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अध्यात्म को जीवंत बनाएँ
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अध्यात्म को जीवंत बनाएँ
गायत्री मंत्र हमारे साथ- साथ-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि यो नः प्रचोदयात्!
अहिल्याबाई इंदौर की महारानी
अहिल्याबाई कौन थी? इंदौर की महारानी थी। तुकोजीराव एक बार चीते का शिकार खेलने के लिए कहीं देहात में गए। उन्होंने बंदूक चलाई तो चीता घायल हो गया और भाग करके एक झाड़ी में छिप गया। राजा अपनी बहादुरी दिखाना चाहते थे कि हम चीता मारकर लाए है और यह डर भी लगता था कि चीता घायल हुआ है, कहीं हमला कर दिया जो घोड़े को मार डालेगा, हमको मार डालेगा। तुकोजीराव यही सोचकर झाड़ी के चारों और चक्कर काट रहे थे कि देखे चीता मर गया या जिंदा है। घोड़ा खेत में चक्कर काटता तो किसान का खेत खराब होता था। एक अठारह- उन्नीस साल की किसान की लड़की ने बाहर आकर कहा- घोड़े वाले भाईसाहब! हाँ! आप हमारा खेत तबाह किए डालते हैं घोड़े को बार जार घुमाकर। यह कोई सड़क है क्या? आप खेत में घोड़ा घुमाते हैं, इसका क्या मतलब है? महाराज ने कहा, हमने शिकार मारा था, जो घायल होकर यहाँ छिप गया। कहाँ लिया गया? झाड़ी में। अब हम इस चक्कर में हैं कि या तो चीता हमारे हाथ लगे या चीता कहाँ गया है, यह हमें पता चले। इसलिए हम घोड़े को घुमाते हैं। हम तुम्हारे खेत को नहीं बिगाड़ना चाहते हैं। लड़की ने कहा, अगर आप शिकार खेलने के शौकीन हैं तो चीते का मुकाबला कीजिए। चीता को पकड़िए या मारिए। हमारा खेत क्यों खराब करते हैं? चीता तो बड़ा भयंकर होता है, तुझे मालूम नहीं है। हमला कर देगा तो मार डालेगा। तो क्या आप मरने से डरते हैं और चीते का शिकार भी करते हैं। चलिए बैठिए और घोड़े को यहाँ बाँधिए।
वह छोकरी एक लंबा डंडा लेकर आई और बोली कहाँ है आपका चीता? शायद इस झाड़ी में छिपा हुआ मालूम पड़ता है। लड़की चमड़े के जूते पहन करके झाड़ी में दनदनाती हुई चली गई। उसने देखा कि चीता वहाँ बैठा हुआ था। उसने एक ढेला फेंका। ढेला लगते ही चीता उसे मारने के लिए आया। डंडे को लेकर वह उस पर पिल पड़ी। दाँत तोड़ डाले और उसके मुँह में डंडा ठूँस दिया और उसको मारकर गिरा दिया। थोड़ी घायल तो हुई, लेकिन वह लड़की चीते की पूँछ पकड़कर घसीटती हुई ले आई और महाराज के सामने पटक दिया और कहा- ले जाइए आप चीता, पर हमारा खेत मत खराब कीजिए। चीते को देखकर राजा दंग रह गया। एक बार लड़की के चेहरे की तरफ देखा, फिर मरे हुए चीते की तरफ देखा। जिंदा वाले चीते को वह देख ही चुके थे। राजा साहब हक्का- बक्का रह गए। उन्होंने पूछा- लड़की तू कौन से गाँव को रहने वाली है? हम तो इसी गाँव के रहने वाले हैं। तेरे घर में? हमारा बाप है, जो पड़ोस में ही काम कर रहा है इसी खेत में। हम दोनों खेती का काम करते हैं। हमें उनके पास ले चलो। चलिए अपने पिता के पास ले गई।
महाराज ने घोड़े से नीचे उतरकर उसके पिता को हाथ जोड़कर नमस्कार किया। किसान ने कहा, आप कौन हैं? हम इंदौर के राजा हैं, जिसकी रियाया आप हैं यह गाँव है। आप राजा साहब हैं, हमसे क्या गलती हो गई? गलती कुछ नहीं हुई। हम तो आपसे एक प्रार्थना करने आए हैं, एक भीख माँगने आए हैं। क्या? यह कि अगर आपकी दया और कृपा हो जाए तो आप इस लड़की का हमसे ब्याह कर दीजिए। इंदौर के महाराज से? हमारी बेटी रानी बन सकती है। आप यह क्या कह रहे हैं? मैं सपना देख रहा हूँ या कोई दृश्य। नहीं, आप सपना नहीं देख रहे हैं। हम इंदौर के महाराज हैं और आपसे प्रार्थना कर रहे है कि अगर आपकी कृपा हो जाए तो अपनी यह लड़की हमें दे दीजिए। अच्छा, दे देंगे। दूसरे दिन राजा साहब की सजी धजी बरात आई। बड़े शानदार तरीके से उनका ब्याह हुआ और अहिल्याबाई को विदा कराके ले गए। अहिल्याबाई पढ़ी- लिखी तो थी नहीं, लेकिन वहाँ जाकर पढ़ना- लिखना सीखा। फिर महाराज से यह कहा कि अब देखिए मैं आपकी हुकूमत चलाकर दिखाती हूँ। आप क्या हुकूमत करेंगे? आप बैठे रहा कीजिए, मौज कीजिए। अहिल्याबाई का राज्य इंदौर के इतिहास में अभूतपूर्व राज्य था। इंदौर के महाराज धन्य हो गए और इतिहास धन्य हो गया। अहिल्याबाई को हम बहुत दिनों तक याद करते रहेंगे।
जाग्रत- जीवंत आत्मा कैसी
मित्रो! मैं किसकी बात कर रहा था? अहिल्याबाई की बात कर रहा था। नहीं अहिल्याबाई की नहीं, मैं जाग्रत और जीवंत आत्मा की बात कर रहा था। जाग्रत और जीवंत आत्मा कैसी होती है? बहादुर, साहसी, संकल्पवान आत्मा, उत्कृष्टता और आदर्शवादिता जिसके अंदर ये विशेषताएँ हों।
उदाहरण के लिए एक उपमा दे सकता हूँ इंदौर वाली रानी से। इंदौर वाली रानी की उपमा किससे दे रहे हैं आप? जीवात्मा से और भगवान की किससे उपमा देंगे? तुकोजीराव से। ऐसी जीवात्मा जिसमें संकल्प हो, साहस हो, जिसमें त्याग हो, शौर्य हो, जिसमें बलिदानी भाव हो, जिसमें उत्कृष्टता और आदर्शवादियों हो भगवान उसकी खुशामद कर सकता है, चापलूसी कर सकता है, हाथ जोड़ सकता है और पैर छू सकता है। किसके? उस आदमी के जिसके भीतर संकल्प हो।
रामकृष्ण परमहंस बार बार विवेकानन्द के यहाँ जाया करते थे, हाथ जोड़ा करते थे और कहते कि बच्चे देख हमारा बड़ा काम हर्ज हो रहा है। तू किस झगड़े में लगा है, तु चलेगा नहीं क्या? अभी हमें बी० ए० का इम्तहान देना है। आप बार बार क्यों आ जाते हैं? जब हमारी इच्छा होगी तब आ जाएँगे। नहीं बेटे, तेरी इच्छा से काम नहीं चलेगा। तू समझता नहीं है कि तू किस काम के लिए आया है और तेरे बिना हमारा कितना काम हर्ज हो रहा है? महाराज जी अभी हमको नौकरी करनी है। नहीं बेटे, नौकरी नहीं करनी है, तुझे तो हमारा काम करना है। एक दिन तो मिठाई लेकर जा पहुँचे। ले बेटे, मिठाई खा ले। किस बात की मिठाई है? ले तू मिठाई रवा ले और हमारे साथ चल। मैं कोई बच्चा हूँ जो आप मुझे बहकाने आए हैं। अरे तू बच्चा ही तो है, बच्चा नहीं है तो क्या है? जाग्रत आत्माएँ, जीवंत आत्माएँ क्या हैं? जब गुलाब का फूल खिलता है, तब उसके ऊपर भौंरे आते हैं, तितलियाँ आती हैं और न जाने कौन- कौन आता है। सब दूर- दूर से उसकी सुगंध पाने आते है।
प्रार्थना से नहीं, प्राण भरे स्पर्श से मिलती है सफलता
मित्रो! मैं आपसे यह कह रहा था कि आप फूल की तरह खिल सकते हो तो खिल पड़ो। भगवान से प्रार्थना करेंगे। नहीं बेटे, भगवान से प्रार्थना करने की कोई जरूरत नहीं है। भगवान आपसे प्रार्थना करेगा। हमने सुना है कि प्रार्थना से बड़े- बड़े काम हो जाते हैं। हाँ बेटे, हो जाते हैं। प्रार्थना की कीमत हमने भी सुनी हैं। क्या सुनी है आपने? हम हलवाई की दुकान पर जाते हैं और प्रार्थना करते हैं -हलवाई साहब हमको एक किलो जलेबी चाहिए। अच्छा साहब, आप खूब आ गए, बैठिए जरा सा हाथ धो लूँ, दो मिनट में अभी देता हूँ। देखिए साहब गरमागरम हैं, बिलकुल सही जलेबियाँ की कोई खराबी नहीं है लीजिए। तौल करके उसने पुड़िया में बाँध दीं और हमारी ओर बढ़ाने लगा तथा दूसरा हाथ आगे करने लगा। क्या मतलब है? पैसे लाइए, ऐं पैसे लेगा? हमने तो समझा था कि प्रार्थना से ही जलेबी मिल जाती हैं। भाईसाहब, आपको किसी ने गलत बता दिया हैं।
महाराज जी! सवा लाख के अनुष्ठान से ही लक्ष्मी मिल जाती है? गलत है बेटे। सवा लाख का अनुष्ठान क्या है? प्रार्थना है। हमने सुना है कि पी०सी०एस० और आई०ए०एस० की नौकरी प्राप्त करने के लिए पाँच रुपए का फार्म खरीदना पड़ता है। टाइप कराकर अर्जी और मैट्रिक और बी० ए० के सर्टीफिकेट की कापी अटेस्टेड कराके जैसे ही भेज देते हैं, वैसे पी०सी०एस० और आई०ए०एस० का हुकुम आ जाता है। नहीं बेटे, इतना तो तेरा कहना सही है कि फार्म पाँच रुपए का ही आता है, अर्जी टाइप कराने के पचहत्तर पैसे देने पड़ते हैं, उसमें फोटो लगाना और पिछले वाले रिजल्टों की कापी अटैच करनी पड़ती है। तो महाराज जी, इतना काम करने के बाद फिर कलेक्टर नहीं हो जाते, कमिश्नर नहीं हो जाते? नहीं बेटे, उसके साथ में एक और टेस्ट का झगड़ा पड़ा हुआ है। वह यह है कि तेरा वाइवा लिया जाएगा और रिटेन टेस्ट लिया जाएगा। इतना सब पास करने के वाद की चयन होगा। मैं तो समझता था कि फार्म से ही सब हो जाएगा। नहीं, इससे नहीं हो सकता।
मित्रों! प्रार्थनाएँ- पूजाएँ, जिनको हम भजन- पूजन कहते है, इनका भी महत्त्व है। अगर हम प्रार्थना न करें, पूजा न करें तो? तो फिर जिस तरह आप टिकट के लिए स्टेशन मास्टर के पास जाएँ आ चुपचाप खड़े रहे, कुछ न कहें। क्या मतलब है आपका? अपनी बात क्यों नहीं कहते? अरे कोई बात हो तो बताओ? नहीं कुछ नहीं। तो चल भाग यहाँ से। बेटे, आपको कहना होगा कि हमें यहाँ से दिल्ली तक के सेकेंड क्लास के दो टिकट चाहिए और रुपए दीजिए। जो टिकट दे देगा? हाँ दे देगा। इसकी जरूरत है? हाँ बहुत जरूरत है। अगर आप नहीं कहेंगे तो स्टेशन मास्टर को मालूम कैसे पड़ेगा कि आप कहाँ जाना चाहते हैं और कितने टिकट, कौन से क्लास के लेना चाहते हैं? यह सब बताने की जरूरत है। यह प्रार्थना जिसको हम पूजा कहते हैं, भजन कहते हैं। इसकी कीमत यहीं तक सीमित है कि भगवान से यह प्रार्थना करते हैं कि हम कहाँ जाना चाहते हैं, क्या करना और किधर बढ़ना चाहते हैं? हमारा लक्ष्य क्या है, हमारा उद्देश्य क्या है? हमारे संकल्प क्या हैं, हम करना क्या चाहते हैं? यह अपनी एक दिशा और धारा बनाने वाली बात है।
साक्षी है इतिहास
बेटे, इससे आगे यह करना पड़ता है, जो कि प्रत्येक संत ने किया है। भगवत् भक्तों का कितना लंबा इतिहास हैं। भगवत् भक्तों के इतिहास को, प्रत्येक ब्राह्मण के जीवन को और ऋषियों के जीवन को हम पढ़कर देखते हैं। भगवान के रास्ते पर चलने वाले प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को हम देखते हैं और यह मालूम करने की कोशिश करते हैं कि आखिर भगवान के भक्तों को माला घुमाने के सिवाय भी कुछ काम करना पड़ा है क्या? नाक से प्राणायाम करने, तिलक लगाने के अलावा भी कुछ करना पड़ा है क्या? नहीं बेटे, कुछ और भी करना पड़ा है। क्या करना पड़ा है? यही बताने के लिए मैं आपको बुलाता हूँ।
मित्रों भगवत् भक्तों के प्राचीनकाल के इतिहास में से एक भी भक्त का ऐसा उदाहरण मुझे बताइए जो केवल माला घुमाता रहा हो। जिसने भगवान के क्रिया- कलापों में कोई प्रत्यक्ष हिस्सेदारी न ली हो। प्राचीनकाल के ब्राह्मण और संत मितव्ययी, किफायत का जीवन जीते थे। वे भजन करते थे, स्वाध्याय करते थे, ठीक है पर इससे भी ज्यादा एक और बात है कि वे बादलों के तरीके से हमेशा बरसते रहते थे। नहीं साहब, वे तो माला ही घुमाते रहते थे। नहीं साहब, वे तो प्राणायाम ही करते रहते थे। नहीं बेटे, प्राणायाम भी करते थे। यों मत कह कि प्राणायाम ही करते रहते थे, वरन यों कह कि वह प्राणायाम भी करते थे, व्यायाम भी करते थे। हाँ, व्यायाम की भी हमको आवश्यकता है, कसरत की भी हमको जरूरत है, हम तो सारे दिन व्यायाम करेंगे? नहीं, सारे दिन व्यायाम नहीं किया जा सकता। क्या करना पड़ेगा? भगवान के क्रियाकलापों में हिस्सेदारी करने के लिए हमको उनकी सहायता के लिए उनके सुंदर उद्यान को सुरम्य बनाने के लिए भी कुछ करना पड़ता है। यही मुझसे मेरे गुरु ने कहा और मैं दोनों काम करता हुआ चला आया।
उपासना कैसे सार्थक हो सकती है? उपासना कैसे मंत्रसिद्ध हो सकती है? भगवान का अनुग्रह प्राप्त करने के अधिकारी हम कैसे हो सकते हैं? मित्रों, ये सारे के सारे घटनाक्रम हमारे आमने है। आज तक के भी जीवन के घटनाक्रम आपके सामने है। प्राचीनकाल के भगवत् भक्तों के जीवन का इतिहास आपके आमने है। भगवान राम के सबसे प्रिय शिष्य, सबसे प्रिय भक्त हनुमान जी का जीवन आपके सामने खुली पुस्तक के समान पड़ा है। उन्होंने भजन किया था ?? किया होगा, मैं यह तो नहीं कहता कि भजन नहीं किया था। प्राणायाम नहीं किया होगा?बेटे किया होगा। लेकिन सबसे प्यारे भगवान के भक्त हनुमान जी की उपासना, उनके जीवन की पुस्तक को खोलकर आप पहिए। उनका एक ही क्रम रहा- 'राम काज कीन्हें बिना, मोहि कहीं विश्राम।' राम नाम ही काकी नहीं है, राम का काम भी करना पड़ेगा।
अर्जुन ने सौंपा अपने आप को
भगवान श्रीकृष्ण के सबसे प्रिय शिष्यों में से हम अर्जुन का इतिहास देखते हैं। अर्जुन ने भजन नहीं किया होगा? किया होगा, बेटे मैं यह नहीं कहता कि वह भजन नहीं करता था। अर्जुन ने ध्यान- जप किया था? बेटे, जरूर किया होगा। मुझे मालूम नहीं। उनकी कुंडलिनी भी जगी होगी? जगी होगी, यह भी वायदा नहीं करता कि जगी होगी या नहीं जगी। लेकिन सबसे बड़ी बात, सबसे बड़ी उपासना साधना उसकी यह थी कि उसने भगवान के इशारे पर अपनी जिंदगी के खरच करने का साहस किया था। हनुमान, नल नील, जामवंत, अंगद और सुग्रीव, ये जितने भी भगवान के भक्त थे, इन्होंने कितने प्राणायाम किए, कितनी भक्ति की, मैं नहीं जानता, पर यह जानता हूँ कि उन्होंने जीवन को अपनी हथेली पर रखकर भगवान के चरणों पर समर्पित करने की कोशिश की और यह कहा- आप इशारा तो कीजिए हम उसी और चलेंगे।
मित्रो! आज का वक्त कुछ इसी तरह का है, जिसमें मैंने आपको बुलाया है। भगवान हम लोगों से कुछ चाहता है। यह पुनर्गठन वर्ष जो आप लोगों के सामने है, इसमें भगवान ने एक नई स्फुरणा ली है। महाकाल ने एक नई करवट ली है। उसने आप जैसी जीवंत आत्माओं को विशेष रूप से बुलाया है। आप अपने को जान नहीं पाते, मैं जानता हूँ, इसीलिए बार- बार आपको पत्र भेजे हैं। हनुमान अपने आप को नहीं जानते थे कि वे कौन हैं? हनुमान जी को जब सुग्रीव ने यह पता लगाने के लिए भेजा कि राम- लक्ष्मण कौन हैं, तो वे अपना वेश बदलकर ब्राह्मण का रूप बनाकर गए थे और नमस्कार करके उनसे पूछने लगे कि आप कौन हैं? लेकिन राम उन्हें जानते थे, इसीलिए पता लगाते- लगाते, हनुमान जी को तलाश करते, अंगद को तलाश करते वे ऋष्यमूक पर्वत पर जा पहुँचे। एक ही पहाड़ था? नहीं बेटे, वहाँ तो बहुत पहाड़ थे, किसी और पर भी वे जा सकते थे, लेकिन ऋष्यमूक पर इसलिए गए कि वहीं हनुमान, अगर जैसे उनके भक्त रहते थे।
अध्यात्म ही बनाएगा, अच्छा आदमी
आप लोगों को बुलाने का मतलब, हमारा मकसद यही है कि जिस तरीके से आज से पचपन वर्ष पहले हमारे गुरु ने हमको जगाया था, हम भी आपको जगाएँ। जिस तरीके से उन्होंने हमारा मार्गदर्शन किया था, हम आपका मार्गदर्शन करें। क्यों ? क्योंकि अब अच्छा आदमी अगली पीती के लिए अत्यधिक आवश्यक है। अब अध्यात्म के बिना मनुष्य की नैतिक आवश्यकताएँ पूरी नहीं हो सकेगी। अध्यात्म के बिना मनुष्य के क्रिया- कलापों में नैतिकता का समावेश न हो सकेगा, अगर ऐसा न हो सका तो जो आज की परिस्थितियाँ हैं, उनका कोई समापन न हो सकेगा। आज की परिस्थितियों और भी उलझती चली जाएँगी और मनुष्य हैरान होता चला जाएगा। इन हैरानियों का और कोई समाधान नहीं है।
मित्रो! हमारा मन दिन−रात विक्षुब्ध और अशांत रहता है। दिल धड़कता रहता है। हमारे मन पर न जाने क्या- क्या छाया रहता है। यह कौन करता है? राजनीति? नहीं साहब राजनीति तो नहीं करती, हमारे बेटे ही बागी और उत्पाती हो गए है, कहना ही नहीं मानते। स्त्री- पुरुषों के बीच में ऐसा भयंकर युद्ध होता है, अगर उनके बच्चे नहीं होते तो अब तक स्त्री तलाक देकर, घर छोड़कर चली गई होती। बच्चों ने पकड़ रखा है। बच्चे मम्मी को भी पकड़कर रखते हैं और बाप को भी। आफत के पुतले ये बच्चे हैं। घर में क्लेश चलते रहते हैं और जलते रहते हैं। कौन जलाता है? बेटे, यह हमारी विकृत मन:स्थिति जलाती है। विकृत मनःस्थिति का सुधार किए बिना मानवीय समस्याओं का कोई समाधान नहीं है। राजनीतिक समस्याओं, सामाजिक कुरीतियों का कोई समाधान नहीं, इसलिए व्यक्ति को ही ठीक करना पड़ेगा।
मित्रो! व्यक्ति को ठीक करने का एक ही तरीका है, जिसका नाम है अध्यात्म। इस अध्यात्म का जीवंत रखने के लिए और आपको मिलकर प्रयास करने चाहिए। इस समय में भगवान ने, महाकाल ने यही पुकार की है कि मनुष्य जाति के गिरते हुए भविष्य को सुधारने सँभालने के लिए उज्ज्वल भविष्य की संभावनाओं को सार्थक करने के लिए हममें मे प्रत्येक जीवंत और जाग्रत आत्मा को प्रयत्न करना चाहिए ताकि अध्यात्म को जिंदा रखा जा सके। अध्यात्म किस तरह से जिंदा रखा जा सकता है? अध्यात्म का शिक्षण कैसे किया जा सकता है? अध्यात्म की गतिविधियों को आगे कैसे बढ़ाया जा सकता है? अध्यात्म बेटे वह वाणी का विषय नहीं है। वाणी का विषय रहा होता तो अब तक बहुत से एक से एक बढ़िया पंडित, एक है एक बढ़िया रामायणी हुए है। एक से एक बढ़िया कथावाचक हुए हैं। एक से एक बढ़िया ज्ञानवान प्रतिमाएँ भरी पड़ी हैं। उन्होंने तो सबको अध्यात्ममय कर दिया होता और दुनिया न जाने कहाँ से कहाँ चली गई होती, पर अध्यात्म इनके वश का नहीं है।
यह एक विशेष समय
साथियो! अध्यात्म के विस्तार का कार्य हम सबको करना है। इसका शिक्षण, लोकशिक्षण करने के लिए हमें अपने व्यक्तिगत जीवन को फिर से ठीक करना पड़ेगा। जलता हुआ दीपक ही प्रकाश पैदा कर सकता है। हम कैसे प्रकाश पैदा करें ? आप अपने भीतर प्रकाश पैदा कीजिए तभी दूसरों को प्रकाश दे पाएँगे। दुनिया में हम आध्यात्मिकता फैलाएँ, यह आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। महाकाल ने आपको पुकारा है और यह कहा है कि आप एक विशेष व्यक्ति हैं। यह एक विशेष समय है। इस विशेष समय में आपकी विशेष जिम्मेदारी है। अपने मुहल्ले में यदि कोई अग्निकाण्ड हो जाता है तो हम अपना पूजा- भजन भी छोड़ देते हैं, नहाना- खाना भी छोड़ देते हैं और बाल्टी लेकर पानी भरकर आग बुझाने के लिए चले जाते हैं। यह ऐसा ही समय है, जिसमें हम और आप रह रहे हैं। इस समय का युगधर्म, आपत्ति- धर्म यह है कि हमको अपने सामान्य जीवन को अपेक्षा विशेष समय के बारे में ध्यान देना चाहिए। भगवान की पुकार पर ध्यान देना चाहिए। महाकाल ने ये संवेदनाएँ फैलाई हैं और खासतौर से जाग्रत आत्माओं के भीतर जो हलचल और स्थान पैदा किए है, उनकी ओर हमको और आपको गौर करना चाहिए। यह बड़ा उपयोगी समय, जागरण का समय है, युग संध्या का समय है। जो लोग युगसंध्या का मूल्य नहीं समक्ष पाते और उसकी उपेक्षा करते रहते हैं, वे पीछे पछताते रहते हैं।
मित्रो! थोड़े समय पहले गाँधी जी का स्वराज्य आन्दोलन आया था, जिसमें जाग्रत आत्माएँ उछलकर आगे आ गई थी और सत्याग्रह के रूप में काम कर रही थीं। सब दुनिया कह रही थी कि ये नुकसान उठाएँगे। ऐसा कहने वाली में मित्र, पड़ोसी और संबंधी भी होते थे। वे सभी कहते थे कि आप बेवकूफी का कदम उठा रहे हैं, लेकिन बेवकूफी का कदम उठाने वालों ने समय को देखा, जाना और जानने के खाद में क्या से क्या हो गए, आपने देखा? एक छोटा सा वकील वल्लभ भाई पटेल क्या से क्या बन गया? हिंदुस्तान का गृहमंत्री। छोटा सा मौलाना अबुल कलाम आजाद क्या हो गया? हिंदुस्तान का शिक्षामंत्री। पं जवाहर लाल नेहरू एक वकील के लड़के थे। क्या हो गए? प्रधानमंत्री हो गए और कहाँ से कहाँ पहुँच गए।
मित्रो! जिन्होंने समय को देखा, समय की पुकार सुनी और समय के साथ- साथ आगे आए, वे नफे में रहे। जिन्होंने समय चुका दिया, वे रोते रहते हैं और कहते हैं कि हम भी छह महीने जेल हो आते तो दो सौ रुपए पेंशन हमको भी मिल जाती और हम भी स्वतंत्रता सेनानी हो जाते। क्यों नहीं गए आप? अब क्या शिकायत कर रहा है- कमजोर, कायर कहीं का। मित्रो! यह दिलेरों का, बहादुरों का, शूरवीरों का, साहसियों का रास्ता है। इसीलिए साहसियों का रास्ता दिखाने के लिए मैंने आपको बुलाया है। आप यदि बीज के तरीके से हिम्मत करें तो वृक्ष की तरह से फलने के लिए यही ठीक समय है, यहीं गुंजाइश है। इससे अच्छा बेहतरीन समय शायद फिर कभी आपकी जिंदगी में नहीं आने वाला है।
मेरे बुलावे का मकसद
मेरी जिंदगी में तो अच्छा समय आया था। आज से पचपन वर्ष पहले, जब मेरा फरिश्ता मेरा गुरु मेरे पास आया था। भगवान को हजार बार धन्यवाद, कोटि- कोटि धन्यवाद कि उसने मेरे भीतर वह संवेदना पैदा की और मैंने गौर से उसकी बात सुनी। नहीं तो आपकी तरह से मैं भी मजाक उड़ा सकता था कि मुझे भी शादी करनी है, बच्चे पैदा करने हैं, अपना मकान बनाना है, खेती करनी है, मुझे फर्स्ट डिवीजन लगना है और पी सी एस. की नौकरी करनी है। लेकिन मित्रो, मेरे विवेक ने मेरा साथ दिया। मैं चाहता हूँ कि आपका भी विवेक आपके साथ हो। कोई फरिश्ता, जो इस वातावरण पर छाया हुआ है, जो बड़े- बड़े काम करने जा रहा है, जिसने बड़े- बड़े कदम उठाए हैं, वह फरिश्ता आपको भी जगा पाए। आपके भीतर भी कोई स्पन्दन पैदा कर पाए। आपका विवेक जाग्रत कर पाए। मेरे बुलाने का मकसद यही है। महाराज जी! आपका मकसद तो यहाँ उदघाटन कराने का था? हाँ बेटे, उदघाटन तो कराना चाहता हूँ लेकिन जिस उदघाटन को आप लोग करने के लिए आए हैं, वह एक सामयिक घटना नहीं है। वह तो एक संभावना है।
क्या संभावना है ?? जिस ब्रह्मवर्चस का आप उदघाटन करने के लिए आए हैं, यह महाकाल की एक संभावना है। हम अध्यात्म की एक नर्सरी, एक प्रयोगशाला बनाना चाहते हैं। हम बताना चाहते हैं कि आध्यात्मिक शक्तियों को जगाने के लिए क्या किया जा सकता है? जिस बिल्डिंग को आप देखकर आए हैं, बेटे, यह मात्र बिल्डिंग नहीं है। यह लेबोरेटरी- प्रयोगशाला है। क्या होगा इससे? मित्रों, आने वाले समय में शक्तियों में बिजली की शक्ति, एटम की शक्ति, पैसे की शक्ति, अक्ल की शक्ति पीछे हटने वाली है। सबसे आगे जो शक्ति आने वाली है, वह रूहानी शक्ति हैं। जो हमारे प्राचीनकाल के बुजुर्गों की शक्ति थी। जिसके आधार पर उन्होंने अपने देश को स्वर्ग बनाया था और सारी दुनिया में शांति फैलाई थी। बही रूहानी शक्ति फिर जिंदा होने वाली है।
महाराज जी! आप इसे कहाँ से पैदा करेंगे? हम बेटे, उसे इस उदघाटन की छोटी सी इमारत में से पैदा करेंगे, जिसको आप ब्रह्मवर्चस के नाम से अभी देख करके आए हैं। यह इमारत तो उसका लिफाफा है। लिफाफा कैसा होता है? लिफाफा ऐसा होता है बेटे कि जब बच्चा पैदा होने वाला होता है तो उसकी माँ कई चीजें बनाकर रख लेती है। यह क्या बनाकर रखा है? चड़्डी और कुरता। यह क्या बनाकर रखा है? उसके मुँह से लार निकलेगी तो गले में बाँधने का। तो बच्चा कहाँ है? अभी बच्चा पैदा नहीं हुआ है, पर उसके लिए कपड़े सिलकर रख लिए हैं। जिसको आप देख करके आए हैं। बच्चा तो पैदा होने वाला है। बच्चा कैसे पैदा होगा? बच्चा बेटे, ऐसे पैदा होगा कि यहाँ उपासना करने के लिए जो व्यक्ति आएँगे, उनके भीतर वह अध्यात्म पैदा करने की कोशिश करेंगे, जिसको जीवंत अध्यात्म कहते हैं।
जीवंत अध्यात्म पैदा होगा
जीवंत से क्या मतलब है? यह अध्यात्म की लाश? जिसको आप लिए फिर रहे हैं। कौन सी लाश? यही नाक से हवा निकालने वाली लाश, केवल माला घुमाने वाली लाश। तो यह अध्यात्म नहीं है? नहीं बेटे, यह अध्यात्म नहीं है। यह तो इसकी लाश, इसका कलेवर है। कलेवर का अध्यात्म कैसा होता है? अध्यात्म बेटे, सिद्धांतों- आदर्शों का नाम है, हिम्मत का, बहादुरी का नाम है और श्रेष्ठता को जीवन में धारण करने का नाम है। यह ब्रह्मवर्चस जिसका आप उदघाटन करने के लिए आए हैं, इसमें हम अध्यात्म का शिक्षण करेंगे। यह एक प्रयोगशाला है। इसमें हम अध्यात्म का स्वरूप समझाएँगे और अध्यात्म को जीवन में किस तरीके से काम में लाया जा सकता है, इसका आपको प्रयोग करके बताएँगे। पहला काम इस आश्रम का यह है कि हम अध्यात्म के स्वरूप की ए- बी समझाएँगे, जो किसी को नहीं मालूम। अध्यात्म के बारे में लोग कुछ नहीं जानते। अध्यात्म की लाश को जानते है। रामायण पढ़ने से मुक्ति को जाती है और रामचन्द्रजी का नाम लेने से भजन हो जाता है। बेटे, यह लाश हैं रामायण की। रामायण का प्राण तो वह है, जो हनुमान जी ने पिया था, जो तुलसीदास जी ने पिया था। जिसका अर्थ है- जीवन में रामनाम को घुला लेना।
मित्रो! ब्रह्मवर्चस की स्थापना का उद्देश्य यही है कि अध्यात्म का स्वरूप, अध्यात्म के सिद्धांत, अध्यात्म के आदर्श, अध्यात्म की संभावनाएँ जनसाधारण को समझाएँ और यह बताएँ कि आप कलेवर को भी कायम रखिए। कलेवर की मैं निंदा नहीं करता हूँ। माला से मेरा कोई द्वेष नहीं है। अखण्ड कीर्तन से मेरी कोई लड़ाई नहीं है, लेकिन मैं यह कहता हूँ कि अखण्ड कीर्तन के पीछे प्राण होना चाहिए। जप के पीछे, ध्यान के पीछे, उपासना के पीछे प्राण होना चाहिए। तीर्थयात्रा के पीछे, रामायण पाठ के पीछे प्राण होना चाहिए। प्राण अगर नहीं हैं को ये लाशें केवल सड़न पैदा करेंगी, भ्रम और अज्ञान पैदा करेंगी। लोगों में भटकाव पेश करेंगी। लोगों में ये भ्रांति पैदा करेंगी कि इससे यह मिल जाएगा, और जब कुछ मिलेगा नहीं तो फिर लोग गालियों देंगे। यह क्या हो गया? बेटे, सड़न पैदा हो गई।
अध्यात्म का विस्तार करने की दृष्टि से छोटा सा आश्रम, मंदिर जिसके उद्घाटन के लिए आपको बुलाया है। इसमें क्या वाम करेंगे? बेटे, हम चाहते हैं कि सारे के सारे मंदिर धर्म की स्थापना के केंद्र, जनजाग्रति के केंद्र बनें। प्राचीनकाल में भी मंदिर जनजाग्रति के केंद्र बनाए गए थे। हम भी यहीं चाहते हैं कि जहाँ कहीं भी मंदिर बने, उनका स्वरूप ये हो कि भगवान ही नहीं, इनसान भी उसमें स्थान लें। और क्या- क्या रहेगा? बेटे, इसमें जान रहेगा, विचार रहेगा, चेतना रहेगी, लोकहित रहेगा। नहीं साहब भगवान अकेले बैठेंगे। नहीं बेटे, भगवान को हम अकेले नहीं बैठने देंगे। नहीं साहब, सारे मदिर में भगवान टाँग पसारेगा। नहीं बेटे, अब हम भगवान को टाँग नहीं पसारने देंगे। भगवान से कहेंगे कि पिताजी। आप हमारे लिए भी जगह दीजिए, हम पड़ेंगे। आप तो वहाँ तख्त पर पड़िए, सारे कमरे में हम सोएँगे, हम पिता हैं। नहीं पिताजी! आपको सारा मंदिर घेरने की जरूरत नहीं हैं, थोड़े में आप रहिए बाकी में हम रहेंगे।
नए युग के नए ज्ञानमंदिर
मंदिर को ज्ञानमंदिरों के रूप में विस्तार करने का हमारा मन है। कैसे? नए युग में धर्म के लिए स्थान भी चाहिए। रोटी, कपड़ा और मकान तो चाहिए ही। नए युग का जो नया धर्म आएगा, उसके लिए मंदिरों की जरुरत पड़ेगी। हमने ब्रह्मवर्चस में जो मंदिर बनाया है इसी काम के लिए बनाया हैं कि भगवान से संबंधित वृत्तियों का निवास भी उसी में रहे; जैसे- पुस्तकालय, पाठशाला, प्रौढ़ पाठशाला, शिक्षण संस्थान आदि। ये भी उसी मंदिर में रहे, इसके लिए एक बड़ा सा हाल बन जाए। ये क्या चाहते है? बेटे, हम धर्म को फिर से जीवंत रखने के लिए एक प्रयत्न करने वाले है।
समर्थ गुरु रामदास से शिवाजी ने यह कहा था कि महाराज! स्वाधीनता के लिए हमको सेना की, पैसे की जरूरत पड़ेगी। हमको हथियारों की, अनाज की जरूरत पड़ेगी। समर्थ गुरु रामदास ने कहा- बेटे, हमारे पास तो नहीं है, पर हम ऐसा इंतजाम किए देते हैं, जहाँ से तेरी सारी आवश्यकताएँ पूरी हो जाएँ।
उन्होंने महाराष्ट्र के गाँव-गाँव में घूम करके महावीर मंदिर बनाए। महाराष्ट्र के प्रत्येक गाँव में समर्थ गुरु रामदास के द्वारा स्थापित किये गए मंदिर अभी भी हैं। फिर लोकमान्य तिलक ने गणेश पूजा का विस्तार किया था। महाराष्ट्रियनों को इकट्ठा होने के लिए लोकमान्य तिलक ने आवाज लगाई कि हमको प्राचीन परम्पराओं के आधार पर नवजीवन का संचार करना चाहिए ; उन्होंने गणेश जी की पूजा चला दी थी। गणेश जी की चतुर्थी, फिर गणेशोत्सव प्रचालन सारा लोकमान्य तिलक का चलाया हुआ है। महावीर पूजा समर्थ गुरु रामदास नेचलाई। बेटे, हम यह चाहते हैं कि ये मंदिरों की जैसी स्थापना की गई है, उसी तरह के मंदिर बनें। नहीं महाराज जी ! हमारे पास धन नहीं है। ठीक है हम जानते हैं कि आपके पास धन नहीं है। लेकिन वे परम्पराएँ जो कि महाकाल ने चालू कीं, जो हमारे गुरु ने हमसे चाहीं और हम आप से चाहते हैं, वे परम्पराएँ फिर से पैदा हो जाएँ।
बेटे, सबसे पहले आपको अपने घर में मंदिर स्थापित करना चाहिए। आस्तिकता इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। राजनीति से, समाजशास्त्र से, धर्म से, विद्या से बड़ी आवश्यकता यह है कि मनुष्य की नीयत और ईमान को साफ करने के लिए आध्यात्मिकता का विस्तार किया जाए। यह कैसे होगा ? शुरुआत आप कीजिए। बेटे, हमें अपने-अपने घरों में से आस्तिकता का विस्तार करने की प्रक्रिया अभी से चालू करनी है। अपने घर में आप ही तो जप करते हैं। हाँ साहब ! हम करते हैं। और आपकी पत्नी ? नहीं साहब ! वह तो नहीं करती। आपके बच्चे ? नहीं साहब ! वे तो सुनने को बिलकुल भी तैयार नहीं हैं। आपका भाई ? भाई तो साहब गालियां देता है। भावज ? भावज तो बस मुंह फेर लेती है। तो कौन जप करता है ? एक ही अकेले करते हैं। तो बेटा, अकेला चना क्या भाड़ फोड़ लेगा ! अकेले चने से भाड़ नहीं फूटता। प्रचार का जो काम सौंपा गया था, उसे तू अपने घर से शुरू कर। आज की बात समाप्त।
।। ॐ शान्तिः ।।
गायत्री मंत्र हमारे साथ- साथ-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि यो नः प्रचोदयात्!
अहिल्याबाई इंदौर की महारानी
अहिल्याबाई कौन थी? इंदौर की महारानी थी। तुकोजीराव एक बार चीते का शिकार खेलने के लिए कहीं देहात में गए। उन्होंने बंदूक चलाई तो चीता घायल हो गया और भाग करके एक झाड़ी में छिप गया। राजा अपनी बहादुरी दिखाना चाहते थे कि हम चीता मारकर लाए है और यह डर भी लगता था कि चीता घायल हुआ है, कहीं हमला कर दिया जो घोड़े को मार डालेगा, हमको मार डालेगा। तुकोजीराव यही सोचकर झाड़ी के चारों और चक्कर काट रहे थे कि देखे चीता मर गया या जिंदा है। घोड़ा खेत में चक्कर काटता तो किसान का खेत खराब होता था। एक अठारह- उन्नीस साल की किसान की लड़की ने बाहर आकर कहा- घोड़े वाले भाईसाहब! हाँ! आप हमारा खेत तबाह किए डालते हैं घोड़े को बार जार घुमाकर। यह कोई सड़क है क्या? आप खेत में घोड़ा घुमाते हैं, इसका क्या मतलब है? महाराज ने कहा, हमने शिकार मारा था, जो घायल होकर यहाँ छिप गया। कहाँ लिया गया? झाड़ी में। अब हम इस चक्कर में हैं कि या तो चीता हमारे हाथ लगे या चीता कहाँ गया है, यह हमें पता चले। इसलिए हम घोड़े को घुमाते हैं। हम तुम्हारे खेत को नहीं बिगाड़ना चाहते हैं। लड़की ने कहा, अगर आप शिकार खेलने के शौकीन हैं तो चीते का मुकाबला कीजिए। चीता को पकड़िए या मारिए। हमारा खेत क्यों खराब करते हैं? चीता तो बड़ा भयंकर होता है, तुझे मालूम नहीं है। हमला कर देगा तो मार डालेगा। तो क्या आप मरने से डरते हैं और चीते का शिकार भी करते हैं। चलिए बैठिए और घोड़े को यहाँ बाँधिए।
वह छोकरी एक लंबा डंडा लेकर आई और बोली कहाँ है आपका चीता? शायद इस झाड़ी में छिपा हुआ मालूम पड़ता है। लड़की चमड़े के जूते पहन करके झाड़ी में दनदनाती हुई चली गई। उसने देखा कि चीता वहाँ बैठा हुआ था। उसने एक ढेला फेंका। ढेला लगते ही चीता उसे मारने के लिए आया। डंडे को लेकर वह उस पर पिल पड़ी। दाँत तोड़ डाले और उसके मुँह में डंडा ठूँस दिया और उसको मारकर गिरा दिया। थोड़ी घायल तो हुई, लेकिन वह लड़की चीते की पूँछ पकड़कर घसीटती हुई ले आई और महाराज के सामने पटक दिया और कहा- ले जाइए आप चीता, पर हमारा खेत मत खराब कीजिए। चीते को देखकर राजा दंग रह गया। एक बार लड़की के चेहरे की तरफ देखा, फिर मरे हुए चीते की तरफ देखा। जिंदा वाले चीते को वह देख ही चुके थे। राजा साहब हक्का- बक्का रह गए। उन्होंने पूछा- लड़की तू कौन से गाँव को रहने वाली है? हम तो इसी गाँव के रहने वाले हैं। तेरे घर में? हमारा बाप है, जो पड़ोस में ही काम कर रहा है इसी खेत में। हम दोनों खेती का काम करते हैं। हमें उनके पास ले चलो। चलिए अपने पिता के पास ले गई।
महाराज ने घोड़े से नीचे उतरकर उसके पिता को हाथ जोड़कर नमस्कार किया। किसान ने कहा, आप कौन हैं? हम इंदौर के राजा हैं, जिसकी रियाया आप हैं यह गाँव है। आप राजा साहब हैं, हमसे क्या गलती हो गई? गलती कुछ नहीं हुई। हम तो आपसे एक प्रार्थना करने आए हैं, एक भीख माँगने आए हैं। क्या? यह कि अगर आपकी दया और कृपा हो जाए तो आप इस लड़की का हमसे ब्याह कर दीजिए। इंदौर के महाराज से? हमारी बेटी रानी बन सकती है। आप यह क्या कह रहे हैं? मैं सपना देख रहा हूँ या कोई दृश्य। नहीं, आप सपना नहीं देख रहे हैं। हम इंदौर के महाराज हैं और आपसे प्रार्थना कर रहे है कि अगर आपकी कृपा हो जाए तो अपनी यह लड़की हमें दे दीजिए। अच्छा, दे देंगे। दूसरे दिन राजा साहब की सजी धजी बरात आई। बड़े शानदार तरीके से उनका ब्याह हुआ और अहिल्याबाई को विदा कराके ले गए। अहिल्याबाई पढ़ी- लिखी तो थी नहीं, लेकिन वहाँ जाकर पढ़ना- लिखना सीखा। फिर महाराज से यह कहा कि अब देखिए मैं आपकी हुकूमत चलाकर दिखाती हूँ। आप क्या हुकूमत करेंगे? आप बैठे रहा कीजिए, मौज कीजिए। अहिल्याबाई का राज्य इंदौर के इतिहास में अभूतपूर्व राज्य था। इंदौर के महाराज धन्य हो गए और इतिहास धन्य हो गया। अहिल्याबाई को हम बहुत दिनों तक याद करते रहेंगे।
जाग्रत- जीवंत आत्मा कैसी
मित्रो! मैं किसकी बात कर रहा था? अहिल्याबाई की बात कर रहा था। नहीं अहिल्याबाई की नहीं, मैं जाग्रत और जीवंत आत्मा की बात कर रहा था। जाग्रत और जीवंत आत्मा कैसी होती है? बहादुर, साहसी, संकल्पवान आत्मा, उत्कृष्टता और आदर्शवादिता जिसके अंदर ये विशेषताएँ हों।
उदाहरण के लिए एक उपमा दे सकता हूँ इंदौर वाली रानी से। इंदौर वाली रानी की उपमा किससे दे रहे हैं आप? जीवात्मा से और भगवान की किससे उपमा देंगे? तुकोजीराव से। ऐसी जीवात्मा जिसमें संकल्प हो, साहस हो, जिसमें त्याग हो, शौर्य हो, जिसमें बलिदानी भाव हो, जिसमें उत्कृष्टता और आदर्शवादियों हो भगवान उसकी खुशामद कर सकता है, चापलूसी कर सकता है, हाथ जोड़ सकता है और पैर छू सकता है। किसके? उस आदमी के जिसके भीतर संकल्प हो।
रामकृष्ण परमहंस बार बार विवेकानन्द के यहाँ जाया करते थे, हाथ जोड़ा करते थे और कहते कि बच्चे देख हमारा बड़ा काम हर्ज हो रहा है। तू किस झगड़े में लगा है, तु चलेगा नहीं क्या? अभी हमें बी० ए० का इम्तहान देना है। आप बार बार क्यों आ जाते हैं? जब हमारी इच्छा होगी तब आ जाएँगे। नहीं बेटे, तेरी इच्छा से काम नहीं चलेगा। तू समझता नहीं है कि तू किस काम के लिए आया है और तेरे बिना हमारा कितना काम हर्ज हो रहा है? महाराज जी अभी हमको नौकरी करनी है। नहीं बेटे, नौकरी नहीं करनी है, तुझे तो हमारा काम करना है। एक दिन तो मिठाई लेकर जा पहुँचे। ले बेटे, मिठाई खा ले। किस बात की मिठाई है? ले तू मिठाई रवा ले और हमारे साथ चल। मैं कोई बच्चा हूँ जो आप मुझे बहकाने आए हैं। अरे तू बच्चा ही तो है, बच्चा नहीं है तो क्या है? जाग्रत आत्माएँ, जीवंत आत्माएँ क्या हैं? जब गुलाब का फूल खिलता है, तब उसके ऊपर भौंरे आते हैं, तितलियाँ आती हैं और न जाने कौन- कौन आता है। सब दूर- दूर से उसकी सुगंध पाने आते है।
प्रार्थना से नहीं, प्राण भरे स्पर्श से मिलती है सफलता
मित्रो! मैं आपसे यह कह रहा था कि आप फूल की तरह खिल सकते हो तो खिल पड़ो। भगवान से प्रार्थना करेंगे। नहीं बेटे, भगवान से प्रार्थना करने की कोई जरूरत नहीं है। भगवान आपसे प्रार्थना करेगा। हमने सुना है कि प्रार्थना से बड़े- बड़े काम हो जाते हैं। हाँ बेटे, हो जाते हैं। प्रार्थना की कीमत हमने भी सुनी हैं। क्या सुनी है आपने? हम हलवाई की दुकान पर जाते हैं और प्रार्थना करते हैं -हलवाई साहब हमको एक किलो जलेबी चाहिए। अच्छा साहब, आप खूब आ गए, बैठिए जरा सा हाथ धो लूँ, दो मिनट में अभी देता हूँ। देखिए साहब गरमागरम हैं, बिलकुल सही जलेबियाँ की कोई खराबी नहीं है लीजिए। तौल करके उसने पुड़िया में बाँध दीं और हमारी ओर बढ़ाने लगा तथा दूसरा हाथ आगे करने लगा। क्या मतलब है? पैसे लाइए, ऐं पैसे लेगा? हमने तो समझा था कि प्रार्थना से ही जलेबी मिल जाती हैं। भाईसाहब, आपको किसी ने गलत बता दिया हैं।
महाराज जी! सवा लाख के अनुष्ठान से ही लक्ष्मी मिल जाती है? गलत है बेटे। सवा लाख का अनुष्ठान क्या है? प्रार्थना है। हमने सुना है कि पी०सी०एस० और आई०ए०एस० की नौकरी प्राप्त करने के लिए पाँच रुपए का फार्म खरीदना पड़ता है। टाइप कराकर अर्जी और मैट्रिक और बी० ए० के सर्टीफिकेट की कापी अटेस्टेड कराके जैसे ही भेज देते हैं, वैसे पी०सी०एस० और आई०ए०एस० का हुकुम आ जाता है। नहीं बेटे, इतना तो तेरा कहना सही है कि फार्म पाँच रुपए का ही आता है, अर्जी टाइप कराने के पचहत्तर पैसे देने पड़ते हैं, उसमें फोटो लगाना और पिछले वाले रिजल्टों की कापी अटैच करनी पड़ती है। तो महाराज जी, इतना काम करने के बाद फिर कलेक्टर नहीं हो जाते, कमिश्नर नहीं हो जाते? नहीं बेटे, उसके साथ में एक और टेस्ट का झगड़ा पड़ा हुआ है। वह यह है कि तेरा वाइवा लिया जाएगा और रिटेन टेस्ट लिया जाएगा। इतना सब पास करने के वाद की चयन होगा। मैं तो समझता था कि फार्म से ही सब हो जाएगा। नहीं, इससे नहीं हो सकता।
मित्रों! प्रार्थनाएँ- पूजाएँ, जिनको हम भजन- पूजन कहते है, इनका भी महत्त्व है। अगर हम प्रार्थना न करें, पूजा न करें तो? तो फिर जिस तरह आप टिकट के लिए स्टेशन मास्टर के पास जाएँ आ चुपचाप खड़े रहे, कुछ न कहें। क्या मतलब है आपका? अपनी बात क्यों नहीं कहते? अरे कोई बात हो तो बताओ? नहीं कुछ नहीं। तो चल भाग यहाँ से। बेटे, आपको कहना होगा कि हमें यहाँ से दिल्ली तक के सेकेंड क्लास के दो टिकट चाहिए और रुपए दीजिए। जो टिकट दे देगा? हाँ दे देगा। इसकी जरूरत है? हाँ बहुत जरूरत है। अगर आप नहीं कहेंगे तो स्टेशन मास्टर को मालूम कैसे पड़ेगा कि आप कहाँ जाना चाहते हैं और कितने टिकट, कौन से क्लास के लेना चाहते हैं? यह सब बताने की जरूरत है। यह प्रार्थना जिसको हम पूजा कहते हैं, भजन कहते हैं। इसकी कीमत यहीं तक सीमित है कि भगवान से यह प्रार्थना करते हैं कि हम कहाँ जाना चाहते हैं, क्या करना और किधर बढ़ना चाहते हैं? हमारा लक्ष्य क्या है, हमारा उद्देश्य क्या है? हमारे संकल्प क्या हैं, हम करना क्या चाहते हैं? यह अपनी एक दिशा और धारा बनाने वाली बात है।
साक्षी है इतिहास
बेटे, इससे आगे यह करना पड़ता है, जो कि प्रत्येक संत ने किया है। भगवत् भक्तों का कितना लंबा इतिहास हैं। भगवत् भक्तों के इतिहास को, प्रत्येक ब्राह्मण के जीवन को और ऋषियों के जीवन को हम पढ़कर देखते हैं। भगवान के रास्ते पर चलने वाले प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को हम देखते हैं और यह मालूम करने की कोशिश करते हैं कि आखिर भगवान के भक्तों को माला घुमाने के सिवाय भी कुछ काम करना पड़ा है क्या? नाक से प्राणायाम करने, तिलक लगाने के अलावा भी कुछ करना पड़ा है क्या? नहीं बेटे, कुछ और भी करना पड़ा है। क्या करना पड़ा है? यही बताने के लिए मैं आपको बुलाता हूँ।
मित्रों भगवत् भक्तों के प्राचीनकाल के इतिहास में से एक भी भक्त का ऐसा उदाहरण मुझे बताइए जो केवल माला घुमाता रहा हो। जिसने भगवान के क्रिया- कलापों में कोई प्रत्यक्ष हिस्सेदारी न ली हो। प्राचीनकाल के ब्राह्मण और संत मितव्ययी, किफायत का जीवन जीते थे। वे भजन करते थे, स्वाध्याय करते थे, ठीक है पर इससे भी ज्यादा एक और बात है कि वे बादलों के तरीके से हमेशा बरसते रहते थे। नहीं साहब, वे तो माला ही घुमाते रहते थे। नहीं साहब, वे तो प्राणायाम ही करते रहते थे। नहीं बेटे, प्राणायाम भी करते थे। यों मत कह कि प्राणायाम ही करते रहते थे, वरन यों कह कि वह प्राणायाम भी करते थे, व्यायाम भी करते थे। हाँ, व्यायाम की भी हमको आवश्यकता है, कसरत की भी हमको जरूरत है, हम तो सारे दिन व्यायाम करेंगे? नहीं, सारे दिन व्यायाम नहीं किया जा सकता। क्या करना पड़ेगा? भगवान के क्रियाकलापों में हिस्सेदारी करने के लिए हमको उनकी सहायता के लिए उनके सुंदर उद्यान को सुरम्य बनाने के लिए भी कुछ करना पड़ता है। यही मुझसे मेरे गुरु ने कहा और मैं दोनों काम करता हुआ चला आया।
उपासना कैसे सार्थक हो सकती है? उपासना कैसे मंत्रसिद्ध हो सकती है? भगवान का अनुग्रह प्राप्त करने के अधिकारी हम कैसे हो सकते हैं? मित्रों, ये सारे के सारे घटनाक्रम हमारे आमने है। आज तक के भी जीवन के घटनाक्रम आपके सामने है। प्राचीनकाल के भगवत् भक्तों के जीवन का इतिहास आपके आमने है। भगवान राम के सबसे प्रिय शिष्य, सबसे प्रिय भक्त हनुमान जी का जीवन आपके सामने खुली पुस्तक के समान पड़ा है। उन्होंने भजन किया था ?? किया होगा, मैं यह तो नहीं कहता कि भजन नहीं किया था। प्राणायाम नहीं किया होगा?बेटे किया होगा। लेकिन सबसे प्यारे भगवान के भक्त हनुमान जी की उपासना, उनके जीवन की पुस्तक को खोलकर आप पहिए। उनका एक ही क्रम रहा- 'राम काज कीन्हें बिना, मोहि कहीं विश्राम।' राम नाम ही काकी नहीं है, राम का काम भी करना पड़ेगा।
अर्जुन ने सौंपा अपने आप को
भगवान श्रीकृष्ण के सबसे प्रिय शिष्यों में से हम अर्जुन का इतिहास देखते हैं। अर्जुन ने भजन नहीं किया होगा? किया होगा, बेटे मैं यह नहीं कहता कि वह भजन नहीं करता था। अर्जुन ने ध्यान- जप किया था? बेटे, जरूर किया होगा। मुझे मालूम नहीं। उनकी कुंडलिनी भी जगी होगी? जगी होगी, यह भी वायदा नहीं करता कि जगी होगी या नहीं जगी। लेकिन सबसे बड़ी बात, सबसे बड़ी उपासना साधना उसकी यह थी कि उसने भगवान के इशारे पर अपनी जिंदगी के खरच करने का साहस किया था। हनुमान, नल नील, जामवंत, अंगद और सुग्रीव, ये जितने भी भगवान के भक्त थे, इन्होंने कितने प्राणायाम किए, कितनी भक्ति की, मैं नहीं जानता, पर यह जानता हूँ कि उन्होंने जीवन को अपनी हथेली पर रखकर भगवान के चरणों पर समर्पित करने की कोशिश की और यह कहा- आप इशारा तो कीजिए हम उसी और चलेंगे।
मित्रो! आज का वक्त कुछ इसी तरह का है, जिसमें मैंने आपको बुलाया है। भगवान हम लोगों से कुछ चाहता है। यह पुनर्गठन वर्ष जो आप लोगों के सामने है, इसमें भगवान ने एक नई स्फुरणा ली है। महाकाल ने एक नई करवट ली है। उसने आप जैसी जीवंत आत्माओं को विशेष रूप से बुलाया है। आप अपने को जान नहीं पाते, मैं जानता हूँ, इसीलिए बार- बार आपको पत्र भेजे हैं। हनुमान अपने आप को नहीं जानते थे कि वे कौन हैं? हनुमान जी को जब सुग्रीव ने यह पता लगाने के लिए भेजा कि राम- लक्ष्मण कौन हैं, तो वे अपना वेश बदलकर ब्राह्मण का रूप बनाकर गए थे और नमस्कार करके उनसे पूछने लगे कि आप कौन हैं? लेकिन राम उन्हें जानते थे, इसीलिए पता लगाते- लगाते, हनुमान जी को तलाश करते, अंगद को तलाश करते वे ऋष्यमूक पर्वत पर जा पहुँचे। एक ही पहाड़ था? नहीं बेटे, वहाँ तो बहुत पहाड़ थे, किसी और पर भी वे जा सकते थे, लेकिन ऋष्यमूक पर इसलिए गए कि वहीं हनुमान, अगर जैसे उनके भक्त रहते थे।
अध्यात्म ही बनाएगा, अच्छा आदमी
आप लोगों को बुलाने का मतलब, हमारा मकसद यही है कि जिस तरीके से आज से पचपन वर्ष पहले हमारे गुरु ने हमको जगाया था, हम भी आपको जगाएँ। जिस तरीके से उन्होंने हमारा मार्गदर्शन किया था, हम आपका मार्गदर्शन करें। क्यों ? क्योंकि अब अच्छा आदमी अगली पीती के लिए अत्यधिक आवश्यक है। अब अध्यात्म के बिना मनुष्य की नैतिक आवश्यकताएँ पूरी नहीं हो सकेगी। अध्यात्म के बिना मनुष्य के क्रिया- कलापों में नैतिकता का समावेश न हो सकेगा, अगर ऐसा न हो सका तो जो आज की परिस्थितियाँ हैं, उनका कोई समापन न हो सकेगा। आज की परिस्थितियों और भी उलझती चली जाएँगी और मनुष्य हैरान होता चला जाएगा। इन हैरानियों का और कोई समाधान नहीं है।
मित्रो! हमारा मन दिन−रात विक्षुब्ध और अशांत रहता है। दिल धड़कता रहता है। हमारे मन पर न जाने क्या- क्या छाया रहता है। यह कौन करता है? राजनीति? नहीं साहब राजनीति तो नहीं करती, हमारे बेटे ही बागी और उत्पाती हो गए है, कहना ही नहीं मानते। स्त्री- पुरुषों के बीच में ऐसा भयंकर युद्ध होता है, अगर उनके बच्चे नहीं होते तो अब तक स्त्री तलाक देकर, घर छोड़कर चली गई होती। बच्चों ने पकड़ रखा है। बच्चे मम्मी को भी पकड़कर रखते हैं और बाप को भी। आफत के पुतले ये बच्चे हैं। घर में क्लेश चलते रहते हैं और जलते रहते हैं। कौन जलाता है? बेटे, यह हमारी विकृत मन:स्थिति जलाती है। विकृत मनःस्थिति का सुधार किए बिना मानवीय समस्याओं का कोई समाधान नहीं है। राजनीतिक समस्याओं, सामाजिक कुरीतियों का कोई समाधान नहीं, इसलिए व्यक्ति को ही ठीक करना पड़ेगा।
मित्रो! व्यक्ति को ठीक करने का एक ही तरीका है, जिसका नाम है अध्यात्म। इस अध्यात्म का जीवंत रखने के लिए और आपको मिलकर प्रयास करने चाहिए। इस समय में भगवान ने, महाकाल ने यही पुकार की है कि मनुष्य जाति के गिरते हुए भविष्य को सुधारने सँभालने के लिए उज्ज्वल भविष्य की संभावनाओं को सार्थक करने के लिए हममें मे प्रत्येक जीवंत और जाग्रत आत्मा को प्रयत्न करना चाहिए ताकि अध्यात्म को जिंदा रखा जा सके। अध्यात्म किस तरह से जिंदा रखा जा सकता है? अध्यात्म का शिक्षण कैसे किया जा सकता है? अध्यात्म की गतिविधियों को आगे कैसे बढ़ाया जा सकता है? अध्यात्म बेटे वह वाणी का विषय नहीं है। वाणी का विषय रहा होता तो अब तक बहुत से एक से एक बढ़िया पंडित, एक है एक बढ़िया रामायणी हुए है। एक से एक बढ़िया कथावाचक हुए हैं। एक से एक बढ़िया ज्ञानवान प्रतिमाएँ भरी पड़ी हैं। उन्होंने तो सबको अध्यात्ममय कर दिया होता और दुनिया न जाने कहाँ से कहाँ चली गई होती, पर अध्यात्म इनके वश का नहीं है।
यह एक विशेष समय
साथियो! अध्यात्म के विस्तार का कार्य हम सबको करना है। इसका शिक्षण, लोकशिक्षण करने के लिए हमें अपने व्यक्तिगत जीवन को फिर से ठीक करना पड़ेगा। जलता हुआ दीपक ही प्रकाश पैदा कर सकता है। हम कैसे प्रकाश पैदा करें ? आप अपने भीतर प्रकाश पैदा कीजिए तभी दूसरों को प्रकाश दे पाएँगे। दुनिया में हम आध्यात्मिकता फैलाएँ, यह आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। महाकाल ने आपको पुकारा है और यह कहा है कि आप एक विशेष व्यक्ति हैं। यह एक विशेष समय है। इस विशेष समय में आपकी विशेष जिम्मेदारी है। अपने मुहल्ले में यदि कोई अग्निकाण्ड हो जाता है तो हम अपना पूजा- भजन भी छोड़ देते हैं, नहाना- खाना भी छोड़ देते हैं और बाल्टी लेकर पानी भरकर आग बुझाने के लिए चले जाते हैं। यह ऐसा ही समय है, जिसमें हम और आप रह रहे हैं। इस समय का युगधर्म, आपत्ति- धर्म यह है कि हमको अपने सामान्य जीवन को अपेक्षा विशेष समय के बारे में ध्यान देना चाहिए। भगवान की पुकार पर ध्यान देना चाहिए। महाकाल ने ये संवेदनाएँ फैलाई हैं और खासतौर से जाग्रत आत्माओं के भीतर जो हलचल और स्थान पैदा किए है, उनकी ओर हमको और आपको गौर करना चाहिए। यह बड़ा उपयोगी समय, जागरण का समय है, युग संध्या का समय है। जो लोग युगसंध्या का मूल्य नहीं समक्ष पाते और उसकी उपेक्षा करते रहते हैं, वे पीछे पछताते रहते हैं।
मित्रो! थोड़े समय पहले गाँधी जी का स्वराज्य आन्दोलन आया था, जिसमें जाग्रत आत्माएँ उछलकर आगे आ गई थी और सत्याग्रह के रूप में काम कर रही थीं। सब दुनिया कह रही थी कि ये नुकसान उठाएँगे। ऐसा कहने वाली में मित्र, पड़ोसी और संबंधी भी होते थे। वे सभी कहते थे कि आप बेवकूफी का कदम उठा रहे हैं, लेकिन बेवकूफी का कदम उठाने वालों ने समय को देखा, जाना और जानने के खाद में क्या से क्या हो गए, आपने देखा? एक छोटा सा वकील वल्लभ भाई पटेल क्या से क्या बन गया? हिंदुस्तान का गृहमंत्री। छोटा सा मौलाना अबुल कलाम आजाद क्या हो गया? हिंदुस्तान का शिक्षामंत्री। पं जवाहर लाल नेहरू एक वकील के लड़के थे। क्या हो गए? प्रधानमंत्री हो गए और कहाँ से कहाँ पहुँच गए।
मित्रो! जिन्होंने समय को देखा, समय की पुकार सुनी और समय के साथ- साथ आगे आए, वे नफे में रहे। जिन्होंने समय चुका दिया, वे रोते रहते हैं और कहते हैं कि हम भी छह महीने जेल हो आते तो दो सौ रुपए पेंशन हमको भी मिल जाती और हम भी स्वतंत्रता सेनानी हो जाते। क्यों नहीं गए आप? अब क्या शिकायत कर रहा है- कमजोर, कायर कहीं का। मित्रो! यह दिलेरों का, बहादुरों का, शूरवीरों का, साहसियों का रास्ता है। इसीलिए साहसियों का रास्ता दिखाने के लिए मैंने आपको बुलाया है। आप यदि बीज के तरीके से हिम्मत करें तो वृक्ष की तरह से फलने के लिए यही ठीक समय है, यहीं गुंजाइश है। इससे अच्छा बेहतरीन समय शायद फिर कभी आपकी जिंदगी में नहीं आने वाला है।
मेरे बुलावे का मकसद
मेरी जिंदगी में तो अच्छा समय आया था। आज से पचपन वर्ष पहले, जब मेरा फरिश्ता मेरा गुरु मेरे पास आया था। भगवान को हजार बार धन्यवाद, कोटि- कोटि धन्यवाद कि उसने मेरे भीतर वह संवेदना पैदा की और मैंने गौर से उसकी बात सुनी। नहीं तो आपकी तरह से मैं भी मजाक उड़ा सकता था कि मुझे भी शादी करनी है, बच्चे पैदा करने हैं, अपना मकान बनाना है, खेती करनी है, मुझे फर्स्ट डिवीजन लगना है और पी सी एस. की नौकरी करनी है। लेकिन मित्रो, मेरे विवेक ने मेरा साथ दिया। मैं चाहता हूँ कि आपका भी विवेक आपके साथ हो। कोई फरिश्ता, जो इस वातावरण पर छाया हुआ है, जो बड़े- बड़े काम करने जा रहा है, जिसने बड़े- बड़े कदम उठाए हैं, वह फरिश्ता आपको भी जगा पाए। आपके भीतर भी कोई स्पन्दन पैदा कर पाए। आपका विवेक जाग्रत कर पाए। मेरे बुलाने का मकसद यही है। महाराज जी! आपका मकसद तो यहाँ उदघाटन कराने का था? हाँ बेटे, उदघाटन तो कराना चाहता हूँ लेकिन जिस उदघाटन को आप लोग करने के लिए आए हैं, वह एक सामयिक घटना नहीं है। वह तो एक संभावना है।
क्या संभावना है ?? जिस ब्रह्मवर्चस का आप उदघाटन करने के लिए आए हैं, यह महाकाल की एक संभावना है। हम अध्यात्म की एक नर्सरी, एक प्रयोगशाला बनाना चाहते हैं। हम बताना चाहते हैं कि आध्यात्मिक शक्तियों को जगाने के लिए क्या किया जा सकता है? जिस बिल्डिंग को आप देखकर आए हैं, बेटे, यह मात्र बिल्डिंग नहीं है। यह लेबोरेटरी- प्रयोगशाला है। क्या होगा इससे? मित्रों, आने वाले समय में शक्तियों में बिजली की शक्ति, एटम की शक्ति, पैसे की शक्ति, अक्ल की शक्ति पीछे हटने वाली है। सबसे आगे जो शक्ति आने वाली है, वह रूहानी शक्ति हैं। जो हमारे प्राचीनकाल के बुजुर्गों की शक्ति थी। जिसके आधार पर उन्होंने अपने देश को स्वर्ग बनाया था और सारी दुनिया में शांति फैलाई थी। बही रूहानी शक्ति फिर जिंदा होने वाली है।
महाराज जी! आप इसे कहाँ से पैदा करेंगे? हम बेटे, उसे इस उदघाटन की छोटी सी इमारत में से पैदा करेंगे, जिसको आप ब्रह्मवर्चस के नाम से अभी देख करके आए हैं। यह इमारत तो उसका लिफाफा है। लिफाफा कैसा होता है? लिफाफा ऐसा होता है बेटे कि जब बच्चा पैदा होने वाला होता है तो उसकी माँ कई चीजें बनाकर रख लेती है। यह क्या बनाकर रखा है? चड़्डी और कुरता। यह क्या बनाकर रखा है? उसके मुँह से लार निकलेगी तो गले में बाँधने का। तो बच्चा कहाँ है? अभी बच्चा पैदा नहीं हुआ है, पर उसके लिए कपड़े सिलकर रख लिए हैं। जिसको आप देख करके आए हैं। बच्चा तो पैदा होने वाला है। बच्चा कैसे पैदा होगा? बच्चा बेटे, ऐसे पैदा होगा कि यहाँ उपासना करने के लिए जो व्यक्ति आएँगे, उनके भीतर वह अध्यात्म पैदा करने की कोशिश करेंगे, जिसको जीवंत अध्यात्म कहते हैं।
जीवंत अध्यात्म पैदा होगा
जीवंत से क्या मतलब है? यह अध्यात्म की लाश? जिसको आप लिए फिर रहे हैं। कौन सी लाश? यही नाक से हवा निकालने वाली लाश, केवल माला घुमाने वाली लाश। तो यह अध्यात्म नहीं है? नहीं बेटे, यह अध्यात्म नहीं है। यह तो इसकी लाश, इसका कलेवर है। कलेवर का अध्यात्म कैसा होता है? अध्यात्म बेटे, सिद्धांतों- आदर्शों का नाम है, हिम्मत का, बहादुरी का नाम है और श्रेष्ठता को जीवन में धारण करने का नाम है। यह ब्रह्मवर्चस जिसका आप उदघाटन करने के लिए आए हैं, इसमें हम अध्यात्म का शिक्षण करेंगे। यह एक प्रयोगशाला है। इसमें हम अध्यात्म का स्वरूप समझाएँगे और अध्यात्म को जीवन में किस तरीके से काम में लाया जा सकता है, इसका आपको प्रयोग करके बताएँगे। पहला काम इस आश्रम का यह है कि हम अध्यात्म के स्वरूप की ए- बी समझाएँगे, जो किसी को नहीं मालूम। अध्यात्म के बारे में लोग कुछ नहीं जानते। अध्यात्म की लाश को जानते है। रामायण पढ़ने से मुक्ति को जाती है और रामचन्द्रजी का नाम लेने से भजन हो जाता है। बेटे, यह लाश हैं रामायण की। रामायण का प्राण तो वह है, जो हनुमान जी ने पिया था, जो तुलसीदास जी ने पिया था। जिसका अर्थ है- जीवन में रामनाम को घुला लेना।
मित्रो! ब्रह्मवर्चस की स्थापना का उद्देश्य यही है कि अध्यात्म का स्वरूप, अध्यात्म के सिद्धांत, अध्यात्म के आदर्श, अध्यात्म की संभावनाएँ जनसाधारण को समझाएँ और यह बताएँ कि आप कलेवर को भी कायम रखिए। कलेवर की मैं निंदा नहीं करता हूँ। माला से मेरा कोई द्वेष नहीं है। अखण्ड कीर्तन से मेरी कोई लड़ाई नहीं है, लेकिन मैं यह कहता हूँ कि अखण्ड कीर्तन के पीछे प्राण होना चाहिए। जप के पीछे, ध्यान के पीछे, उपासना के पीछे प्राण होना चाहिए। तीर्थयात्रा के पीछे, रामायण पाठ के पीछे प्राण होना चाहिए। प्राण अगर नहीं हैं को ये लाशें केवल सड़न पैदा करेंगी, भ्रम और अज्ञान पैदा करेंगी। लोगों में भटकाव पेश करेंगी। लोगों में ये भ्रांति पैदा करेंगी कि इससे यह मिल जाएगा, और जब कुछ मिलेगा नहीं तो फिर लोग गालियों देंगे। यह क्या हो गया? बेटे, सड़न पैदा हो गई।
अध्यात्म का विस्तार करने की दृष्टि से छोटा सा आश्रम, मंदिर जिसके उद्घाटन के लिए आपको बुलाया है। इसमें क्या वाम करेंगे? बेटे, हम चाहते हैं कि सारे के सारे मंदिर धर्म की स्थापना के केंद्र, जनजाग्रति के केंद्र बनें। प्राचीनकाल में भी मंदिर जनजाग्रति के केंद्र बनाए गए थे। हम भी यहीं चाहते हैं कि जहाँ कहीं भी मंदिर बने, उनका स्वरूप ये हो कि भगवान ही नहीं, इनसान भी उसमें स्थान लें। और क्या- क्या रहेगा? बेटे, इसमें जान रहेगा, विचार रहेगा, चेतना रहेगी, लोकहित रहेगा। नहीं साहब भगवान अकेले बैठेंगे। नहीं बेटे, भगवान को हम अकेले नहीं बैठने देंगे। नहीं साहब, सारे मदिर में भगवान टाँग पसारेगा। नहीं बेटे, अब हम भगवान को टाँग नहीं पसारने देंगे। भगवान से कहेंगे कि पिताजी। आप हमारे लिए भी जगह दीजिए, हम पड़ेंगे। आप तो वहाँ तख्त पर पड़िए, सारे कमरे में हम सोएँगे, हम पिता हैं। नहीं पिताजी! आपको सारा मंदिर घेरने की जरूरत नहीं हैं, थोड़े में आप रहिए बाकी में हम रहेंगे।
नए युग के नए ज्ञानमंदिर
मंदिर को ज्ञानमंदिरों के रूप में विस्तार करने का हमारा मन है। कैसे? नए युग में धर्म के लिए स्थान भी चाहिए। रोटी, कपड़ा और मकान तो चाहिए ही। नए युग का जो नया धर्म आएगा, उसके लिए मंदिरों की जरुरत पड़ेगी। हमने ब्रह्मवर्चस में जो मंदिर बनाया है इसी काम के लिए बनाया हैं कि भगवान से संबंधित वृत्तियों का निवास भी उसी में रहे; जैसे- पुस्तकालय, पाठशाला, प्रौढ़ पाठशाला, शिक्षण संस्थान आदि। ये भी उसी मंदिर में रहे, इसके लिए एक बड़ा सा हाल बन जाए। ये क्या चाहते है? बेटे, हम धर्म को फिर से जीवंत रखने के लिए एक प्रयत्न करने वाले है।
समर्थ गुरु रामदास से शिवाजी ने यह कहा था कि महाराज! स्वाधीनता के लिए हमको सेना की, पैसे की जरूरत पड़ेगी। हमको हथियारों की, अनाज की जरूरत पड़ेगी। समर्थ गुरु रामदास ने कहा- बेटे, हमारे पास तो नहीं है, पर हम ऐसा इंतजाम किए देते हैं, जहाँ से तेरी सारी आवश्यकताएँ पूरी हो जाएँ।
उन्होंने महाराष्ट्र के गाँव-गाँव में घूम करके महावीर मंदिर बनाए। महाराष्ट्र के प्रत्येक गाँव में समर्थ गुरु रामदास के द्वारा स्थापित किये गए मंदिर अभी भी हैं। फिर लोकमान्य तिलक ने गणेश पूजा का विस्तार किया था। महाराष्ट्रियनों को इकट्ठा होने के लिए लोकमान्य तिलक ने आवाज लगाई कि हमको प्राचीन परम्पराओं के आधार पर नवजीवन का संचार करना चाहिए ; उन्होंने गणेश जी की पूजा चला दी थी। गणेश जी की चतुर्थी, फिर गणेशोत्सव प्रचालन सारा लोकमान्य तिलक का चलाया हुआ है। महावीर पूजा समर्थ गुरु रामदास नेचलाई। बेटे, हम यह चाहते हैं कि ये मंदिरों की जैसी स्थापना की गई है, उसी तरह के मंदिर बनें। नहीं महाराज जी ! हमारे पास धन नहीं है। ठीक है हम जानते हैं कि आपके पास धन नहीं है। लेकिन वे परम्पराएँ जो कि महाकाल ने चालू कीं, जो हमारे गुरु ने हमसे चाहीं और हम आप से चाहते हैं, वे परम्पराएँ फिर से पैदा हो जाएँ।
बेटे, सबसे पहले आपको अपने घर में मंदिर स्थापित करना चाहिए। आस्तिकता इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। राजनीति से, समाजशास्त्र से, धर्म से, विद्या से बड़ी आवश्यकता यह है कि मनुष्य की नीयत और ईमान को साफ करने के लिए आध्यात्मिकता का विस्तार किया जाए। यह कैसे होगा ? शुरुआत आप कीजिए। बेटे, हमें अपने-अपने घरों में से आस्तिकता का विस्तार करने की प्रक्रिया अभी से चालू करनी है। अपने घर में आप ही तो जप करते हैं। हाँ साहब ! हम करते हैं। और आपकी पत्नी ? नहीं साहब ! वह तो नहीं करती। आपके बच्चे ? नहीं साहब ! वे तो सुनने को बिलकुल भी तैयार नहीं हैं। आपका भाई ? भाई तो साहब गालियां देता है। भावज ? भावज तो बस मुंह फेर लेती है। तो कौन जप करता है ? एक ही अकेले करते हैं। तो बेटा, अकेला चना क्या भाड़ फोड़ लेगा ! अकेले चने से भाड़ नहीं फूटता। प्रचार का जो काम सौंपा गया था, उसे तू अपने घर से शुरू कर। आज की बात समाप्त।
।। ॐ शान्तिः ।।