Books - स्रष्टा का परम प्रसाद-प्रखर प्रज्ञा
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पात्रता से दैवी अनुग्रह की प्राप्ति
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नवसृजन के इस विश्वमानव के भाग्य- भविष्य को नये सिरे से लिखने वाले सुयोग में दैवी शक्ति का निश्चित रूप से बड़ा योगदान रहेगा। इसके लिये किसी को किसी से कुछ माँगने की, अनुग्रह या अनुरोध करने की आवश्यकता नहीं है। अपनी पात्रता अनुरूप बना लेने पर सब कुछ अनायास ही खिंचता चला आता है। वर्षाकाल में खुले में रखा बर्तन अनायास ही भर जाता है, जब छोटी कटोरी हो तो उसमें उतना ही कम पानी दीखेगा, जबकि बड़ी बाल्टी पूरी तरह भरी हुई मिलेगी। यह पात्रता का ही चमत्कार है। गहरे सरोवर लबालब भर जाते हैं, जबकि ऊँचे टीलों पर पानी की कुछ बूँदें भी नहीं टिकती। वर्षा में उपजाऊ जमीन हरियाली से लद जाती है, पर ऊसर बंजर ज्यों- के त्यों वीरान पड़े रहते हैं। नदियाँ चूँकि समतल की अपेक्षा गहरी होती हैं, इसलिये चारों ओर का पानी सिमटकर उनमें भरने और बहने लगता है। यह पात्रता ही है, जिसके अनुसार छात्रवृत्ति, प्रतिस्पर्धा, पुरस्कार आदि उपलब्ध होते हैं। यह लाभ मात्र चापलूसी करने भर से किसी को नहीं मिलते। कोई अफसर रिश्वत या खुशामद से प्रसन्न होकर किसी को यदि अनुचित पद या उपहार प्रदान कर दे तो उसकी न्यायनिष्ठा पर कर्तव्यपालन की जिम्मेदारी पूरी न करने का आक्षेप लगता है और उस कारण उसकी खिंचाई होती है। यह नियम शाश्वत है, इसलिये इंसान पर भी लागू होता है और उनके भगवान् पर भी।
पात्रता अर्जित कर लेने पर बिना किसी अतिरिक्त कोशिश- सिफारिश के, अपनी योग्यता के अनुरूप पद प्राप्त कर लिये जाते हैं, इसलिये दैवी शक्तियों के अवतरण के लिये पहली शर्त है- साधक की पात्रता, पवित्रता और प्रामाणिकता। सर्वत्र इसी की खोज और माँग है, क्योंकि विवाह योग्य हो जाने पर अभिभावक उपयुक्त जोड़ा तलाश करने के लिये काफी भाग- दौड़ करते हैं, किन्तु कोई कुपात्र पड़ोस में बसता हो, तो भी उसकी ओर से मुँह फेर लेते हैं- खुशामद और संदेश पहुँचने पर भी ध्यान नहीं देते। आध्यात्मिक सिद्धियाँ ईश्वर की पुत्रियाँ हैं। उन्हें प्राप्त करने के लिये व्यक्ति को सर्वांग सुंदर होना चाहिये- भीतर से भी और बाहर से भी। यही पात्रता की परिभाषा है।
पात्रता अर्जित कर लेने पर बिना किसी अतिरिक्त कोशिश- सिफारिश के, अपनी योग्यता के अनुरूप पद प्राप्त कर लिये जाते हैं, इसलिये दैवी शक्तियों के अवतरण के लिये पहली शर्त है- साधक की पात्रता, पवित्रता और प्रामाणिकता। सर्वत्र इसी की खोज और माँग है, क्योंकि विवाह योग्य हो जाने पर अभिभावक उपयुक्त जोड़ा तलाश करने के लिये काफी भाग- दौड़ करते हैं, किन्तु कोई कुपात्र पड़ोस में बसता हो, तो भी उसकी ओर से मुँह फेर लेते हैं- खुशामद और संदेश पहुँचने पर भी ध्यान नहीं देते। आध्यात्मिक सिद्धियाँ ईश्वर की पुत्रियाँ हैं। उन्हें प्राप्त करने के लिये व्यक्ति को सर्वांग सुंदर होना चाहिये- भीतर से भी और बाहर से भी। यही पात्रता की परिभाषा है।