Books - देव संस्कृति व्यापक बनेगी सीमित न रहेगी
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Language: MARATHI
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सशक्त सुव्यवस्थित धर्मतंत्र
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धर्मतन्त्र भी राजतन्त्र की तरह एक समर्थ सत्ता है। उसके प्रति श्रद्धालुओं की भावभरी श्रद्धांजलियां प्रस्तुत होती है। अनुयायी पूजा-उपासना से लेकर धार्मिक आयोजनों एवं कार्य-कलापों में ढेरों समय लगाते हैं। इसके अतिरिक्त दान पुण्य के रूप में प्रचुर धनराशि भी निकलती है। भारत की तरह प्रवासी समुदाय भी इस संदर्भ में उदारतापूर्वक खर्च करता है। किन्तु उस श्रद्धा संचय का भारत की तरह वहां भी अपव्यय ही होता है। प्रवासी समुदाय को चर्च से प्रेरणा लेकर ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिये कि श्रम, समय, भावना एवं धन के रूप में प्रस्तुत की जाने वाली श्रद्धांजलि का एक-एक कण सदुद्देश्य के लिये प्रयुक्त हो। इसके लिए विश्वस्तरीय ‘‘युगान्तरीय चेतना अभियान’’ के रूप में एक धार्मिक तन्त्र का गठन हर देश में हो सकता है। उसे सुनियोजित रीति से चलाने के लिये ऐसे संचालकों की—पादरियों की आवश्यकता पड़ेगी जो मनमानी न बरतें। एक अनुशासन में रह कर सुनियोजित कार्य पद्धति को पूरा करने में निरत रह कर उस धर्म एवं संस्कृति की सच्ची सेवा करें जिसको दुहाई देकर वे निरर्थक या अनुपयुक्त विडम्बनाएं रचते रहते हैं।
ईसाई मिशन के पादरियों के लिये एक पाठ्य पद्धति निर्धारित की है। उसे पूर्ण कर लेने के उपरान्त ही किसी को मान्यता प्राप्त पादरी बनने का अधिकार मिलता है। यही पद्धति प्रवासी क्षेत्र में धर्म चेतना का सूत्र-संचालन करने वाले पुरोहितों के सम्बन्ध में होनी चाहिए। यह विश्व विद्यालय फिलहाल गायत्री नगर, हरिद्वार में आरंभ किया जाय। शिक्षण प्राप्त करने कुछ लोग प्रारम्भ में यहीं आवें। पीछे उसकी शाखा अपने-अपने देश में स्थापित करके उस प्रशिक्षण के अन्तर्गत धर्म पुरोहितों का—भारतीय पादरियों का उत्पादन करें। इस प्रक्रिया के चल पड़ने पर विश्व भर के प्रवासियों को अभिनव आधार प्राप्त होगा, सांस्कृतिक क्षुधा निवारण हेतु स्वावलम्बी बन जाने पर उन्हें धर्म चेतना का समुचित सत्परिणाम उपलब्ध होने लगेगा।
ऊपर की पंक्तियों में कुछ आवश्यक प्रसंगों की संक्षिप्त चर्चा की गई है। हर दिशा की स्थिति को देखते हुए वहां के लिए अन्य अतिरिक्त आधार सोचे और संभाले जा सकते हैं। समस्याओं पर गंभीर चिन्तन और उनके समाधान का उपाय-उपचार खोजते रहने के लिए निष्णातों, विशेषज्ञों एवं भावनाशीलों की गम्भीर मन्त्रणायें चलती रह सकती हैं और उस ऊहापोह के प्रसंग एवं निष्कर्षों से प्रवासियों एवं उनके हितैषियों को अवगत कराये जाते रहने का सिलसिला चल सकता है।
ईसाई मिशन के पादरियों के लिये एक पाठ्य पद्धति निर्धारित की है। उसे पूर्ण कर लेने के उपरान्त ही किसी को मान्यता प्राप्त पादरी बनने का अधिकार मिलता है। यही पद्धति प्रवासी क्षेत्र में धर्म चेतना का सूत्र-संचालन करने वाले पुरोहितों के सम्बन्ध में होनी चाहिए। यह विश्व विद्यालय फिलहाल गायत्री नगर, हरिद्वार में आरंभ किया जाय। शिक्षण प्राप्त करने कुछ लोग प्रारम्भ में यहीं आवें। पीछे उसकी शाखा अपने-अपने देश में स्थापित करके उस प्रशिक्षण के अन्तर्गत धर्म पुरोहितों का—भारतीय पादरियों का उत्पादन करें। इस प्रक्रिया के चल पड़ने पर विश्व भर के प्रवासियों को अभिनव आधार प्राप्त होगा, सांस्कृतिक क्षुधा निवारण हेतु स्वावलम्बी बन जाने पर उन्हें धर्म चेतना का समुचित सत्परिणाम उपलब्ध होने लगेगा।
ऊपर की पंक्तियों में कुछ आवश्यक प्रसंगों की संक्षिप्त चर्चा की गई है। हर दिशा की स्थिति को देखते हुए वहां के लिए अन्य अतिरिक्त आधार सोचे और संभाले जा सकते हैं। समस्याओं पर गंभीर चिन्तन और उनके समाधान का उपाय-उपचार खोजते रहने के लिए निष्णातों, विशेषज्ञों एवं भावनाशीलों की गम्भीर मन्त्रणायें चलती रह सकती हैं और उस ऊहापोह के प्रसंग एवं निष्कर्षों से प्रवासियों एवं उनके हितैषियों को अवगत कराये जाते रहने का सिलसिला चल सकता है।