Books - भगवान की पूँजी में हिस्सेदार बनें
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भगवान की पूँजी में हिस्सेदार बनें
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गायत्री मंत्र हमारे साथ- साथ-
ॐ भ्रूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
देवियों, भाइयो ! जमीन के भीतर बेशकीमती चीजें भरी पड़ी हैं। इसमें हीरा है, सोना है, कोयला है, लोहा है और न जाने क्या- क्या भरा पड़ा है। जमीन की खुदाई करने पर हम इसमें तेल देखते हैं और दूसरी कीमती चीजें देखते हैं, पर बाहर हम सारी जमीन पर तलाश करते चले आते हैं तो सिवाय घास- पात के, कूड़े- कचरे के कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता। हीरा कहीं दिखाई नहीं पड़ता, सोना जमीन पर कहीं फैला हुआ नहीं पाया जाता। हमें बेशकीमती चीजें पाने के लिए जमीन की गहरी खुदाई करनी पड़ती है। ठीक इसी तरह जब हमने अपने भीतर में, अपने गरेबान में मुँह डाला तो हमें बड़ी कीमती चीजें दिखाई पड़ी। मैं चाहता हूँ कि आप लोगों को यहाँ बुलाकर अपनी वहीं मनःस्थिति आपके सामने दिल खोल करके दिखा पाता तो आप भी मेरी तरह धन्य हो जाते।
जीवन के दो कीमती हिस्से
मित्रो ! मेरे फरिश्ते ने जिन्दगी के दो कीमती हिस्से मुझे दिखाए- एक शुरुआत वाला और दूसरा आखिरी वाला हिस्सा। दोनों ही हिस्से इतने बेशकीमती थे कि इनके बराबर और कोई कीमती चीज किसी की जिन्दगी में हो नहीं सकती है। जिन्दगी का पहला वाला सिरा मेरे फरिश्ते ने मुझे दिखाया और मैंने देखा कि भगवान ने बेशकीमती नियामत मेरे हाथ में सौंप दी है। कितने बड़े हीरों का हार, जिसकी कोई कीमत नहीं हो सकती। और चीजों की बड़ी कीमत है, पर जिंदगी से बढ़कर और कोई नियामत दुनिया में हो ही नहीं सकती, जो भगवान इनसान को सुपुर्द करता है। मनुष्य की जिंदगी जो किसी और प्राणी को नहीं मिल सकी। मनुष्य की जिंदगी जिसके लिए देवता तरसते हैं और ये कहते हैं कि हमको मनुष्य की जिंदगी मिलनी चाहिए, क्योंकि इसमें कर्म का भी आनंद है। देवयोनि में कर्म का आनंद नहीं है। देवता भोगयोनि हैं और पशु भी भोगयोनि है, पर मनुष्य योनि में खट्टे- मीठे आनंद हैं। वह कर्म भी कर सकता है और भोग भी सकता है। ऐसा सुरदुर्लभ मनुष्य का जीवन जो किसी और प्राणी को नहीं मिला। चौरासी लाख योनियों में से किसी को नहीं मिला। इतना बेशकीमती जीवन मुझे भगवान ने दिया है। सिर ऊँचा हो गया, सीना तन गया। मनुष्य का जन्म इतना सामर्थ्यवान है कि आदमी अगर इसका सही तरीके से इस्तेमाल कर सके तो दूसरा भगवान बन सकता है। मैंने इसे बड़े गौर से देखा, घूर- घूर कर देखा, इसकी कीमत को देखा, नाप- तोल करके देखा और मेरे फरिश्ते ने मुझे दिखाया।
साथियों! इतनी बड़ी चीज पाकर इसका ठीक तरीके से इस्तेमाल करना भी एक बड़ी बात है। कोई बाप लाखों- करोड़ों रुपए की संपत्ति देकर जाए और उसके बेटे कपूत निकलें, सारी की सारी दौलत को जुआखोरी में और शराबबाजी में खरच कर डालें तो कोई क्या कर सकता है। उसमें बाप की क्या गलती हो सकती है। इतनी कीमती चीज है, अब इसका मुझे ठीक से इस्तेमाल करना होगा। मेरे गुरु ने मुझे बताया कि देख मानव जीवन कितना कीमती है, क्या तू इसे समझ पाया है? मैंने कहा- हाँ, यह बेशकीमती है। इससे बढ़िया और कोई दौलत प्राणी के लिए नहीं हो सकती, जितना इनसानी जीवन है। मैं धन्य हो गया, निहाल हो गया। मैंने जिंदगी का एक सिरा देखा, जो मेरे फरिश्ते ने मुझे दिखाया। कब? आज से पचपन वर्ष पहले, उन दिनों ये ही वसंत के दिन चल रहे थे।
मित्रो ! मेरे फरिश्ते ने मुझे एक और जिंदगी का हिस्सा दिखाया। वह कौन सा हिस्सा? वह आखिरी वाला हिस्सा, कौन सा वाला? जिस दिन आदमी की मौत आती है। मौत को मैंने देखा। एक बार देखा, दो बार देखा, तीन बार देखा। तीन जन्मों का हाल जब मुझे दिखाया तो तीन बार अपने आप को मरते हुए देखा। मरते समय में आदमी को कितनी कसक, कितनी पीड़ा, कितना पश्चाताप, कितनी व्यथा, कितनी जलन, कितना हाहाकार उसके भीतर होता है। वे सारी की सारी घटनाएँ- न सिर्फ दृश्य मैंने देखा है, बल्कि मैंने जलते हुए अपना शरीर देखा और वह कसक, वे पीड़ाएँ भी देखीं जो पीने गँवा दी थी। जिंदगी मामूली कामों में खरच कर डाली, कसक का कोई ठिकाना न रहा। पश्चाताप का कोई ठिकाना न रहा, क्रंदन का कोई ठिकाना न रहा, हा−हाकार का कोई ठिकाना न रहा, चीत्कार का कोई ठिकाना न रहा। हाँ ! मैंने कैसी भूल कर डाली। इस इनसानी जिंदगी को अच्छे काम में खरच कर सकता था, लेकिन मैंने इसको कीड़े- मकोड़ों के तरीके से खरच किया।
पेट- प्रजनन का जीवन
कीड़े और मकोड़े दो काम के लिए जिंदा रहते हैं- एक पेट पालते रहते हैं और दूसरे औलाद पैदा करते रहते हैं। दो के अलावा तीसरा कोई काम नहीं कर सकते। न इनमें अक्ल होती है, न हिम्मत होती है, न बुद्धि होती है, न समझ आती है, न परिस्थिति होती है और न साहस होता है। कुछ नहीं होता। दो काम करते रहते हैं। जब से पैदा होते हैं, पेट पालते हैं, औलाद पैदा करते हैं और मर जाते हैं। उसी तरीके से मेरा भी जन्म हुआ और मैं भी मरा। रो पड़ा कि अब जब यह जिंदगी खत्म होगी, तब मुझे कहाँ जाना पड़ेगा? किन योनियों में जाना पड़ेगा, न जाने कहाँ- कहाँ जाना पड़ेगा? कितना कष्ट उठाना पड़ेगा, यह मैंने मौत के दिन देखा। मौत की घड़ी देखी, मैंने अपनी लाश चिता के ऊपर पड़ी हुई देखी। चीत्कार कर उठा कि हाय रे, अभागा मैं! न जाने किन−किन समस्याओं को कीमती समस्या समझता था, अगर मुझे एक ही कीमती समस्या समझ में आ गई होती कि जिंदगी का ठीक- ठीक उपयोग करना, तो मजा आ जाता।
मित्रो ! छोटी−छोटी समस्याएँ−मकान में छप्पर नहीं पड़ सका, मकान में टीन नहीं पड़ सकी, इस लड़की को वकील जमाई नहीं मिल सका, इस लड़के की बहू को इतना जेवर न मिल सका। ये छोटी−छोटी बच्चों को खिलवाड़ जैसी राई- रत्ती भर समस्याएँ है। जिनसे आदमी के लिए न कुछ नुकसान हो सकता है, न फायदा हो सकता है। इन राई- रत्ती समस्याओं को मैं पहाड़ के बराबर समझता रहा और उन्हीं में उलझा रहा। लेकिन वह समस्या, जिसके लिए कीमती जिन्दगी दी गई थी, उसके बारे में विचार न कर सका। मैं रो पड़ा। ऐसे ही मैंने कई बार देखा, जिले तीन जनों के अतिरिक्त। मेरे गुरु ने मुझे दिखाया और मुझे चौंका दिया। में चौंक पड़ा और मैंने उनके चरणों को पकड़कर कहा- बताइए, मुझे क्या करना चाहिए? उन्होंने कहा- एक ही काम करना चाहिए और वह यह है कि जिंदगी की कीमत समझनी चाहिए। जिंदगी का ठीक इस्तेमाल क्या हो सकता है, इसके बारे में गौर करना चाहिए। इतनी हिम्मत इकट्ठी करनी चाहिए, जिससे कि जिन्दगी का श्रेष्ठतम उपयोग करना संभव हो सके। इतना ही करना चाहिए और कुछ नहीं करना चाहिए। आज से पचपन साल पहले मेरे गुरुदेव ने मुझे बताया और मैं चौक पड़ा और जाग गया।
प्रसुप्ति से जाग्रति
मैं चाहता था कि आप सब मित्रों को बुलाकर बताऊँ, ताकि आपको भी ऐसा ही मौका मिल जाए,कदाचित आप भी चौंक पड़े और आप भी जाग जाएँ। आप भी जिंदगी की कीमत को समझ पाएँ। जिंदगी जब हाथ से निकल जाती है, तब हमको किन- किन परिस्थितियों में रहना पड़ता है, इसके बारे में कदाचित आपको भीतर से हूक पैदा हो जाए, कदाचित आपके भीतर से जाग्रति उत्पन्न हो जाए, चेतना उत्पन्न हो जाए तो मजा आ जाए। आप भी मेरे तरीके से धन्य हो जाएँ। मैं चाहता था कि आपको भी उसी तरह का मौका मिले, जैसा कि मुझे धन्य बनने का मौका मिला। जिस तरह से में जाग पड़ा और समझ गया कि जिन्दगी कीमती है और मैं उसका ठीक से उपयोग करूँगा। कीड़े- मकोडों की तरह, जानवरों की तरह नहीं जीऊँगा, वरन आदमी के तरीके से जीऊँगा। जिस काम के लिए भगवान ने मुझे पैदा किया है, उसे पूरा करने का मैंने निश्चय कर लिया, संकल्प कर लिया कि जीऊँगा तो ऐसे ही जीऊँगा।
मित्रों ! अब क्या करना चाहिए? क्या कदम बढाना चाहिए? मैंने फिर अपने उसी फरिश्ते से दूसरा सवाल किया कि जब आपने मुझे जगा ही दिया है और यह बता दिया है कि जिंदगी का ठीक उपयोग करना चाहिए तो आप ही बताइए कि मुझे अब क्या करना होगा? उन्होंने मुझे दूसरी शिक्षा दी कि दुनिया में एक ही समझदारी है कि अकेला आदमी लंबी मंजिल नहीं पर कर सकता।लंबी मंजिल पार करने के लिए दो टाँगों को जरूरत होती है। दो पैरों पर चलकर ही हम लंबी मंजिल पूरी कर सकते हैं। दो हाथों से ही सारा काम चलता है। एक हाथ से काम कहाँ हो पाता है !एक टाँग से सफर कहाँ को पाता है ! जिन्दगी की नाव पार करने के लिए दो सहयोगियों की जरूरत होती है। अतः तुम भी दूसरा सहयोगी तलाश करो।
मैंने कहा- गुरुदेव! इससे आपका क्या मतलब है? कहीं ब्याह- शादी से तो नहीं है? नहीं, ब्याह- शादी करने से मतलब नहीं है। जिस तरह नाव से नदी को पार करने के लिए दो हाथों की और दो पतवारों की जरूरत पड़ती है उसी तरह आपको भी एक और सहायक ढूँढ़ लेना चाहिए। तो आप बताते क्यों नहीं कि मुझे कौन सा सहायक ढूँढ़ लेना चाहिए? उन्होंने कहा कि भगवान को एक सहायक के रूप में ढूँढ़ लेना चाहिए। और दूसरा? दूसरा एक इनसान को। एक इनसान और एक भगवान, दोनों को आप साझी बना लीजिए, फिर देखिए, कैसे मजा आता है ! फिर देखिए कि जिंदगी की नाव कैसे आगे चलती है ! और फिर देखिए कि उन्नति का रास्ता कैसे खुलता है। मेरे गुरु ने, मेरे फरिश्ते ने मुझे यही रास्ता बताया।
साझेदारी का मर्म
मित्रो ! फिर मैंने पूछा कि मुझे क्या करना होगा? उन्होंने कहा कि तुम्हें मालूम नहीं है कि जो दुकानदार होते हैं, व्यापारी होते हैं, वे क्या काम करते हैं? आप ही बताइए, मुझे तो मालूम नहीं है। उन्होंने कहा कि वे बैंक के साथ साझेदारी कर लेते हैं। कैपीटल बैंक का होता है, पचहत्तर प्रतिशत पैसा बैंक से आता है, पच्चीस प्रतिशत अपना होता है। गवर्नमेंट भी ऐसे ही लोन देती रहती है। जमीन अपनी खरीद लीजिए और लोन सरकार से ले लीजिए। कारखाना अपना लगा लीजिए, मशीनें अपनी लगा लीजिए, कैपीटल बैंक का इस्तेमाल कीजिए। बैंक बराबर देती रहती है। भगवान एक बैंक है। अगर हम इसकी साझेदारी अपनी जिंदगी में कर लें तो हमारे जीवन की तिजारत और हमारे जीवन का व्यापार ठीक तरीके से चल सकता है। अकेले चलाएँगे तब? बेटे, अकेले तो बहुत मुश्किल है।
अपनी भुजाओं की ताकत से, अपने पुरुषार्थ से, अपनी अक्ल से हम बहुत थोड़ी मंजिल पार कर सकते हैं, लेकिन अगर एक टाँग हमारी और एक टाँग भगवान की, इस तरह की साझेदारी हो जाए तो मजा आ जाए। भगवान से साझेदारी कैसे होगी, बताइए? साझेदारी के बारे में घर वालों ने और दूसरों ने मुझे जो बात बता रखी थी, वह तो एक मजाक जैसी मालूम पड़ी, दिल्लगी जैसे मालूम पड़ी कि प्रार्थना कीजिए, पूजा कीजिए, बस, साझेदारी खत्म। नहीं साहब! इस तरीके से साझेदारी नहीं हो सकती। साझेदारी की कुछ शर्तें होती है। बैंक पैसा देता है, लेकिन उसकी भी दो शर्तें होती हैं। एक शर्त यह है कि आपने जिस काम के लिए पैसा लिया हुआ है, उस काम में खरच कीजिए। आपने मशीनें खरीदने के लिए पैसा लिया है, आपको अपने कुएँ में ट्यूबवैल लगाना है, आपको ट्रैक्टर खरीदना है। यही लिखा है न आपने? नहीं साहब ! अब ट्रैक्टर खरीदने से क्या फायदा। अब तो हम उसी पैसे से ब्याह शादी करेंगे और तमाशा करेंगे। नहीं बेटे! यह गलत बात है। बैंक वाला नीलाम करा लेगा और जो कुछ पैसा दिया होगा, उसका रिफंड माँगेगा और फिर आपको तंग करेगा। आपको जिस काम के लिए पैसा मिला है, केवल उसी काम में खरच कीजिए और किसी में मत कीजिए। यह बैंक की शर्त नंबर एक है।
बैंक क्या है? बैंक माने भगवान ! भगवान का अनुग्रह। आपने जिस काम के लिए प्राप्त करने की कोशिश की है, उसे उसी काम में खरच कीजिए। यह भगवान का प्यार और अनुग्रह नंबर एक है। नंबर दो, ब्याज समेत उसे वापस कीजिए। मूलधन देने की कसम खाइए और यह कहिए कि हम आपका न केवल मूलधन देंगे, वरन आपका धन ब्याज समेत्त वापस करेंगे। तभी बैंक आपको पैसा देना शुरू करेगा ।। नहीं साहब ! हम तो यह नहीं कर सकते, आपका ब्याज भी वापस नहीं कर सकते और यह भी वायदा नहीं कर सकते कि जिस काम के लिए हमने माँगा है, उसी काम में खरच करेंगे। तो फिर आपको कर्ज नहीं मिल सकता। तो फिर बैंक आपके कारखाने में कोई शेयर नहीं दे सकती और कोई सहायता नहीं दे सकती। भगवान के बारे में भी यही बात है, जिसके बारे में मेरे गुरुदेव ने कहा था कि तुमको भगवान का प्यार पाना चाहिए और भगवान की शक्ति और सहायता का सक्रिय लाभ उठाना चाहिए है
कोई शॉर्टकट नहीं
इसके लिए क्या करना पड़ेगा? दूसरे लोग तो भगवान के साथ मखौल करते हैं, दिल्लगीबाजी करते हैं। दिल्लगीबाजी क्या होती है? यह होती है, जैसे 'लाठी से थन छूना।' कोई एक दिल्लगीबाज था। उसने गाय का दूध पीने के लिए क्या किया? पोले बाँस की एक नलकी ली और गाय के थन से लगाई और हुक्के के तरीके से दूर से ही दूध पीने लगा। एक ने पूछा- महाशय जी ! यह क्या कर रहे हैं आप? लाठी से गाय का दूध पी रहे हैं। नहीं साहब! लाठी से छूकर दूध नहीं पिया जा सकता, तो कैसे पिया जा सकता है? पहले आप गाय पालिए। उसे घास खिलाइए, चारा खिलाइए। तो क्या गाय को चारा भी खिलाना पड़ेगा, दाना भी खिलाना पड़ेगा, पानी भी पिलाना पड़ेगा, रखवाली भी करनी पड़ेगी और गाय को दुहना भी पड़ेगा? हाँ। नहीं साहब! अगर इतना झगड़ा है तो यह हम नहीं कर सकते। तो बेटे, गाय का दूध नसीब नहीं हो सकता। नहीं साहब ! मैंने तो यह सुना था कि लाठी लीजिए और उसकी नलकी को थनों में लगा दीजिए और चूस जाइए। इसके अतिरिक्त आपको और कुछ नहीं करना, न घास देनी है, न चारा देना है, न पानी पिलाना है, कुछ नहीं करना।
क्या मतलब है इसका? इसका मतलब है कि माला घुमाइए और दूध भी जाइए। माला माने लाठी। लाठी गाय के थन से लगाइए और चूसते चले जाइए बस, हो जाइए मालामाल। हो जाइए धन्य। आपको तो यही बताया गया है कि ग्यारह माला जपिए और देवी को प्रसन्न कर लीजिए, हनुमान जी को प्रसन्न कर लीजिए, गणेश जी को प्रसन्न कर लीजिए, सबको प्रसन्न कर लीजिए। हनुमान चालीसा का पाठ करिए; चावल, धूप, दीप, नैवेद्य चढा दीजिए। यही तो आपको बताया गया है न? हाँ साहब। अगर सारी दुनिया पागल है तो में भी पागल हूँ। हाँ बेटे, यह दुनिया सब पागल है। यह भगवान को अहमक समझती है। अहमक माने जड़मति, मूर्ख। अहमक माने वे आदमी जो केबल चापलूसी के आधार पर और छोटे−मोटे उपहार देने की कीमत के आधार पर जिस- तिस से फायदा उठाने का प्रयास करते हैं। लेकिन भगवान बड़े समझदार आदमी का नाम है। भगवान बड़े जिम्मेदार आदमी का नाम है। भगवान ने इतनी बड़ी दुनिया बनाई है, कायदे- कानून बनाए हैं, नियम और मर्यादाएँ बनाई हैं। यह नहीं हो सकता कि आप खुशामद के सहारे, चापलूसी के सहारे और छोटी- मोटी धूपबत्तियों का सहारा लेकर उसकी कृपा प्राप्त कर सकें।
भगवान की पूँजी में हिस्सेदारी
मित्रो! मैंने अपने गुरुदेव से कहा कि तो फिर आप ही बताइए कि मुझे क्या करना पड़ेगा? उन्होंने कहा कि भगवान को अपनी जिंदगी की तिजारत में हिस्सेदार बना लीजिए। मैंने भगवान को अपनी जिंदगी की तिजारत में हिस्सेदार बना लिया। कैसा हिस्सेदार? जैसे कि बैंक में वह आदमी हिस्सेदार हो जाता है, जो बैंक की पूँजी में अपना हिस्सा लगाता हुआ चला जाता है। मैंने भी भगवान के बैंक में अपनी पूँजी लगानी शुरू कर दी और भगवान ने भी अपनी पूँजी देना स्वीकार कर लिया। पहले ही दिन से भगवान की पूँजी मुझे मिलती हुई चली गई। जिस काम के लिए दरखास्त दी थी कि मुझे अमुक काम के लिए आपकी पूँजी की जरूरत है, उसी काम के लिए मैंने खरच किया। भगवान की कृपा, भगवान का अनुग्रह, भगवान का प्यार अपने लिए मैंने खरच नहीं किया। मुझे उसकी जरूरत क्या थी ! पेट हमारा मुट्ठी भर का है। सो मुट्ठी भर अनाज से हम छह इंच के पेट को पूरा भर सकते हैं। इसमें भगवान की सहायता की हमें कतई आवश्यकता नहीं है, लेकिन अगर हमारी हवस बढ़ी हुई है तो उसको कोई पूरा नहीं कर सकता। रावण की हवस पूरी न हो सकी, कंस की हवस पूरी न हो सकी, हिरण्यकशिपु की हवस पूरी न हो सकी, सिकंदर की हवस पूरी न हो सकी। अगर आपकी भी हवस बढ़ी हुई है तो फिर भगवान भी उसे पूरा नहीं कर सकते। अगर वह इस मिट्टी में स्वयं भी गिरे, तो भी आपकी हवस को पूरा नहीं कर सकता।
मित्रो! अपनी जरूरत के लिए आपको भगवान के सामने खुशामद करने और नाक रगड़ने की कोई भी जरूरत नहीं है। भगवान ने दो देवता पहले ही हमारे सुपुर्द कर दिए हैं और यह कहा है कि ये देवता ही सामान्य मनुष्य को जिंदगी की जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। और वे देवता हैं हमारे दो हाथ। छह फीट लंबा हमारा शरीर है और छह इंच लंबा हमारा पेट है। हम घास खोद सकते हैं, रिक्शा चला सकते हैं और दूसरा काम कर सकते है और अपना पेट भरने के लिए दाने मुहैया करा सकते हैं। हमारी अक्ल इतनी है कि तन ढकने के लिए कपड़े और शरीर को जिंदा रखने के लिए छाया हम अपनी अक्ल के सहारे इकट्ठा कर सकते हैं। अनाज पैदा कर सकते हैं। इसके लिए भगवान है क्या कहना ! नहीं साहब ! भगवान से दौलत माँगेंगे और संपत्ति माँगेंगे। आप दौलत क्यों माँगेंगे और किस काम के लिए माँगेंगे। अरे साहब ! हम मालदार बनना चाहते हैं, बड़े आदमी बनना चाहते है और अपनी हवस पूरी करना चाहते है।
नहीं बेटे। यह भगवान का काम नहीं है। यह दूसरों का काम है। इसका भगवान से कोई ताल्लुक नहीं है। नहीं साहब। हम तो लक्ष्मी जी की पूजा इसीलिए करते थे। नहीं बेटे, लक्ष्मी जी की पूजा इस काम के लिए करने की जरूरत नहीं है। इसके लिए दूसरा रास्ता है, तुम तो वह रास्ता ही भूल गए, भटक गए। साहब ! हम तो बच्चे पैदा करने के लिए हनुमान जी को खुश कर रहे थे। नहीं बेटे, हनुमान जी की पूजा करने की जरूरत नहीं है। हनुमान जी कैसे आपको बच्चे देंगे, उनके खुद बच्चे नहीं हैं। तो फिर किसकी पूजा करूँ? रावण की कर, क्योंकि रावण के एक लाख पूत और सवा लाख नाती थे। हनुमान जी की पूजा से क्या लाभ ! जब उनके यहाँ बच्चे हैं ही नहीं तो तुझे कहाँ से देंगे ! पागल कहीं का, हनुमान जी की पूजा करेगा। साहब! हम तो शंकर जी की पूजा करते हैं। किसलिए करता है? इसलिए करता हूँ, ताकि धन मिल जाए। शंकर जी के पास धन था क्या? मकान था क्या? नहीं था। कपड़ा था क्या? नहीं था। नंग- धड़ंग मरघट में पड़े रहते थे।
उनके अपने घर में तो लक्ष्मी है नहीं, तुझे और लक्ष्मी दे जाएँगे। गुरु जी ! मैं तो इसीलिए भजन करता था। नहीं बेटे, इसके लिए भजन करने की जरूरत नहीं है।
मिला असली अध्यात्म
मित्रो, असली अध्यात्म, जिसको पाकर मैं निहाल हो गया, धन्य हो गया; उसका तरीका आपको समझा रहा था। उसकी साइंस और फिलॉसफी समझा रहा था, जो आज से पचपन वर्ष पहले मुझे सिखाई और समझाई गई थी। सारी जिंदगी मैं उसी पर चला और अपनी जिंदगी में भगवान को हिस्सेदार बना लिया। जो जिंदगी की दौलत है, उसमें से मैंने शरीर को भी अपना हिस्सा दिया और भगवान को भी हिस्सा दिया। कमाई में दोनों हिस्सेदार हैं। जो हम कमाते हैं हमारे पास जो संपत्ति है- मसलन श्रम, बुद्धि, साधन, समय- ये भगवान की दी हुई संपदाएँ है। हम अपने जीवन की कमाई में इसे कमाते हैं। श्रम इस वक्त हमारे पास है। श्रम की ताकत हमारे पास है। पैसे की ताकत हमारे पास है। इसे हम दोनों में बाँट देंगे। शरीर को भी देंगे, क्योंकि यह हमारी सवारी है। यह हमारा घोड़ा है। घोड़े के लिए भी घास चाहिए। उसे घास नहीं देंगे तो हमको लंबा सफर तय करना है, घोड़ा जिएगा कैसे। शरीर को खुराक हम जरूर देंगे। कितनी खुराक देंगे? इसके बारे में भी तय करना पड़ा। यह कहा गया कि जिस देश के हम नागरिक हैं, जिस देश में हम रहते हैं, वहाँ औसत भारतीय स्तर का स्टैंडर्ड हमारा होना चाहिए। औसत भारतीय स्तर का हमारा लक्ष्य होना चाहिए।
हिंदुस्तान अपने सामान्य नागरिक को क्या भोजन दे सकता है? क्या वस्त्र दे सकता है? उसे किस स्तर की जिंदगी जीनी पड़ सकती है? यही हमारा स्टैंडर्ड है। आप अमेरिका में जन्मे हैं तो आपका स्तर दूसरा हो सकता है। अमेरिकी नागरिक को खरच करने के लिए जो पैसा मिलता है, उसमें से आप खरच करें और उस स्टैंडर्ड का जीवन जिएँ। अगर आप यहाँ बढ़िया स्तर बनाते हैं, ऊँचा स्तर बनाते है तो यह एक गलत बात है। फिर यह आध्यात्मिक जीवन नहीं रह जाता। सामान्य स्तर का जीवनयापन करने के लिए जो खरच करने की जरूरत थी, हमने अपने शरीर के लिए खरच किया। अब रही कुटुंब की समस्या? कुटुंब की समस्या का समाधान करने के लिए अपने कुटुंबियों को उनकी मनमरजी की दौलत उनके सुपुर्द कर देने से समस्या का हल नहीं हो सकता। विचार करना पड़ा कि जिनके कर्जे हमारे ऊपर चढ़ चुके हैं, वे भी इसमें हिस्सेदार हैं, जिनका कर्ज चुकाना अभी बाकी है। अभी हमको माँ का कर्ज चुकाना बाकी है, बाप का कर्ज चुकाना खाकी है। बाप की इतनी लंबी जिन्दगी से हमने खाया है और अपनी माँ का हमने दूध पिया है। सबसे पहले हम इनका कर्ज चुकाएँगे,
साहूकारी तब करेंगे। माता−पिता के खाद छोटे भाई- बहन का, छोटे बच्चों का भी कर्ज चुकाना है। छोटे भाई- बहनों को पढ़ाना पड़ेगा और उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने लायक बनाना पड़ेगा। हमें उनके लिए भी खरच करना है। नहीं साहब! हमारे घर में छोटा बच्चा है। मैं तो बेटे को ही दूँगा, और चार बेटे पैदा करूँगा और उन पर चार लाख खरच करूँगा। बेईमान कहीं का, केवल बेटे को ही देगा, अन्यों को नहीं।
आँखें खुलीं, प्रकाश मिल गया
मित्रो! मेरी आँखें खोल दीं भगवान ने और यह कहा कि तू हमारी जिंदगी में हिस्सेदार है। तू हमारे लिए काम कर। मित्रो! मेरी आँखें वहीं से और उसी दिन से खुल गई। आँखें खुल जाने का मतलब है- अध्यात्म का प्रकाश मिल जाना। जिस प्रकाश के लिए हम प्रार्थना करते हैं- तमसो मा ज्योतिर्गमय अर्थात हे भगवान ! आप प्रकाश दीजिए, जीवन में चमक पैदा कीजिए। चमक किसे कहते हैं? प्रकाश किसे कहते है? प्रकाश इसे कहते हैं, जो में आपसे निवेदन कर रहा था, जिससे कि मेरी आँखें खुल गई। अँधेरे में भटकता हुआ प्राणी, अँधेरे में भटकता हुआ भूत और प्रेत प्रकाश पाकर निहाल हो जाता है। मित्रो ! आज से पचपन वर्ष पहले मैं मनुष्य बन गया, देवता बन गया। पचपन वर्ष पहले की लंबी वाली मंजिल को एक- एक कदम पार करके बढ़ता हुआ चला आ रहा हूँ और यहाँ आ गया हूँ जहाँ कि आपके सामने खड़ा हूँ।
अब क्या सवाल रह गया? अब बेटे, यह सवाल रह गया कि जिस अध्यात्म की प्रशंसा ऋषियों ने गाई, पुस्तकों में गाई गई, राम- नाम की महत्ता जो संसार ने गाई, गायत्री मंत्र को महत्ता, जिसके बारे में अथर्ववेद ने जाने क्या से क्या कह दिया। कई बार तो संदेह होता है और अविश्वास होता है कि ये बातें गलत है, ये बातें सही नहीं हैं, जो बताई गईं हैं। जिस गायत्री मंत्र की महता को मैं आपको सिखाता हूँ और सारी दुनिया को समझाता हूँ, उसके बारे में अथर्ववेद में क्या समझाया गया है? उसके बारे में यह बताया गया है- "स्तुता मया वरदा वेदमाता प्र चोदयन्तां पावमानी द्विजानाम आयुः प्राणं प्रजां पशुं: कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसम् मह्मं दत्त्वा व्रजत ब्रह्मलोकम्। "" ये सात चीजें याद करनी है। महाराज जी! हमको तो तीन साल हो गए, तीन माला रोज जप करते हैं, लेकिन हमें तो कोई चमत्कार नहीं दिखाई पड़ा। हाँ बेटे, न तीन साल में मिला है और अब तेरी जिंदगी के जो तीस साल बचे हैं, न उसमें कोई मिलने वाला है। काहे को शाप दे रहे है? बेटे, इसलिए दे रहा हूँ कि न तुझे गायत्री मंत्र के बारे में कोई जानकारी है और न गायत्री मंत्र में खाद और पानी कैसे लगाया जाता है, इसका तुझे ज्ञान है। बीज बोने का तुझे ज्ञान है। वृक्षारोपण हर साल होता है। मिनिस्टर लोग आते हैं और जगह- जगह पेड़ लगा देते हैं। रोज अखबारों में छपता है कि एक लाख पेड़ लगाए गए। खाद- पानी दिया नहीं, रखवाली हुई नहीं, सब पेड़ गाय ने खा लिए, जानवर चर गए। गायत्री मंत्र को भी आप खाद- पानी नहीं लगा सकते, केबल बीज बोकर के, माला घुमा करके उसमें चमत्कार देखना चाहते हैं, तो यह नहीं हो सकता।
मित्रो ! अब मैं अपना बिस्तर समेटने की फिक्र में हूँ। बिस्तर समेटने के फेर में हूँ। दूसरी जिम्मेदारियों ने मुझे बुलाया है। दूसरे मोरचे पर भी बहुत काम पड़ा हुआ है। हिन्दुस्तान में आध्यात्मिकता का प्रकाश फैलाने के लिए जितना काम मेरे जिम्मे था, वह लगभग पूरा हो गया। हिंदुस्तान में काम करने के लिए जो कुछ और मेरे जिम्मे बचा हुआ है, उसे एक−दो वर्ष में समाप्त करके उसका किस्सा खत्म करूँगा। फिर मैं कहाँ जाऊँगा? फिर मेरा ट्रांसफर तैयार किया हुआ रखा है। मेरा बिस्तर बँधा हुआ रखा है। मैं कहीं और चला जाऊँगा। आप कहाँ- कहाँ जाएँगे? बेटे, मुझे बहुत जगह जाना है। हिंदुओं के बीच में मुझे काम करने के लिए हिंदू बनकर आना पड़ा। अब कहाँ जाना पड़ेगा आपको? बेटे, सारे हिंदुस्तान में तो हिंदू बत्तीस- तैंतीस करोड़ हैं और दो करोड़ बाहर हैं। सारी दुनिया में चौंतीस करोड़ हिंदू हैं। अभी और कौन हैं, जहाँ आप जाएँगे? बेटे, अस्सी करोड़ मुसलमान हैं, संभव है, मुझे वहाँ जाना पड़े। क्या आप वहाँ भी यही हिंदुओं की तरह क्रांति करेंगे? बेटे, यहीं क्रांति मैं वहाँ भी कर सकता हूँ। फिर बहुत जगह मेरे ट्रांसफर बने हुए पड़े हैं? मैं बिस्तर उठाने वाला हूँ।
आपकी यहाँ बुलाने का उद्देश्य
साथियों! मैं आपको यहाँ क्यों बुलाता हूँ? मैं आपको यहाँ सम्मेलनों के लिए, उद्घाटनों के लिए नहीं बुलाता हूँ। समारोहों में भाग लेने के लिए आपको नहीं बुलाता हूँ। मैं किसलिए बुलाता हूँ? में इसलिए बुलाता हूँ कि अपनी जिन्दगी का सार और निचोड़ आपके सामने सुपुर्द करने में सफल हो सकूँ। मेरी पचपन साल की जिंदगी के अनुभव यही हैं कि मनुष्य के लिए सबसे बड़ी समझदारी की बात और सबसे बड़ी बहादुरी की बात यह है कि वह भगवान को अपनी जिंदगी में शामिल कर ले और अपनी जिंदगी की कीमत समझें। अगर आप अपनी जिंदगी की कीमत समझ लें, जैसा कि आपको अभी तक समझ में नहीं आई। जिंदगी की कीमत आपकी समझ में कहाँ आई है? आप करोड़ों में अपने को दरिद्र मानते हैं, अपने को दुखी मानते हैं, अपने आप को अभागा मानते हैं। समस्याओं से अपने आप को घिरा हुआ मानते हैं और जाने क्या- क्या मानते हैं। कभी कभी तो मरने को बात सोचते हैं, आत्महत्या की वात सोचते हैं। जिंदगी की कीमत आपको कहाँ मालूम है? जिंदगी का महत्त्व आपको कहाँ मालूम है? जिंदगी की सामर्थ्य आपको कहाँ मालूम है? जिंदगी की संभावनाएँ आपको कहाँ मालूम हैं?
जिंदगी की संभावनाएँ अगर आपको मालूम होतीं तो आपकी आँखें टार्च के तरीके से चमकती और आपकी गरदन फूलकर शेर की तरह हो जाती और आप सोचते कि हमारे पास इनसानी जिंदगी है। इस जिंदगी से हम जाने क्या- क्या कर सकते हैं?
मित्रो। इनसानी जिंदगी को गिराने वाले जिस दिन चौंक पड़े और उन्होंने इसे ठीक तरह से इस्तेमाल करना शुरू कर दिया तो उन्हें मजा आ गया। कौन- कौन चौंक पड़े? बेटे, उनमें से एक का नाम आम्रपाली है, जो दुनिया को गिराने वाली एक महिला थी। लेकिन जब उसने जिंदगी की धाराएँ बदल दीं तो धन्य हो गई। फिर क्या हो गई? फिर ऐसी ऋषि हुई कि तवारीख में उसका नाम हमेशा बना रहेगा। अंगुलिमाल एक निकम्मा आदमी था, घटिया आदमी था। चोर और डाकू था, लेकिन उसने इसी जिंदगी में अपने जीवन की धारा बदल दी। अगले जन्म की बात कौन कर रहा है? हम तो इसी जन्म की बात कहते हैं। अरे साहब! अगले जन्म में संत हो जाएँगे, स्वर्ग में चले जाएँगे। नहीं बेटे, अगले जन्म में नहीं, इसी जन्म की बात कहते हैं हम। अंगुलिमाल ने अपने जीवन की दिशाधारा इसी जीवन में बदल दी और भगवान बुद्ध का दाहिना हाथ बन गया।
प्रभु के तारने का तरीका
अजामिल, गीध, गणिका तारे, तारे सदन कसाई। क्यों महाराज जी! भगवान इन्हें तार देते है? बिलकुल तार देते हैं। कैसे? तार देने का एक ही तरीका है कि आदमी चौंक पड़ता है और अपनी जिन्दगी की दिशाएँ बदल देता है। तो क्या भगवान ने बिल्वमंगल को तारा ?? बिलकुल तारा, लेकिन तारने से पहले उनको सूरदास बना दिया। तारने से पहले भगवान उनकी जिंदगी की दिशाएँ बदल देते हैं। भगवान हमारा कल्याण करने वाले हैं कि नहीं इसकी पहचान एक ही है कि हमारे जीवन के स्वरूप और हमारे जीवन की दिशाधारा को बदल दें। अगर भगवान हमारे जीवन की दिशाधारा को बदल नहीं रहे हों तो जानना चाहिए कि हमारी कल्पनाएँ निरर्थक हैं। हमको भगवान में कोई रस आता है? भगवान से हमारा कोई संबंध है? बिलकुल नहीं है। भगवान से अगर कोई संबंध रहा होता तो आपके जीवन की धाराएँ बदल गई होती। तुलसीदास जी निकम्मे आदमी थे, आपने उनके सारे किस्से सुने हैं, लेकिन जब भगवान ने उनको प्यार किया तो क्या- क्या हुआ? भगवान के प्यार में एक ही विशेषता है कि जैसे पारस लोहे को छुएगा तो उसे सोना बना देगा। तुलसीदास भी सोना बन गए। संत बन गए, को बन गए।
महाराज जी! हमारे घर में पूजा की एक चौकी बनी हुई है। उसमें देवी की स्थापना है, गणेश जी की स्थापना है, हनुमान जी की स्थापना है। तो गणेश जी ने तुझे छुआ क्या? नहीं, मुझे छुआ तो नहीं। लक्ष्मी जी ने छुआ? नहीं, अगर छुआ होता तो बेटा तू सोना हो जाता, पारस हो जाता। नहीं महाराज जी ! मुझे तो देवी सपने में दिखाई पड़ती है। मुझे नहीं मालूम क्या दिखाई पड़ती है बेटे, अगर देवी सपने में दिखाई पड़ी होती तो तू अपने जीवन में क्या से क्या बन गया होता।
मित्रो। मैंने आपको इसलिए बुलाया है कि अब जब मैं जाने की तैयारी में हूँ अगर आप में समझदारी हो तो आप एक हिम्मत करके दिखाएँ कि भगवान के साथ रिश्तेदारी पैदा कर लें। रिश्तेदारी करने के बाद मनुष्य क्या पा सकता है? बेटे, मैं कुछ कह नहीं सकता। उदाहरण मैंने बीसियों बार छापे हैं। रामकृष्ण परमहंस और विवेकानन्द का किस्सा मैंने छापा है। ये मनुष्यों की सहायता की जोड़ियाँ छापी है। चाणक्य और चन्द्रगुप्त का किस्सा, समर्थ गुरु रामदास और शिवाजी का किस्सा छापा है। मांधाता और शंकराचार्य का किस्सा छापा है। लालबहादुर शास्त्री और जवाहरलाल नेहरू का किस्सा छापा हैं। इन जोड़ों से आप भी कुछ सीखें और आप भी भगवान से रिश्तेदारी बना लें।
आज की बात समाप्त।
।। ॐ शांति: ।।
ॐ भ्रूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
देवियों, भाइयो ! जमीन के भीतर बेशकीमती चीजें भरी पड़ी हैं। इसमें हीरा है, सोना है, कोयला है, लोहा है और न जाने क्या- क्या भरा पड़ा है। जमीन की खुदाई करने पर हम इसमें तेल देखते हैं और दूसरी कीमती चीजें देखते हैं, पर बाहर हम सारी जमीन पर तलाश करते चले आते हैं तो सिवाय घास- पात के, कूड़े- कचरे के कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता। हीरा कहीं दिखाई नहीं पड़ता, सोना जमीन पर कहीं फैला हुआ नहीं पाया जाता। हमें बेशकीमती चीजें पाने के लिए जमीन की गहरी खुदाई करनी पड़ती है। ठीक इसी तरह जब हमने अपने भीतर में, अपने गरेबान में मुँह डाला तो हमें बड़ी कीमती चीजें दिखाई पड़ी। मैं चाहता हूँ कि आप लोगों को यहाँ बुलाकर अपनी वहीं मनःस्थिति आपके सामने दिल खोल करके दिखा पाता तो आप भी मेरी तरह धन्य हो जाते।
जीवन के दो कीमती हिस्से
मित्रो ! मेरे फरिश्ते ने जिन्दगी के दो कीमती हिस्से मुझे दिखाए- एक शुरुआत वाला और दूसरा आखिरी वाला हिस्सा। दोनों ही हिस्से इतने बेशकीमती थे कि इनके बराबर और कोई कीमती चीज किसी की जिन्दगी में हो नहीं सकती है। जिन्दगी का पहला वाला सिरा मेरे फरिश्ते ने मुझे दिखाया और मैंने देखा कि भगवान ने बेशकीमती नियामत मेरे हाथ में सौंप दी है। कितने बड़े हीरों का हार, जिसकी कोई कीमत नहीं हो सकती। और चीजों की बड़ी कीमत है, पर जिंदगी से बढ़कर और कोई नियामत दुनिया में हो ही नहीं सकती, जो भगवान इनसान को सुपुर्द करता है। मनुष्य की जिंदगी जो किसी और प्राणी को नहीं मिल सकी। मनुष्य की जिंदगी जिसके लिए देवता तरसते हैं और ये कहते हैं कि हमको मनुष्य की जिंदगी मिलनी चाहिए, क्योंकि इसमें कर्म का भी आनंद है। देवयोनि में कर्म का आनंद नहीं है। देवता भोगयोनि हैं और पशु भी भोगयोनि है, पर मनुष्य योनि में खट्टे- मीठे आनंद हैं। वह कर्म भी कर सकता है और भोग भी सकता है। ऐसा सुरदुर्लभ मनुष्य का जीवन जो किसी और प्राणी को नहीं मिला। चौरासी लाख योनियों में से किसी को नहीं मिला। इतना बेशकीमती जीवन मुझे भगवान ने दिया है। सिर ऊँचा हो गया, सीना तन गया। मनुष्य का जन्म इतना सामर्थ्यवान है कि आदमी अगर इसका सही तरीके से इस्तेमाल कर सके तो दूसरा भगवान बन सकता है। मैंने इसे बड़े गौर से देखा, घूर- घूर कर देखा, इसकी कीमत को देखा, नाप- तोल करके देखा और मेरे फरिश्ते ने मुझे दिखाया।
साथियों! इतनी बड़ी चीज पाकर इसका ठीक तरीके से इस्तेमाल करना भी एक बड़ी बात है। कोई बाप लाखों- करोड़ों रुपए की संपत्ति देकर जाए और उसके बेटे कपूत निकलें, सारी की सारी दौलत को जुआखोरी में और शराबबाजी में खरच कर डालें तो कोई क्या कर सकता है। उसमें बाप की क्या गलती हो सकती है। इतनी कीमती चीज है, अब इसका मुझे ठीक से इस्तेमाल करना होगा। मेरे गुरु ने मुझे बताया कि देख मानव जीवन कितना कीमती है, क्या तू इसे समझ पाया है? मैंने कहा- हाँ, यह बेशकीमती है। इससे बढ़िया और कोई दौलत प्राणी के लिए नहीं हो सकती, जितना इनसानी जीवन है। मैं धन्य हो गया, निहाल हो गया। मैंने जिंदगी का एक सिरा देखा, जो मेरे फरिश्ते ने मुझे दिखाया। कब? आज से पचपन वर्ष पहले, उन दिनों ये ही वसंत के दिन चल रहे थे।
मित्रो ! मेरे फरिश्ते ने मुझे एक और जिंदगी का हिस्सा दिखाया। वह कौन सा हिस्सा? वह आखिरी वाला हिस्सा, कौन सा वाला? जिस दिन आदमी की मौत आती है। मौत को मैंने देखा। एक बार देखा, दो बार देखा, तीन बार देखा। तीन जन्मों का हाल जब मुझे दिखाया तो तीन बार अपने आप को मरते हुए देखा। मरते समय में आदमी को कितनी कसक, कितनी पीड़ा, कितना पश्चाताप, कितनी व्यथा, कितनी जलन, कितना हाहाकार उसके भीतर होता है। वे सारी की सारी घटनाएँ- न सिर्फ दृश्य मैंने देखा है, बल्कि मैंने जलते हुए अपना शरीर देखा और वह कसक, वे पीड़ाएँ भी देखीं जो पीने गँवा दी थी। जिंदगी मामूली कामों में खरच कर डाली, कसक का कोई ठिकाना न रहा। पश्चाताप का कोई ठिकाना न रहा, क्रंदन का कोई ठिकाना न रहा, हा−हाकार का कोई ठिकाना न रहा, चीत्कार का कोई ठिकाना न रहा। हाँ ! मैंने कैसी भूल कर डाली। इस इनसानी जिंदगी को अच्छे काम में खरच कर सकता था, लेकिन मैंने इसको कीड़े- मकोड़ों के तरीके से खरच किया।
पेट- प्रजनन का जीवन
कीड़े और मकोड़े दो काम के लिए जिंदा रहते हैं- एक पेट पालते रहते हैं और दूसरे औलाद पैदा करते रहते हैं। दो के अलावा तीसरा कोई काम नहीं कर सकते। न इनमें अक्ल होती है, न हिम्मत होती है, न बुद्धि होती है, न समझ आती है, न परिस्थिति होती है और न साहस होता है। कुछ नहीं होता। दो काम करते रहते हैं। जब से पैदा होते हैं, पेट पालते हैं, औलाद पैदा करते हैं और मर जाते हैं। उसी तरीके से मेरा भी जन्म हुआ और मैं भी मरा। रो पड़ा कि अब जब यह जिंदगी खत्म होगी, तब मुझे कहाँ जाना पड़ेगा? किन योनियों में जाना पड़ेगा, न जाने कहाँ- कहाँ जाना पड़ेगा? कितना कष्ट उठाना पड़ेगा, यह मैंने मौत के दिन देखा। मौत की घड़ी देखी, मैंने अपनी लाश चिता के ऊपर पड़ी हुई देखी। चीत्कार कर उठा कि हाय रे, अभागा मैं! न जाने किन−किन समस्याओं को कीमती समस्या समझता था, अगर मुझे एक ही कीमती समस्या समझ में आ गई होती कि जिंदगी का ठीक- ठीक उपयोग करना, तो मजा आ जाता।
मित्रो ! छोटी−छोटी समस्याएँ−मकान में छप्पर नहीं पड़ सका, मकान में टीन नहीं पड़ सकी, इस लड़की को वकील जमाई नहीं मिल सका, इस लड़के की बहू को इतना जेवर न मिल सका। ये छोटी−छोटी बच्चों को खिलवाड़ जैसी राई- रत्ती भर समस्याएँ है। जिनसे आदमी के लिए न कुछ नुकसान हो सकता है, न फायदा हो सकता है। इन राई- रत्ती समस्याओं को मैं पहाड़ के बराबर समझता रहा और उन्हीं में उलझा रहा। लेकिन वह समस्या, जिसके लिए कीमती जिन्दगी दी गई थी, उसके बारे में विचार न कर सका। मैं रो पड़ा। ऐसे ही मैंने कई बार देखा, जिले तीन जनों के अतिरिक्त। मेरे गुरु ने मुझे दिखाया और मुझे चौंका दिया। में चौंक पड़ा और मैंने उनके चरणों को पकड़कर कहा- बताइए, मुझे क्या करना चाहिए? उन्होंने कहा- एक ही काम करना चाहिए और वह यह है कि जिंदगी की कीमत समझनी चाहिए। जिंदगी का ठीक इस्तेमाल क्या हो सकता है, इसके बारे में गौर करना चाहिए। इतनी हिम्मत इकट्ठी करनी चाहिए, जिससे कि जिन्दगी का श्रेष्ठतम उपयोग करना संभव हो सके। इतना ही करना चाहिए और कुछ नहीं करना चाहिए। आज से पचपन साल पहले मेरे गुरुदेव ने मुझे बताया और मैं चौक पड़ा और जाग गया।
प्रसुप्ति से जाग्रति
मैं चाहता था कि आप सब मित्रों को बुलाकर बताऊँ, ताकि आपको भी ऐसा ही मौका मिल जाए,कदाचित आप भी चौंक पड़े और आप भी जाग जाएँ। आप भी जिंदगी की कीमत को समझ पाएँ। जिंदगी जब हाथ से निकल जाती है, तब हमको किन- किन परिस्थितियों में रहना पड़ता है, इसके बारे में कदाचित आपको भीतर से हूक पैदा हो जाए, कदाचित आपके भीतर से जाग्रति उत्पन्न हो जाए, चेतना उत्पन्न हो जाए तो मजा आ जाए। आप भी मेरे तरीके से धन्य हो जाएँ। मैं चाहता था कि आपको भी उसी तरह का मौका मिले, जैसा कि मुझे धन्य बनने का मौका मिला। जिस तरह से में जाग पड़ा और समझ गया कि जिन्दगी कीमती है और मैं उसका ठीक से उपयोग करूँगा। कीड़े- मकोडों की तरह, जानवरों की तरह नहीं जीऊँगा, वरन आदमी के तरीके से जीऊँगा। जिस काम के लिए भगवान ने मुझे पैदा किया है, उसे पूरा करने का मैंने निश्चय कर लिया, संकल्प कर लिया कि जीऊँगा तो ऐसे ही जीऊँगा।
मित्रों ! अब क्या करना चाहिए? क्या कदम बढाना चाहिए? मैंने फिर अपने उसी फरिश्ते से दूसरा सवाल किया कि जब आपने मुझे जगा ही दिया है और यह बता दिया है कि जिंदगी का ठीक उपयोग करना चाहिए तो आप ही बताइए कि मुझे अब क्या करना होगा? उन्होंने मुझे दूसरी शिक्षा दी कि दुनिया में एक ही समझदारी है कि अकेला आदमी लंबी मंजिल नहीं पर कर सकता।लंबी मंजिल पार करने के लिए दो टाँगों को जरूरत होती है। दो पैरों पर चलकर ही हम लंबी मंजिल पूरी कर सकते हैं। दो हाथों से ही सारा काम चलता है। एक हाथ से काम कहाँ हो पाता है !एक टाँग से सफर कहाँ को पाता है ! जिन्दगी की नाव पार करने के लिए दो सहयोगियों की जरूरत होती है। अतः तुम भी दूसरा सहयोगी तलाश करो।
मैंने कहा- गुरुदेव! इससे आपका क्या मतलब है? कहीं ब्याह- शादी से तो नहीं है? नहीं, ब्याह- शादी करने से मतलब नहीं है। जिस तरह नाव से नदी को पार करने के लिए दो हाथों की और दो पतवारों की जरूरत पड़ती है उसी तरह आपको भी एक और सहायक ढूँढ़ लेना चाहिए। तो आप बताते क्यों नहीं कि मुझे कौन सा सहायक ढूँढ़ लेना चाहिए? उन्होंने कहा कि भगवान को एक सहायक के रूप में ढूँढ़ लेना चाहिए। और दूसरा? दूसरा एक इनसान को। एक इनसान और एक भगवान, दोनों को आप साझी बना लीजिए, फिर देखिए, कैसे मजा आता है ! फिर देखिए कि जिंदगी की नाव कैसे आगे चलती है ! और फिर देखिए कि उन्नति का रास्ता कैसे खुलता है। मेरे गुरु ने, मेरे फरिश्ते ने मुझे यही रास्ता बताया।
साझेदारी का मर्म
मित्रो ! फिर मैंने पूछा कि मुझे क्या करना होगा? उन्होंने कहा कि तुम्हें मालूम नहीं है कि जो दुकानदार होते हैं, व्यापारी होते हैं, वे क्या काम करते हैं? आप ही बताइए, मुझे तो मालूम नहीं है। उन्होंने कहा कि वे बैंक के साथ साझेदारी कर लेते हैं। कैपीटल बैंक का होता है, पचहत्तर प्रतिशत पैसा बैंक से आता है, पच्चीस प्रतिशत अपना होता है। गवर्नमेंट भी ऐसे ही लोन देती रहती है। जमीन अपनी खरीद लीजिए और लोन सरकार से ले लीजिए। कारखाना अपना लगा लीजिए, मशीनें अपनी लगा लीजिए, कैपीटल बैंक का इस्तेमाल कीजिए। बैंक बराबर देती रहती है। भगवान एक बैंक है। अगर हम इसकी साझेदारी अपनी जिंदगी में कर लें तो हमारे जीवन की तिजारत और हमारे जीवन का व्यापार ठीक तरीके से चल सकता है। अकेले चलाएँगे तब? बेटे, अकेले तो बहुत मुश्किल है।
अपनी भुजाओं की ताकत से, अपने पुरुषार्थ से, अपनी अक्ल से हम बहुत थोड़ी मंजिल पार कर सकते हैं, लेकिन अगर एक टाँग हमारी और एक टाँग भगवान की, इस तरह की साझेदारी हो जाए तो मजा आ जाए। भगवान से साझेदारी कैसे होगी, बताइए? साझेदारी के बारे में घर वालों ने और दूसरों ने मुझे जो बात बता रखी थी, वह तो एक मजाक जैसी मालूम पड़ी, दिल्लगी जैसे मालूम पड़ी कि प्रार्थना कीजिए, पूजा कीजिए, बस, साझेदारी खत्म। नहीं साहब! इस तरीके से साझेदारी नहीं हो सकती। साझेदारी की कुछ शर्तें होती है। बैंक पैसा देता है, लेकिन उसकी भी दो शर्तें होती हैं। एक शर्त यह है कि आपने जिस काम के लिए पैसा लिया हुआ है, उस काम में खरच कीजिए। आपने मशीनें खरीदने के लिए पैसा लिया है, आपको अपने कुएँ में ट्यूबवैल लगाना है, आपको ट्रैक्टर खरीदना है। यही लिखा है न आपने? नहीं साहब ! अब ट्रैक्टर खरीदने से क्या फायदा। अब तो हम उसी पैसे से ब्याह शादी करेंगे और तमाशा करेंगे। नहीं बेटे! यह गलत बात है। बैंक वाला नीलाम करा लेगा और जो कुछ पैसा दिया होगा, उसका रिफंड माँगेगा और फिर आपको तंग करेगा। आपको जिस काम के लिए पैसा मिला है, केवल उसी काम में खरच कीजिए और किसी में मत कीजिए। यह बैंक की शर्त नंबर एक है।
बैंक क्या है? बैंक माने भगवान ! भगवान का अनुग्रह। आपने जिस काम के लिए प्राप्त करने की कोशिश की है, उसे उसी काम में खरच कीजिए। यह भगवान का प्यार और अनुग्रह नंबर एक है। नंबर दो, ब्याज समेत उसे वापस कीजिए। मूलधन देने की कसम खाइए और यह कहिए कि हम आपका न केवल मूलधन देंगे, वरन आपका धन ब्याज समेत्त वापस करेंगे। तभी बैंक आपको पैसा देना शुरू करेगा ।। नहीं साहब ! हम तो यह नहीं कर सकते, आपका ब्याज भी वापस नहीं कर सकते और यह भी वायदा नहीं कर सकते कि जिस काम के लिए हमने माँगा है, उसी काम में खरच करेंगे। तो फिर आपको कर्ज नहीं मिल सकता। तो फिर बैंक आपके कारखाने में कोई शेयर नहीं दे सकती और कोई सहायता नहीं दे सकती। भगवान के बारे में भी यही बात है, जिसके बारे में मेरे गुरुदेव ने कहा था कि तुमको भगवान का प्यार पाना चाहिए और भगवान की शक्ति और सहायता का सक्रिय लाभ उठाना चाहिए है
कोई शॉर्टकट नहीं
इसके लिए क्या करना पड़ेगा? दूसरे लोग तो भगवान के साथ मखौल करते हैं, दिल्लगीबाजी करते हैं। दिल्लगीबाजी क्या होती है? यह होती है, जैसे 'लाठी से थन छूना।' कोई एक दिल्लगीबाज था। उसने गाय का दूध पीने के लिए क्या किया? पोले बाँस की एक नलकी ली और गाय के थन से लगाई और हुक्के के तरीके से दूर से ही दूध पीने लगा। एक ने पूछा- महाशय जी ! यह क्या कर रहे हैं आप? लाठी से गाय का दूध पी रहे हैं। नहीं साहब! लाठी से छूकर दूध नहीं पिया जा सकता, तो कैसे पिया जा सकता है? पहले आप गाय पालिए। उसे घास खिलाइए, चारा खिलाइए। तो क्या गाय को चारा भी खिलाना पड़ेगा, दाना भी खिलाना पड़ेगा, पानी भी पिलाना पड़ेगा, रखवाली भी करनी पड़ेगी और गाय को दुहना भी पड़ेगा? हाँ। नहीं साहब! अगर इतना झगड़ा है तो यह हम नहीं कर सकते। तो बेटे, गाय का दूध नसीब नहीं हो सकता। नहीं साहब ! मैंने तो यह सुना था कि लाठी लीजिए और उसकी नलकी को थनों में लगा दीजिए और चूस जाइए। इसके अतिरिक्त आपको और कुछ नहीं करना, न घास देनी है, न चारा देना है, न पानी पिलाना है, कुछ नहीं करना।
क्या मतलब है इसका? इसका मतलब है कि माला घुमाइए और दूध भी जाइए। माला माने लाठी। लाठी गाय के थन से लगाइए और चूसते चले जाइए बस, हो जाइए मालामाल। हो जाइए धन्य। आपको तो यही बताया गया है कि ग्यारह माला जपिए और देवी को प्रसन्न कर लीजिए, हनुमान जी को प्रसन्न कर लीजिए, गणेश जी को प्रसन्न कर लीजिए, सबको प्रसन्न कर लीजिए। हनुमान चालीसा का पाठ करिए; चावल, धूप, दीप, नैवेद्य चढा दीजिए। यही तो आपको बताया गया है न? हाँ साहब। अगर सारी दुनिया पागल है तो में भी पागल हूँ। हाँ बेटे, यह दुनिया सब पागल है। यह भगवान को अहमक समझती है। अहमक माने जड़मति, मूर्ख। अहमक माने वे आदमी जो केबल चापलूसी के आधार पर और छोटे−मोटे उपहार देने की कीमत के आधार पर जिस- तिस से फायदा उठाने का प्रयास करते हैं। लेकिन भगवान बड़े समझदार आदमी का नाम है। भगवान बड़े जिम्मेदार आदमी का नाम है। भगवान ने इतनी बड़ी दुनिया बनाई है, कायदे- कानून बनाए हैं, नियम और मर्यादाएँ बनाई हैं। यह नहीं हो सकता कि आप खुशामद के सहारे, चापलूसी के सहारे और छोटी- मोटी धूपबत्तियों का सहारा लेकर उसकी कृपा प्राप्त कर सकें।
भगवान की पूँजी में हिस्सेदारी
मित्रो! मैंने अपने गुरुदेव से कहा कि तो फिर आप ही बताइए कि मुझे क्या करना पड़ेगा? उन्होंने कहा कि भगवान को अपनी जिंदगी की तिजारत में हिस्सेदार बना लीजिए। मैंने भगवान को अपनी जिंदगी की तिजारत में हिस्सेदार बना लिया। कैसा हिस्सेदार? जैसे कि बैंक में वह आदमी हिस्सेदार हो जाता है, जो बैंक की पूँजी में अपना हिस्सा लगाता हुआ चला जाता है। मैंने भी भगवान के बैंक में अपनी पूँजी लगानी शुरू कर दी और भगवान ने भी अपनी पूँजी देना स्वीकार कर लिया। पहले ही दिन से भगवान की पूँजी मुझे मिलती हुई चली गई। जिस काम के लिए दरखास्त दी थी कि मुझे अमुक काम के लिए आपकी पूँजी की जरूरत है, उसी काम के लिए मैंने खरच किया। भगवान की कृपा, भगवान का अनुग्रह, भगवान का प्यार अपने लिए मैंने खरच नहीं किया। मुझे उसकी जरूरत क्या थी ! पेट हमारा मुट्ठी भर का है। सो मुट्ठी भर अनाज से हम छह इंच के पेट को पूरा भर सकते हैं। इसमें भगवान की सहायता की हमें कतई आवश्यकता नहीं है, लेकिन अगर हमारी हवस बढ़ी हुई है तो उसको कोई पूरा नहीं कर सकता। रावण की हवस पूरी न हो सकी, कंस की हवस पूरी न हो सकी, हिरण्यकशिपु की हवस पूरी न हो सकी, सिकंदर की हवस पूरी न हो सकी। अगर आपकी भी हवस बढ़ी हुई है तो फिर भगवान भी उसे पूरा नहीं कर सकते। अगर वह इस मिट्टी में स्वयं भी गिरे, तो भी आपकी हवस को पूरा नहीं कर सकता।
मित्रो! अपनी जरूरत के लिए आपको भगवान के सामने खुशामद करने और नाक रगड़ने की कोई भी जरूरत नहीं है। भगवान ने दो देवता पहले ही हमारे सुपुर्द कर दिए हैं और यह कहा है कि ये देवता ही सामान्य मनुष्य को जिंदगी की जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। और वे देवता हैं हमारे दो हाथ। छह फीट लंबा हमारा शरीर है और छह इंच लंबा हमारा पेट है। हम घास खोद सकते हैं, रिक्शा चला सकते हैं और दूसरा काम कर सकते है और अपना पेट भरने के लिए दाने मुहैया करा सकते हैं। हमारी अक्ल इतनी है कि तन ढकने के लिए कपड़े और शरीर को जिंदा रखने के लिए छाया हम अपनी अक्ल के सहारे इकट्ठा कर सकते हैं। अनाज पैदा कर सकते हैं। इसके लिए भगवान है क्या कहना ! नहीं साहब ! भगवान से दौलत माँगेंगे और संपत्ति माँगेंगे। आप दौलत क्यों माँगेंगे और किस काम के लिए माँगेंगे। अरे साहब ! हम मालदार बनना चाहते हैं, बड़े आदमी बनना चाहते है और अपनी हवस पूरी करना चाहते है।
नहीं बेटे। यह भगवान का काम नहीं है। यह दूसरों का काम है। इसका भगवान से कोई ताल्लुक नहीं है। नहीं साहब। हम तो लक्ष्मी जी की पूजा इसीलिए करते थे। नहीं बेटे, लक्ष्मी जी की पूजा इस काम के लिए करने की जरूरत नहीं है। इसके लिए दूसरा रास्ता है, तुम तो वह रास्ता ही भूल गए, भटक गए। साहब ! हम तो बच्चे पैदा करने के लिए हनुमान जी को खुश कर रहे थे। नहीं बेटे, हनुमान जी की पूजा करने की जरूरत नहीं है। हनुमान जी कैसे आपको बच्चे देंगे, उनके खुद बच्चे नहीं हैं। तो फिर किसकी पूजा करूँ? रावण की कर, क्योंकि रावण के एक लाख पूत और सवा लाख नाती थे। हनुमान जी की पूजा से क्या लाभ ! जब उनके यहाँ बच्चे हैं ही नहीं तो तुझे कहाँ से देंगे ! पागल कहीं का, हनुमान जी की पूजा करेगा। साहब! हम तो शंकर जी की पूजा करते हैं। किसलिए करता है? इसलिए करता हूँ, ताकि धन मिल जाए। शंकर जी के पास धन था क्या? मकान था क्या? नहीं था। कपड़ा था क्या? नहीं था। नंग- धड़ंग मरघट में पड़े रहते थे।
उनके अपने घर में तो लक्ष्मी है नहीं, तुझे और लक्ष्मी दे जाएँगे। गुरु जी ! मैं तो इसीलिए भजन करता था। नहीं बेटे, इसके लिए भजन करने की जरूरत नहीं है।
मिला असली अध्यात्म
मित्रो, असली अध्यात्म, जिसको पाकर मैं निहाल हो गया, धन्य हो गया; उसका तरीका आपको समझा रहा था। उसकी साइंस और फिलॉसफी समझा रहा था, जो आज से पचपन वर्ष पहले मुझे सिखाई और समझाई गई थी। सारी जिंदगी मैं उसी पर चला और अपनी जिंदगी में भगवान को हिस्सेदार बना लिया। जो जिंदगी की दौलत है, उसमें से मैंने शरीर को भी अपना हिस्सा दिया और भगवान को भी हिस्सा दिया। कमाई में दोनों हिस्सेदार हैं। जो हम कमाते हैं हमारे पास जो संपत्ति है- मसलन श्रम, बुद्धि, साधन, समय- ये भगवान की दी हुई संपदाएँ है। हम अपने जीवन की कमाई में इसे कमाते हैं। श्रम इस वक्त हमारे पास है। श्रम की ताकत हमारे पास है। पैसे की ताकत हमारे पास है। इसे हम दोनों में बाँट देंगे। शरीर को भी देंगे, क्योंकि यह हमारी सवारी है। यह हमारा घोड़ा है। घोड़े के लिए भी घास चाहिए। उसे घास नहीं देंगे तो हमको लंबा सफर तय करना है, घोड़ा जिएगा कैसे। शरीर को खुराक हम जरूर देंगे। कितनी खुराक देंगे? इसके बारे में भी तय करना पड़ा। यह कहा गया कि जिस देश के हम नागरिक हैं, जिस देश में हम रहते हैं, वहाँ औसत भारतीय स्तर का स्टैंडर्ड हमारा होना चाहिए। औसत भारतीय स्तर का हमारा लक्ष्य होना चाहिए।
हिंदुस्तान अपने सामान्य नागरिक को क्या भोजन दे सकता है? क्या वस्त्र दे सकता है? उसे किस स्तर की जिंदगी जीनी पड़ सकती है? यही हमारा स्टैंडर्ड है। आप अमेरिका में जन्मे हैं तो आपका स्तर दूसरा हो सकता है। अमेरिकी नागरिक को खरच करने के लिए जो पैसा मिलता है, उसमें से आप खरच करें और उस स्टैंडर्ड का जीवन जिएँ। अगर आप यहाँ बढ़िया स्तर बनाते हैं, ऊँचा स्तर बनाते है तो यह एक गलत बात है। फिर यह आध्यात्मिक जीवन नहीं रह जाता। सामान्य स्तर का जीवनयापन करने के लिए जो खरच करने की जरूरत थी, हमने अपने शरीर के लिए खरच किया। अब रही कुटुंब की समस्या? कुटुंब की समस्या का समाधान करने के लिए अपने कुटुंबियों को उनकी मनमरजी की दौलत उनके सुपुर्द कर देने से समस्या का हल नहीं हो सकता। विचार करना पड़ा कि जिनके कर्जे हमारे ऊपर चढ़ चुके हैं, वे भी इसमें हिस्सेदार हैं, जिनका कर्ज चुकाना अभी बाकी है। अभी हमको माँ का कर्ज चुकाना बाकी है, बाप का कर्ज चुकाना खाकी है। बाप की इतनी लंबी जिन्दगी से हमने खाया है और अपनी माँ का हमने दूध पिया है। सबसे पहले हम इनका कर्ज चुकाएँगे,
साहूकारी तब करेंगे। माता−पिता के खाद छोटे भाई- बहन का, छोटे बच्चों का भी कर्ज चुकाना है। छोटे भाई- बहनों को पढ़ाना पड़ेगा और उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने लायक बनाना पड़ेगा। हमें उनके लिए भी खरच करना है। नहीं साहब! हमारे घर में छोटा बच्चा है। मैं तो बेटे को ही दूँगा, और चार बेटे पैदा करूँगा और उन पर चार लाख खरच करूँगा। बेईमान कहीं का, केवल बेटे को ही देगा, अन्यों को नहीं।
आँखें खुलीं, प्रकाश मिल गया
मित्रो! मेरी आँखें खोल दीं भगवान ने और यह कहा कि तू हमारी जिंदगी में हिस्सेदार है। तू हमारे लिए काम कर। मित्रो! मेरी आँखें वहीं से और उसी दिन से खुल गई। आँखें खुल जाने का मतलब है- अध्यात्म का प्रकाश मिल जाना। जिस प्रकाश के लिए हम प्रार्थना करते हैं- तमसो मा ज्योतिर्गमय अर्थात हे भगवान ! आप प्रकाश दीजिए, जीवन में चमक पैदा कीजिए। चमक किसे कहते हैं? प्रकाश किसे कहते है? प्रकाश इसे कहते हैं, जो में आपसे निवेदन कर रहा था, जिससे कि मेरी आँखें खुल गई। अँधेरे में भटकता हुआ प्राणी, अँधेरे में भटकता हुआ भूत और प्रेत प्रकाश पाकर निहाल हो जाता है। मित्रो ! आज से पचपन वर्ष पहले मैं मनुष्य बन गया, देवता बन गया। पचपन वर्ष पहले की लंबी वाली मंजिल को एक- एक कदम पार करके बढ़ता हुआ चला आ रहा हूँ और यहाँ आ गया हूँ जहाँ कि आपके सामने खड़ा हूँ।
अब क्या सवाल रह गया? अब बेटे, यह सवाल रह गया कि जिस अध्यात्म की प्रशंसा ऋषियों ने गाई, पुस्तकों में गाई गई, राम- नाम की महत्ता जो संसार ने गाई, गायत्री मंत्र को महत्ता, जिसके बारे में अथर्ववेद ने जाने क्या से क्या कह दिया। कई बार तो संदेह होता है और अविश्वास होता है कि ये बातें गलत है, ये बातें सही नहीं हैं, जो बताई गईं हैं। जिस गायत्री मंत्र की महता को मैं आपको सिखाता हूँ और सारी दुनिया को समझाता हूँ, उसके बारे में अथर्ववेद में क्या समझाया गया है? उसके बारे में यह बताया गया है- "स्तुता मया वरदा वेदमाता प्र चोदयन्तां पावमानी द्विजानाम आयुः प्राणं प्रजां पशुं: कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसम् मह्मं दत्त्वा व्रजत ब्रह्मलोकम्। "" ये सात चीजें याद करनी है। महाराज जी! हमको तो तीन साल हो गए, तीन माला रोज जप करते हैं, लेकिन हमें तो कोई चमत्कार नहीं दिखाई पड़ा। हाँ बेटे, न तीन साल में मिला है और अब तेरी जिंदगी के जो तीस साल बचे हैं, न उसमें कोई मिलने वाला है। काहे को शाप दे रहे है? बेटे, इसलिए दे रहा हूँ कि न तुझे गायत्री मंत्र के बारे में कोई जानकारी है और न गायत्री मंत्र में खाद और पानी कैसे लगाया जाता है, इसका तुझे ज्ञान है। बीज बोने का तुझे ज्ञान है। वृक्षारोपण हर साल होता है। मिनिस्टर लोग आते हैं और जगह- जगह पेड़ लगा देते हैं। रोज अखबारों में छपता है कि एक लाख पेड़ लगाए गए। खाद- पानी दिया नहीं, रखवाली हुई नहीं, सब पेड़ गाय ने खा लिए, जानवर चर गए। गायत्री मंत्र को भी आप खाद- पानी नहीं लगा सकते, केबल बीज बोकर के, माला घुमा करके उसमें चमत्कार देखना चाहते हैं, तो यह नहीं हो सकता।
मित्रो ! अब मैं अपना बिस्तर समेटने की फिक्र में हूँ। बिस्तर समेटने के फेर में हूँ। दूसरी जिम्मेदारियों ने मुझे बुलाया है। दूसरे मोरचे पर भी बहुत काम पड़ा हुआ है। हिन्दुस्तान में आध्यात्मिकता का प्रकाश फैलाने के लिए जितना काम मेरे जिम्मे था, वह लगभग पूरा हो गया। हिंदुस्तान में काम करने के लिए जो कुछ और मेरे जिम्मे बचा हुआ है, उसे एक−दो वर्ष में समाप्त करके उसका किस्सा खत्म करूँगा। फिर मैं कहाँ जाऊँगा? फिर मेरा ट्रांसफर तैयार किया हुआ रखा है। मेरा बिस्तर बँधा हुआ रखा है। मैं कहीं और चला जाऊँगा। आप कहाँ- कहाँ जाएँगे? बेटे, मुझे बहुत जगह जाना है। हिंदुओं के बीच में मुझे काम करने के लिए हिंदू बनकर आना पड़ा। अब कहाँ जाना पड़ेगा आपको? बेटे, सारे हिंदुस्तान में तो हिंदू बत्तीस- तैंतीस करोड़ हैं और दो करोड़ बाहर हैं। सारी दुनिया में चौंतीस करोड़ हिंदू हैं। अभी और कौन हैं, जहाँ आप जाएँगे? बेटे, अस्सी करोड़ मुसलमान हैं, संभव है, मुझे वहाँ जाना पड़े। क्या आप वहाँ भी यही हिंदुओं की तरह क्रांति करेंगे? बेटे, यहीं क्रांति मैं वहाँ भी कर सकता हूँ। फिर बहुत जगह मेरे ट्रांसफर बने हुए पड़े हैं? मैं बिस्तर उठाने वाला हूँ।
आपकी यहाँ बुलाने का उद्देश्य
साथियों! मैं आपको यहाँ क्यों बुलाता हूँ? मैं आपको यहाँ सम्मेलनों के लिए, उद्घाटनों के लिए नहीं बुलाता हूँ। समारोहों में भाग लेने के लिए आपको नहीं बुलाता हूँ। मैं किसलिए बुलाता हूँ? में इसलिए बुलाता हूँ कि अपनी जिन्दगी का सार और निचोड़ आपके सामने सुपुर्द करने में सफल हो सकूँ। मेरी पचपन साल की जिंदगी के अनुभव यही हैं कि मनुष्य के लिए सबसे बड़ी समझदारी की बात और सबसे बड़ी बहादुरी की बात यह है कि वह भगवान को अपनी जिंदगी में शामिल कर ले और अपनी जिंदगी की कीमत समझें। अगर आप अपनी जिंदगी की कीमत समझ लें, जैसा कि आपको अभी तक समझ में नहीं आई। जिंदगी की कीमत आपकी समझ में कहाँ आई है? आप करोड़ों में अपने को दरिद्र मानते हैं, अपने को दुखी मानते हैं, अपने आप को अभागा मानते हैं। समस्याओं से अपने आप को घिरा हुआ मानते हैं और जाने क्या- क्या मानते हैं। कभी कभी तो मरने को बात सोचते हैं, आत्महत्या की वात सोचते हैं। जिंदगी की कीमत आपको कहाँ मालूम है? जिंदगी का महत्त्व आपको कहाँ मालूम है? जिंदगी की सामर्थ्य आपको कहाँ मालूम है? जिंदगी की संभावनाएँ आपको कहाँ मालूम हैं?
जिंदगी की संभावनाएँ अगर आपको मालूम होतीं तो आपकी आँखें टार्च के तरीके से चमकती और आपकी गरदन फूलकर शेर की तरह हो जाती और आप सोचते कि हमारे पास इनसानी जिंदगी है। इस जिंदगी से हम जाने क्या- क्या कर सकते हैं?
मित्रो। इनसानी जिंदगी को गिराने वाले जिस दिन चौंक पड़े और उन्होंने इसे ठीक तरह से इस्तेमाल करना शुरू कर दिया तो उन्हें मजा आ गया। कौन- कौन चौंक पड़े? बेटे, उनमें से एक का नाम आम्रपाली है, जो दुनिया को गिराने वाली एक महिला थी। लेकिन जब उसने जिंदगी की धाराएँ बदल दीं तो धन्य हो गई। फिर क्या हो गई? फिर ऐसी ऋषि हुई कि तवारीख में उसका नाम हमेशा बना रहेगा। अंगुलिमाल एक निकम्मा आदमी था, घटिया आदमी था। चोर और डाकू था, लेकिन उसने इसी जिंदगी में अपने जीवन की धारा बदल दी। अगले जन्म की बात कौन कर रहा है? हम तो इसी जन्म की बात कहते हैं। अरे साहब! अगले जन्म में संत हो जाएँगे, स्वर्ग में चले जाएँगे। नहीं बेटे, अगले जन्म में नहीं, इसी जन्म की बात कहते हैं हम। अंगुलिमाल ने अपने जीवन की दिशाधारा इसी जीवन में बदल दी और भगवान बुद्ध का दाहिना हाथ बन गया।
प्रभु के तारने का तरीका
अजामिल, गीध, गणिका तारे, तारे सदन कसाई। क्यों महाराज जी! भगवान इन्हें तार देते है? बिलकुल तार देते हैं। कैसे? तार देने का एक ही तरीका है कि आदमी चौंक पड़ता है और अपनी जिन्दगी की दिशाएँ बदल देता है। तो क्या भगवान ने बिल्वमंगल को तारा ?? बिलकुल तारा, लेकिन तारने से पहले उनको सूरदास बना दिया। तारने से पहले भगवान उनकी जिंदगी की दिशाएँ बदल देते हैं। भगवान हमारा कल्याण करने वाले हैं कि नहीं इसकी पहचान एक ही है कि हमारे जीवन के स्वरूप और हमारे जीवन की दिशाधारा को बदल दें। अगर भगवान हमारे जीवन की दिशाधारा को बदल नहीं रहे हों तो जानना चाहिए कि हमारी कल्पनाएँ निरर्थक हैं। हमको भगवान में कोई रस आता है? भगवान से हमारा कोई संबंध है? बिलकुल नहीं है। भगवान से अगर कोई संबंध रहा होता तो आपके जीवन की धाराएँ बदल गई होती। तुलसीदास जी निकम्मे आदमी थे, आपने उनके सारे किस्से सुने हैं, लेकिन जब भगवान ने उनको प्यार किया तो क्या- क्या हुआ? भगवान के प्यार में एक ही विशेषता है कि जैसे पारस लोहे को छुएगा तो उसे सोना बना देगा। तुलसीदास भी सोना बन गए। संत बन गए, को बन गए।
महाराज जी! हमारे घर में पूजा की एक चौकी बनी हुई है। उसमें देवी की स्थापना है, गणेश जी की स्थापना है, हनुमान जी की स्थापना है। तो गणेश जी ने तुझे छुआ क्या? नहीं, मुझे छुआ तो नहीं। लक्ष्मी जी ने छुआ? नहीं, अगर छुआ होता तो बेटा तू सोना हो जाता, पारस हो जाता। नहीं महाराज जी ! मुझे तो देवी सपने में दिखाई पड़ती है। मुझे नहीं मालूम क्या दिखाई पड़ती है बेटे, अगर देवी सपने में दिखाई पड़ी होती तो तू अपने जीवन में क्या से क्या बन गया होता।
मित्रो। मैंने आपको इसलिए बुलाया है कि अब जब मैं जाने की तैयारी में हूँ अगर आप में समझदारी हो तो आप एक हिम्मत करके दिखाएँ कि भगवान के साथ रिश्तेदारी पैदा कर लें। रिश्तेदारी करने के बाद मनुष्य क्या पा सकता है? बेटे, मैं कुछ कह नहीं सकता। उदाहरण मैंने बीसियों बार छापे हैं। रामकृष्ण परमहंस और विवेकानन्द का किस्सा मैंने छापा है। ये मनुष्यों की सहायता की जोड़ियाँ छापी है। चाणक्य और चन्द्रगुप्त का किस्सा, समर्थ गुरु रामदास और शिवाजी का किस्सा छापा है। मांधाता और शंकराचार्य का किस्सा छापा है। लालबहादुर शास्त्री और जवाहरलाल नेहरू का किस्सा छापा हैं। इन जोड़ों से आप भी कुछ सीखें और आप भी भगवान से रिश्तेदारी बना लें।
आज की बात समाप्त।
।। ॐ शांति: ।।