Books - आध्यात्मिक उत्कर्ष के सोपान — योग और तप
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आध्यात्मिक उत्कर्ष के सोपान — योग और तप
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गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
पूजा-उपासना का महत्त्व
देवियो, भाइयो! आध्यात्मिक जीवन में पूजा-उपासना का बहुत अधिक महत्त्व है। सामान्य व्यक्तियों से लेकर सिद्ध-महात्माओं, संतों, ऋषि-मुनियों ने इसे अपने जीवन का अनिवार्य अंग बनाया और आत्मोत्कर्ष की दिशा में आगे बढ़ने में सफल रहे हैं। आपने तो पूजा-पाठ को मखौल बना रखा है। दिल्लगीबाजी समझ रखा है। मित्रो!मैंने स्वयं पूजा−पाठ किया है और लाखों लोगों को पूजा−पाठ में लगाया है। चौबीस साल तक छः-छः घंटे रोज नियमित रूप से मैं पूजा-उपासना में बैठता रहा। अभी भी मेरा समय प्रायः उसी तरीके से व्यतीत होता है। मैं दो बजे रात में उठता हूँ। जब दुनिया सोया करती है, ठंडक में सिकुड़ी पड़ी रहती है और चैन की बंसी बजातीरहती है, तब मैं अपनी पूजा में दो से पाँच बजे तक बैठा हुआ होता हूँ। पूजा-उपासना अगर बेकार की बात होती है, पूजा अगर निरर्थक होती, पूजा अगर दिल्लगीबाजी रही होती, तो मैं क्यों करता? नहीं मित्रो! मैंने स्वयं पूजा−पाठ किया है, उपासना किया है।
मित्रो! मैंने अपने आपको पूजा-उपासना में लगाया है और गायत्री मंत्र की दीक्षा देकर लाखों आदमियों से निवेदन किया है कि आपको पूजा करनी चाहिए, उपासना करनी चाहिए। अभी भी मैं पत्रिकाओं में लेख लिखता रहा हूँ। बसंत पंचमी से फिर मैं लोगों के भीतर एक नया उत्साह, नया जोश भरने की इच्छा करता हूँ कि जीवन केअंतिम समय में फिर लोगों को उपासना करना सिखा करके चला जाऊँ। उपासना में मेरी अटूट निष्ठा है, फिर मैं आपकी निष्ठा को कम क्यों करूँगा? मुझे भय रहता है कि कहीं पूजा-उपासना में आपका विश्वास कम न हो जाय। इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप पूजा-उपासना करें, तो विधिपूर्वक करें, नियमपूर्वक करें और क्रमपूर्वककरें। अगर आप मखौल के तरीके से करना चाहते हैं, तो मैं चाहता हूँ कि आप न करें।
मित्रो! इससे क्या फायदा होगा? इससे यह फायदा होगा कि आप नास्तिक होने से बच जायेंगे। क्योंकि जो ख्वाब हमने आपको दिखाये हैं कि उपासना से यह लाभ होना चाहिए, अमुक लाभ होना चाहिए। जब आपके पास वह लाभ नहीं रहेंगे, तो उन कम्युनिस्टों की बनिस्बत आप बड़े बुरे किस्म के नास्तिक हो जायेंगे। वे सही किस्मके नास्तिक हैं। वे इसलिए नास्तिक हैं कि उनको यह विश्वास नहीं होता कि कोई भगवान भी हैं क्या? उनको यह विश्वास नहीं होता कि पूजा-उपासना कोई फल दे सकती है क्या? अगर कोई उनको विश्वास दिला दे और उनको यह विश्वास हो जाय कि ईश्वर है, तो मैं समझता हूँ कि आपकी अपेक्षा वे ज्यादा निष्ठावान हो सकते हैं।क्योंकि वे अपने विचारों के प्रति ईमानदार हैं और सच्चे हैं और आप अपने विचारों के प्रति बेईमान हैं और झूठे हैं। कैसे? आप इसलिए झूठे और नास्तिक हैं, क्योंकि आप भगवान के नियम और कानून—कायदों को मानना नहीं चाहते। आप चाहते हैं कि आपके लिए दुनिया के नियम और कायदे बदल जायँ, भगवान की व्यवस्थाएँबदल जायँ और आपको कम कीमत पर वो सब अच्छी चीजें मिल जायँ। आप कम कीमत पर अच्छी चीजें माँगते हैं न?
आस्तिकता और नास्तिकता—अर्थ समझें
कम कीमत का क्या मतलब है? कम कीमत माने भजन। भजन किसे कहते हैं? बेहद कम कीमत की चीज को, जिसमें न आपको पसीना बहाना पड़ता है, न हथौड़ा चलाना पड़ता है, न हल चलाना पड़ता है, न धूप में खड़े होना पड़ता है और न श्रम करना पड़ता है। बस पालथी मारकर बैठ जाते हैं और हथौड़ा भी नहीं चलाते।हथौड़ा तो चलाया कीजिए? नहीं साहब! हम तो माला चलाते हैं। माला में कितनी मशक्कत करनी पड़ती है? माला चलाने में तो कुछ भी मेहनत नहीं करनी पड़ती। अँगुलियों से लकड़ी का एक-एक टुकड़ा घुमाते रहते हैं। बस, इतनी कम कीमत में आप क्या-क्या माँगते हैं? मनोकामनाओं की पोथी माँगते हैं, रुपया माँगते हैं, बेटी-बेटेमाँगते हैं, नौकरी में तरक्की माँगते हैं, स्वर्ग माँगते हैं, शांति माँगते हैं। देवी-देवताओं को अपना नौकर बनाना चाहते हैं, गुलाम बनाना चाहते हैं। और जाने क्या-क्या चाहते हैं? बेटे! कीमत चुकाकर के दुनिया में हर चीज पाई गयी है। और आप बिना कीमत के इतनी लम्बी-चौड़ी चीजें चाहते हैं। इसलिए हम आपको नास्तिक कहते हैं।कम्युनिस्ट नास्तिक नहीं हो सकते, क्योंकि वे समझते हैं कि मशक्कत करेंगे, तो कुछ पायेंगे, मशक्कत नहीं करेंगे, तो नहीं पायेंगे। और आप बिना मशक्कत के पाना चाहते हैं। इसलिए आप नास्तिक हैं, वे नास्तिक नहीं हैं।
मित्रो! आपको आस्तिकता की गहराई में जाना पड़ेगा, अगर आप उससे कुछ फायदा उठाना चाहते हों, तब। अगर आपको खेती में फायदा उठाने का जी है, और बगीचे में आपको फायदा उठाने का जी है, तो आपको खेती करने की कला और खेती करने की जिम्मेदारी समझनी चाहिए। धूप में खड़ा होने के लिए तैयार होना चाहिए।पानी में खड़ा होने के लिए तैयार होना चाहिए। जमीन में लिपटने के लिए तैयार होना चाहिए और सिर पर खाद ढोकर ले जाने के लिए तैयार होना चाहिए। समय पर अपने पेड़-पौधों में पानी लगाने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। अगर आप फसल चाहते हैं तब रात को जंगली जानवरों से फसल की रखवाली करने के लिए जागने कोतैयार हो जाना चाहिए। नहीं साहब! हम फसल तो चाहते हैं, पर मेहनत करना नहीं चाहते। तो बेटे, फसल नहीं मिल सकती।
योग और तप—आध्यात्मिक बाग के खाद-पानी
मित्रो! आध्यात्मिकता एक फसल है। आध्यात्मिकता एक बगीचा है। इसमें राम नाम का बीज बोने के तरीके से ही उद्यम किया जाता है। बीज को बोये बिना काम नहीं चल सकता, इस बात को हम सभी जानते हैं। फिर आप बिना बीज बोये किस तरह से फसल पा सकते हैं? बीज बोये बिना आप किस तरह से बगीचा लगा सकते हैं?बीज की कीमत अपनी जगह पर है, परन्तु दूसरी चीजों की कीमत उससे कहीं ज्यादा है, जो हमारी उपासना को सार्थक बनाने में समर्थ हो सकती हैं। हमारा मन और हमारी उपासना कैसे समर्थ हो सकती है? बेटे, हमने आपको जप करने की जो विधि बताई थी, पूजा करने की विधि बताई थी, उसमें खाद और पानी लगाया जानाचाहिए। खाद और पानी क्या है? खाद और पानी का मतलब है—योग और तप। उसी योग और तप के लिए हमने आपको यहाँ शिविर में बुलाया है।
मित्रो! अब तक हमने आपको ज्ञान की चार धाराएँ बताईं, जिनको जानने के पश्चात् आपकी अकल सही हो सकती है और आपके विचार करने के तरीके ठीक हो सकते हैं। अगर आपके विचार करने के तरीके ठीक हों, तो यह दुनिया बड़ी शान्त, बड़ी समुन्नत, बड़ी खुशहाल, बड़ी उन्नतिशील, बड़ी सहयोगी आपको दिखाई पड़सकती है। अगर आपके विचार करने के तरीके गलत होंगे, तो यह दुनिया आपको बड़ी खौफनाक, बड़ी डरावनी, खूँखार, बड़ी भयभीत और बड़ी कुरूप मालूम पड़ेगी, अगर आपकी अक्ल ठिकाने पर नहीं है तब। दुनिया में आपको जितनी भी विकृतियाँ दिखाई देती हैं, वास्तव में उतनी हैं नहीं, जितनी कि आपको दिखाई पड़ रही हैं।आपको अपने विचारों में जितनी कंगाली छाई हुई दिखाई पड़ती है, वास्तव में आप उतने कंगाल हैं नहीं। आपको दुनिया जितनी खतरनाक और खौफनाक दिखाई पड़ती है, वास्तव में वह उतनी नहीं है। केवल आपकी अक्ल का फर्क है। आपकी अक्ल आपके लिए खौफनाक बना करके सामने आ जाती है और डरा देती है।
मित्रो! मुझे एक घटना याद है। इंग्लैण्ड में जब सबसे पहले रेलगाड़ी चलाई गयी, तो सबसे पहले यह विचार किया गया कि रानी विक्टोरिया को इसमें सबसे पहले सफर कराया जाय। विक्टोरिया सबसे पहले रेलगाड़ी पर सवार हुईं। रानी को उस पर बैठाकर वहाँ की गवर्नमेंट कुछ दूर तक ले गयी। रानी की हिफाजत के लिए,रेलगाड़ी की हिफाजत के लिए बॉडीगार्ड बैठा दिये गये, मिलिट्री बैठा दी गयी। सारे इंतजाम कर दिये गये, ताकि कहीं ऐसा न हो कि कोई जोखिम खड़ा हो जाय। रात को रेलगाड़ी सफर कर रही थी, तो उस वक्त सड़क पर एक बहुत बड़ा हाथी चलता हुआ दिखाई पड़ा। ड्राइवर ने ह्विसिल बजाई। उसने देखा कि हाथी सड़क केकिनारे-किनारे चल रहा है और यह हो सकता है कि कहीं वह गाड़ी को टक्कर न मार दे और गाड़ी को पलट न दे, इसलिए उसका मुकाबला करना चाहिए। बॉडीगार्ड, जो पीछे-पीछे चल रहे थे, वे इंजन के पास आ गये। दूरबीन लगा रखी थी, उससे उन्होंने देखा कि हाथी बराबर चल रहा था! हाथी बड़ा खौफनाक था। उसकी सूँड़बड़ी थी और पूँछ भी बड़ी थी। बड़ा मोटा-तगड़ा हाथी था।
उसे भगाने के लिए उन्होंने स्टेनगन तैयार की, और उसमें कारतूस डाले और मोर्चा सँभाल लिया। हाथी पर ढेरों गोलियाँ चलाई गयीं, पर हाथी टस से मस नहीं हुआ। रेलगाड़ी के सामने वह जैसा का तैसा चल रहा था। अब क्या करना चाहिए? गाड़ी को रोका गया कि देखें शायद हाथी चला जाय। हाथी भी खड़ा हो गया। रेलगाड़ीफिर चलने लगी, हाथी भी चलने लगा। रेलगाड़ी को तीव्रगति से भगाया, तो हाथी भी जोर-जोर से चलने लगा। अब क्या करना चाहिए? हाथी बड़ा खौफनाक था। उससे सब डर गये। अब क्या किया जाना चाहिए? मिलिट्री वालों ने कहा कि यह हाथी ऐसे नहीं जायेगा। यह गाड़ी के आगे-आगे चल रहा है, अतः हम लोग उसकेपास तक जायेंगे और जबरदस्त गोलीबारी करेंगे। उन्होंने जमीन पर लेटकर पोजीशन ले ली और धीरे-धीरे चलते हुए वहाँ तक पहुँच गये। हाथी गायब हो गया। अरे भाई। यह तो कोई भूत है। अब क्या करना चाहिए? इन्क्वायरी की गयी कि यह भूत कहाँ से आता है और क्या है?
बहुत देर तक खोजबीन करने के बाद में मालूम पड़ा कि रेलगाड़ी में जो लाईट लगी हुई थी, उसके शीशे पर बड़ा वाला एक टिड्डा बैठा हुआ था। टिड्डे की छाया रोशनी में से होकर सड़क पर पड़ती थी और वह हाथी मालूम पड़ता था। अहा ऽऽऽऽ तो यह टिड्डा था। उस हाथी को गिरफ्तार कर लिया गया। लाइट के ऊपर जोटिड्डा बैठा था, उसे पकड़ लिया गया। पकड़ने के बाद में वह टिड्डा अभी भी इंग्लैंड के म्यूजियम में रखा हुआ है। उसके नीचे लिखा हुआ है कि यह वह हाथी है, जिसने रानी की गाड़ी को चार घंटे तक डिले किया और जिसको मारने के लिए चार सौ राउंड कारतूस चलाये गये। लकड़ी के पट्टे पर उसे चिपका दिया गया। इंग्लैंडके शाही म्यूजियम में वह अभी तक रखा हुआ है।
क्या हैं हमारे जीवन की मुसीबतें
मित्रो! आपकी जिन्दगी की मुसीबतें क्या हैं? वह टिड्डा है, जो आपको तंग करता रहता है। नहीं साहब! गरीबी है। कहाँ है गरीबी? आप बताइये कि रोटी खाते हैं कि नहीं खाते? हाँ साहब! रोटी तो खाते हैं, कपड़े पहनते हैं। रोटी खा लेते हैं, कपड़ा पहन लेते हैं, यही क्या कम है? ज्यादा के लिए क्या सोचना? ज्यादा की बात सोचेगातो चपत पड़ेगी। इंसान रोटी खा सकता है, कपड़े पहन सकता है, बस। दौलत सिकंदर ने जमा की लेकिन वह जहाँ की तहाँ पड़ी रह गयी मरते वक्त सिकंदर ने कहा था कि चीजें हमारे साथ दे दीजिए, लोगों ने कहा कि यह चीजें आपके साथ नहीं जा सकती। सिकंदर खूब रोया। उसने कहा कि अगर हमको यह मालूम होता कि हमरोटी खाने और कपड़े पहनने की मजबूरी के अलावा कोई और चीज इस दुनिया में छू नहीं सकते, तो हमने अपनी जिंदगी सुकरात के तरीके से बिताई होती, बुद्ध के तरीके से बिताई होती। शानदार आदमियों की तरीके के बिताई होती। अगर हमको यह मालूम होता कि हम सिर्फ दो रोटी खा सकते हैं और कपड़े पहन सकते हैं। दूसरीचीजें जो आपके पास हैं, वह आपके साले के लिए हैं, बहनोई के लिए हैं, जमाई के लिए हैं, मौसा के लिए हैं। सबके लिए हैं, गवर्नमेंट के लिए हैं। आप उसे नहीं खा सकते। उसको जितना खा लिया, बस उतना काफी है। अगर यह मालूम होता, तो हमने अपनी जिंदगी का तौर-तरीका कुछ और बना लिया होता। उसका नक्शा कुछऔर बनाया होता। दूसरी प्लानिंग की होती। दूसरे तरीके अख्तियार किये होते। ये फूहड़ वाले तरीके और कमीने वाले तरीके, जिनके लिए हम जीते रहे, कभी न अपनाये होते।
मित्रो! हमने चार दिन तक आपको यह समझाने की कोशिश की है कि आपकी अक्ल सही हो जाय, तो अच्छा है। हमारी अक्ल इतनी अच्छी है कि हम बी0 ए0 फर्स्ट डिवीजन पास हुए, एम0ए0 में सेकण्ड डिवीजन में पास हुए। हमको नौकरी मिल गयी। हम गजटेड आफीसर हो गये। अब हम ये हैं, वो हैं। कितनी बड़ी अक्ल है। यहकितनी बेहूदा अक्ल और कितनी फूहड़ अक्ल है, जो अपनी जिंदगी का फैसला नहीं कर सकते कि जिंदगी किस काम के लिए है और मुझे क्या करना चाहिए? जो लोग हमें मिले हुए थे, उनके साथ हमने ऐसा-ऐसा व्यवहार किया था कि जैसे कि वे हमारे दुश्मन हों। अगर हमने थोड़ी सी समझदारी से काम लिया होता, तो दुश्मन होने कीबजाय वे हमारे दोस्त होते। और जो चीजें हमारे पास हैं, जिनको हमने निकम्मा मान लिया, उनके बारे में हमारा यह ख्याल हुआ होता कि जो चीजें मिली हुई हैं, वह इतनी ज्यादा हैं कि अगर हम इनको इस्तेमाल कर सकें, तो जिंदगी में मजा आ जाय।
मित्रो! जो चीजें हमें मिली हुई हैं, उनका इस्तेमाल करना हमको नहीं आता। हमको जो शरीर मिला हुआ है, उसका इस्तेमाल करना हमको नहीं आता। हमने उसको तोड़-मरोड़ करके फेंक दिया। सब एक्सीडेंट कर दिया। नस-नाड़ियों का एक्सीडेंट कर दिया, फिर कहते हैं कि हमारी जिंदगी बढ़ा दीजिए। जिंदगी बढ़ा करके आपक्या करेंगे? मित्रो! हमको अक्ल मिली हुई थी। इतनी शानदार अक्ल कि यदि हमने उसका फायदा अपने लिए उठाया होता, घरवालों के लिए उठाया होता, तो विनोबा भावे की माँ के तरीके से हमने बच्चों को ब्रह्मचारी बना दिया होता और अजर-अमर बना दिया होता। विनोबा की माँ ने अपने तीनों बेटों से कहा कि बेटो! तुमकोब्रह्मचारी हो करके रहना चाहिए। तुमको ब्रह्मज्ञानी हो करके रहना चाहिए। माता का हुक्म मानकर तीनों बच्चे ब्रह्मज्ञानी होकर जिये। उनमें से एक का नाम-विनोबा, एक का नाम-बालकोबा और एक का नाम-विठोबा था। तीनों के तीनों अजर-अमर हैं और जब तक दुनिया में हिन्दुस्तान रहेगा, गाँधी जी के बाद दूसरे किसी औरआदमी का नाम लिया जाता रहेगा तो विनोबा का नाम लिया जाता रहेगा। एक आपकी माँ जो हमेशा सिखाती रहती है कि बड़े बच्चे का ब्याह हुआ, पर उसके बेटे-बेटी नहीं होते। अतः उसे दूसरा ब्याह कर लेना चाहिए।
मित्रो! हमको जो मिला हुआ था, अगर उसका ठीक तरह से उपयोग करना हमको आ गया होता, तो मजा आ जाता। हमारी जिंदगी में हँसी-खुशी आ जाती। हमारी जिंदगी में स्वर्ग आ जाता। हमारी जिंदगी में शांति आ जाती और हम इसी जिंदगी में महापुरुष हो जाते। अगर हमारी जिंदगी में हमारी अक्ल साथ देने में समर्थ हो जाती तोमजा आ जाता।
सद्बुद्धि पाने का महामंत्र
मित्रो! मैं कहता रहता हूँ कि अक्ल को ठीक करने का काम गायत्री महामंत्र करता है। गायत्री मंत्र कोई जादू का मंत्र नहीं है। अगर जादू का मंत्र है, तो सिर्फ इस मायने में है कि उसकी प्रेरणायें, उसकी दिशायें हैं, उसकी शिक्षाएँ हैं, जो आदमी की अक्ल को सही बनाने में मदद करती हैं और यह कहती हैं कि अपने सोचने केतरीके को सही कीजिए। चीजों को पाने की अपेक्षा, चीजों को इकट्ठा करने की अपेक्षा, चीजों को बढ़ाने की अपेक्षा यह सीखिए कि हमारे पास जो चीजें हैं, उनका कैसे उपयोग कर सकते हैं। कम चीजों में भी आप ज्यादा फायदा उठा सकते हैं और ज्यादा चीजें होते हुए भी आप परेशानी में पड़े रह सकते हैं। हैरानी में पड़े रह सकतेहैं।
मित्रो! यह था विचारों का जादू, जिसको हम अध्यात्म कहते हैं और जिसको चार दिनों तक मैं आपको समझाता रहा, सिखाता रहा। आज मैं आपको एक और बात सिखाता हूँ। अगर आपको भगवान की अथवा दैवीय शक्तियों की सहायता की जरूरत हो, तो आपको यह जानना चाहिए कि देवता आखिर क्या हो सकते हैं? और दैवीयशक्तियाँ क्या हो सकती हैं? दैवीय शक्तियाँ-जिनको हम देवी-देवता कहते हैं, ये देवी-देवता कोई व्यक्ति नहीं हैं। नहीं साहब! देवी होती है और शेर पर बैठी रहती है। हाँ बेटे, यह शेर पर बैठी रहती है। शेर अर्थात बहादुर, हिम्मत वाले आदमी, जिनके ऊपर दैवीय शक्तियाँ सवारी करती हैं। जो आदमी हिम्मत वाले हैं, बहादुर हैं, दिलवालेहैं, कलेजे वाले हैं, उन पर देवी सवार होती है। इसका मतलब यही होता है। नहीं महाराज जी! वह देवी तो शेर पर बैठी रहती है। चल उल्लू कहीं का। देवी शेर पर बैठी रहती और घूमती रहती हैं। बेकार की बातें, पागलों जैसी बातें, बेबुनियाद की बातें, बे-सिलसिले की बातें, बेटाँग-पूछ की बातों में तू कहाँ से कहाँ भटकता रहता है।वास्तविकता को समझता है नहीं, यहाँ-वहाँ मारा-मारा फिरता है और अज्ञान को अध्यात्म कहता है।
अज्ञानी न बनें
मित्रो! अज्ञान और अध्यात्म में जमीन-आसमान का फर्क है। पुराने देवी-देवता के नाम पर जिस प्रकार अज्ञान हावी हो गया, वास्तव में ऐसा है नहीं। ऐसा कोई देवी-देवता नहीं है। हमारे गुणों के नाम ही देवी-देवता हैं। वे हमारे पास जितने होते हैं, उसी हिसाब से दैवीय शक्तियाँ हमारे पास आ जाती हैं। कई सिद्धियाँ हमारे पास आजाती हैं और कई चमत्कार हमारे पास आ जाते हैं। और हम उतने ही उन्नतिशील होते चले जाते हैं। इन बातों को आप समझते नहीं हैं और देवी-देवताओं के पीछे पड़े रहते हैं, पागल कहीं के।
मित्रो! हमने अपनी समझदारी के लिए चुनौती दी है। अब हम यह कहते हैं कि राम का नाम जादू है। इस जादू का फल प्राप्त करने के लिए आपको उसके लिए सिंचाई का इन्तजाम करना चाहिए। खाद का इन्तजाम करना चाहिए। राम का नाम जिस खाद और पानी से सींचा जाता है, उसका नाम है—योग और तप। छोटे बच्चों कोहम छोटी-छोटी बातें बता सकते हैं। क्या बता सकते हैं? भगवान जी पर चावल चढ़ा देना, अक्षत चढ़ा देना। धूपबत्ती चढ़ा देना। अच्छा गुरुजी चढ़ा देंगे। अच्छा और क्या चढ़ा देना? महादेव जी को प्रसन्न करने के लिए बेल के पत्ते चढ़ा देना। बच्चों के लिए इतना ही काफी है। कितने का सामान हो गया? एक-दो पैसे का सामान होगया। दो पैसे खर्च करने के बाद फिर हमने यह कहा कि पन्द्रह मिनट माला घुमा देना। ‘‘ॐ नमः शिवाय’’ की माला घुमा देना। यह भी आपने कर लिया। यह हमने छोटे-छोटे बच्चों के लिए खेल-तमाशे तैयार करके रखे थे, ताकि बड़े होने पर आपकी मदद कर सकें और वास्तविकता की बात सिखा सकें।
बच्चों का खेल नहीं अध्यात्म
मित्रो! बच्चों को हम छोटी-छोटी चीजें सिखाते हैं। बेबी। तू क्या कर रही है? आज तो मैं शादी-ब्याह कर रही हूँ। दावत बना रही हूँ। दावत में कितना पैसा खर्च होता है, यह भी नहीं मालूम। मैं तो दावत बनाऊँगी। लड्डू बनाऊँगी, कचौड़ियाँ बनाऊँगी। कैसे बनायेगी? आटे की गोलियाँ बना करके लायी। देखो पापा! यह लड्डू है,यह जलेबी है। मैं चूल्हा बनाकर लायी हूँ, आप कड़ाही ला देना। अच्छा ला देंगे। दो रुपये का एक डिब्बा ले आये। उसमें चूल्हा, कड़ाही, चम्मच, चक्की, वर्तन-सब कुछ है। यह देखकर वह खुश हो रही है। सामने एक कपड़ा टाँग दिया। यह हमारा घर है। यहाँ पर हमारे गुड्डे-गुड़ियों का ब्याह हो रहा है। मिठाई बन रही है। हमारीदावत बन रही है। बेटी भी खुश, पापा, मम्मी-तीनों खुश। इस तरह चार इंच की चौकी पर चौसर चल रही है। आप चौकी पर क्या कर रहे हैं? तरह-तरह की मूर्तियाँ—चार आने के हनुमान जी, छः आने के गणेश जी, ग्यारह आने के रामचन्द्र जी, ढाई आने की लक्ष्मी जी सजा रखे हैं। ये क्या कर रहे हैं आप? गुड्डे-गुड़ियों का खेलखेल रहे हैं।
तो क्या इसी में से मिलेंगे चमत्कार? नहीं बेटे, इसमें से चमत्कार नहीं मिलेंगे। चमत्कारों के लिए बड़ा वाला बगीचा बनाना पड़ेगा। बड़ा काम करना पड़ेगा। अभी बेटे आप क्या करना चाहते हैं? दावत करना चाहते है। छोटी बेबी की तरह जो कहती है कि हम दो पैसे दावत करेंगे और ब्याह करेंगे। बेटी! दो पैसे में कहीं ब्याह होता हैं।हाँ पिता जी! एक पैसा दहेज में देंगे और एक पैसा दूल्हा-दुल्हन को देंगे। बेटी, दो पैसे में ब्याह नहीं होता। दो हजार रुपये से कम में ब्याह नहीं होते। नहीं पापा! हम तो दो पैसे में कर लेंगे। बेटी अपने बालपन से समझाने की कोशिश करती है। इससे कुछ मिल सकता है क्या? नहीं मिल सकता है। तो किससे मिल सकता है? क्याअध्यात्म से कुछ नहीं मिल सकता? मिल सकता है। बेटे, हमने अपनी इतनी लम्बी जिन्दगी लोगों के लिए सिर्फ इसलिए जियी कि हम लोगों को यह समझा सकने में समर्थ हो सकें कि अध्यात्म अगर सही ढंग से जीवन में काम में लाया गया हो, तो वह सब कुछ मिल सकता है, जिसके माहात्म्य से शास्त्र भरे पड़े हैं।
हमारे जीवन से कुछ सीखें
मित्रो! उसके सबूत और गवाही के रूप में हमारी जिन्दगी है। ६६ वर्ष की हमारी जिन्दगी के ६६ वर्ष के पन्नों को पढ़कर देखिए कि क्या अध्यात्म मनुष्य के जीवन को सामर्थ्यवान बना सकता है? क्या आदमी को क्षमता सम्पन्न बना सकता है? क्या आदमी अपनी मुसीबतों को दूर कर सकता है? क्या वह अपनी मुसीबतों के अलावादूसरों की मुसीबतें दूर कर सकता है? यह बहुत विस्तृत है बेटे, हम इसकी ज्यादा व्याख्या नहीं कर सकते। आप हमारी पुस्तक पढ़ लेना। आप हमारी जिन्दगी के हर पन्ने को पढ़ते हुए चले जाइये और देखते हुए चले जाइये कि जो मनुष्य अपनी व्यक्तिगत सामर्थ्य से पूरा नहीं कर सकता, वह भगवान की सहायता से, मंत्र की सहायतासे, उपासना की सहायता से कर सकता है कि नहीं।
मित्रो! आप हमारी जिन्दगी के पन्ने पढ़ते हुए चले जाइये और यह देखते हुए चले जाइये कि जब से हम पैदा हुए हैं, तब से लेकर अब तक हमने क्या किया है? आप हमारे ज्ञान को पढ़िए, हमारी विद्या को पढ़िए। हमने दूसरों की मदद की है, उसको पढ़िए। हमने स्वयं उन्नति प्राप्त की है, उसको पढ़िए। आप हमारे यश को पढ़िए।हमारे वर्चस् को पढ़िए, हमारे ऊपर देवी-देवताओं की जो कृपा है, उसको पढ़िए। हमारे ऊपर संत और महापुरुषों का और सिद्ध पुरुषों का जो अनुग्रह है, उसको पढ़िए। नहीं महाराज जी! आपने जो माला घुमाई थी, हम भी घुमायेंगे। बेटे, माला से बाहर निकल और ले जा अपनी माला। माला तो एक सहारा है, लाठी है, जिसने काफीमदद की है। हम उसका धन्यवाद करते हैं कि लाठी के सहारे हमने हिमालय की चढ़ाई की है। यह ठीक है कि लाठी हमारी मदद में काम आई, लेकिन असल में लाठी ने चढ़ाई नहीं की। चढ़ाई की है तो हमारी टाँगों ने। नहीं साहब! आप तो कह रहे थे कि लाठी बड़ी मददगार है। लाठी ने हमारी सहायता की है और लाठी के सहारे हमहिमालय तक गये थे। लाठी के सहारे चढ़े थे। लेकिन बेटे टाँगों के बिना नहीं। नहीं साहब! टाँगों की जरूरत क्या है? लाठी से हम चढ़ लेंगे। नहीं बेटे, टाँगें होनी चाहिए।
तप और त्याग के बिना कैसा अध्यात्म?
मित्रो! आध्यात्मिक लाभ पाने के लिए पूजा और पाठ काफी नहीं है। उसके लिए तप और योग होना चाहिए। योग किसे कहते हैं और तप किसे कहते हैं? चलिए हमें इसे आपको समझाना चाहिए और यह समझाना चाहिए कि क्रिया, जो शरीर से संबंधित की जाती है, यहाँ तक अध्यात्म की शुरुआत भी की जा सकती है। लेकिन यहाँअध्यात्म पूर्ण नहीं हो सकता। किससे? शारीरिक क्रियाओं से। शरीर मिट्टी का बना हुआ है। मिट्टी से जो क्रियाएँ की जा सकती हैं, वे सब भौतिक हैं और उनका कोई परिणाम अगर मिल सकता है, तो वह भौतिक परिणाम दे सकता है। हम शरीर से मशक्कत करेंगे, हथौड़ा चलायेंगे, कुदाल चलायेंगे, मिट्टी खोदेंगे, तो हमकोमिट्टी की चीज मिल सकती है। पैसा मिल सकता है, अनाज मिल सकता है, बस। इसके आगे कोई चीज नहीं मिल सकती। लोगों को न जाने क्यों यह ख्याल जम गया है कि शारीरिक क्रियाओं का नाम ही शायद अध्यात्म होगा।
मित्रो! योग की व्याख्या करते हुए मैंने लोगों को देखा है कि टाँग उल्टी कर दी और सिर नीचा कर दिया। क्या करते हो? योगा कर रहे हैं? अरे बाबा! इस योग में यह क्या हुआ? वह योग तो शरीर का हुआ। शरीर को उल्टा कर रहा है। इससे क्या फायदा हो सकता है? इससे शरीर में कोई कमी होगी, कमजोरी होगी, तो शायद ठीकहो सकती है। यह योग कैसे हो सकता है? यह तो शरीर की क्रिया है? भगवान शरीर नहीं है, शक्ति नहीं है, जप नहीं है। भगवान चेतन है और हमारी जीवात्मा चेतन है। चेतना को चेतन से मिलाने के लिए अगर कोई क्रिया की जा सकती होगी, तो वह संवेदनात्मक होगी, भावनात्मक होगी, विचारणात्मक होगी। वह शारीरिक नहींहो सकती। हम जानते हैं कि शारीरिक क्रिया हमारी मदद कर सकती है, लेकिन अगर वह विशुद्ध शारीरिक क्रिया है, तो उसका फायदा शारीरिक होना चाहिए।
मित्रो! जप क्या है? जीभ की नोंक से किया हुआ जप विशुद्ध शारीरिक क्रिया है। तीर्थों की परिक्रमा शारीरिक क्रिया है। गंगा स्नान शारीरिक क्रिया है। एकादशी का उपवास शारीरिक क्रिया है। शारीरिक क्रियाओं के जो फायदे हो सकते हैं, वे शारीरिक हो सकते हैं, सांसारिक हो सकते हैं। वे आध्यात्मिक नहीं हो सकते।आध्यात्मिक लाभ कैसे हो सकता है? भगवान तक हमारी कौन सी बात पहुँच सकती है? वह केवल विचारणात्मक हो सकती है, भावनात्मक हो सकती है। इस सिद्धान्त को आप जान लीजिए।
योग माने भगवान से मिलन
मित्रो! योग क्या हो सकता है? योग तो गुरुजी! उसे कहते हैं—नेति, धैति, वस्ति आदि को। अच्छा बेटे, यह तो बताओ कि योग का अर्थ है— भगवान से मिल जाना। अच्छा यह बताओ कि तू योग कब से कर रहा है। गुरुजी! मैं तो बहुत दिन से योग कर रहा हूँ। कैसे-कैसे करता है? गुरुजी! मेरे को तो यह बताया गया था कि नाकमें भीतर तक एक रस्सी डाल लो। वह अंदर तक चली जाती है और फिर उसे बाहर खींच लेते हैं। जब तू नाक में से रस्सी खींचता है, तो फिर तुझे भगवान् दिखाई देता है? उसमें से भगवान मिल जाता है? अरे महाराज जी! भगवान तो दिखाई नहीं पड़ते। अच्छा बेटे! योग के नाम पर और क्या करता है? गुरुजी! योग के नाम पर एकस्वामी जी ने बताया था कि कपड़े की रस्सी खा जाया कर, उसे पेट में ले जाया कर और फिर निकाल लिया कर। उसमें से बेटे भगवान साथ-साथ चला आयेगा। नहीं; माँस जैसा गीला-गीला पदार्थ निकलता चला जाता है। और क्या बताया था स्वामी जी ने? महाराज जी! यह बताया था कि वस्ति क्रिया करना। वस्ति क्रिया क्याहोती है? टट्टी के रास्ते पानी पी जाते हैं और फिर उसी रास्ते से पानी निकाल देते हैं। इसको वस्ति कहते हैं। तो बेटे; वस्ति क्रिया से भगवान जरूर मिल गया होगा? नहीं महाराज जी! नहीं मिला। तो क्या फायदा इस योगा से?
मित्रो! योग शारीरिक नहीं हो सकता। शारीरिक क्रिया एवं योग की दिशा में जरूर मदद कर सकती हैं, यह मैं मान सकता हूँ। शारीरिक क्रियाओं से हमारे शारीरिक और मानसिक विकार दूर हो सकते हैं, जिससे योग के रास्ते पर चलने पर हमारे पाँव मजबूत हो सकें। इसमें कोई शक नहीं। असल में योग मानसिक होना चाहिएऔर भावनात्मक होना चाहिए। योग क्या है? योग-बेटे! दो चीजों को मिला देने को कहते हैं। योग मीन्स-जोड़ना। जोड़ माने योग। फिर किसका किससे जोड़? परमात्मा के साथ आत्मा का जोड़। इसको हम योग कहते हैं। आत्मा, परमात्मा के साथ जिस सहारे से, जिस सिद्धान्त के सहारे, जिस क्रिया के सहारे, जिस भावना, जिसचाहत के सहारे मिल सकता है, उसको हम योग कह सकते हैं। योग भावनात्मक हो सकता है, विचारपरक हो सकता है, नम्रतापरक हो सकता है, निष्ठापरक हो सकता है। बस, इससे आगे नहीं। यह शारीरिक नहीं हो सकता। शारीरिक से मदद मिल सकती है। याद रखना, यह योग नहीं, जो शरीर से किये जाते हैं।
प्रभु समर्पण से सधता है योग
योग किस तरीके से हो सकता है? योग अपने आपको जीवन में मिला देने का नाम है। जैसे मैं आपको उदाहरण देता हूँ। पानी की एक छोटी सी बूँद कहीं समुद्र में मिल गयी, शामिल हो गयी। अब बूँद-बूँद नहीं है। अब वह समुद्र है। समुद्र में तलाश कीजिए, अब वह बूँद नहीं मिल सकती। वह समुद्र बन गयी है। बूँद की हैसियतएक पैसे की भी नहीं थी, अब लाखों-करोड़ों की है। इसका नाम क्या हो गया—योग। इसी तरह एक नाला था। बहता हुआ चला आ रहा था। नाला बहते-बहते गिरकर गंगा जी में शामिल हो गया। गंगा जी में मिलने के बाद में नाले का पानी गंगा जल हो गया। लोग इसी नाले के पानी को थोड़ी दूर जा करके भर कर ले गये और किसीको वही गंगा जल दिया और उसका उद्धार हो गया। वह नाला जिसे अपनी स्वयं की हस्ती का पता नहीं; अब वह नाला नहीं रहा। आप उस नाले को ढूँढ़कर लाइये। कहाँ से लायेंगे? अब वह गंगाजल में शामिल हो गया और नाला गायब हो गया। नाला खत्म हो गया और गंगा बन गया।
मित्रो! बूँद खत्म हो जाती है, तो समुद्र बन जाती है और जब इंसान अपने आप को खत्म कर देता है, तो भगवान बन जाता है। इंसान और भगवान के बीच जो सबसे बड़ी दीवार है, वह क्या हो सकती है, आप जानते हैं? एक ही दीवार है और उसका नाम है—कलुष और कषाय। कषाय, कल्मष या कलुष किसे कहते हैं? हमारीशारीरिक जरूरतें और मानसिक जरूरते हैं और दोनों के बीच की दूरी—‘‘अहम्’’--‘मैं’ है। नवरात्रि के दिनों में देवी को क्या चढ़ाते हैं? ‘मैं’ को चढ़ाते हैं और मियाँ जी बकरीद के दिन क्या खाते हैं? उसी को खाते हैं—‘‘’मैं’ —‘‘मैं’’ को खाते हैं। बेटे, बकरा तो भगवान का प्राणी है। कुत्ता मार डालेगा तो क्या, बकरा मार डालेगा तोक्या, बंदर मार डालेगा, तो क्या? क्या भगवान जानवरों को खाता है? भगवान खाता है—‘‘मैं’’ को, ‘अहम्’ को। हमारा ‘अहम्’ इतना ज्यादा है कि इसमें लोभ, मोह, वासनाएँ, तृष्णाएँ इस कदर बढ़ती चली जाती हैं कि मैं; मैं; मैं-.... के आगे सब कुछ स्वाहा होता चला जाता है। ‘‘मैं’’ कहता है कि किसी का माल मिल जाय, तो उसीको खाता हुआ चला जाऊँ, बढ़ता हुआ चला जाऊँ, मालदार होता हुआ चला जाऊँ, सम्पन्न होता हुआ चला जाऊँ। पदवीधारी होता हुआ चला जाऊँ। यह ‘मैं’ जितना ज्यादा तीव्र होता हुआ चला जाता है, उतने ही ज्यादा असंख्य प्रकार के नैतिक और अनैतिक कार्य कराता है।
मित्रो! डाकू से लेकर चोर-उचक्कों तक, ज्ञानी से लेकर दुष्ट, दुराचारियों तक एक ही बात पाई जाती है कि उनका ‘मैं’ इतना सीमित होता है, इतना बढ़ा हुआ होता है कि वह चाहता है कि जितना जल्दी पैसा मिल सके और जहाँ से भी मिल सके, हमको प्राप्त करना चाहिए। इसलिए हमको नीति छोड़नी पड़ती है, न्याय छोड़ना पड़ताहै, अच्छाई छोड़नी पड़ती है। सिर्फ पागल नशे में होते हैं कि कहीं से भी किसी भी तरीके से, किसी का भी पैसा मिल जाय। वह उसे लेकर छोड़ता है। यह क्या है? आदमी का ‘अहम्’ है। ‘अहम्’ जितना ज्यादा सीमाबद्ध होता है और बढ़ा-चढ़ा होता है, आदमी उतना ही अधिक स्वार्थी होता चला जाता है।
‘‘मैं’’ है मनुष्य और भगवान के बीच की दीवार
मित्रो! स्वार्थी व्यक्ति को अपने आप से फुरसत नहीं मिलती। उसके लिए समाज सेवा गई भाड़ में। समाज को हमारी सेवा करनी चाहिए। बीबी की सेवा गई भाड़ में। बीबी को हमारी सेवा करनी चाहिए। यह सबसे सेवा चाहता है। इसका ‘‘मैं’’ इतना बढ़ा होता है कि अपने ‘‘मैं’’ के लिए वह सबको इस्तेमाल करना चाहता है। यहाँतक कि भगवान को भी ‘‘मैं’’ के लिए इस्तेमाल करना चाहता है। सिद्ध पुरुषों को भी ‘‘मैं’’ के लिए इस्तेमाल करना चाहता है। देवी-देवताओं को भी ‘‘मैं’’ के लिए इस्तेमाल करना चाहता है। ‘‘मैं’’ इतना बढ़ा हुआ, तृष्णाएँ इतनी ज्यादा बढ़ी हुई, अहंताएँ इतनी ज्यादा बढ़ी हुईं कि स्वार्थ के अलावा आदमी दूसरी चीज का विचार ही नहींकर सकता है। मित्रो! यही इंसान और भगवान के बीच की दीवार है। यदि हम कषाय, कल्मषों को, कलुष को दूर कर सकते हों और अपने ‘‘मैं’’ को ‘तुम’ में मिला सकते हों, तो फिर मजा आ जायेगा। फिर आप भगवान बन जाओगे। भगवान आप हो जायेगा।
मित्रो! कलुष की, कषाय और कल्मषों की थैली को तोड़ने के लिए जिस छेनी और हथौड़े को काम में लिया जाता है, उसी का नाम है—पूजा पाठ। उसी का नाम है—योग और तप। अंगारे के ऊपर राख जमा होती है, तो अंगारा काला हो जाता है और अपनी गर्मी खो बैठता है। अंगारे के ऊपर से जब हम राख की परत को हटा देते हैं,तो अंगारा चमचमाने लगता है। अंगारा प्रकाशवान हो जाता है। अंगारा गरम दिखाई देने लगता है, जब हम उसके ऊपर से राख को हटा देते हैं तब। राख—माने ‘अहम्’। जिसका ‘अहम्’, जिसका स्वार्थ, जिसका पैसा, जिसकी भौतिक महत्त्वाकांक्षाएँ जितनी अधिक बढ़ी-चढ़ी हैं, मित्रो! वह भगवान से उतना ही दूर है। राम केनाम से उतना ही दूर है। क्यों? क्योंकि कुछ कर ही नहीं सकता। समाज के लिए, देश के लिए, भगवान के लिए, अपनी जीवात्मा के लिए वह कुछ कर ही नहीं सकता। जो जितना ख्वाहिशमंद है, ‘नीडी’ है, उसको अपनी जरूरतों को पूरा करने और दूसरों को नीचा दिखाने के लिए तैयारियाँ करने के अतिरिक्त फुरसत कहाँ मिलतीहै? समूचा जीवन अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति में ही खत्म कर डालता है।
भगवान के प्रति समर्पण है योग
इसलिए मित्रो! योग उसको कहते हैं, जिसमें मनुष्य अपनी व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षाओं को खत्म कर देता है और यह कहता है कि भगवान आपकी महत्त्वाकांक्षाएँ हमारे साथ हैं। हम आपका हुक्म मानेंगे। हम आपकी आज्ञा का पालन करेंगे, आप हुक्म दीजिए। जिस काम के लिए आपने सुरदुर्लभ मानव जीवन दिया है, उस काम के लिएहुक्म दीजिए। हम क्या चाह कर सकते हैं? रोटी, हमको मिल जाती है। कपड़ा-हमको मिल जाता है। मित्रो! रोटी आपको मिल जाती है—बस, कपड़ा आपको मिल जाता है—बस, आगे बढ़ने की जरूरत नही है। आपके पास बाकी जो समय बचता है, अक्ल बचती है, पैसा बचता है, बुद्धि बचती है, उसे अच्छे काम में खर्च कीजिए।भगवान के लिए खर्च कीजिए। बेटे, यहाँ से चलता है—योग।
मित्रो! योग जीवन की एक सीढ़ी है। ऊपर उठने का तरीका है। काम करने का ढंग है। पूजा-पाठ की किसी खास पद्धति का नाम योग नहीं हो सकता। यह तो व्यायाम है। जिसको आप योग कहते हैं, वह खालिस व्यायाम है। नाक में रस्सी का डालना—व्यायाम है। प्राणायाम व्यायाम है। ये सभी शरीर के व्यायाम हैं, इन्द्रियों केव्यायाम हैं। व्यायाम से हमारा शरीर मजबूत हो सकता है, लेकिन आत्मा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। आत्मा पर प्रभाव डालने के लिए जरूरी है कि हमारे मन का, सोचने का तरीका बदल जाय। हम अपने लिए माँगने की अपेक्षा देने वाली वृत्ति को अपने जीवन में धारण करें। देवता बनें। देव या देवता किसे कहते हैं? जो दिया करतेहैं, जिनके मन में एक ही बात आती है कि हमें खर्च करना है। बेटे, भगवान ने आपको जो दिया हुआ है, वह इतना ज्यादा दिया हुआ है, कि आप कल्पना नहीं कर सकते। अतः हमारे पास जो दिया हुआ है, उसे हम दूसरों को देना सीखें, तो हम क्या से क्या कर सकते हैं। मैं थोड़े से आपको नाम बताना चाहता हूँ कि जिन्होंने अपनीमिली हुई चीजों को किस तरीके से खर्च किया और वे ऐसा काम करके दिखा गये, जिससे हमारी आँखों में आँसू आ जाते हैं।
हजारी किसान का हजारीबाग
मित्रो! बिहार का एक किसान था। हजारी उसका नाम था। उसने आम का बगीचा लगाया। उस गाँव में आम का बगीचा नहीं था। आम जब लगे, कच्ची अमियाँ जब आयीं, तो गांव वाले आये। उन्होंने कहा कि हमें कच्ची अमियाँ दीजिए, हम चटनी बनायेंगे। लोग कच्ची अमियाँ ले गये, चटनी बनाई। दूसरों ने खाई। दूसरे घर वालेआये। हमको दीजिए, हम भी चटनी बनायेंगे। सारा का सारा गाँव चटनी बनाने के लिए आम की कैरियाँ माँगने के लिए आया। उसने कैरिया दीं। हरेक ने अपने घर में चटनी बनाई, जायका उठाया। उसने कहा कि सारा गाँव जिस चीज को माँगने के लिए मेरे घर आ सकता है, वह मेरी संपत्ति तो नहीं है। मैंने तो केवल अपना पसीनाबहाया है और पसीने की कीमत से उन लोगों को फायदा पहुँचाया है। मेरे पास सम्पत्ति नहीं है, तो क्या हुआ? पसीने की संपत्ति क्या कम है। पैसा नहीं है तो भाड़ में जाय। पैसे से सिर्फ क्या होता है? पसीना मेरी संपत्ति है। पसीना बहायेंगे और लोगों की सहायता करेंगे और सेवा करेंगे।
मित्रो! बिना पढ़ा-लिखा एक किसान, बिना जायदाद वाला किसान अपने इलाके में चला गया। उसने अपने गाँव वालों से कहा कि आप भी आम के पेड़ लगाइये। गाँव वालों ने जाने क्या किया, लेकिन आम के बगीचे लगाने के लिए किसान प्रार्थना करता रहा। जाता रहा। आम के बगीचे लगाता रहा। उसके बच्चे बड़े हो गये। आमके बगीचे स्वयं लगाना और लोगों से लगाने के लिए कहना-बस एक ही काम में लगा रहा। सारी जिन्दगी भर उसने बिहार के इलाके में एक हजार आम के बगीचे लगाये। इसलिए इस जिले का नाम लोगों ने हजारीबाग रखा। हजार बगीचे वाला जिला। हजारीबाग नाम इसलिए भी रखा गया कि हजारी नाम के किसान ने अपनी मशक्कतसे, अपने परिश्रम से और अपनी मेहनत से बगीचे लगाये। धन से नहीं, अक्ल से नहीं, अक्ल को भाड़ में जाने दो। आपका पसीना चाहिए, श्रम चाहिए। श्रम की शक्ति से किसान ने वह काम कर दिखाया, जो ताजमहल की अपेक्षा जिसे बादशाह ने अपनी बीबी के लिए बनवाया होगा हजारीबाग का जिला, जिसे हजारी किसान नेबनाया इतना शानदार है कि उसका फायदा सभी ने उठाया। उसका फायदा चिड़ियों ने उठाया, पक्षियों ने उठाया, जानवरों ने उठाया, इन्सानों ने उठाया, बच्चों ने उठाया। मेघ बरसे, बादल बरसे उन पेड़ों की वजह से और वह जमीन फसलदार हो गयी और जिला धन्य हो गया।
बेटे! मैं मशक्कत की बात करता हूँ। देवता उसे कहते हैं, जिसके पास एक ही ख्वाब रहता है कि जो कुछ हमें मिला हुआ है, उसको हम भगवान के लिए और लोक मंगल के लिए कैसे खर्च कर सकते हैं। लोक मंगल माने भगवान। भगवान आपसे माँगता है कि जो कुछ भी आपके पास है, उसे निकालिये। नहीं साहब! हम देना नहींचाहते, हम तो माँगने वाले हैं। हम तो पंडे हैं। पंडे उसे कहते हैं, जो कहता है—‘चलिए साहब! हमारे घर पर चलिए। हम आपको ठहरायेंगे, आपको गंगाजी नहलायेंगे-आदि। हम आपके यहाँ नहीं जाते, हम तो धर्मशाला में ठहरेंगे। अरे यजमान! हम आपसे माँगते नहीं है। अरे भाई! हम आपके यहाँ नहीं जाते। वह चाहता है कि आपउसे कुछ दीजिए।
मित्रो! अगर आप निगेटिव हैं, तो भगवान आपसे दूर भागेगा, जैसे कि यजमान पंडे से दूर भागते हैं। पंडे से आपको नफरत है। माँगने वाले मनोकामना लेकर के आयेंगे। जहाँ कही भी जायेंगे, वहीं माँगेंगे। भिखारी के हिस्से में एक ही चीज आती है और उसका नाम है—नफरत। भिखारी बनकर आप कहीं भी जायेंगे, आपको नफरतमिलेगी। भगवान के पास जाइये, संत के पास जाइये, जहाँ कहीं भी आप जायेंगे, आप नफरत ले करके आयेंगे और जहाँ आप देने के लिए जायेंगे, वहाँ से भगवान का प्यार और अनुग्रह ले करके लौटेंगे। हमारी परंपरा है कि जब हम मंदिरों में जाते हैं, तो खाली हाथ कभी नहीं जाते। मंदिरों में आप कभी भी खाली हाथ मत जाना। फूललेकर जाना, पत्ती लेकर जाना, एक नया पैसा चढ़ा देना पर खाली हाथ कभी मत जाना। इससे भगवान नाखुश होते हैं कि कैसा दुष्ट है जो खाली हाथ आया है।
देवता बनें, भिखारी नहीं
मित्रो! भगवान की भक्ति का तरीका है—देवता बनना। देव-देवता उसे कहते हैं, जो देने के लिए तत्पर है। जिसके मन में एक ही उमंग आती रहती है कि हम अपनी जिंदगी में समाज को कुछ देकर के जायेंगे। देने के लिए आपके पास क्या चीज नहीं है? मैंने आपको बताया था कि आपके पास आपका शरीर तो है। आपके पास पैसानहीं है, अक्ल नहीं है, चलिए कोई हर्ज की बात नहीं है। कबीर के पास पैसा था? गाँधी जी के पास पैसा था? समर्थ गुरु रामदास के पास पैसा था? रामकृष्ण परमहंस के पास पैसा था? ईसामसीह के पास पैसा था? किसके पास पैसा था? पैसा डाकुओं के पास है, चोरों के पास है, नेताओं के पास है, जो विलासिता के लिए पागल हो रहेहैं। जो हवस के लिए पागल हो रहे हैं। इन पैसे वालों ने क्या कर लिया है? नहीं महाराजजी! हमको पैसा दिलवा दीजिए, हम दुनिया की सेवा करेंगे। बेटे! पैसे से सेवा नहीं होती और कभी कोई कर भी नहीं सकता। गाँधी जी के पास पैसा था? नहीं महाराज जी! पर हमको खूब पैसा दिलवा दीजिए। फिर हम भजन करेंगे, मंदिरबनवायेंगे। भाड़ में जाने दे अपना मंदिर। बिना पैसे की सेवा कर।
मथुरा की पिसनहारी की कथा
मित्रो! सेवा कैसे होती है, अगर यह देखना हो तो मथुरा जाइये और पिसनहारी का कुआँ देख करके आइए। एक महिला थी। चक्की पीसती। चक्की पीसने से पैसे मिलते। उसमें से दो पैसे रोज, एक पैसा रोज जमा करती रही। जमा करते-करते उसके मिट्टी के दो घड़े पैसों से भर गये। बुढ़िया हुई तो उसने गाँव वालों को बुलायाऔर कहा—हमने ईमानदारी का पैसा, मशक्कत का पैसा एक-एक पैसा जमा करके रखा है, इसको आप किसी अच्छे काम में लगा दीजिए। उन्होंने कहा कि इस गाँव में कुआँ नहीं है, अतः तेरे पैसे से सड़क किनारे एक कुँआ बनवा देते हैं। अच्छा बनवा दीजिए। उस पैसे को लेकर गाँव वालों ने गाँव के बाहर सड़क के किनारे पक्काकुँआ बनवा दिया। उस जमाने में पाँच सौ रुपये में पक्के कुएँ बन जाते थे। अब तो पाँच हजार में भी नहीं बनते। पाँच सौ रुपये में एक पक्का कुआँ बना दिया। कुएँ का पानी ऐसा निकला, ऐसा शानदार पानी निकला कि हमारे मथुरा इलाके में और कहीं नहीं है।
मित्रो! हमारे इस मथुरा इलाके में नमकीन पानी है, खारा पानी निकलता है। अस्सी फुट का बोर हमने कराया है, वहाँ भी खारा पानी है। सारी बस्ती में खारा पानी है। बस एक ही कुआँ है—पिसनहारी का कुआँ। उसमें से मीठा पानी निकला है। दूर-दूर के आदमी, बीमार आदमी दवाई लेने की बजाय मीठा पानी आ करके ले जाते हैं।टी.बी. के मरीज, दूसरे मरीज, तीसरे मरीज, टाइफाइड के मरीज सभी यही कहते हैं कि अरे भाई! वहाँ का पानी पिलाओ। पिसनहारी के कुएँ का पानी लाओ। लोग बैलगाड़ियाँ लेकर सबेरे आते हैं। बैलगाड़ियाँ खड़ी रहती है, हम पानी लेकर के जायेंगे। पिसनहारी वाले कुँए का इतना मीठा पानी है। कभी आप वहाँ जाएँ तो मथुरा-दिल्ली वाली सड़क पर तीन मील आगे पिसनहारी का कुआँ आपको मिलेगा। अब किसानों ने उसके आसपास की सारी जमीन में आम के बगीचे लगा दिये हैं। पिसनहारी के कुएँ के आसपास लोग पिकनिक के लिए जाते हैं। बरातें ठहरती हैं। टैंट लगा लेते हैं। अच्छी हवा के लिए बीमार चले आते हैं और पड़े रहते हैं। पिसनहारी केकुएँ का पानी पीते रहते हैं।
मित्रो! मैं यह कह रहा था कि आज तरह-तरह की चीजें जमा करने की अपेक्षा आप विचार करें कि जो कुछ हमारे पास है, उसे लोकमंगल के लिए, समाज के लिए, देश के लिए, श्रेष्ठ कामों के लिए खर्च करेंगे। तब मैं आपको देवता कहूँगा। जिस गाँव में हम रहते थे, वहाँ हमारे पास अस्सी बीघा जमीन थी, जो हमारे कास्त की थी।उस गाँव में उस समय के पाँच हजार रुपये बीघा की जमीन है। नहरी गाँव है। हमेशा कीमती फसल उगाते हैं। सारा का सारा गाँव नहरों की वजह से हरा-भरा रहता है। जब हम यहाँ आने लगे तो अपने गाँव के लिए स्कूल बनवा दिया। उस गाँव में हम केवल तीन आदमी हिंदी मिडिल तक पढ़े हुए थे। अब उस गाँव में चमारों की,धोबियों की, जुलाहों की, भंगियों की और काछियों की दो सौ के करीब लड़कियों ने मैट्रिक पास कर लिया है। हायर सेकेण्डरी पास कर लिया है। अब तो कॉलेज बन गया है। अब तीन-चार हजार विद्यार्थी सारे इलाके के पढ़ते हैं, जबकि पहले अपने गाँव में हम तीन आदमी ही मिडिल तक पढ़े हुए थे। अब तो उसका विस्तार होताचला गया।
क्या है हमारी वसीयत?
मित्रो! उस गाँव में हमारे घर वालों ने कहा, खानदान वालों ने कहा कि यह जमीन हमें दे जाइये। हमने कहा—नहीं, आपमें से कोई लँगड़ा हो तो हमारे सामने आये। कोढ़ी हो तो हमारे सामने आये। अंधा हो तो हमारे सामने आये, वरन् अपने हाथ-पाँव से कमाइए। हमारे बाप कमाकर गये थे और इसको हमने अपने भगवान के लिए, गुरुके लिए छोड़ दिया। उस जमीन पर हमने कॉलेज बना दिया है। हम यहाँ पर खाली हाथ आये। हमारे पास अक्ल है, चोरी चालाकी वाली नहीं। हमारी अक्ल को आप कहीं गिरवी रख दें। हमने अब तक जितना लिखा है, अगर उसकी रॉयल्टी ली हुई होती, तो लाखों की रायल्टी होती। जवाहरलाल नेहरू को, उनकी लिखी पुस्तकों केऊपर रॉयल्टी मिलती है और उनके बच्चों को पैसा मिलता है। हमने भी अपनी किताबों पर रॉयल्टी ली होती, तो अब तक लखपति होते और हमारी सात पीढ़ियाँ बैठकर खातीं। लेकिन हमने अपनी अक्ल अपने गुरु को सौंप दी, अपना पैसा गुरु को सौंप दिया, अपना शरीर गुरु को सौंप दिया।
मित्रो! आपको मालूम नहीं, हमारी वसीयत है कि मरने से पहले हमारा दिल निकाल लिया जाय, ताकि यदि किसी का दिल कमजोर हो गया हो, तो उसको लगाया जा सके। हमारी वसीयत है कि मरने के पहले हमारे गुर्दे निकाल लिए जायँ ताकि जिनके गुर्दे डैमेज हो गये है, उनको लगाये जा सकें। हमारी वसीयत है कि हमारे मरने सेपहले हमारी दोनों आँखें निकाल ली जायँ, ताकि जिनकी आँखों में लगाया जा सकता हो, उनको लगा दी जायँ। हमारे शरीर में छः लीटर खून है, जो बहुत साफ है। इसमें कोई खराबी नहीं है और यह किसी को भी लगाया जा सकता है। किसी के भी काम आ सकता है। हमारी वसीयत है कि हमारे मरने से पहले हमारा खून निकाललिया जाय और जिसको जरूरत हो, उसको लगा दिया जाय। हमारी वसीयत है कि हमको जलाया नहीं जाय। हमको किसी गोबर के गड्ढे में गाड़ दिया जाय, ताकि जो कटा-फटा शरीर है, उस कटे-फटे और टूटे-फूटे शरीर को मिट्टी के साथ मिलकर खाद बनाया जा सके। उसे किसी किसान के खेत में डाल दिया जाय, बगीचे मेंडाल दिया जाय, ताकि वहाँ से भरपूर फसल पैदा की जा सके, हरेक चीज पैदा की जा सके। जिस मुल्क से हम प्यार करते हैं, जिस संस्कृति से हम प्यार करते हैं, उसकी लकड़ी हमारे जलाने के काम आवे? नहीं बेटे! हमारे शरीर को जलाने के लिए लकड़ी काम आवे, उससे अच्छा है कि ठंडक से सिकुड़ने वाले लोगों के लिए वह कामआवे।
हमने भगवान को मोल ले लिया
मित्रो! हमने सारी जिंदगी भर दिया है। उसका परिणाम क्या हुआ? परिणाम यह हुआ कि जिसको हमने दिया, उस गुरु को हम भगवान कहते हैं। हमने हमेशा एक ही विचार किया है कि हम आपको दे सकते हैं। इसलिए हमने अपनी महत्त्वाकांक्षाएँ अपने गुरु के सुपुर्द कर दीं। इसका परिणाम क्या हुआ? परिणाम यह हुआ कि हमनेअपने गुरु को मोल ले लिया। हमको जो आवश्यकता पड़ी है, पड़ी नहीं है, वरन् उसी के लिए जरूरत पड़ी है, उसकी सारी की सारी चीजें हमको मिलती चली गयीं। विद्या? विद्या हमारे पास बहुत है। इतनी विद्या है कि हमने वेदों के भाष्य किये। लोगों को विश्वास नहीं होता कि क्या कोई आदमी इस जमाने में वेदों का भाष्य कर सकताहै? हम आपको यकीन दिलाते हैं। देखिये, क्या कोई अठारह पुराणों का भाष्य कर सकता है? नहीं, कोई नहीं कर सकता।
मित्रो! पुराणों को लिखने में दो आदमी सम्मिलित थे-व्यास जी और गणेश जी। इन्हें लिखने में दो आदमियों की शक्ति इस्तेमाल हुई। व्यास जी बोलते गये थे और गणेश जी लिखते चले गये थे। उन्होंने केवल पुराण लिखे थे, वेद नहीं लिखे थे। वेदों का भाष्य व्यास जी ने नहीं किया था। लेकिन जो काम व्यास जी न कर सके, जोव्यास जी और गणेश जी-दोनों की मदद से हुआ था, हमने अकेले ही किया। सात ऋषि वेद पढ़ाते थे। सात ऋषियों को हमने परिश्रम से पढ़ा है। उतने ही परिश्रम से जितना परिश्रम वेदों का भाष्य करने में किया है। सात ऋषि एक ओर, व्यास जी एक ओर, सारा का सारा जितना भी भारतीय संस्कृति का वाङ्मय है, उसका इतनासरल भाष्य हमने अकेले किया है। क्या यह हमारा ज्ञान है? नहीं बेटे! यह हमारे गुरु का ज्ञान है। इसका श्रेय हमको मिला है, प्रशंसा हमको मिली है। गुरुजी का नाम नहीं छपा, हमारा नाम छपा। हमने अपनी अक्ल उनको दी है। उन्होंने अपनी अक्ल हमको दी है। हम दोनों शामिल हैं।
मित्रो! हमको जब-जब जरूरत पड़ी है, तो हमारी आवश्यकता के अनुसार हमको हरेक चीज मिली है। जब हम विदेश जाने लगे तो हमने यह कहा कि आप हमको संसार भर में भेजते हैं, उनकी लैंग्वेज में उनकी भाषा में हम बोल नहीं सकते, तब आप हमको क्यों भेजते हैं? हमको हिन्दी आती है, अंग्रेजी हम बोल नहीं सकते और वहाँतो अंग्रेजी में ही बोलना पड़ेगा। जब मुझे भेजा गया और मैं फ्रांस गया। फ्रांस में अंग्रेजी नहीं चलती। फ्रांसीसी अंग्रेजों से बड़ी घृणा करते हैं, जैसे अभी यह हिन्दू-मुस्लिम में हो रही है। ऐसे ही फ्रांसीसियों और अंग्रेजों में बहुत रही है। आप अंग्रेजी में बोलिए तो फ्रांसीसी आपको जवाब नहीं देंगे। वे अंग्रेजी जानते व समझतेहैं, लेकिन फ्रांस में आपको फ्रेंच के बिना काम नहीं चल सकता। जर्मनी में आप जायेंगे तो जर्मन भाषा बिना आपका काम नहीं चल सकता। पिछड़े हुए मुल्क जिनमें अफ्रीका के देश सम्मिलित हैं, वहाँ आप जाइये, तो ‘स्वाली’ के बिना वहाँ की भाषा में बात नहीं कर सकते। वे न अंग्रेजी समझते हैं और न आपकी हिन्दी समझते हैं।आप किस तरीके से बात करेंगे। आपको वहाँ की भाषा में बात करनी पड़ेगी।
मित्रो! मैंने गुरु से कहा कि देखिए आप मुझे विदेशों में भेजते हैं। हिन्दी जानने वाला मैं विदेशी भाषा में कैसे बोलूँगा? मैं तो पानी भी नहीं पी सकूँगा, कैसे काम चलेगा? किसकी शरण में आप हमें भेजते हैं? उन्होंने कहा कि हमारी जीभ लेकर के चले जाओ। उन्होंने अपनी जीभ काटकर हमारी जीभ में चिपका दी और उस जीभ को लेकरहम सारी दुनिया में बोलते हुए चले गये। मित्रो! हमारे गुरु की सम्पत्ति हमारी सम्पत्ति है। गुरु की अक्ल हमारी अक्ल है। उनका पैसा हमारा पैसा है। हमने अपना डेढ़ लाख रुपया एक बार दिया था और वह जमीन जो देकर आये हैं, आप उसको पाँच हजार रुपये बीघे के हिसाब से चार लाख रुपये की मान सकते हैं। इस प्रकार कुलमिलाकर साढ़े पाँच लाख रुपये हमने दिया है। लेकिन गुरु ने हमको कितना दिया है? गायत्री तपोभूमि बनाने के लिए हमारे गुरु ने हुक्म दिया था, तो हमने कहा-अच्छा गायत्री तपोभूमि हम बना सकते हैं, लेकिन हम किसी से कुछ माँगेंगे नहीं। अगर किसी से माँगना पड़ा तो हम नहीं बनायेंगे। अच्छा जा! माँगना मत, बिना माँगेबनाना। वह इमारत जो उस जमाने में दस लाख रुपयों में बनाई थी, मैं समझता हूँ कि यदि आज बनाई जाय तो तीस-चालीस लाख रुपये से कम में नहीं बनेगी। इसको बनाये हुए हमको तीन-चार वर्ष हो गये। जरा आर्कीटेक्ट को बुलाइए, इंजीनियर को बुलाइए और कहिए कि साहब! इस इमारत में कितना पैसा लग जायेगा? साहब!इतना पैसा लग जायेगा।
समर्पण का नाम है योग
मित्रो! हमने हजार कुण्डीय एक यज्ञ किया था, जिसमें चार लाख आदमी हिन्दुस्तान भर से बुलाये गये थे। वे चार लाख आदमी पाँच दिन तक ठहरे थे। हमने खाने-पीने का सारा इन्तजाम किया था। बीस लाख आदमी सबेरे और बीस लाख आदमी शाम को। चालीस लाख आदमियों को एकदम फ्री में खाना खिलाया था और फ्री मेंठहराया था। फ्री में बिजली दी थी। सारे के सारे इन्तजाम फ्री में थे। इसमें हमारा पचास लाख रुपया खर्च हुआ था। अपने पचास लाख रुपये की कीमत में हमको करोड़ों रुपये मिले। यह क्या था? हमने अपने आपको नाले के तरीके से मिला दिया है। किसमें? गंगा में। कौन सी गंगा? भगवान में। हमारे पास जो कुछ भी था, कमसे कम और अधिक से अधिक, बिना चू-चपड़ के हमने सब कुछ भगवान को समर्पित कर दिया है। परिणाम क्या हुआ? उसका परिणाम यह हुआ कि उनका जो कुछ भी था, वह सब हमको देते हुए चले गये। इसका नाम योग है।
स्वेच्छा से कष्ट सहना है तप
मित्रो! योग के अलावा एक और बात रह जाती है और उसका नाम है—तप। तप किसे कहते हैं? खाना न खाना, पानी न पीना, धूप में खड़े रहना, जमीन पर सोना, यही तो तप होता है न? किसे कहते हैं तप? बेटे! इसके पीछे एक रहस्य छिपा हुआ है, एक उद्देश्य छिपा हुआ है। इसका उद्देश्य है—मुसीबत उठाने के लिए स्वेच्छापूर्वकतैयार हो जाना। एकादशी के दिन उपवास रखते हैं। क्यों साहब! आपको खाना मिलता है कि नहीं मिलता? हाँ साहब! खाना तो है। फिर क्या बात है कि आप खाना नहीं खा रहे हैं? यह क्या है? अपनी इच्छा पूर्वक मुसीबत मोल लेना। आज क्या है? आज तो निर्जला एकादशी है। निर्जला एकादशी को पानी पियेंगे? नहीं साहब! पानीनहीं पियेंगे। आप पानी क्यों नहीं पीते है, पानी तो घर में है। लीजिए हम लाते हैं पानी, आप पियेंगे कि नहीं? नहीं साहब! नहीं पियेंगे! क्यों? क्योंकि आज निर्जला एकादशी है।
बेटे! इससे क्या मतलब है आपका? इच्छा से, स्वेच्छापूर्वक, खुशी से अपने ऊपर मुसीबत बरदास्त करना। एक तो मुसीबत वह होती है, जो जबरदस्ती हमारी गलती की वजह से, अकर्मण्यता की वजह से, हमारे दुष्कर्मों की वजह से हमारे ऊपर आती है। वह तो दुखदायी मुसीबत होती है। वह तो असहनीय हो जाती है। उसको सहनेमें हमारी आँखों में आँसू आ जाते हैं, लेकिन एक मुसीबत ऐसी होती है, जिससे खुशी हासिल होती है। मसलन, एकादशी के दिन उपवास करना, निर्जला एकादशी को पानी न पीना। उदाहरण के लिए जब हम आपको अनुष्ठान कराते हैं, तो आपके ऊपर कई तरह के बंधन लगा देते हैं। जैसे—यह मत खाना, यह करना, जमीन परसोना, नंगे पैर चलना, ऐसे करना, माघ के महीने में ठंडे पानी से नहाना और गर्मी के दिनों में धूप में नंगे पैर चलना आदि। इसका क्या मतलब है? आपको हम यह अभ्यास कराते है कि आप इच्छापूर्वक मुसीबतें मोल लेने के लिए तैयार हो जाइये। स्वेच्छापूर्वक मुसीबतें लेने के लिए, किन्हीं ऊँचे सिद्धान्तों के लिए, बिना कारण नहीं, बिनावजह नहीं, आपको हम अभ्यास कराते हैं।
मित्रो! वह इसलिए कि जब कभी आप श्रेष्ठ राह पर चलेंगे, तो जिंदगी में ऐसा मौका जरूर आयेगा जब आपको मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा। दुनिया में जितने भी श्रेष्ठ पुरुष हुए हैं, महामानव हुए हैं, योग्य पुरुष हुए हैं, ज्ञानी हुए हैं, उन्होंने खुशहाली की जिंदगी नहीं जीयी है। ऐय्याशी की जिंदगी नहीं जीयी है। मालदारी कीजिंदगी नहीं जीयी है। वे अमीर होकर नहीं जिये हैं, बड़े आदमी होकर नहीं जिये हैं, बल्कि मुसीबतजदा हो करके जिये हैं। उन्होंने मुसीबतों को जानबूझकर के अपने ऊपर बुलाया है और अपने ऊपर मुसीबत बुलाने की वजह से उनका नाम तपस्वी कहलाया। तपस्वी होने से क्या फायदा हुआ है? बेटे! तप कहते हैं—गरम करने को।अपने आपको गरम करने का नाम है—तप। गरम करने से हर चीज मजबूत हो जाती है। जैसे—जो ईंटें कच्ची हैं, और जब कच्ची ईंटों से हम मकान बनाते हैं, तो मकान बड़ा कमजोर होता है। और जब हम ईंटों को पका डालते हैं, भट्टे में डालते हैं, गरम करते हैं, तब ईंटें ऐसी मजबूत हो जाती हैं कि उनका बरसात क्या बिगाड़सकती है और धूप क्या बिगाड़ सकती है? सैकड़ों वर्षों तक वह वैसे ही खड़ी रहती है। जबकि कच्ची ईंटें बहकर खत्म हो जाती हैं। यह क्या कहलाती है? यह कहलाती है—तपस्या।
तपने का नाम है तपस्या
मित्रो! हकीम लोग भस्में बनाते हैं हकीम जी! क्या बना रहे हैं? अरे साहब! लौह भस्म बना रहे हैं। तो यह लौह भस्म क्या भाव बिकेगी? साहब! यह तो बीस रुपये तोला बिकेगी। वाह साहब! लीजिए हम आपको चार आने तोला लोहा देते हैं। नहीं साहब! हम तो यह भस्म बना रहे हैं। भस्म किसे कहते हैं? बेटे लोहे को जलाते हैं।इसको हम तपाते हैं। ताप देने के बाद में जब भस्म बन जाती है, तो वह बड़ी कीमती बन जाती है। धातुएँ कच्ची होती हैं। कच्ची धातु कैसे निकलती है? कच्चा लोहा कैसे निकलता है। बेटे! कच्चा लोहा खदान से जो निकलता है, मिट्टी मिला हुआ होता है। फिर उसे भट्टियों में ले जाया जाता है। आप भिलाई में जाइये, टाटा नगरमें जाइये, राउरकेला में जाइये और देख करके आइये। कच्चे कोयले को, कच्चे कोयले को मिट्टी मिले हुए कोयले को आग में झोंक देते हैं। आग में झोंक देने के बाद क्या होता है? वह गरम हो जाता है और गरम होने के बाद में मिट्टी अलग हो जाती है और पक्का लोहा अलग हो जाता है। पक्के लोहे को दुबारा गरम करते हैं, तिबारागरम करते हैं, चौबारा गरम करते है। जितनी बार ज्यादा गरम किया जाता है, जितना उसको टेम्प्रेचर दिया जाता है, स्टेनलेस स्टील बन जाता है। जितना ज्यादा उसको टेम्परेचर लगाते हैं, उतना ही ज्यादा अच्छा लोहा बनेगा।
मित्रो! पानी को गरम करने के बाद उसमें शक्ति आ जाती है। ठंडे पानी में शक्ति नहीं आती। कच्चा आम खट्टा होता है, लेकिन जब उसे गर्मी में दबा देते हैं, तो पककर वह मीठा हो जाता है। और बेटे वेल्डिंग कैसे होती है? लोहे के दो टुकड़े बराबर रख करके आग लगाते हैं, फिर चाहे वह बिजली से हो, आग से हो या गैस से हो।हम उसमें आग लगाते हैं और दोनों को इतना गरम करते हैं कि दोनों पिघल कर एक हो जाते हैं। यह क्या हो रहा है? वेल्डिंग हो रही है। वेल्डिंग में लोहा गरम हो करके आपस मे इतना चिपक जाता है कि उसे हाथ से अलग नहीं किया जा सकता। दूसरी किसी चीज से काट लीजिए, पर वेल्डिंग किया हुआ लोहा छूटेगा नहीं। क्यों?क्योंकि वेल्डिंग कर दी गयी है।
मित्रो! वेल्डिंग कर देने से क्या मतलब है? इसका मतलब है कि उसे तपा दिया गया है? तपा देने से क्या मतलब है? तपा देने से वही मतलब है, जो हम आपको इस योग साधना शिविर में सिखाना चाहते हैं। हम आपको गरम करना चाहते हैं। आपको तपाना चाहते हैं और आपको मुसीबत में धकेलना चाहते हैं। ऐसी मुसीबत में धकेलनाचाहते हैं, जो आपको प्रारब्धों के फलस्वरूप से नहीं, मजबूरी से नहीं, वरन् जो अपनी इच्छा से माँगी गयी हो कि लाइये साहब! मुसीबत लाइये, मुझे मुसीबत दीजिए। जिस दिन आप मुसीबत माँगेंगे, उस दिन क्या हो जायेगा? आपकी और आपके भगवान की वेल्डिंग हो जायेगी। दोनों की वेल्डिंग हो जायेगी और आपको चिपका दियाजायेगा। आत्मा और परमात्मा दोनों मिल जायेंगे। जिस दिन आप यह कहेंगे कि संपत्ति नहीं, खुशहाली नहीं, यश नहीं, वैभव नहीं, हमको मुसीबत दीजिए। मुसीबत माँगने वाले का नाम तपस्वी है।
बेटे! बिजली के बल्वों में छोटा सा तार होता है, जिसको फिलामेंट कहते हैं। यह जरा सा होता है, लेकिन जब हम इसे तपाते हैं, इसके भीतर आग लगा देते हैं, तो सारे के सारे कमरों में यह रोशनी करना शुरू कर देता है। यह तपस्वी है दीपक को हम जब जलाना शुरू करते हैं, तेल में भीगी हुई रुई की बत्ती को जलाना शुरू करते हैं, तो दीपक चारों ओर प्रकाश पैदा करना शुरू कर देता है। यह क्या है? यह तप है। और क्या हो सकता है तप? तप का अर्थ है—मुसीबतें। मुसीबतें उठाने के लिए जब स्वेच्छा से हम तैयार हो जायेंगे, तो हमारा नाम तपस्वी हो जायेगा। जब हम तपस्वी हो जायेंगे तो हम शक्तिशाली हो जायेंगे।
तप की महिमा अपरम्पार
मित्रो! तप की महिमा से सारे का सारा भारतीय वाङ्मय भरा हुआ है। अध्यात्म में सिवाय तप के और कुछ है ही नहीं। सातों ऋषि क्या करते रहे? तप करते थे। ध्रुव जी क्या करते थे? तप करते थे। अच्छा, पार्वती जी ने ब्याह कर लिया। हाँ! शंकर भगवान तो मना करते थे कि हम तो ब्याह नहीं करेंगे। तो क्या शंकर भगवान कोजबर्दस्ती तैयार करा लिया कि आपको ब्याह करना पड़ेगा? नहीं! फिर पार्वती जी ने क्या काम किया था? पार्वती जी ने महादेव जी को मिठाई खिलाई थी? नहीं महाराज जी! मिठाई नहीं खिलाई। तो क्या किया था? तप किया था। तप करने के बाद उन्होंने बताया था कि हम सोने के हैं और आप लोहे के हैं। हम स्टील के हैं, आप हमसेशादी कर सकते हैं। तप की आग बहुत प्रचंड होती है। तप की आग में अपने को झोंककर बेटे! भगीरथ गंगाजी को स्वर्ग से धरती पर लाये थे। क्या किया था उन्होंने? तप किया था। जितने भी ऋषि हुए हैं, उन्होंने तप किया था। दधीचि, जिन्होंने तप के द्वारा अपनी हड्डियों को मजबूत बनाया और उनकी हड्डियों से बने वज्र सेराक्षस मारा गया था। इतना बल कहाँ से आया था? तप से आया था।
मित्रो! कल मैं आपको अगस्त्य ऋषि का किस्सा सुना रहा था। वे तीन चुल्लू पानी में समूचा सागर पी गये थे। इतनी ताकत उनमें कैसे आ गयी थी? वे क्या खाते थे? विटामिन बी-काम्प्लेक्स खाते थे? फिर क्या करते थे? तपस्वी थे। उनकी यह तपस्या की शक्ति थी। तप की शक्ति से बेटे, विश्वामित्र ने नई सृष्टि बना दी थी।तप की शक्ति से जाने क्या-क्या होता रहा है। दुनिया में जितने भी महापुरुष हुए हैं, जिनको हम सामर्थ्यवान कह सकते हैं, शक्तिमान कह सकते हैं, आत्मबल सम्पन्न कह सकते हैं, उनके पास एक ही हथियार था—‘तप’। तप किस तरीके से करेंगे? तप उसी तरीके से करेंगे जैसे कि प्रत्येक तपस्वी को करना पड़ा। आपको भी वैसाही करना चाहिए। मुसीबतों को खुशी से अंगीकार करने के लिए जब हम आपको पेश करते हैं, तब आप तपस्वी होते हैं।
मित्रो! तप के लिए पहला वाला मोर्चा और पहला वाला निशाना हमारी इन्द्रियाँ होनी चाहिए। हमारी इन्द्रियाँ हमारी बहुत सारी शक्ति खराब करा देती हैं, खर्च करा देती हैं। जैसे सूराखों वाले बर्तन में गाय दूध देती रहती है और उन सूराखों से सारा दूध टपक जाता है। कुछ पल्ले नहीं पड़ता। हमारे पास कुछ नहीं बचता। हम छूँछ रहजाते हैं। इसलिए पहले हमको हमारे जीवात्मा के भीतर बल की वृद्धि हो, इसलिए यह आवश्यक है कि जीवन में जितने भी सूराख हैं, उन सूराखों को बंद करें। इन सूराखों को यदि आप रोक देंगे, तो आपकी अनावश्यक शक्ति जो खर्च होती रहती है, जिसे आप भजन से भी कमाते हैं, दूसरे तरह से भी कमाते हैं, तीसरे तरह से भी कमातेहैं, भगवान की दया से भी कमाते हैं, संत पुरुषों के अनुग्रह से भी कमाते हैं और वह सारी की सारी खर्च हो जाती है, बंद हो जायेगी। इन सूराखों में जो इंद्रियों की सूराखें हैं, उनका संबंध स्थूल शरीर से है। हमारे तीन शरीर हैं-स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर। तीनों शरीरों को हमको गरम करना पड़ता है, तपाना पड़ता है, उनकेछिद्रों को बंद करना पड़ता है, कमजोरियों को दूर करना पड़ता है, ताकि हमारा योग का उद्देश्य पूरा हो सके। ताकि हम उसमें ठीक तरह से मिलाये जा सकें। यही योग और तप का उद्देश्य है।
आज की बात समाप्त।॥ ॐ शान्तिः॥