चमत्कार है। मैंने
मात्र इतना किया कि मन को एक विचार, एक लक्ष्य के लिए एकाग्र
किया—तत्पश्चात दरवाजे पर आकर सैनिक से निर्देश के स्वर में बोला ‘मैं
वेरिया हूं।’ ज्ञातव्य है तब वेरिया को रूसी फौज का सबसे बड़ा अधिकारी,
स्टालिन के बाद सर्व शक्तिमान अधिकारी माना जाता था।<br><br>
‘आपसे मिलने की इच्छा जाहिर करते ही सैनिकों की पहली कतार ने मुझे एक कमरे
का नम्बर बताया। वहां पहुंचने पर मैंने पुनः अपना परिचय पहले की भांति
दिया। सुरक्षा पर तैनात सैनिकों ने एक दूसरे दिशा वाले कमरे की ओर संकेत
किया, वहां भी शस्त्र सैनिकों की एक टोली मौजूद थी। जनरल वेरिया का नाम
सुनकर व उन्हें प्रत्यक्ष सामने देखकर उस सैनिकों ने भी अभिवादन करते हुए
आगे का रास्ता बताया। इस प्रकार सैनिकों की सात टोली पार करने के बाद
निश्चित रूप से यह मालूम हुआ कि आप कहां हैं? अपना पूर्व की भांति परिचय
देकर मैं यहां आ सकने में सफल हुआ।<br><br><div>
मैंसिंग के द्वारा स्टालिन को एक नया सूत्र हाथ लगा कि मनुष्य के भीतर कोई
ऐसी अविज्ञात शक्ति विद्यमान है जो प्रत्यक्ष सभी आयुधों से भी अधिक समर्थ
है, उसके द्वारा असम्भव स्तर के कार्य भी पूरे किये जा सकते हैं। स्टालिन
ने मैंसिंग की अतीन्द्रिय सामर्थ्य के परीक्षण के लिए ‘नामोर’ नामक एक
मनःशास्त्री को नियुक्त किया जो अपने समय का मनोविज्ञान का मूर्धन्य
विशेषज्ञ माना जाता था। लम्बे समय तक उसने मैंसिंग का अध्ययन किया, अन्ततः
उसने घोषणा की कि—‘मन की अचेतन शक्ति चेतन की तुलना में अधिक सबल है, उसे
उभारकर अच्छे-बुरे दोनों ही तरह के काम लिए जा सकते हैं। मैंसिंग के भीतर
का अचेतन प्रचण्ड रूप से जागृत है, उसी के माध्यम से वह प्रचण्ड संकल्प की
प्रेरणा देकर दूसरों को सम्मोहित कर लेता है तथा अपने प्रयोजन में सफल हो
जाता है।’